“मैं सात साल की हूँ”
नमस्ते। मेरा नाम आमेल्या है और मैं कैरिबियन द्वीप में रहती हूँ। मैं सात साल की हूँ। कुछ समय पहले मेरे गरीब माँ-बाप ने मुझे शहर में रहनेवाले एक अमीर परिवार को दे दिया।
हर दिन की तरह आज भी मैं सुबह पाँच बजे उठी। नज़दीक के कुँए से पानी भरकर लायी। सिर पर भारी मटका रखकर चलना बहुत मुश्किल था लेकिन मैं उसे सँभालकर ले ही आयी—वरना मेरी बहुत पिटाई होती। फिर मैंने नाश्ता बनाकर परिवार को परोसा। मुझे नाश्ता परोसने में थोड़ी देर हो गयी थी, सो मालिक ने चमड़े के पट्टे से मेरी पिटाई की।
उसके बाद, मैं उनके पाँच साल के बेटे को स्कूल तक पैदल ले गयी। फिर मैंने उनके लिए दोपहर का भोजन बनाने और परोसने में हाथ बँटाया। दो वक्त का खाना परोसने के बीच मैं बाज़ार से सामान खरीदकर लायी, छोटे-मोटे दूसरे काम किये, कोयले का चूल्हा धौंका, आँगन बुहारा, कपड़े और बरतन धोये, और रसोई साफ की। मैंने अपनी मालकिन के पैर भी धोये। आज वो किसी बात को लेकर बहुत परेशान थीं सो गुस्से में उन्होंने मुझे थप्पड़ मार दिया। काश कल तक वो ठीक हो जाएँ।
खाने के लिए मुझे बचा-खुचा खाना दिया गया—कम-से-कम यह उस मकई से तो अच्छा था जो मैंने कल खायी थी। मेरे कपड़े फटे-पुराने हैं और पाँव में जूतियाँ नहीं हैं। जो पानी मैं भरकर लाती हूँ उससे मेरे मालिक ने आज तक मुझे नहाने नहीं दिया। कल रात मैं बाहर सोयी; कभी-कभी वे मुझे अंदर फर्श पर सोने देते हैं। बहुत दुःख की बात है कि यह चिट्ठी मैं खुद नहीं लिख पायी। मुझे स्कूल नहीं जाने दिया जाता।
शुभकामनाएँ। आमेल्या।
हालाँकि आमेल्या उसका असली नाम नहीं है, लेकिन उसकी दर्द-भरी कहानी असली है।a आमेल्या उन करोड़ों बच्चों में से एक है जिन्हें काम करना पड़ता है—अकसर बहुत बुरी परिस्थितियों में। बाल-श्रम हमारे समय की एक प्रमुख समस्या है। यह एक जटिल मुद्दा है और इसका कोई सरल समाधान नहीं। यह बहुत बड़े पैमाने पर फैला हुआ है, समाज को खोखला कर रहा है, इसके अंजाम बहुत बुरे हैं, यह बच्चों के साथ क्रूरता है और मानव गरिमा का अपमान है।
बाल-श्रम कितना व्यापक है? इस समस्या की शुरूआत कैसे हुई और यह किस-किस रूप में सामने आती है? क्या कभी ऐसा समय आएगा जब मानव परिवार के सबसे कोमल और असुरक्षित अंग—बच्चों—की दुर्गति नहीं होगी और उनका शोषण नहीं किया जाएगा?
[फुटनोट]
a उसका किस्सा अंग्रेज़ी पुस्तक दुनिया के बच्चों की दशा १९९७ में रिपोर्ट किया गया है।