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सजग होइए!–1998
g98 6/8 पेज 3-4

मौसम की चर्चा

आप जो भी हों और जहाँ भी रहते हों, मौसम का असर आपके जीवन पर पड़ता है। यदि लगता है कि दिन साफ और गरम होगा, तो आप हलके कपड़े पहनते हैं। यदि दिन ठंडा है तो आप कोट और टोप निकालते हैं। बारिश हो तो? आप छतरी उठाते हैं।

कभी मौसम हमारा दिल खुश कर देता है; और कभी यह हमें निराश कर देता है। कभी-कभार यह तूफान, बवंडर, सूखा, बर्फानी तूफान या मानसून का रूप लेकर जानलेवा बन जाता है। चाहें या न चाहें, बुरा-भला कहें या अनदेखा करें, मौसम तो हमेशा हमारे साथ रहता है। हमारी पैदाइश के दिन से लेकर मौत के दिन तक यह हमारे जीवन पर असर करता है।

किसी ने एक बार चुटकी ली: “हर कोई मौसम के बारे में बात तो करता है, लेकिन कोई उसके बारे में कुछ करता नहीं।” सचमुच, हमेशा से ऐसा प्रतीत हुआ है कि मौसम को किसी भी तरह बदलना हमारे बस में नहीं। लेकिन बढ़ती संख्या में वैज्ञानिक अब यह नहीं मानते। उनका कहना है कि हमारे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी गैसों के फेंके जाने से हमारे दीर्घकालिक मौसम के स्वरूप—हमारी जलवायु—में बदलाव आ रहा है।

विशेषज्ञों के अनुसार यह किस तरह का बदलाव है? अंतर्सरकारी जलवायु परिवर्तन समिति (IPCC) ने ८० देशों के २,५०० से अधिक जलवायु-वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों और जोखिम-विश्‍लेषण विशेषज्ञों की राय ली, और यह समिति संभवतः सबसे प्रमाणिक उत्तर देती है। १९९५ की अपनी रिपोर्ट में IPCC ने निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी की जलवायु गरम होती जा रही है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो संभव है कि अगली सदी में तापमान ३.५ डिग्री सॆल्सियस तक बढ़ जाए।

दो-चार डिग्री बढ़ना शायद खास चिंता का विषय न लगे, लेकिन पृथ्वी की जलवायु में थोड़ा भी तापमान परिवर्तन अनर्थकारी हो सकता है। आनेवाली सदी के बारे में अनेक लोगों का पूर्वानुमान इस प्रकार है।

क्षेत्रीय तौर पर मौसम में अति। कुछ इलाकों में लंबे समय तक सूखा पड़ सकता है, जबकि दूसरे इलाकों में भारी वर्षा हो सकती है। तूफान और बाढ़ अधिक प्रचंड हो सकते हैं; बवंडर अधिक विनाशकारी हो सकते हैं। जबकि पहले ही लाखों लोग बाढ़ और अकाल के कारण मरते हैं, भूमंडलीय तापन (ग्लोबल वॉर्मिंग) मृत्यु संख्या को और भी बढ़ा सकता है।

स्वास्थ्य को ज़्यादा जोखिम। ताप-संबंधी बीमारियाँ और मौतें बढ़ सकती हैं। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भूमंडलीय तापन उन कीड़े-मकोड़ों का इलाका बढ़ा सकता है जो मलेरिया और डेंगू जैसी उष्णकटिबंधी बीमारियाँ फैलाते हैं। इसके अलावा, वर्षा और हिमपात में क्षेत्रीय बदलाव के कारण मीठे पानी की सप्लाई में आयी कमी, पानी और भोजन से फैलनेवाली कुछ बीमारियाँ तथा परजीवियों की संख्या बढ़ा सकती है।

प्राकृतिक वास-स्थानों को खतरा। जंगल और तराइयाँ हमारी हवा और पानी को शुद्ध करते हैं, लेकिन तापमान बढ़ने और वर्षा की मात्रा में बदलाव आने से इनको खतरा हो सकता है। जंगलों में बार-बार और ज़्यादा प्रचंड आग लग सकती है।

समुद्र तल का बढ़ना। निम्न तटीय क्षेत्रों में रहनेवालों को वहाँ से हटना होगा या ऐसी महँगी परियोजनाएँ बनानी पड़ेंगी जो समुद्र को आगे न बढ़ने दें। कुछ द्वीप पूरी तरह डूब जाएँगे।

क्या यह डर सही है? क्या पृथ्वी की जलवायु गरम हो रही है? यदि हाँ, तो क्या इसमें मनुष्यों का दोष है? इतना कुछ दाँव पर है इसलिए यह आश्‍चर्य की बात नहीं कि विशेषज्ञों के बीच इन प्रश्‍नों पर गरमागरम बहस चल रही है। अगले दो लेखों में इससे जुड़े कुछ मुद्दों को जाँचा गया है और इस प्रश्‍न पर चर्चा की गयी है कि हमें अपने ग्रह के भविष्य के बारे में चिंता करने की ज़रूरत है या नहीं।

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