विश्वव्यापी समस्या को कैसे रोकें
संयुक्त राष्ट्र इसे “विश्वव्यापी त्रासदी” कहता है —और ठीक ही कहता है। दुनिया भर में हर मिनट एक स्त्री गर्भावस्था और प्रसूति के फलस्वरूप मरती है।
इनमें से ज़्यादातर मौतें विकासशील देशों में होती हैं। यूरोप में १०,००० में से सिर्फ १ स्त्री और अमरीका में १२,५०० में से १ स्त्री गर्भावस्था-संबंधित कारणों से मरती है, लैटिन अमरीका में यह अनुपात ७३ में से १ है, एशिया में ५४ में से १ और अफ्रीका में तो हद से ज़्यादा बुरा २१ में से १ का अनुपात है!
कुशल दाई की मदद मिल जाती तो हर साल होनेवाली गर्भावस्था-संबंधित इन ६,००,००० मौतों में से बहुतों को टाला जा सकता था। इसलिए संयुक्त राष्ट्र बाल निधि (UNICEF) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अब ज़ोर दे रहे हैं कि स्त्रियों (और पुरुषों) को पेशेवर दाइयों के रूप में प्रशिक्षण दिया जाए।
जिन देशों में डॉक्टरों की कमी है, वहाँ प्रशिक्षित दाइयों के होने से ज़्यादा लोगों की ज़िंदगी बचती है। UNICEF की डॉ. फ्रांस डॉने और WHO सलाहकार ऐन थॉमसन ने संयुक्त राष्ट्र रेडियो को हाल ही में बताया कि प्रशिक्षित दाइयों को ज़्यादा अधिकार दिये जाने के बाद अच्छे नतीजे मिलने लगे हैं। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए कई अफ्रीकी देशों में जब दाइयों को यह अनुमति मिल गयी कि प्रसूति के बाद अंदर बचा अपरा निकाल दें तो ज़च्चा की मृत्यु दर में नाटकीय गिरावट आयी। ऐसी ही प्रगति इंडोनीशिया में भी हो रही है, जहाँ एक योजना के तहत हर गाँव में दो दाइयों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है। अब तक ५५,००० प्रशिक्षित दाइयाँ भेजी जा चुकी हैं।
“विकसित देशों में भी दाई का काम चालू है,” संयुक्त राष्ट्र रेडियो कार्यक्रम परस्पॆक्टिव ने कहा। फ्रांस, नॆदरलॆंड्स, स्वीडन, और ब्रिटॆन जैसे देशों ने दाई के पारंपरिक काम को कभी नहीं हटाया और अमरीका में यह फिर से बढ़ रहा है। इन देशों में दाइयों को महत्त्व दिया जाता है क्योंकि दाइयाँ स्त्री के पास रहकर उसकी पूरी देखरेख करती रहती हैं, ऐन थॉमसन ने कहा जो खुद एक प्रशिक्षित दाई है। “प्रसव-पीड़ा २४ घंटे तक चल सकती है और चिकित्सकों के पास इतना समय नहीं कि २४ घंटे तक बैठे इंतज़ार करते रहें।” लेकिन, उसने आगे कहा कि इस समय “स्त्री के पास किसी हमदर्द, जानकार, समझदार व्यक्ति का होना जो उसे दिलासा दे सके” सुरक्षित प्रसव में सहायक होता है।
परस्पॆक्टिव ने यह भी बताया कि “हर साल ऐसे ६ करोड़ प्रसव होते हैं जिनमें स्त्री की देखरेख करने के लिए सिर्फ परिवार की एक सदस्य होती है, जो अप्रशिक्षित पारंपरिक दाई होती है—या फिर उसके पास कोई भी नहीं होता।” संयुक्त राष्ट्र इसे बदलने की कोशिश कर रहा है। शुरूआत के तौर पर, WHO ने १९९८ में विश्व स्वास्थ्य दिन का नारा रखा “सुरक्षित मातृत्व।” “हम जानते हैं कि यह अगले २ या ३ सालों में नहीं हो सकेगा,” डॉ. डॉने ने कहा। लेकिन उनका लक्ष्य है कि “प्रसव के समय हर स्त्री के पास एक पेशेवर दाई हो।”
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UN/J. Isaac