मधुमक्खी कब मधुमक्खी नहीं होती?
मधुमक्खियों का जीवन बहुत व्यस्त होता है। हर दिन वे सैकड़ों फूलों पर जाती हैं और उनका रस छत्ते में ले आती हैं। वसंत-ऋतु आने पर नर मधुमक्खी एक साथी ढूँढ़ता है। इसके लिए वह दृष्टि और सूँघने की शक्ति पर निर्भर रहता है। लेकिन, एक अजीब-सी चीज़ भी निकटदर्शी मधुमक्खी का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है—वह है ऑर्किड फूल।
दक्षिणी यूरोप में, कई जंगली ऑर्किड हैं जिनका निषेचन मादा मधुमक्खी का स्वाँग भरने पर निर्भर होता है। इन ऑर्किडों को पराग की “पोटलियाँ” संगी ऑर्किडों तक भेजने की ज़रूरत होती है। मधुमक्खियाँ इसकी आदर्श वाहक होती हैं। लेकिन ऑर्किडों के पास मधुमक्खियों को आकर्षित करने के लिए स्वादिष्ट रस नहीं होता, इसलिए उन्हें मानो चालबाज़ी करनी पड़ती है। और चाल यह है कि ऑर्किड फूल इस हद तक मादा मधुमक्खी के जैसा दिखता और महकता है कि नर मधुमक्खी उसके साथ जोड़ा खाने की कोशिश करता है! ऑर्किडों की हर प्रजाति का अपना ही स्वाँग और सुगंध है।
जब तक मधुमक्खी को अपनी ग़लती समझ आती है, ऑर्किड ने उसके शरीर पर पराग का एक चिपचिपा पैकॆट लगा दिया होता है। तब मधुमक्खी उड़ जाता है, और एक बार फिर दूसरा ऑर्किड उसे बेवकूफ़ बनाता है, जो पराग को ले लेता है। कई बार धोखा खाने के बाद, मधुमक्खी को एहसास होता है कि इन ऑर्किडों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। तब तक, उसने संभवतः कुछ फूलों को परागित कर दिया होता है।
इन नासमझ ऑर्किडों ने मधुमक्खियों को बेवकूफ़ बनाने के लिए एकदम सही महक और रूप कैसे पाया? ऐसे शानदार करतब एक बुद्धिमान रचयिता का सबूत देते हैं, जिसकी सृष्टि अचंभे में डालने और मन मोहने से कभी चूकती नहीं।