पन्ना—अनमोल रत्न
अपने चमचमाते हरे रंग के कारण पन्ना अनमोल समझा जाता है। इसने राजसी जवाहरात की शोभा बढ़ायी है और इतिहास के कुछ अति प्राचीन राजवंशों के सिंहासनों को जगमगाया है। पुराने समय की तरह आज भी पन्ना धन और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
दुनिया भर में आम तौर पर पन्ने को हीरे से अधिक मूल्यवान माना जाता है और सिर्फ माणिक्य (रूबी) को पन्ने से अधिक मूल्यवान माना जाता है। लेकिन भूविज्ञान तकनीशियन टॆरी ऑटावे कहती है, “कैरट [भार] के हिसाब से देखें तो सबसे बढ़िया क्वॉलिटी का पन्ना दुनिया में सबसे महँगा होता है।” क्वॉलिटी की बात है, बढ़िया क्वॉलिटी का उतना बड़ा पन्ना जो आपकी मुट्ठी में अट जाए और वज़न में तीन ग्राम हो, वह दस लाख डॉलर तक का हो सकता है!
पन्ना इसलिए भी अनमोल है क्योंकि यह बहुत कम मिलता है। पन्ना एक किस्म का बॆरिल क्रिस्टल होता है। पन्ना एलुमिनियम और सिलिकॉन जैसे सामान्य तत्त्वों और बॆरिलियम जैसे विरल तत्त्व के मिश्रण से बनता है। छोटी मात्रा में क्रोमियम या वैनेडियम जैसे अनुज्ञापक तत्त्व पन्ने को चकाचौंध करनेवाली हरी चमक देते हैं।
प्राचीन समय से खोदा गया
हज़ारों साल तक मिस्र से ही पूरी दुनिया को पन्ना सप्लाई किया गया। कायरो से करीब ७०० किलोमीटर दक्षिणपूर्व में स्थित मशहूर क्लीओपॆट्रा की खानों को पहले मिस्रियों ने और बाद में रोमियों और तुर्कियों ने खोद-खोदकर खाली किया। वह कितनी मेहनत का काम रहा होगा! रेगिस्तान की चिलचिलाती धूप और धरती के नीचे खान की धूल-मिट्टी ने मज़दूरों के लिए काम करना बहुत कठिन बना दिया होगा। इसके अलावा, सारा सामान नील नदी से कारवाँ में लाया जाता था जो कि कम-से-कम एक हफ्ते का सफर था। इन बड़ी बाधाओं के बावजूद, इन खानों को सा.यु.पू. ३३० से सा.यु. १२३७ तक लगभग हमेशा ही खोदा जाता रहा।
प्राचीन समय में लोग पन्ने को उसकी सुंदरता के कारण बहुत पसंद करते थे और मानते थे कि उसमें जादुई, रोगहर शक्ति है। पन्ने को कई तरह की बीमारियों का इलाज माना जाता था। ऐसा भी विश्वास था कि यह स्त्रियों की जनन-क्षमता और काम-वासना को प्रभावित कर सकता है। तो स्वाभाविक है कि मिस्र और दूसरे राष्ट्रों के बीच, भारत जितनी दूर तक ज़ोरदार और लाभप्रद व्यापार चला।
यह एकाधिकार तब तक चला जब तक कि स्पेनी विजेता १६वीं सदी की शुरूआत में दक्षिण अमरीका नहीं पहुँच गये। उसके कुछ ही समय बाद, हीमेनेथ दे केसादा ने उस क्षेत्र को जीत लिया जिसे आज कोलंबिया कहा जाता है। कुछ साल बाद, १५५८ में स्पेनी लोगों ने मूज़ो में स्थित खान का पता लगा लिया। वहाँ प्राप्त हुए पन्नों की क्वॉलिटी और आकार चौंकानेवाला था।
स्पेनी लोगों ने तुरंत खान पर कब्ज़ा कर लिया और स्थानीय लोगों को दास बनाकर उनसे खान खोदने का कठिन और खतरनाक काम करवाया। कुछ ही सालों के अंदर यूरोप में बड़े-बड़े और लगभग पूरी तरह शुद्ध पन्नों की बाढ़-सी आ गयी। उनमें से कई पन्ने ओटोमन तुर्कियों और फारसी शाहों के हाथ में और भारत के राजघरानों में पहुँचे। इन पत्थरों को तराशा और नक्काशा गया था और तभी से अनमोल जवाहरात के कई खज़ाने इकट्ठे किये जाने लगे।
उच्च सुरक्षा असफल
आज दुनिया के एकदम गरीब लोग खून-पसीना बहाकर इन रत्नों को सख्त और पथरीली धरती से निकालते हैं। इसे देख पत्रकार फ्रॆड वॉर्ड कहता है: “यह पन्ने के व्यापार की बड़ी विडंबना है कि जिन लोगों को ये पत्थर मिलते हैं उनमें से अधिकतर तो यह सपना भी नहीं देख सकते कि इसे पहनने के लिए वे कभी पैसा जुटा पाएँगे।” क्योंकि मज़दूरों में इस पत्थर को छिपाकर चुरा ले जाने का बड़ा प्रलोभन होता है, इसलिए अधिकतर खानें सुरक्षा कर्मियों की निगरानी में चलायी जाती हैं। जब मज़दूर मेहनत करके ज़मीन खोदते और खुरचते हैं तो बंदूकधारी गार्ड उन पर कड़ी नज़र रखते हैं।
लेकिन इसके बावजूद विशेषज्ञ दावा करते हैं कि दुनिया में पन्ने का अधिकतर व्यापार गैरकानूनी तौर पर किया जाता है। “अधिकतर पन्नों का कोई रिकॉर्ड नहीं होता, उन पर टैक्स नहीं दिया जाता, वे दिखायी भी नहीं पड़ते और दुनिया के काले बाज़ार में पहुँच जाते हैं। बढ़िया क्वॉलिटी के लगभग हर पन्ने की कभी-न-कभी तस्करी ज़रूर हुई है,” नैशनल जिऑग्रैफिक पत्रिका कहती है।
खरीदार खबरदार!
पन्ना जिस तरह बनता है उसके कारण उसमें अनेक स्वाभाविक, आंतरिक अशुद्धियाँ होती हैं जिन्हें अंतःस्थ पिण्ड कहा जाता है। जब ये अशुद्धियाँ पत्थर की बाहरी सतह तक पहुँच जाती हैं तो वे दरारों की तरह दिखायी पड़ती हैं और इससे पत्थर की सुंदरता बिगड़ती है और उसका मूल्य भी बहुत घट जाता है। सदियों से सौदागरों ने पत्थर की सतह पर दिखनेवाली इन अशुद्धियों को ढाँपा है। वे साफ और पॉलिश किये हुए रत्न को देवदार या ताड़ के गरम तेल में भिगा देते हैं। यह गरमी हवा को पत्थर की दरारों में से बाहर निकाल देती है और फिर दरारों में तेल भर जाता है जिससे अशुद्धियाँ नहीं दिखतीं। इसके बाद इन रत्नों को बढ़िया क्वॉलिटी का कहकर बेचा जाता है। लेकिन एक-दो साल के अंदर तेल उड़ जाता है और अशुद्धियाँ दिखने लगती हैं, जिससे खरीदार हैरान और परेशान हो जाते हैं।
खरीदार को नकली पत्थरों से भी खबरदार रहना चाहिए। हरे काँच को काटकर पॉलिश करना कि वह पन्ने की तरह दिखे, मध्य युग तक अच्छा-खासा धंधा बन गया था। सालों के दौरान अनेक बेखबर लोगों को धोखा देकर यह विश्वास दिलाया गया है कि उनके पास असली माल है जबकि असल में उनके पास नकली माल था। नैशनल जिऑग्रैफिक कहती है: “आम लोग तो क्या, जौहरी भी धोखा खा जाते हैं।” लेकिन, जाँच के ऐसे तरीके उपलब्ध हैं जिनसे पक्के जौहरी को गारंटी से पता चल सकता है कि पन्ना खरा है या नहीं।
हालाँकि मनुष्य के लोभ ने कुछ हद तक पन्ने की छवि को बिगाड़ दिया है फिर भी वह सुंदर, दुर्लभ और मूल्यवान है। वह परमेश्वर की रचना का अनमोल अजूबा है।
[पेज 25 पर तसवीर]
सभी पन्ने: S. R. Perren Gem and Gold Room, Royal Ontario Museum; Ancient Egypt Gallery, Royal Ontario Museum