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सजग होइए!–2002
g02 4/8 पेज 14-17

हवा के साथ-साथ

कनाडा में सजग होइए! लेखक द्वारा

“मुझे जल्दी से ताफिता और रस्सी दो, मैं तुम्हें एक ऐसा करिश्‍मा दिखाता हूँ जिसे दुनिया देखती रह जाएगी!”—जोसफ मिशेल मॉन्तगॉलफीयर, 1782.

वूश! आग की एक लपट रंग-बिरंगे गुब्बारे में जाने लगी और गुब्बारा धीरे-धीरे आसमान की ओर उठने लगा। इंद्र-धनुषी रंगों में रंगे कपड़े के खूबसूरत गुब्बारे में बैठकर खुले आसमान की सैर से वाकई रोम-रोम में सिहरन दौड़ जाती है। इतना ही नहीं, इस भाग-दौड़ से भरी ज़िंदगी से राहत मिलती है। गुब्बारे में सैर करने का बढ़ावा देनेवाले, और इसका काफी तजुर्बा रखनेवाले एक इंसान ने कहा, “यह दिल को सुकून देनेवाला, साथ ही रोमांचक भी है।”

गुब्बारे से उड़ान भरने की कोशिशों में से सबसे पहली कामयाबी 1780 के दशक की शुरूआत में हासिल हुई। यह कोशिश, जोसफ-मिशेल और ज़ाक-एटीएन मांगोल फियर ने की थी। इसके बाद से गुब्बारे की उड़ान ने इंसान का मन मोह लिया है। (नीचे बक्स देखिए।) मगर सिर्फ 1960 के दशक में जल्दी आग न पकड़नेवाले कपड़े की ईजाद हुई और जलाने के लिए ईंधन के रूप में प्रोपेन का इस्तेमाल होने लगा। यह तरीका सुरक्षित और कम लागतवाला था। प्रोपेन जलाकर गुब्बारे के अंदर की हवा गर्म की जाती थी और उसके तापमान को नियंत्रित किया जाता था। इसके बाद से गुब्बारे की सैर रोमांचक खेलों की दुनिया में वाकई आसमान छूने लगी।

करीब से मुआयना

इस खूबसूरत गुब्बारे को पास से देखने पर पता चलता है कि यह रंगीन कपड़ों की धारियों से बना है जो बीच में चौड़ी होती हैं। इन पट्टियों को ऊपर से नीचे तक साथ-साथ सिल दिया जाता है। जब गुब्बारे में हवा भरी जाती है तो कुछ गुब्बारों की चौड़ाई 15 मीटर तक हो जाती है और इनकी ऊँचाई करीब 25 मीटर से ज़्यादा होती है।

कई उड़ान भरनेवाले कुछ अलग कर दिखाने की कोशिश में गुब्बारे के आकार और बनावट की खुद रचना करते हैं। ये गुब्बारे जानवरों के आकार से लेकर बोतल के आकार, और-तो-और सर्कस के जोकर के आकार के होते हैं। इनका आकार चाहे जो भी हो, खामोशी के साथ आसमान में सैर करनेवाले इन गुब्बारों के उड़ने के पीछे जो सिद्धांत है वो तो वही रहेंगे।

इसके पायलट और यात्रियों को एक हल्के, मज़बूत गोंडोला या टोकरी में सवार होना पड़ता है। यह गोंडोला मज़बूत तारों के ज़रिए गुब्बारे से जुड़ा होता है और यह गुब्बारे के मुँह के बिलकुल नीचे होता है। कुछ टोकरियाँ एल्युमीनियम की बनी होती हैं। एक बार फिर ज़रा गोंडोला पर नज़र डालिए। आप देखेंगे कि गुब्बारे के मुँहाने के ठीक नीचे धातु की बनी सपाट जगह पर ईंधन जलाने के लिए बर्नर और रेग्यूलेटर लगे हुए हैं। जहाँ तक ईंधन के टैंक का सवाल है वो इस टोकरी के अंदर होते हैं।

उड़ने के लिए तैयार

उड़ने के लिए हवाईजहाज़ को लंबी हवाई पट्टी की ज़रूरत होती है। मगर गर्म हवा से उड़नेवाले इन गुब्बारों को उड़ने के लिए एक छोटे मैदान की जगह ही काफी है। जगह चुनते वक्‍त सबसे ज़रूरी है की ऐसी जगह चुनें जहाँ ऊपर उठने में कोई रुकावटें न हों। क्या आप इस खामोशी से उड़नेवाले हवाईजहाज़ में उड़ने के लिए बेताब हैं? उड़ने के लिए टोकरी में चढ़ने से पहले कुछ ज़रूरी कदम उठाने पड़ते हैं।

सबसे पहले खाली गुब्बारा, टोकरी के पास हवा की दिशा में ज़मीन पर बिछा दिया जाता है। और फिर मोटर से चलनेवाले बड़े पंखे से गुब्बारे में हवा भरी जाती है। इसके बाद, गर्म हवा सीधे गुब्बारे में भरी जाती है जिससे गुब्बारा ऊपर उठने लगता है और सीधाई में टोकरी के ऊपर आ जाता है। उसके बाद आखिरी बार सारे उपकरणों की जाँच की जाती है, जैसे ईंधन के कनेक्शन और हवा बाहर निकलने के मार्ग और उसे नियंत्रित करने के लिए लगे उपकरणों की भी जाँच की जाती है। यह भी देखा जाता है कि इनके तार टोकरी तक लटके हुए हों। अब पायलट यात्रियों सहित उड़ान भरने के लिए बिल्कुल तैयार है। गुब्बारे में उड़नेवाले कुछ लोग रेडियो उपकरण साथ ले जाते हैं और ज़मीन पर कर्मचारी-दल के साथ संपर्क बनाए रखते हैं। यह दल गाड़ी में उनका पीछा करता है ताकि उनके ज़मीन पर आने पर गुब्बारे और उसमें सवार लोगों को वापस ला सके।

हवा के साथ-साथ

गुब्बारे को उड़ानेवाले ज़्यादातर लोग 100 मीटर की ऊँचाई पर उड़ना पसंद करते हैं ताकि वे आराम से शहर के बाहरी इलाकों पर सैर करते हुए नीचे हो रही हलचल को देख पाएँ। इस ऊँचाई से तो ज़मीन पर लोगों के हँसने और चिल्लाने की आवाज़ें तक सुनी जा सकती हैं। ज़मीन पर से उड़ते हुए गुब्बारे को देखना बड़ा मोहक लगता है और ऐसा लगता है जैसे डेंडीलाइन पौधे का बीज हवा के हल्के-हल्के झोंकों से उड़ रहा हो। कुछ उड़ान भरनेवाले नियमित तौर पर 600 मीटर या उससे भी ज़्यादा ऊँचाई तक उड़ान भरते हैं। लेकिन, बिना ऑक्सीजन साथ लिए 3,000 मीटर से ज़्यादा की ऊँचाई तक जाना ठीक नहीं है।—“ऊँचाई पर उड़ान” बक्स देखिए।

ऊपर उड़ने के बाद आप नीचे कैसे आएँगे? इसका जवाब है गुरुत्वाकर्षण! गुब्बारे से वायु बाहर निकालने के लिए डोरी खींचनी पड़ती है जिससे थोड़ी गर्म हवा बाहर निकल जाती है। लेकिन, सीधाई में यात्रा करनेवाले गुब्बारे इस तरह नहीं उतर सकते। पायलट इसके लिए मौसम की मेहरबानी पर निर्भर रहता है। एक अनुभवी उड़ान भरनेवाले ने बताया: “हर उड़ान अपने आप में अनोखी होती है, क्योंकि हर उड़ान में हवा, दिशा और रफ्तार तय करती है।” अलग-अलग ऊँचाइयों पर हवा का बहाव अलग होता है इसलिए रफ्तार और दिशा कभी-कभी बदल सकता है। और यह आम बात है की पृथ्वी की सतह से 100 मीटर की ऊँचाई पर हवा एक दिशा में बह रही होती है, तो 200 मीटर की ऊँचाई पर हवा उसके बिल्कुल उल्टी दिशा में बहती है।

गुब्बारा तो हवा की रफ्तार से उड़ता रहता है इसलिए, आपको ऐसा महसूस होगा की आप एक ही जगह पर खड़े हैं और नीचे धरती घूम रही है। स्मिथसोनियन पत्रिका के मुताबिक, “गुब्बारे में उड़नेवाले, हवा के साथ-साथ इस कदर तालमेल से उड़ते हैं कि एक बार ऊँचाई पर चले जाने के बाद, अगर वे कोई नक्शा खोलकर फैला दें तो वह हवा में नहीं उड़ जाएगा।”

उड़ने में महारत हासिल करना

उड़ान भरने का सबसे बढ़िया समय तब होता है जब हवा बहुत ही धीमी गति से बह रही हो। ऐसा सूर्योदय होने के तुरंत बाद या सूर्यास्त के कुछ ही समय पहले होता है। ज़्यादातर सुबह का वक्‍त पसंद किया जाता है, क्योंकि तब वातावरण में ठंडक होती है और गुब्बारा ज़्यादा आसानी से ऊपर उठता है। देर दोपहर को उड़ान भरने में अंधेरा हो जाने का डर रहता है।

बहुत अभ्यास के बाद ही गुब्बारे से उड़ने में महारत हासिल होती है। इसके लिए यह सीखना ज़रूरी है कि किस तरह एक खास दिशा में बहती हुई हवा को पहचानना और उसी के साथ-साथ उड़ते जाना। अनुभवी उड़ान भरनेवाले एक ऐसे काम में महारत हासिल कर लेते हैं जिसे सीढ़ियाँ चढ़ना कहा जाता है। वे एक ऊँचाई तक जाने के बाद यान को स्थिर कर देते हैं। उसके बाद क्षण-भर के लिए बर्नर से आग की लपट निकलती है और गर्म हवा, गुब्बारे की चोटी तक जाने लगती है और इससे यह खामोश हवाईजहाज़ और ऊँचाई पर चढ़ जाता है।

गुब्बारे पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि पायलट थोड़े समय के अंतर पर बार-बार आग की लपट छोड़ता रहे और हमेशा सचेत रहे। पल-भर के लिए ध्यान हटने से अचानक गुब्बारा नीचे उतर सकता है। एक चौकन्‍ना पायलट याद रखता है कि बर्नर गुब्बारे के शिखर से 15-18 मीटर नीचे होता है, इसलिए आग की गर्मी ऊपर तक पहुँचने के लिए 15 से 30 सेकंड लगते हैं। और इस वजह से गर्मी के मुताबिक गुब्बारे के ऊँचा उठने में थोड़ा वक्‍त लगता है।

ज़मीन पर उतरने का अनुभव बड़ा ही रोमांचक हो सकता है, खासकर अगर बहुत तेज़ हवा चल रही हो या फिर किसी छोटी जगह पर उतरना हो! गुब्बारों के विशेषज्ञ ने कहा कि ऐसे हालात में “कहीं अच्छा होगा कि हम बड़ी तेज़ी के साथ सही जगह पर उतरें फिर चाहे हमें बहुत सारे झटके क्यों न खाने पड़ें, यह आराम से मगर किसी चिड़ियाघर में शेर के पिंजरे के अंदर उतरने से अच्छा है।” लेकिन, जब हवा का बहाव बिल्कुल ठीक हो, तब आराम से उतरना ही सबसे बढ़िया तरीका है।

गर्म-हवा से उड़नेवाले इन रंग-बिरंगे गुब्बारों से सैर करने का चलन चलता रहेगा। क्योंकि बहुत सारे लोग इन गुब्बारों की प्रतियोगिताओं, रैलियों और उत्सवों में भाग लेते हैं, तो कुछ लोग सिर्फ मज़े के लिए और तजुर्बे के लिए इनमें उड़ान भरते हैं।(g02 3/8)

[पेज 14, 15 पर बक्स/तसवीरें]

गुब्बारे की उड़ान का प्राचीन इतिहास

जोसफ-मिशेल और ज़ाक-एटीएन मांगोल फियर, कागज़ बनानेवाले एक अमीर व्यापारी के बेटे थे, जो फ्रांस के अन्‍नोने शहर के रहनेवाले थे। उन्हें इतिहास में सबसे पहला गर्म हवा का गुब्बारा बनाने और उड़ाने का गौरव दिया जाता है। दशक 1780 के शुरूआती सालों में उन्होंने सबसे पहले कागज़ के गुब्बारों को उड़ाने की कोशिश की। उनका मानना था कि पुआल और ऊन को जलाने से जो धुआँ निकलता है वह इन गुब्बारों को ऊपर ले जाता है। जल्द ही उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि गुब्बारा गर्म हवा की वजह से ऊपर उठता है।

बाद में, उन्होंने कपड़े के गुब्बारे बनाने शुरू कर दिए और उन्होंने गौर किया कि बड़े गुब्बारे बनाने से वे ज़्यादा ऊँचाई तक जा सकते हैं और उसमें ज़्यादा यात्री और सामान ढोया जा सकता है। जून 1783 को अन्‍नोने शहर के चौक पर, उन्होंने उस वक्‍त तक बनाए गए सबसे बड़े गुब्बारे को छोड़ा। वह ज़मीन पर उतरने से पहले आसमान में 10 मिनट तक उड़ता रहा।

इस सफलता के बाद वे इस नतीजे पर पहुँचे कि एक ऐसा गुब्बारा छोड़ा जाए, जिसमें आदमी ले जाए जाएँ। लेकिन, इससे पहले सितंबर 1783 में वर्सिलीज़ शहर में हज़ारों दर्शकों के सामने एक गुब्बारा आसमान में छोड़ा गया जिसमें एक मुर्गा, एक बत्तख, और एक भेड़ थी। ये तीनों गुब्बारे में 8 मिनट तक उड़ते रहे और सही-सलामत लौट आए। उसके कुछ ही समय बाद, नवंबर 21,1783 में पहली बार इंसानों को इसमें चढ़ाया गया। लूई XVI को राज़ी किया गया ताकि वह अपने राजदरबार के दो आदमियों को गुब्बारे में यात्रा करने का गौरव प्रदान करे। उनका गुब्बारा फ्रांस के शातो दे ला म्युएत से छोड़ा गया और वे पैरिस के ऊपर करीब 8 किलोमीटर की दूरी तक उड़े। करीब 25 मिनट बाद जब गुब्बारे में आग लग गयी तो मजबूरन उन्हें तुरंत नीचे उतरना पड़ा।

इसी समय के आस-पास पैरिस में विज्ञान अकादमी ने इस आविष्कार में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी। उस वक्‍त, सबसे मशहूर भौतिकविज्ञानी प्रोफेसर ज़ाक शार्ल ने दो हुनरमंद मैकेनिकों चार्ल्स और एम. एन. रॉबर्ट के सहयोग से पहला हाइड्रोजन गैस से भरा गुब्बारा बनाया और उसे अगस्त 27,1783 में परखा गया। वह करीब 45 मिनट तक हवा में उड़ता रहा और 24 किलोमीटर की दूरी तय कर पाया और शार्लियर के नाम से जाना गया। लगभग उसी रूप के गुब्बारे, आज भी इस्तेमाल किए जाते हैं।

[पेज 17 पर बक्स]

ऊँचाई पर उड़ान

एक अँग्रेज़ हैनरी कॉक्सवैल, सबसे ज़्यादा ऊँचाई तक उड़ान भरनेवाले के नाम से जाना गया। सितंबर 1862 में ब्रिटेन की मौसम विज्ञान संस्था के जेम्स ग्लाइशर की तरफ से हैनरी को यह आदेश मिला कि उसे बहुत ऊँचाई पर ले जाए ताकि वह कुछ वैज्ञानिक जानकारी हासिल कर सके। वे नौ किलोमीटर की ऊँचाई तक चढ़ गए, लेकिन उनके पास साँस लेने के लिए ऑक्सीजन नहीं था!

आठ हज़ार से ज़्यादा मीटर की ऊँचाई तक पहुँचने के बाद, जब ठंड, और हवा में ऑक्सीजन की कमी की वजह से साँस लेने में तकलीफ होने लगी, तब कॉक्सवैल ने नीचे उतरने की तैयारी शुरू कर दी। लेकिन गुब्बारे के लगातार घूमने की वजह से जहाँ से हवा निकलती है उस वाल्व को खोलने के लिए लगाई गयी रस्सी मुड़ गयी थी। तब कॉक्सवैल ने गुब्बारे के ढाँचे पर चढ़कर उलझी हुई रस्सी को छुड़ाया। ग्लाइशर तो पहले ही बेहोश हो चुका था और कॉक्सवैल को रस्सी अपने दाँतों से खींचकर खोलनी पड़ी, क्योंकि उसके दोनों हाथ ठंड की वजह से सुन्‍न पड़ गए थे। आखिरकार वे नीचे उतरने लगे।

धीरे-धीरे उन दोनों की हालत थोड़ी ठीक हुई और वे तेज़ी से नीचे आ रहे गुब्बारे की रफ्तार को कम कर पाए। वे करीब 10,000 मीटर की ऊँचाई के क्षेत्र तक पहुँच गए थे, और इस रिकॉर्ड को सौ से ज़्यादा साल तक कोई नहीं तोड़ पाया। खुली टोकरी में भरी गयी उनकी यह उड़ान, हवाई यात्रा के सबसे महान कीर्तिमानों में से एक है क्योंकि उन्होंने यह उड़ान बिना ऑक्सीजन के, बचाव के लिए कम-से-कम कपड़ों में, और ऊपरी वायुमंडल का लगभग कोई ज्ञान न होते हुए भरी थी।

[पेज 15 पर तसवीर]

फूलते समय गुब्बारे के अंदर का हिस्सा

[पेज 15 पर तसवीर]

गर्म हवा सीधे गुब्बारे के अंदर भरी जाती है जिससे गुब्बारा ज़मीन से उठकर उड़ने लगता है

[पेज 16 पर तसवीर]

अनोखे आकारवाले गुब्बारे

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