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g03 10/8 पेज 31

“बाइबल वर्ष”

आस्ट्रिया, जर्मनी, फ्रांस और स्विट्‌ज़रलैंड में सन्‌ 2003 को “बाइबल वर्ष” करार दिया गया है। जर्मनी का दैनिक अखबार, फ्रैंकफर्टर आलजेमाइना साइटुंग रिपोर्ट करता है: “इससे पहले सन्‌ 1992 में यह ऐलान किया गया था। और इस बार भी [चर्चों] का मकसद है, ‘ज़िंदगी देनेवाली इस किताब’ के बारे में लोगों को जागरूक करना और यह बात उनके दिलो-दिमाग में बिठाना कि पवित्र शास्त्र, समाज के लिए बहुत फायदेमंद है।”

जून 2002 की बीबलरिपोर्ट के मुताबिक, पूरी बाइबल या उसके कुछ भागों का अनुवाद 2,287 भाषाओं में किया जा चुका है। खोजों से यह भी पता चला है कि अब तक, बाइबल की करीब 5 अरब कॉपियाँ बाँटी जा चुकी हैं। बाइबल का अनुवाद करने और उसे बाँटने में बड़े पैमाने पर जो मेहनत की गयी है, उससे साफ ज़ाहिर होता है कि लोगों के दिलों में इस किताब के लिए कितनी श्रद्धा है।

फिर भी, आज ज़्यादातर लोगों को शायद इस बात पर यकीन न हो कि बाइबल, हमारे लिए कारगर है। कई लोग तो यह भी मानते हैं कि बाइबल में पाए जानेवाले सिद्धांत दकियानूसी हैं और उन्हें ज़िंदगी में अमल करना नामुमकिन है। लेकिन जर्मनी के चर्च उम्मीद करते हैं कि इस साल को बाइबल वर्ष ऐलान करके वे दो लक्ष्य हासिल कर पाएँगे। एक है, लोगों को बढ़ावा देना कि वे ज़्यादा-से-ज़्यादा बाइबल के स्तरों के मुताबिक जीएँ और दूसरा, ऐसे लोगों में दोबारा बाइबल के लिए दिलचस्पी जगाना जिन्होंने चर्च जाना छोड़ दिया है।

बाइबल को शुरू से लेकर आखिर तक पढ़ना बहुत बड़ी बात है और यही एक बढ़िया तरीका है जिससे उसके खास मुद्दों को समझा जा सकता है। लेकिन अगर एक इंसान को बाइबल से पूरा-पूरा फायदा पाना है तो उसे 2 तीमुथियुस 3:16,17 की बात हमेशा याद रखनी चाहिए: “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। ताकि परमेश्‍वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।”

जर्मन कवि, योहान वॉल्फगैंग फॉन गोइथ (सन्‌ 1749-1832) ने कहा: “मुझे यकीन है कि एक इंसान जितनी गहराई से बाइबल को समझने लगेगा, उसे बाइबल उतनी ही दिलचस्प लगेगी और उस पर इसका उतना ही गहरा असर होगा।” वाकई, सिर्फ परमेश्‍वर का वचन यह सही-सही बताता है कि हम कहाँ से आए हैं, ज़िंदगी का मकसद क्या है और भविष्य में क्या होगा!—यशायाह 46:9,10. (g03 9/22)

[पेज 31 पर चित्र का श्रेय]

From the book Bildersaal deutscher Geschichte

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