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सजग होइए!–2001
g01 10/8 पेज 15

विश्‍व-दर्शन

खींचनेवाली कटोरीदार जीभ

गिरगिट दूसरी छिपकलियों का, यहाँ तक कि पक्षियों का शिकार कैसे करता है जबकि उनका वज़न गिरगिट के वज़न से 10 प्रतिशत ज़्यादा होता है? अब तक यह माना जाता था कि शिकार, गिरगिट की खुरदरी और लसलसी जीभ पर चिपक जाता है। फिर भी सही-सही कोई पता नहीं लगा पाया कि शिकार भारी होने पर भी वह कैसे उसे पकड़ लेता है। जर्मनी के वैज्ञानिक खबर-विभाग, बिल्ट डैर विसनशाफ्ट-ऑनलाइन ने रिपोर्ट दी कि इस बारे में पता लगाने के लिए ऐन्टवर्प, बेलजियम के वैज्ञानिकों ने तेज़ रफ्तारवाले वीडियो की मदद से रिकॉर्डिंग की। उस वीडियो में गिरगिट की जीभ झपट्टा मारते हुए दिखायी गयी। उन वैज्ञानिकों ने देखा कि जब गिरगिट अपनी जीभ तेज़ी से बाहर निकालता है तो जीभ का छोर गोल हो जाता है। अपने शिकार को पकड़ने से पहले जीभ की दो पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं और इसी तरह जीभ का छोर एक कटोरी जैसा बन जाता है जो शिकार को अपनी तरफ खींच लेता है। (g01 7/22)

अच्छी नींद, अच्छी याददाश्‍त

लंदन के अखबार, दि इंडपैंडेंट के मुताबिक नींद पर खोज करनेवालों ने पता लगाया है कि देर रात तक पढ़ाई या काम करने के बजाय अच्छी नींद लेना “ज़रूरी है ताकि आनेवाले हफ्तों में आपकी याददाश्‍त अच्छी तरह काम कर सके।” हार्वर्ड मॆडिकल स्कूल के प्रोफेसर, रॉबर्ट स्टिकगॉल्ड ने एक परीक्षण किया जिसमें 24 लोगों ने अपनी मरज़ी से भाग लिया। पढ़ाई के बाद आधे लोगों को रात में सोने दिया गया जबकि बाकियों को पूरी रात जगाए रखा गया। अगली दो रातों को दोनों दल के लोगों को सोने दिया गया ताकि पहली रात जागे लोग अपनी थकान दूर कर सकें। फिर दोनों दलों की याददाश्‍त परखी गयी। जाँच के मुताबिक जो लोग पहली रात सोए “उनकी याददाश्‍त बहुत ही तेज़ थी, जबकि दूसरे दल की याददाश्‍त, अगले दिन भरपूर नींद लेने पर भी कमज़ोर रही।” देखने में आया है कि नींद एक इंसान की याददाश्‍त बढ़ाने में मददगार होती है। इसलिए इन खोजों से पता चलता है कि जो लोग नींद लेने का वक्‍त, खासकर शुरूआत के दो-तीन घंटे, जिसे “स्लो-वेव” स्लीप कहा जाता है, पढ़ाई में लगाते हैं, उन्हें कोई फायदा नहीं होता।(g01 8/8)

पुरुष और महिलाओं के सुनने का तरीका अलग है

इंटरनॆट पर डिस्कवरी डॉट कॉम न्यूज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक खोजकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि महिलाएँ सुनने में अपने मस्तिष्क के दोनों तरफ का इस्तेमाल करती हैं जबकि पुरुष, सिर्फ एक ही तरफ इस्तेमाल करते हैं। एक अध्ययन में, 20 पुरुषों और 20 महिलाओं को उनके मस्तिष्क की स्कैनिंग के दौरान एक किताब की टेप रिकॉर्डिंग सुनायी गयी। स्कैन से पता चला कि पुरुष ज़्यादातर सुनने में अपने मस्तिष्क का बाँया हिस्सा इस्तेमाल करते हैं जिसका संबंध सुनने और बातचीत से है। जबकि महिलाओं को अपने मस्तिष्क का दोनों तरफ से इस्तेमाल करते हुए देखा गया है। इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मॆडिसिन में रेडियोलॉजी के सहायक प्रोफेसर, डॉ. जोसफ टी. लूरीटो कहते हैं: “हमारी खोज से पता चला है कि महिलाओं और पुरुषों में बातचीत करने और सुनने का तरीका अलग होता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे काम करने में एक-दूसरे से कम या ज़्यादा काबिल हैं।” वे आगे कहते हैं कि दूसरे अध्ययनों से यह मालूम होता है कि महिलाएँ “एक ही समय पर दो-दो बातचीत सुन सकती हैं।”(g01 8/8)

रूस की अदालत में साक्षियों की जीत

फरवरी 24,2001 के द न्यू यॉर्क टाइम्स अखबार ने यह रिपोर्ट दी: “यहोवा के साक्षियों ने आज [फरवरी 23] मॉस्को की अदालत में प्रॉसिक्यूटर्स के खिलाफ मुकद्दमा जीत लिया है जिसका असर दूर-दूर तक देखे जाने की संभावना है। प्रॉसिक्यूटर्स ने सन्‌ 1997 के कानून के तहत इस ग्रूप पर पाबंदी लगानी चाही, जिसके मुताबिक उन धार्मिक पंथों पर रोक लगायी जाती है जो लोगों में नफरत या पक्षपात की भावनाएँ पैदा करते हैं।” मार्च 12,1999 को यह मुकद्दमा करीब दो साल के लिए मुल्तवी किया गया और उस दौरान अदालत ने साक्षियों की शिक्षाओं की जाँच करने के लिए पाँच विशेषज्ञों को नियुक्‍त किया। उसके बाद जब फरवरी 6,2001 को इस मुकद्दमे की सुनवाई हुई तो तीन हफ्ते के अंदर अदालत जान गयी कि प्रॉसिक्यूटर्स ने साक्षियों के खिलाफ जो-जो इलज़ाम लगाए, वे सारे-के-सारे बेबुनियाद थे। मगर प्रॉसिक्यूटर्स ने मॉस्को सिटी कोर्ट से दोबारा मुकद्दमे की जाँच करने की अपील की। मई 30 को उनकी अपील मंज़ूर हो गयी और मुकद्दमा दोबारा दायर किया गया। लॉस एन्जलस टाइम्स अखबार ने कहा: “सन्‌ 1997 के धर्म-कानून को लागू करवाने में रूस के ऑर्थोडॉक्स चर्च का बहुत बड़ा हाथ रहा था क्योंकि वे मिशनरी कामों के सख्त खिलाफ हैं। उस कानून की वजह से बहुत-से धार्मिक संगठनों को रजिस्ट्री कराने के लिए कई मुश्‍किलों से गुज़रना पड़ा।”(g01 8/22)

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