युवा लोग पूछते हैं . . .
क्या मैं स्कूल में ज़्यादा सफल हो सकता हूँ?
“मेरे माता-पिता के लिए तो नंबर ही सब कुछ हैं। ‘गणित की परीक्षा में कितने नंबर मिले? अंग्रेज़ी की परीक्षा में कितने नंबर मिले?’ मुझे इससे नफरत है!”—१३-वर्षीय सैम।
सैम अकेला नहीं है जिसकी यह दशा है। असल में, पुस्तक “और सफल हो सकते हैं” (अंग्रेज़ी) के लेखक लिखते हैं: “अब तक हमें ऐसे माता-पिता नहीं मिले जो सोचते हैं कि उनका बच्चा स्कूल में अपनी क्षमता भर मेहनत कर रहा है।” लेकिन सैम की तरह अनेक युवाओं को लगता है कि उनके माता-पिता स्कूल में ज़्यादा सफल होने—यहाँ तक कि शायद सबसे आगे रहने—के लिए उन पर बहुत ज़्यादा दबाव डाल रहे हैं। कक्षा में उन पर और भी दबाव आ सकता है। “शिक्षकों में धीरज की कमी है,” एक किशोर शिकायत करता है। “वे चाहते हैं कि आप बातों को तुरंत याद कर लें और यदि आप नहीं कर पाते, तो वे आपको बुद्धू समझते हैं। सो मैं कोशिश ही नहीं करता।”
जो युवा अपने माता-पिता और शिक्षकों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते उन्हें अकसर अल्प-सफल (अंडरअचीवर) कहा जाता है। और लगभग सभी छात्र स्कूल में एक-न-एक समय अल्प-सफल होते हैं। क्यों? दिलचस्पी की बात है, आलस या सीखने की असमर्थता ही हमेशा इसका कारण नहीं होते।a
अल्प-सफल होने का कारण
माना, जब स्कूल के काम की बात आती है, तब कुछ युवा थोड़ा-बहुत करके संतुष्ट दिखायी पड़ते हैं। “यदि मैं थोड़ी-सी मेहनत से काम चला सकता हूँ,” १५-वर्षीय हर्मन स्वीकार करता है, “तो मैं बस उतना ही करता हूँ।” लेकिन, पूरी ईमानदारी से कहें तो इनमें से सभी युवा सीखने के बारे में लापरवाह नहीं हैं। हो सकता है कि उन्हें अमुक विषय नीरस लगता है। फिर ऐसे भी युवा हैं जिन्हें यह समझने में मुश्किल होती है कि जो वे सीख रहे हैं उसका व्यावहारिक महत्त्व क्या है। १७-वर्षीय रूबन ने इस तरह कहा: “ऐसे भी विषय हैं जो मुझे पक्का पता है कि स्कूल छोड़ने के बाद कभी मेरे काम नहीं आएँगे।” दिलचस्पी या प्रेरणा की कमी आसानी से अल्प-सफलता का कारण बन सकती है।
दूसरे कारण भी हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक शिक्षक बहुत जल्दी-जल्दी पढ़ाता है, तो आप कुंठित हो जाएँगे। यदि वह बहुत धीरे-धीरे पढ़ाता है, तो आप बोर हो जाएँगे। समकक्ष दबाव भी इस पर प्रभाव डाल सकता है कि आप स्कूल में कितनी मेहनत करते हैं। पुस्तक जो बच्चे अल्प-सफल होते हैं (अंग्रेज़ी) बताती है: “वह बच्चा जो पढ़ने में तेज़ है और उच्च शिक्षा पाने की योग्यता रखता है, यदि यह चाहता है कि बच्चों के उस समूह में स्वीकार किया जाए जो उच्च शिक्षा का लक्ष्य नहीं रखते, तो वह अल्प-सफल होने के लिए विवश-सा हो सकता है।” अतः, एक किशोर ने शिकायत की कि जब पहले वह स्कूल में बहुत मेहनत करता था, तब दूसरे उससे जलते थे और उसका मज़ाक उड़ाते थे। जी हाँ, एक युवा नीतिवचन १४:१७ (NW) के सिद्धांत की वास्तविकता का सामना कर सकता है: “सोचने की क्षमता रखनेवाले पुरुष से घृणा की जाती है।”
कभी-कभी, अल्प-सफलता की जड़ें और भी गहरी होती हैं। दुःख की बात है कि कुछ युवा नकारात्मक आत्म-छवि के साथ बड़े होते हैं। ऐसा तब हो सकता है जब बच्चे को हर समय अपमानजनक नाम दिये जाते हैं, जैसे काहिल, जाहिल, या आलसी। अफसोस की बात है कि ऐसे ठप्पे लगाये जाने पर बच्चा वैसा ही बन भी सकता है। एक डॉक्टर ने कहा, “यदि आपसे कहा जाता है कि आप बुद्धू हैं और आप इसे सच मान बैठते हैं, तो आप वैसा ही काम भी करेंगे।”
प्रायः, माता-पिता और शिक्षक नेक इरादे से उकसाते हैं। लेकिन, इसके बावजूद युवाओं को लग सकता है कि उनसे ज़रूरत से ज़्यादा माँग की जा रही है। यदि आपको भी ऐसा ही लगता है, तो सच मानिए आपके माता-पिता और शिक्षक आपको सताने की कोशिश नहीं कर रहे। वे तो शायद इतना ही चाहते हों कि आपकी पूरी क्षमता निखरकर सामने आये। फिर भी, योग्यता दिखाने की चिंता इतनी बढ़ सकती है कि आप हार मानने को तैयार हो जाएँ। लेकिन हार मत मानिए: आप स्कूल में ज़्यादा सफल हो सकते हैं।
प्रेरित होना
पहला कदम है प्रेरित होना! इसके लिए, आपको यह देखने की ज़रूरत है कि जो आप सीख रहे हैं वह लाभकारी है। बाइबल कहती है: “जोतनेवाला आशा से जोते, और दावनेवाला भागी होने की आशा से दावनी करे।” (१ कुरिन्थियों ९:१०) अमुक विषयों में “जुते रहने” के महत्त्व को देखना हमेशा आसान नहीं होता। उदाहरण के लिए, आप कह सकते हैं, ‘मैं कंप्यूटर प्रोग्रामर बनना चाहता हूँ। सो मुझे इतिहास पढ़ने की क्या ज़रूरत है?’
माना, आपके स्कूल पाठ्यक्रम में हर चीज़ लाभकारी न दिखे—कम-से-कम अभी तो नहीं। लेकिन आगे की सोचकर देखिए। तरह-तरह के विषयों में सामान्य शिक्षा आपके आस-पास के संसार के बारे में आपकी समझ बढ़ाएगी। यहोवा के साक्षियों के बीच अनेक युवाओं ने पाया है कि समूची शिक्षा ने उन्हें ‘सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बनने’ में मदद दी है, विभिन्न वर्गों के लोगों को राज्य संदेश प्रस्तुत करना उनके लिए ज़्यादा आसान बन गया है। (१ कुरिन्थियों ९:२२) यदि ऐसा लगता है कि एक विषय का व्यावहारिक महत्त्व बहुत कम है, तो भी आप उसमें निपुण होने से लाभ ही प्राप्त करेंगे। कम-से-कम, आप अपनी “सोचने की क्षमता” (NW) बढ़ाएँगे। यह ऐसी चीज़ है जो आगे चलकर आपको बहुत लाभ पहुँचाएगी।—नीतिवचन १:१-४.
स्कूल आपके छिपे हुए कौशल को बाहर निकालने का काम भी कर सकता है। प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को लिखा: “तू परमेश्वर के उस बरदान को जो . . . तुझे मिला है चमका दे।” (२ तीमुथियुस १:६) प्रत्यक्षतः तीमुथियुस को मसीही कलीसिया में किसी विशेष सेवा के लिए नियुक्त किया गया था। लेकिन उसकी परमेश्वर-प्रदत्त क्षमता—उसके “बरदान”—को विकसित किये जाने की ज़रूरत थी, नहीं तो वह अंदर ही दबी रह जाती और बरबाद हो जाती। यह सही है कि आपकी शैक्षिक क्षमताएँ परमेश्वर ने सीधे आपको प्रदान नहीं की हैं, जैसे तीमुथियुस का वरदान था। फिर भी, जो क्षमताएँ आपके पास हैं—चाहे वे कला, संगीत, गणित, विज्ञान, या दूसरे क्षेत्र में हों—आपके लिए खास हैं, और स्कूल आपको ऐसे वरदानों को पहचानने और विकसित करने में मदद दे सकता है।
अध्ययन की अच्छी आदतें
लेकिन, स्कूल से ज़्यादा-से-ज़्यादा लाभ उठाने के लिए आपको अध्ययन के एक अच्छे नित्यक्रम की ज़रूरत होगी। (फिलिप्पियों ३:१६ से तुलना कीजिए।) काफी पढ़ाई करने के लिए पर्याप्त समय रखिए, लेकिन बीच-बीच में थोड़ा आराम कीजिए ताकि आप खुद को ताज़ा कर सकें। यदि आपको पठन करना है तो पहले जानकारी पर सरसरी नज़र डालिए ताकि आपको उसकी रूपरेखा मिल जाए। उसके बाद, अध्याय विषय या मुख्य शीर्षकों के आधार पर प्रश्न बनाइए। फिर पढ़िए, और पढ़ते-पढ़ते अपने प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ते जाइए। आखिर में, देखिए कि जो आपने सीखा है क्या आप उसे अपनी याददाश्त से बता सकते हैं।
जो आप सीखते हैं उसे उन बातों के साथ जोड़िए जो आप पहले से जानते हैं। उदाहरण के लिए, विज्ञान का पाठ एक ऐसा झरोखा बन सकता है जिसके द्वारा परमेश्वर के “अनदेखे गुण . . . देखने में आते हैं।” (रोमियों १:२०) इतिहास आपके लिए इस कथन की सत्यता साबित कर सकता है: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” (यिर्मयाह १०:२३) मन लगाकर पढ़ाई करें, तो संभवतः आप पाएँगे कि सीखना ज़्यादा आसान बन जाता है—ज़्यादा मज़ेदार भी! सुलैमान ने कहा: “समझवाले को ज्ञान सहज से मिलता है।”—नीतिवचन १४:६.
सकारात्मक मनोवृत्ति रखिए
लेकिन, कभी-कभी अल्प-सफलता का संबंध इससे होता है कि आपके मित्र कैसे हैं। क्या आपके मित्र सफलता को महत्त्व देते हैं, या क्या वे खुद अल्प-सफल हैं? बाइबल नीतिवचन कहता है: “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।” (नीतिवचन १३:२०) सो बुद्धिमानी से अपने साथी चुनिए। उनकी संगति कीजिए जिनकी स्कूल के प्रति सकारात्मक मनोवृत्ति है। अपने नंबर सुधारने के अपने लक्ष्य के बारे में व्यक्तिगत रूप से अपने शिक्षक से बात करने से मत झिझकिए। आपको अपना लक्ष्य प्राप्त करने में मदद देने के लिए आपका शिक्षक ज़रूर और भी प्रयास करेगा।
जब अपनी क्षमताओं के बारे में नकारात्मक विचार आपको घेर लेते हैं, तब प्रेरित पौलुस के उदाहरण पर विचार कीजिए। जब लोगों ने उसकी वाक्क्षमता की आलोचना की, तब उसने जवाब दिया: “यदि मैं वक्तव्य में अनाड़ी हूं, तौभी ज्ञान में नहीं।” (२ कुरिन्थियों १०:१०; ११:६) जी हाँ, पौलुस ने अपनी खूबियों पर ध्यान लगाया, अपनी कमज़ोरियों पर नहीं। आपकी खूबियाँ क्या हैं? यदि आप उन्हें एक-एक करके नहीं गिना सकते, तो क्यों न किसी मददगार वयस्क से बात करें? ऐसा मित्र आपको अपनी खूबियाँ पहचानने और उनका पूरा-पूरा लाभ उठाने में मदद दे सकता है।
समस्याओं के बावजूद प्रगति करना
“इनके लिए प्रयत्नशील रह और इन पर अपना पूरा मन लगा, जिस से तेरी प्रगति सब पर प्रकट हो जाए।” (१ तीमुथियुस ४:१५, NHT) जैसे एक पिता अपने पुत्र से बोलता है, वैसे ही पौलुस ने तीमुथियुस को, जो पहले ही सफल था, यह प्रोत्साहन दिया कि अपनी सेवकाई में और भी प्रगति करे। बाइबल समय में यूनानी क्रिया “प्रगति” का आक्षरिक अर्थ था “काटकर आगे बढ़ना।” यह ऐसे व्यक्ति का विचार देता है जो झाड़ियों को काटता हुआ अपना रास्ता बनाता है। कभी-कभी, स्कूल में पढ़ना भी ऐसा ही लग सकता है। लेकिन स्कूल का सफर पूरा करना कहीं आसान होगा यदि आप सोचते हैं कि अंत में जो प्रतिफल मिलेगा वह लाभकारी है।
प्रयास, प्रेरणा, और शिक्षा का एक दूसरे से संबंध है। उदाहरण के लिए, ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचिए जो एक वाद्य बजाता है। यदि वह उसका आनंद लेता है, तो वह उसे और ज़्यादा बजाता है। जितना ज़्यादा वह बजाता है, उतना ही कुशल वह बनता जाता है, और बदले में उसका आनंद बढ़ता जाता है। जितना ज़्यादा हम सीखते हैं, उतना ही आसान हो जाता है और भी ज़्यादा सीखना। सो अपने स्कूल के काम के बारे में निराश मत होइए। ज़रूरी प्रयास कीजिए, उनके साथ संगति कीजिए जो आपको आगे बढ़ने में मदद देंगे, और अजर्याह के शब्दों को दिल में उतार लीजिए जो उसने प्राचीन राजा आसा से कहे थे: “तुम्हारे हाथ ढीले न पड़ें, क्योंकि तुम्हारे काम का बदला मिलेगा।”—२ इतिहास १५:७.
[फुटनोट]
a जिन युवाओं को सीखने की असमर्थता है उन्हें इस संबंध में खास चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। अधिक जानकारी के लिए, जुलाई-सितम्बर १९९६ की सजग होइए! पृष्ठ २६-२८ देखिए।
[पेज 16 पर तसवीर]
अपने नंबर बढ़ाने के अपने लक्ष्य के बारे में अपने शिक्षक से बात करने में मत झिझकिए
[पेज 17 पर तसवीर]
यदि लगता है कि एक विषय का व्यावहारिक महत्त्व बहुत कम है, तो भी उसमें निपुण होने से आपको लाभ होता है