कीट-पतंगों की उड़ान की पहेली सुलझी
वैज्ञानिक बहुत समय से ताज्जुब करते आए हैं कि कीट-पतंगे अपने भारी शरीर और नाज़ुक पंखों से हवा में कैसे उड़ते रह सकते हैं। ये छोटे जीव वायुगतिकी के परंपरागत सिद्धांतों का विरोध करते नज़र आते हैं। केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, इंग्लॆंड के खोजकर्ताओं ने अब पता लगा लिया है कि कीट-पतंगे यह नामुमकिन दिखनेवाला काम कैसे करते हैं।
कीट-पतंगों की उड़ान का अध्ययन करने के लिए, वैज्ञानिकों ने एक हॉकमॉथ को धागे से बाँधकर उसे एक वात सुरंग के अंदर लटका दिया। उन्होंने सुरंग में धुआँ पंप किया और जब पतंगे ने पंख फड़फड़ाए तो उस धुएँ के बहाव को नोट किया। फिर उन्होंने एक १० गुना बड़ा मशीनी मॉडल तैयार किया जो अपने पंखों को १०० गुना धीमी रफ़्तार से फड़फड़ाता था और फिर उसके असर को देखा, जो अब आसानी से नज़र आ रहा था। उन्होंने पाया कि जब पतंगे का पंख नीचे की तरफ़ आना शुरू करता है तो पंख की जड़ में, हवा का एक चक्रवात यानी भँवर पैदा होता है। इसकी वज़ह से पंख के ऊपर होनेवाला निम्न दबाव उड़ान शुरू करता है, जिससे पतंगा ऊपर उठ जाता है। अगर चक्रवात टूट जाए, तो पतंगा उड़ नहीं पाएगा और ज़मीन पर आ गिरेगा। इसके बजाय, हवा का चक्र पंख के किनारे से होता हुआ पंख के सिरे की तरफ़ बढ़ता है। और पंख नीचे मारने पर शुरू होनेवाली उड़ान, जो कि पतंगे के वज़न के डेढ़ गुना के बराबर होती है, पतंगे के लिए उड़ना बड़ा आसान कर देती है।
वैमानिक इंजीनियर पहले से ही जानते थे कि डेल्टा-विंग हवाईजहाज़ (यूनानी अक्षर Δ जैसे आकार के डैनों के कारण यह नाम पड़ा है) अपने डैनों (पंखों) के सिरों पर चक्रवात पैदा करते हैं, जो कि उड़ान शुरू करते हैं। मगर अब, जब वे जान गए हैं कि पंख फड़फड़ानेवाले कीट-पतंगों के लिए चक्रवात किस तरह उड़ान शुरू करते हैं, तो वे इस बात का अध्ययन करना चाहते हैं कि प्रॉपॆलर और हॆलिकॉप्टरों के डिज़ाइन करने में इस अजूबे का कैसे लाभ उठाएँ।