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सजग होइए!–1998
g98 12/8 पेज 28-29

विश्‍व दर्शन

फार्मों में आजकल उगाई गई चीज़ें क्या कम पोषक होती हैं?

मिट्टी में खनिजों के खत्म होने के कारण क्या आजकल फल व सब्ज़ियाँ कम पोषक होती जा रही हैं? मिट्टी विश्‍लेषण करनेवाले विज्ञानियों का कहना है कि ऐसा नहीं है। यूनीवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया बर्किले वेलनस लेटर कहता है: “पौधों में जो विटामिन होते हैं उन्हें पौधे खुद बनाते हैं।” इसलिए अगर मिट्टी में ज़रूरी खनिज नहीं हैं, तो पौधे अच्छी तरह से नहीं उगेंगे। पौधे में फूल नहीं आएगा, या फिर पौधा शायद कुम्हलाकर मर जाएगा। ऐसा न हो, इसके लिए किसान मिट्टी में खनिज वापस डालने के लिए फरटिलाइज़रों का इस्तेमाल करते हैं। वेलनस लेटर कहता है: “आप जो भी फल और सब्ज़ियाँ खरीदते हैं, अगर वे ताज़ा और अच्छी दिखते हैं, तो आप निश्‍चिंत हो सकते हैं कि उनमें वे सभी पोषक-तत्व मौजूद हैं जो होने चाहिए।”

अपराध और जातिवाद

ग्रीस में हाल ही जो अपराधों में तेज़ी आयी है कुछ लोग इसका दोष बड़ी तादाद में यहाँ आकर बसे पूर्वी यूरोप और बालकंज़ के क्षेत्र से आए, खासकर अल्बानिया के शरणार्थियों पर लगा रहे हैं। टो वीमा अखबार का स्तंभकार, रीकॉर्डोस सोमॆरीटिस कहता है कि अपराध में हुए इस बढ़ौतरी पर चिंता की वज़ह से उस देश में विदेशियों से एक किस्म का “डर और नफरत” पैदा हो गई है। फिर भी, यह दिखाया गया है कि विदेशी लोग उतना अपराध नहीं करते जितना कि ग्रीस के लोग करते हैं। मसलन, एक अखबार बताता है कि सर्वे के हिसाब से “१०० अपराधों में से ९६ अपराध [ग्रीसवासियों] ने किए हैं।” सोमॆरीटिस दावा करता है कि “अपराध करने की वज़ह पैसा और समाज है, “दूसरी जाति का होना नहीं।” वह मीडिया पर इलज़ाम लगाता है कि मीडिया ग्रीस में होनेवाले अपराधों की कहानी को गलत ढंग से पेश करके “विदेशियों के प्रति डर और दूसरी जातियों से नफरत फैला रहा है।”

चीन में दुर्लभ हिरण फिर से मिला

चाइना टुडे रिपोर्ट देती है कि “५० से भी ज़्यादा साल से विलुप्त समझा जानेवाला तिब्बत का लाल हिरण (रेड डिअर) अब तिब्बत के स्वचालित क्षेत्र के शानन प्रीफॆक्चर में फिर से दिखाई दिया है।” इन हिरणों की ऊँचाई लगभग चार फुट है और वज़न २०० पौंड है। सालों से शिकारियों ने लाल हिरणों के बेशकीमती सींगों (ऐन्टलर) के लिए इनका शिकार किया है। इस वज़ह से इनकी संख्या तेज़ी से कम हो गयी है। युद्ध और मौसम में होनेवाले परिवर्तनों की वज़ह से भी इनकी संख्या कम हो गई। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि अब इन खूबसूरत हिरणों की संख्या २०० से भी कम रह गयी है और इनकी गिनती तेज़ी से खत्म हो रही जाति की सूची में की गयी है।

गंगा नदी पर पर्व

अप्रैल महीने में लाखों हिंदुओं ने गंगा नदी में स्नान किया जब कुंभ मेला या कलश-पर्व अपनी चरम सीमा पर पहुँचा था। कुंभ मेला तीन महीनों का हिंदुओं का पर्व है जिसे अमरता के वरदान के लिए मनाया जाता है। यह पर्व हर तीन साल में मनाया जाता है और बारी-बारी से भारत के चार शहरों में होता है। माना जाता है कि स्वर्ग में जब अमृत हासिल करने के लिए देवताओं व दैत्यों में युद्ध हो रहा था तब कुछ अमृत पृथ्वी पर इन शहरों में गिरा था। अतीत में, भारत के पवित्र जल में स्नान करने के लिए कई बार भगदड़ मच गयी थी जिसमें कई लोग कुचलकर मारे गए।

“वह साल जब दुनिया को आग लगी”

‘वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर इंटरनैशनल्स फॉरेस्ट प्रोग्राम’ का मुखिया, झांपोल झांरॆनो दावा करता है कि “१९९७ को ऐसे साल के रूप में याद किया जाएगा जब दुनिया को आग लगी थी।” एन्टारटिका को छोड़ हर महाद्वीप में गंभीर रूप से आग लगी थी। मसलन, इंडोनेशिया और ब्राज़ील का कीमती वन-स्थल जो स्विट्‌ज़रलैंड की ज़मीन के बराबर है, जलकर भस्म हो गया। वज़हें कुछ भी हो सकती हैं, कृषि कार्यों के लिए पेड़ों को काटकर ज़बरदस्ती ज़मीन को साफ करने से लेकर सूखा पड़ना। माना जाता है कि यह ‘एल नीन्यो’ की वज़ह से मौसम के हद से ज़्यादा बिगड़ने का नतीजा है। लंदन का अखबार दी इंडीपॆन्डेंट रिपोर्ट देता है कि इन जल रहे इंधनों से निकलनेवाली कार्बन डाइऑक्साइड की बड़ी मात्रा वायु को प्रदूषित करती है और विश्‍वव्यापी तापन के खतरे को बढ़ाती है। श्री. झांरॆनो आगाह करता है: “हम विनाश का एक खतरनाक चक्र तैयार कर रहे हैं, जिसमें जगह-जगह आग लगना मौसम में परिवर्तनों का नतीजा है और साथ ही खुद इन परिवर्तनों की वज़ह है।”

और भी कैल्शियम की ज़रूरत

जर्मन समाचार-पत्रिका गेज़ुनथाईट इन वोर्ट उन्ट बिल्ट (स्वास्थ्य—शब्दों और चित्रों में) आगाह करती है, “युवजनों की हड्डी के विकास की वज़ह से, उन्हें ज़्यादा मात्रा में कैल्शियम की ज़रूरत पड़ती है।” हर दिन १,२०० मिलीग्राम कैल्शियम लेने की सलाह दी जाती है लेकिन जर्मनी में १५ से १९ की आयु के बीच के केवल ५६ प्रतिशत युवतियाँ और ७५ प्रतिशत युवक ऐसा करते हैं। यूरोपियन फाउँडेशन फॉर ओस्टिओपोरोसिस की मारी फ्रेसर कहती है, “पूरे यूरोप में युवतियों के लिए कैल्शियम सप्लाई बहुत ही कम है।” हालाँकि इससे होनेवाली कमज़ोरी काफी समय तक दिखायी नहीं देती, ऐसी कमी की वज़ह से आगे चलकर ओस्टिओपोरोसिस की बीमारी होने की संभावना रहती है। लेख कहता है, “कैल्शियम से भरपूर खाने की चीज़ें हैं पनीर, दूध, दही, तिल, चौलाई, सोयाबीन, हरी सब्ज़ियाँ, गिरीदार फल और मछली।”

मौत से खेलना

झूर्नल दू ब्राज़ील समझाती है, “माँ-बाप की और टीचरों की यह ज़िम्मेदारी है कि अपने बच्चों को मना करें कि ऐसे कारनामे न करें जो फिल्मों और टीवी पर हीरो करते हैं ताकि उनके बच्चे मौत से न खेलें।” रियो डॆ जनॆरो में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि अपराधों में १० प्रतिशत अपराध १३ से कम उम्र के बच्चे करते हैं। लेख कहता है, “ये ऐसे बच्चे हैं जो अपने साथ बंदूकें लिए फिरते हैं और वे अपने स्कूल के बच्चों पर हमला करते, उन्हें अपंग बना देते या जान से ही मार डालते हैं। साथ ही ये अपने से छोटे बच्चों के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार करने के भी दोषी हैं।” मनोरोगविज्ञानी आल्फ्रेदो कास्त्रू नेटू कहता है: “हमारा माहौल ऐसा है जो दूसरों को हराने का बढ़ावा देता है और फिल्मों में यही दिखाया जाता है कि कुछ पाने के लिए किसी की भी जान ली जा सकती है। तो फिर इससे ये बच्चे सही बात नहीं सीखेंगे और उनकी परेशानी बढ़ जाती है। उन्हें समझ नहीं आता कि क्या करें।” बंदूकों के बजाय ऐसे खिलौने लेने की सिफारिश करते हुए, जिससे बच्चा कुछ सीख सके, प्रशिक्षक झूज़ेफा पेक कहता है कि बच्चे को यह समझाना ज़रूरी है कि “हीरो की तरह बनना जो लोगों की जान लेता है बेवकूफी की बात है और हकीकत नहीं है और हथियार से कोई बड़ा नहीं बन जाता या उसमें बहुत ताकत नहीं आ जाती बल्कि यह लोगों की जान ले सकता है।”

मरीज़ों को लूटना

जर्मनी के अस्पतालों में चोरों की मानो भरमार हो रही है। अखबार एम्सडेटॆनर टागाब्लॉट रिपोर्ट करता है, “कलोन के यूनीवर्सिटी अस्पतालों द्वारा हर साल तीन सौ चोरियों की रिपोर्ट दर्ज़ कराई जाती है। हाथों में फूलों का गुलदस्ता, होठों पर मनमोहक मुसकान—बस! अस्पताल में चोर को और क्या चाहिए, माल मानो मिल ही गया!” मरीज़ों को देखने आनेवाले लोगों के भेस में, उन्हें कहीं भी पहुँच जाने का मौका मिल जाता है। खासकर बुज़ुर्ग मरीज़ों की वज़ह से इन चोरों का काम आसान बन गया है। मसलन, एक बुज़ुर्ग आदमी अस्पताल में अपने तकिए की नीचे कई हज़ार डोएश मार्क (जर्मन रुपए) रखता था। मिलने आने के लिए समय पर कोई पाबंदी नहीं है। इसी के बहाने चोरों को आने-जाने की बड़ी छूट है। और तो और कोई भी आदमी बिना रोक-टोक अस्पताल में घुस सकता है। इसीलिए मरीज़ों को आगाह किया गया कि वे अपने रुपए या कीमती चीज़ें अस्पताल की तिजोरी में या कहीं और ताला मारकर रखें या फिर किसी और हवाले कर दें जो उन्हें सँभाल कर रख सके।

कानों के निशान

हाल ही में जब लंदन में एक चोर पर आरोप लगाया गया, तो उसके कान ने उसकी पोल खोल दी। वह कैसे? जुर्म करते वक्‍त वह बहुत ही सावधान रहता था कि कहीं उसकी उँगलियों के निशान न रह जाएँ। लेकिन उसकी आदत थी कि वह खिड़की या चाबी के छेद पर कान लगाकर सुनता ताकि घर में घुसने से पहले यह देख सके कि कोई घर पर तो नहीं। ऐसा करने की वज़ह से उसके कान के निशान खिड़की या दरवाज़े पर रह जाते। स्कॉटलैंड के ग्लासगो यूनिवर्सिटी का अदालती पैथोलॉजिस्ट, प्रॉफेसर पीटर वानेसस कहता है, “कान के निशान भी उँगलियों के निशान की तरह दूसरे लोगों से नहीं मिलते।” लंदन का द डेली टेलेग्राफ रिपोर्ट करता है कि बालों और नाखूनों की तरह कान में हमेशा तबदीलियाँ होती रहती हैं। जबकि उँगलियों के निशानों के साथ ऐसा नहीं होता। लेकिन पुलिस जानती है कि हमारे कान दूसरों से अलग होते हैं, चाहे उनका आकार जो भी। उस चोर के साथ भी यही हुआ। उसके कानों के निशान भी सबसे अलग थे। ब्रिटेन में यह चोर पहला व्यक्‍ति था जिसे मुजरिम ठहराने के लिए कानों के निशानों को सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया गया। और उसने चोरी के पाँच इलज़ामों को कबूल किया।

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