“बढ़िया शनिवार के लिए साक्षियों को मेरा धन्यवाद”
नॉर्वे में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
नॉर्वे के दैनिक टॆलिमार्क अर्बेयडर्बला के स्तंभ लेखक, एविन ब्लिकस्टा ने अपने लेख की शुरूआत उक्त शब्दों से की। पहले, उसने अनचाहे पत्र विज्ञापनों, फ़ोन विज्ञापनों, और घर-घर भेंट के द्वारा—ख़ासकर शनिवार सुबह—तंग किये जाने पर खीज व्यक्त की। फिर उसने लिखा:
“अचानक, वे आ पहुँचे। दरवाज़े पर खड़े हो गये। यहोवा के साक्षी। शनिवार सुबह। अपनी सजग होइए! (अंग्रेज़ी) पत्रिका, नं. १७, सितंबर ८, १९९६ साथ लिये। [“अमरीकी आदिवासी—उनका क्या भविष्य है?”] उन्होंने पूछा कि क्या मैं यह पत्रिका पढ़ना चाहूँगा क्योंकि इसमें कुछ ऐसा विषय था जो उन्होंने सोचा कि मुझे पसंद आएगा। . . . इससे पहले कि मैं बोल पाता कि मुझे दिलचस्पी नहीं है, उनमें से एक ने कहा: ‘अमरीकी आदिवासियों पर एक लेख है। हम जानते हैं कि आप इस विषय पर काफ़ी कुछ लिखते रहे हैं।’
“उनकी इतनी सी बात ने मुझे लुभा लिया। क्योंकि जब कोई आपकी बड़ाई करता है तब आपका कठोर रुख़ भी नरम पड़ जाता है। घर में, नाश्ता करते समय, मैं जिज्ञासु हो उठा। यह तो मानना होगा कि यहोवा के साक्षी और अमरीकी आदिवासियों का भविष्य थोड़ा अजीब-सा जोड़ है। मैंने अपना चश्मा चढ़ाया और बेमन से पढ़ना शुरू किया, मानो इसमें पढ़ने लायक़ कुछ नहीं, समय की बरबादी भर है।
“थोड़े में कहूँ, साक्षी जो लेख अमरीकी आदिवासियों की दशा के बारे में प्रस्तुत कर रहे हैं वह अच्छा ही नहीं—बहुत बढ़िया है। मैं सलाह देता हूँ कि नॉर्वे के स्कूल शिक्षक अपनी पूर्वधारणाओं को मन से निकाल दें। अपनी कक्षाओं में सब के लिए इसकी प्रतियाँ मँगवाएँ! संदर्भ स्रोतों का बड़ा अच्छा प्रयोग किया गया है, और शैक्षिक प्रस्तुति एकदम स्पष्ट है। यह उन प्रश्नों पर भी एकदम ईमानदारी से चर्चा करती है जिन पर आदिवासियों और साक्षियों के विचार भिन्न हैं। कोई बेईमानी नहीं। एक समस्या है कि आदिवासियों के लिए आरक्षित कई स्थानों पर कैसीनो स्थापित करने चाहिए या नहीं। इनसे रोज़गार मिलता है जिसकी काफ़ी ज़रूरत है, लेकिन नैतिक प्रश्न भी खड़े होते हैं। इस प्रश्न को कुशलतापूर्वक ऐसे ढंग से सँभाला गया है कि पाठक को इसकी अंतर्दृष्टि मिलती है कि हमारी सदी में एक आदिवासी होना कैसा है।”
ब्लिकस्टा अंत में कहता है: “इसे पढ़ने से ताज़गी पाकर, मैंने लगे हाथ सजग होइए! के बाक़ी लेख भी पढ़ डाले। इनाम के तौर पर, उन आराधनालयों और गिरजों के बारे में एक बहुत ही मर्मस्पर्शी लेख मिला जो रॉन्डा की खदान घाटी, वेल्स में बंद हो रहे हैं। . . .
“क्या मैं अपनी सूझबूझ पूरी तरह खो बैठा हूँ? क्या मुझ नास्तिक ने बिना किसी आपत्ति के साक्षियों के मत अपना लिये हैं? . . . आज के दिन नहीं। हमें पूर्वधारणा को दूर करने के महत्त्व के बारे में बार-बार याद दिलाये जाने की ज़रूरत है। अगली बार जब मैं साक्षियों पर झूठ बोलने के आरोप की बात सुनूँगा, तब कम से कम मुझे इतना तो पता होगा कि उन्होंने आदिवासियों के बारे में झूठ नहीं बोला।”
आदिवासी अमरीकियों पर सजग होइए! अंक की ख़ास माँग के कारण, वॉचटावर सोसाइटी की न्यू यॉर्क प्रॆसों में ३७,००० अतिरिक्त प्रतियाँ छापी गयीं। अरिज़ोना में एक कलीसिया ने अपने क्षेत्र में ख़ास अभियान के लिए १०,००० प्रतियाँ माँगीं।
यदि आप यहोवा के साक्षियों के बारे में सच्चाई जानना चाहते हैं, तो पृष्ठ ५ पर दिये गये निकटतम पते का इस्तेमाल करके, कृपया इस पत्रिका के प्रकाशकों को निःसंकोच लिखिए, या अपने स्थानीय राज्यगृह में फ़ोन कीजिए। कोई माँग नहीं, कोई ख़र्च नहीं। बस स्पष्ट उत्तर।
[पेज 27 पर चित्र का श्रेय]
आदिवासी चेहरा: D. F. Barry Photograph, Thomas M. Heski Collection; नाचता आदिवासी: Men: A Pictorial Archive from Nineteenth-Century Sources/Dover Publications, Inc.; शंकुरूप तंबू: Leslie’s; आयताकार डिज़ाइन: Decorative Art; गोल डिज़ाइन: Authentic Indian Designs