टीबी का मुकाबला करने के लिए नया हथियार
तपेदिक (टीबी) संक्रमण मनुष्य की सबसे पुरानी जानलेवा बीमारी है। और आज भी यह स्वास्थ्य के लिए इतना गंभीर खतरा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) इसकी तुलना टाइम बम से करता है। समय या “टाइम कम है,” टीबी पर WHO की एक रिपोर्ट खबरदार करती है। यदि मनुष्य इस बम को फटने से नहीं रोक सका तो एक दिन आ सकता है जब टीबी पर दवाओं का असर नहीं होगा और यह “हवा से फैलनेवाली, साथ ही एड्स की तरह मानो एकदम लाइलाज हो जाएगी।” WHO कहता है कि टीबी की विनाशक क्षमता को पहचानने का समय आ गया है। “दुनिया के इस छोर से उस छोर तक जो कोई हवा में साँस लेता है . . . उसे इस खतरे के बारे में चिंता करने की ज़रूरत है।”
क्या राई का पहाड़ बनाया जा रहा है? नहीं। कल्पना कीजिए कि यदि एक बीमारी हाथ से बाहर हो रही हो और मानो कनाडा की पूरी आबादी को दस साल के अंदर खत्म करने की क्षमता रखती हो तो दुनिया कितनी सचेत हो जाएगी! इस कल्पना पर विश्वास करना मुश्किल तो लगता है मगर टीबी का खतरा इतना ही भयंकर है। दुनिया भर में एड्स, मलेरिया और गर्म देशों में फैलनेवाली बीमारियों को मिलाकर जितने लोग मरते हैं उससे ज़्यादा टीबी से मरते हैं: हर दिन ८,००० लोग। आज करीब दो करोड़ लोग सक्रिय टीबी से पीड़ित हैं और अगले दस साल के अंदर करीब तीन करोड़ लोग टीबी से मर सकते हैं—यह संख्या कनाडा की आबादी से ज़्यादा है।—पृष्ठ २२ पर “टीबी की विश्वव्यापी पकड़” बक्स देखिए।
अब एक अच्छी खबर
लेकिन आज हमारे पास आशा है। दस साल तक जाँच करने के बाद, शोधकर्ताओं ने एक योजना निकाली है जो शायद टीबी पर काबू कर पाये और खुलेआम घूमनेवाले इस हत्यारे को पकड़कर कैद कर लिया जाए। WHO के भूतपूर्व महा-निदेशक, डॉ. हीरोशी नाकाजीमा ने इस नयी योजना को “इस दशक की एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण जन-स्वास्थ्य उपलब्धि” कहा। और WHO विश्वव्यापी टीबी कार्यक्रम का निदेशक, डॉ. अराटा कोची कहता है कि अब पहली बार हमें “टीबी महामारी को खत्म” करने का मौका मिला है। इतनी उत्सुकता का कारण? DOTS नामक पद्धति।
DOTS ‘डाइरॆक्टली ऑबसर्व्ड ट्रीटमॆंट, शॉर्ट-कोर्स’ का संक्षिप्त नाम है। यह स्वास्थ्य नियंत्रण व्यवस्था है जो छः से आठ महीनों के अंदर अधिकतर टीबी मरीज़ों को स्वस्थ कर सकती है और उन्हें अस्पताल में एक भी दिन बिताने की ज़रूरत नहीं पड़ती। DOTS की सफलता पाँच तत्त्वों पर निर्भर है। यदि इनमें से एक तत्त्व भी कम हो तो WHO कहता है कि टीबी मरीज़ों को स्वस्थ करने की क्षमता “हमारे हाथ से निकल जाती है।” ये तत्त्व कौन-से हैं?
● १. डाइरॆक्टली: सबसे खतरनाक टीबी केस वह है जिसमें बीमारी का पता नहीं चला है। इसलिए WHO इस पर ज़ोर देता है कि सबसे पहले, स्वास्थ्य कर्मियों को अपने इलाके में ऐसे लोगों की पहचान करने की ओर अपना ध्यान लगाना या डाइरॆक्ट करना चाहिए जो संक्रामक टीबी से पीड़ित हैं।
● २. ऑबसर्व्ड: DOTS का दूसरा तत्त्व मरीज़ को नहीं, स्वास्थ्य व्यवस्था को इसका ज़िम्मेदार बनाता है कि मरीज़ का पूरा इलाज किया जाए। स्वास्थ्य कर्मी या प्रशिक्षित स्वयंसेवी, जैसे कि दुकानदार, शिक्षक या वे जिन्हें पहले टीबी थी, ध्यान रखते या ऑबसर्व करते हैं कि मरीज़ ऐन्टी-टीबी दवाओं की हर खुराक ले। सफलता के लिए “मरीज़ का ध्यान रखनेवाले” बहुत ज़रूरी हैं क्योंकि आज तक टीबी के डटे रहने का एक मुख्य कारण यह है कि मरीज़ कुछ ही समय बाद दवा लेना छोड़ देते हैं। (पृष्ठ २२ पर “दोबारा बढ़ रही है—क्यों?” बक्स देखिए।) कुछ ही हफ्तों की दवा के बाद उन्हें आराम महसूस होने लगता है और वे गोलियाँ खाना बंद कर देते हैं। लेकिन दवा छः से आठ महीने तक ली जानी चाहिए ताकि शरीर से टीबी के सभी बैक्टीरिया निकल जाएँ।
● ३. ट्रीटमॆंट: इन छः से आठ महीनों के दौरान, स्वास्थ्य कर्मी इलाज या ट्रीटमॆंट का नतीजा देखते हैं और मरीज़ को कितना फायदा हो रहा है इसका रिकॉर्ड रखते हैं। इस तरह, वे निश्चित करते हैं कि मरीज़ की बीमारी पूरी तरह दूर हो जाए और वह दूसरों को संक्रमित न कर पाए।
● ४. शॉर्ट-कोर्स: ऐन्टी-टीबी की अलग-अलग दवाओं के सही मिश्रण को सही मात्रा में निश्चित समय तक इस्तेमाल करना कम-अवधि या शॉर्ट-कोर्स कीमोथॆरॆपी कहलाता है, जो DOTS योजना का चौथा तत्त्व है। ये सभी दवाएँ मिलकर ऐसा असर दिखाती हैं कि टीबी बैक्टीरिया जीवित नहीं बच पाता।a दवाएँ हमेशा उपलब्ध होनी चाहिए ताकि इलाज को बीच में कभी रोकना न पड़े।
● ५. !: DOTS! के अंत में आश्चर्यबोधक चिन्ह लगाकर WHO DOTS योजना के इस पाँचवें तत्त्व को व्यक्त करता है। यह धन और ठोस नीतियों को सूचित करता है। WHO स्वास्थ्य संस्थाओं से आग्रह करता है कि सरकारों और गैरसरकारी संगठनों से आर्थिक मदद देने के लिए वादे करवाएँ और टीबी के इलाज को देश के मौजूदा स्वास्थ्य तंत्र का हिस्सा बनाएँ।
जहाँ तक धन की बात है, तो जिनके हाथ में खज़ाने की चाबी है, यानी नीति बनानेवालों को DOTS पद्धति पसंद है। विश्व बैंक ने DOTS को “इस बीमारी . . . से लड़ने का एक बहुत ही असरदार और सस्ता हथियार” बताया है। WHO के हिसाब से गरीब देशों में इस योजना को अपनाने का कुल खर्च हर मरीज़ के लिए करीब ४,००० रुपये है। “विकासशील देशों में यह प्रति व्यक्ति ४ रुपये से ज़्यादा नहीं पड़ता। इतना-सा खर्च तो खराब से खराब आर्थिक स्थिति में भी उठाया जा सकता है।” लेकिन खर्च कम होते हुए भी फायदे बहुत हैं।
यह कितनी कारगर है?
मार्च १९९७ में WHO के प्रतिनिधियों ने कहा कि आज तक DOTS योजना का जो थोड़ा-बहुत इस्तेमाल हुआ है उससे “दुनिया भर में फैली टीबी महामारी पर काबू पाने में दशकों बाद पहली बार सफलता मिल रही है।” “जहाँ DOTS का इस्तेमाल होता है, सफलता दर लगभग दोगुनी हो जाती है।” जिन क्षेत्रों में टीबी बुरी तरह फैली है वहाँ किये गये DOTS के शुरूआती प्रयोग दिखा रहे हैं कि यह योजना कारगर है। WHO ने इसकी सफलता की कुछ रिपोर्टें बतायीं, उन पर विचार कीजिए।
भारत में “प्रदर्शन के लिए चुने गये कुछ क्षेत्रों में जहाँ १.२ करोड़ से ज़्यादा लोग रहते हैं, DOTS इस्तेमाल की गयी। . . . प्रति ५ में से ४ मरीज़ों की टीबी अब ठीक हो गयी है।” बंग्लादेश में एक शुरूआती कार्यक्रम में दस लाख लोग शामिल किये गये, “८७ प्रतिशत [टीबी मरीज़] ठीक हो गये।” इंडोनीशिया के एक द्वीप पर चल रहे DOTS के अभियान में “१० में से ९ संक्रमित मरीज़ ठीक हो रहे हैं।” चीन में शुरूआती प्रयोगों को “शानदार सफलता” मिली, सफलता दर ९४ प्रतिशत थी। दक्षिण अफ्रीका के एक नगर में “८० प्रतिशत से ज़्यादा [टीबी मरीज़ों] का इलाज सफलतापूर्वक किया जा रहा है।” हाल ही में, न्यू यॉर्क सिटी में भी DOTS अपनायी गयी और बढ़िया नतीजे मिले।
डॉ. कोची अंत में कहता है, बीसियों देशों में क्षेत्र परीक्षण किये गये और परिणाम दिखाते हैं कि यह योजना “हर जगह इस्तेमाल की जा सकती है और सफलता दर ८५ प्रतिशत और उससे भी ज़्यादा हो सकती है।”
बहुत तेज़ी नहीं—हाँ, प्रगति ज़रूर
जब मनुष्य की इस बहुत ही संक्रामक और जानलेवा बीमारी का इलाज आसानी से और सस्ते में DOTS योजना से हो सकता है, तो आप सोचेंगे कि इसका इस्तेमाल बहुत तेज़ी से बढ़ रहा होगा। “लेकिन,” WHO का एक अधिकारी कहता है, “हैरानी की बात है कि बहुत कम देश WHO की सस्ती और असरदार सिद्ध हो चुकी टीबी नियंत्रण योजना को अपना रहे हैं।” सच तो यह है कि १९९६ की शुरूआत में सिर्फ ३४ देशों ने देश भर में इस योजना को अपनाया था।
फिर भी, प्रगति ज़रूर हुई है। सन् १९९३ से पहले, जब WHO ने टीबी को विश्वव्यापी आपात-स्थिति घोषित कर दिया था, तो टीबी के प्रति ५० मरीज़ों में से सिर्फ १ को DOTS की सुविधा मिल रही थी। आज प्रति १० मरीज़ों में से १ को मिल रही है। कहा जाता है कि १९९८ में करीब ९६ देश DOTS योजना को लागू कर रहे थे। यदि ज़्यादा देश DOTS को अपनाएँ तो टीबी के मरीज़ों की सालाना संख्या ‘सिर्फ एक दशक के अंदर घटकर आधी रह जाएगी।’ डॉ. कोची कहता है: “हमारे पास स्वास्थ्य सेवा का असरदार साबित हो चुका नुस्खा है जिसे बस ज़्यादा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किये जाने की ज़रूरत है।”
मनुष्य के पास डटकर टीबी का मुकाबला करने और जीतने के लिए ज़रूरी ज्ञान और औज़ार हैं लेकिन सिर्फ कमी है ‘ऐसे लोगों की जो यह निश्चित करें कि ये दवाएँ पूरी दुनिया में इस्तेमाल की जाएँ।’ हैरानी की बात नहीं कि दुनिया भर के चिकित्सकों और दूसरे स्वास्थ्य कर्मियों के लिए बनाये गये एक प्रकाशन में WHO पूछता है: “हम सब किस बात के इंतज़ार में बैठे हैं?”
[फुटनोट]
a इन दवाओं में आइसोनायाज़िड, राइफैमपिन, पाइराज़िनामाइड, स्ट्रॆप्टोमाइसिन और ऎथैमब्युटॉल शामिल हैं।
[पेज 21 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
हर सॆकॆंड, दुनिया में कोई-न-कोई टीबी से संक्रमित होता है
[पेज 21 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
‘जान बचानेवाली दवाएँ ताक पर पड़ी हैं और लाखों लोग मर रहे हैं।’ डॉ. अराटा कोची
[पेज 23 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“DOTS योजना इस दशक की सबसे महत्त्वपूर्ण जन स्वास्थ्य उपलब्धि कहलाएगी।” WHO प्रॆस विज्ञप्ति
[पेज 22 पर बक्स]
दोबारा बढ़ रही है—क्यों?
तपेदिक (टीबी) का इलाज चार दशक से पहले मिल चुका है। तब से १२ करोड़ से ज़्यादा लोग टीबी के कारण मर चुके हैं और इस साल करीब ३० लाख लोग और मरेंगे। आज भी इतने सारे लोग टीबी से क्यों मर रहे हैं जबकि इलाज है? इसके तीन मुख्य कारण हैं: लापरवाही, एच.आई.वी./एड्स और मल्टीड्रग-रॆसिस्टॆंट टीबी।
लापरवाही। दुनिया की नज़रें एड्स और ईबोला जैसी संक्रामक बीमारियों पर टिकी हुई हैं। लेकिन १९९५ में ईबोला से मरनेवाले एक व्यक्ति की तुलना में १२,००० लोग टीबी से मरे। असल में, टीबी विकासशील देशों में इतनी फैली हुई है कि वहाँ के लोग इस बीमारी को जीवन में एक आम बात समझने लगे हैं। इस बीच, अमीर देशों में टीबी फैलती गयी है जबकि इसका इलाज करने की असरदार दवाएँ ताक पर पड़ी हैं। दुनिया भर में ऐसी लापरवाही जानलेवा भूल साबित हुई है। जिस दौरान दुनिया में टीबी के बारे में चिंता कम हो रही थी, उसी दौरान टीबी बैक्टीरिया बढ़ रहे थे। आज वे इतने ज़्यादा देशों में इतने ज़्यादा लोगों पर हमला करते हैं जितना मानव इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ।
एच.आई.वी./एड्स। टीबी एच.आई.वी. और एड्स की साथी है। जब लोग एच.आई.वी. से संक्रमित हो जाते हैं—जो उनके प्रतिरक्षा तंत्र को कमज़ोर बना देता है—तो उन्हें टीबी लगने की संभावना ३० गुना बढ़ जाती है। इसलिए यह हैरानी की बात नहीं कि आज दुनिया भर में जो एच.आई.वी. महामारी फैली हुई है उसने टीबी के मरीज़ों की संख्या भी बढ़ायी है! यह अनुमान है कि १९९७ में २,६६,००० एच.आई.वी. पॉज़िटिव लोग टीबी से मरे। “ये ऐसे स्त्री-पुरुष हैं” जॉइन्ट युनाइटॆड नेशन्स प्रोग्राम ऑन एच.आई.वी./एड्स का निदेशक पीटर प्यॉ कहता है, “जिन्होंने सस्ती ऐन्टी-टीबी दवाओं से फायदा नहीं उठाया जो उनकी टीबी दूर करने के लिए ज़रूरी थीं।”
मल्टीड्रग-रॆसिस्टॆंट टीबी। “सुपरबग्ज़” पर किसी भी ऐन्टीबायॉटिक दवा का असर नहीं होता। वैसे तो सुपरबग्ज़ विज्ञान-कल्पना में होते हैं लेकिन टीबी के मामले में ये बहुत तेज़ी से असलियत बनते जा रहे हैं। लगता है कि पाँच करोड़ से ज़्यादा लोग मल्टीड्रग-रॆसिस्टॆंट (MDR) टीबी से संक्रमित हो चुके हैं। कुछ मरीज़ चंद हफ्तों के बाद दवा लेना बंद कर देते हैं क्योंकि उन्हें थोड़ा आराम महसूस होने लगा होता है, क्योंकि उनकी दवा खत्म हो चुकी होती हैं, या क्योंकि समाज में इस बीमारी को कलंक समझा जाता है। इन मरीज़ों के शरीर के सभी टीबी बैक्टीरिया नहीं मरते। उदाहरण के लिए, एशिया के एक देश में प्रति ३ में से २ टीबी के मरीज़ बीच में ही इलाज छोड़ देते हैं। जब वे फिर से बीमार पड़ते हैं तब बीमारी को दूर करना ज़्यादा मुश्किल हो जाता है क्योंकि शरीर में जो बैक्टीरिया बच गये थे वे लड़ते हैं और अब उन पर किसी भी ऐन्टी-टीबी दवा का असर नहीं होता। इसका नतीजा यह होता है कि इन मरीज़ों को ऐसी टीबी हो जाती है जो लाइलाज है—और जो लोग इन मरीज़ों से संक्रमित हुए हैं उन्हें भी लाइलाज टीबी हो जाती है। और फिर जब यह जानलेवा MDR फैलने लगता है तो हमारे सामने यह गंभीर प्रश्न खड़ा होता है, क्या हम इसके फैलाव को रोक पाएँगे?
[पेज 22 पर बक्स]
टीबी की विश्वव्यापी पकड़
तपेदिक (टीबी) महामारी साल के साल ज़्यादा प्रचंड, ज़्यादा महँगी और ज़्यादा घातक होती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो रिपोर्टें इकट्ठा की हैं वे दिखाती हैं कि कैसे इस खामोश हत्यारे का शिकंजा कसता जा रहा है। यहाँ कुछ उदाहरण दिये गये हैं: “पाकिस्तान टीबी की लड़ाई हार रहा है।” “थाइलैंड में टीबी प्रचंड रूप धरकर लौटी है।” “टीबी आज ब्राज़ील में बीमारी और मौत का एक प्रमुख कारण है।” “टीबी ने मॆक्सिको के लोगों पर मज़बूत पकड़ बनाए रखी है।” रूस में “टीबी के किस्से तेज़ी से बढ़ रहे हैं।” इथियोपिया में “टीबी पूरे देश में बुरी तरह फैली हुई है।” “दक्षिण अफ्रीका में टीबी के किस्से दुनिया भर के रिकार्ड में बहुत आगे हैं।”
प्रति १०० में से ९५ टीबी के मरीज़ दुनिया के गरीब देशों में रहते हैं, लेकिन यह अमीर देशों में भी अपनी पकड़ मज़बूत कर रही है। दशक १९९० की शुरूआत में अमरीका में टीबी के जो किस्से दर्ज़ किये गये उनमें बहुत तेज़ी आयी। अमरीकी पत्रकार वैलरी गार्टसॆफ कहती है कि टीबी “अमरीकियों को सताने के लिए फिर लौट आयी है।” उसी तरह, रॉयल नॆदरलॆंड्स टीबी असोसिएशन के निदेशक, डॉ. याप ब्रूकमान्स ने हाल ही में कहा कि टीबी महामारी “पूर्वी यूरोप में और पश्चिमी यूरोप के कुछ हिस्सों में बदतर होने लगी है।” हैरानी की बात नहीं कि अगस्त २२, १९९७ की पत्रिका साइंस कहती है कि “टीबी स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बनी हुई है।”
[पेज 24 पर बक्स]
टीबी ब्लूप्रिंट मिल गया
हाल ही में शोधकर्ता तपेदिक (टीबी) बैक्टीरिया के संपूर्ण आनुवंशिक चार्ट (ब्लूप्रिंट) को समझ पाये हैं। इस उपलब्धि के बाद “मानवजाति के एक बहुत ही सफल शिकारी के विरुद्ध लड़ाई में एक नया दौर” शुरू होता है, लंदन में इंपीरियल कॉलॆज स्कूल ऑफ मॆडिसिन का डॉ. डगलस यंग कहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट करता है कि यह खोज “भविष्य में ऐन्टी-टीबी दवाओं और टीकों के शोध के लिए अनमोल साबित हो सकती है।”—द टीबी ट्रीटमॆंट ऑबसर्वर, सितंबर १५, १९९८.
(बाकी पृष्ठ २३ पर)
[पेज 23 पर तसवीरें]
इन दवाओं का मिश्रण टीबी बैक्टीरिया को खत्म कर सकता है
[चित्रों का श्रेय]
Photo supplied by WHO, Geneva
Photo: WHO/Thierry Falise
[पेज 24 पर तसवीरें]
एक मरीज़ के इलाज में १०० डॉलर लगते हैं
[चित्रों का श्रेय]
Photo: WHO⁄Thierry Falise
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[पेज 21 पर चित्रों का श्रेय]
Photo: WHO/Thierry Falise
Photo supplied by WHO, Geneva
Photo: WHO/Thierry Falise