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  • सजग होइए!–2006
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सजग होइए!–2006
g 4/06 पेज 31

विश्‍व-दर्शन

◼ सन्‌ 2000 के दौरान, दुनिया-भर में टी.बी. के अंदाज़न 83 लाख नए मामले सामने आए थे, और करीब 20 लाख टी.बी. मरीज़ों की मौत हुई थी। इनमें से लगभग सभी गरीब देशों से थे।—मेडिकल जर्नल ऑफ ऑस्ट्रेलिया। (g 1/06)

◼ ‘इंस्टिट्यूट ऑफ एक्चुअरीज़’ ने जीवन-काल की जो नयी तालिकाएँ बनायीं, उनके मुताबिक, “30 साल की उम्र में धूम्रपान करने से एक आदमी की ज़िंदगी साढ़े पाँच साल कम हो जाती है और एक औरत की ज़िंदगी साढ़े छः से ज़्यादा साल कम हो जाती है।” लेकिन अगर 30 की उम्र में यह लत छोड़ दी जाए तो तंबाकू से होनेवाली बीमारियों से मरने का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।—द टाइम्स, इंग्लैंड।

◼ सन्‌ 2004 के दौरान, दुनिया-भर में तेल की खपत 3.4 प्रतिशत बढ़ गयी यानी 8 करोड़ 24 लाख बैरल (एक बैरल 159 लीटर के बराबर है) हो गयी थी। आधे से ज़्यादा बढ़ोतरी के लिए अमरीका और चीन ज़िम्मेदार थे। अमरीका में आज एक दिन में 2 करोड़ 5 लाख तेल से भरे बैरल की खपत होती है और चीन में 66 लाख बैरल की।—वाइटल साइन्स 2005, वर्ल्डवॉच इंस्टिट्यूट। (g 2/06)

“अपनी माँ की कदर कीजिए”

काम-काज के बारे में अध्ययन करनेवाले जाँचकर्ताओं ने अंदाज़ा लगाया है कि कैनडा की रहनेवाली जिन माँओं के स्कूल जानेवाले दो बच्चे हैं और जो घर पर रहकर सारा काम-काज निपटाती हैं, उन्हें अगर तनख्वाह दी जाए, तो ओवरटाइम को मिलाकर उनकी साल-भर की तनख्वाह लगभग 1,63,852 कनैडियन डॉलर (करीब 58 लाख रुपए) होगी। यह अंदाज़ा आजकल के वेतन के हिसाब से लगाया गया है। वैनकूवर सन अखबार कहता है कि ये आँकड़े “हफ्ते में 100 घंटे काम करने” पर मिलनेवाली तनख्वाह के मुताबिक हैं, “जिसमें छः दिन 15 घंटे काम किया जाता है और एक दिन 10 घंटे।” घर पर रहनेवाली माएँ ये सारी ज़िम्मेदारियाँ निभाती हैं: दिन के वक्‍त बच्चों का खयाल रखना, उन्हें सिखाना, गाड़ी चलाना, घर की साफ-सफाई करना, खाना पकाना, बच्चों के बीमार पड़ने पर उनकी देखभाल करना, और घर का आम रख-रखाव करना। तो अखबार की सलाह है: “अपनी माँ की कदर कीजिए: उसे शायद कम तनख्वाह मिल रही है।” (g 2/06)

अंधविश्‍वास बढ़ रहा है

जनता की राय पता करनेवाली जर्मनी की आलन्सबाख संस्था ने रिपोर्ट किया कि “टैक्नॉलजी और विज्ञान के इस युग में भी अंधविश्‍वास ने लोगों पर अपनी पकड़ मज़बूत बनाए रखी है।” लंबे समय से चल रहे एक अध्ययन से पता चला है कि “लोग आज भी बिना सोचे-समझे शकुन-अपशकुन में विश्‍वास करते हैं और हकीकत तो यह है कि 25 साल पहले के मुकाबले आज ऐसी धारणा ज़्यादा मशहूर है।” सन्‌ 1970 के दशक में, 22 प्रतिशत जनता मानती थी कि टूटते तारे का उनकी ज़िंदगी से कोई ताल्लुक है। मगर आज ऐसी धारणा रखनेवाले 40 प्रतिशत हैं। आज 3 में से सिर्फ एक बालिग ऐसा है जो हर तरह के अंधविश्‍वास को ठुकराता है। जर्मनी की यूनिवर्सिटी के 1,000 विद्यार्थियों पर किए एक और अध्ययन से पता चला कि उनमें से एक-तिहाई विद्यार्थी, कार में या चाबियों के गुच्छे में लगायी जानेवाली तावीज़ों में विश्‍वास करते हैं। (g 1/06)

नए ज़माने की गुलामी

‘संयुक्‍त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर संगठन’ (ILO) का एक अध्ययन दिखाता है कि “दुनिया-भर में कम-से-कम 1 करोड़ 23 लाख लोग ज़बरन मज़दूरी के शिकार हैं।” अंदाज़ा लगाया गया है कि इनमें से 24 लाख से भी ज़्यादा लोगों को गुलामी करने के लिए बेचा जाता है। ज़बरन मज़दूरी का मतलब है, किसी के धमकाए जाने पर ज़बरदस्ती काम करना। इसकी कुछ मिसालें हैं, वेश्‍यावृत्ति, फौज में भर्ती होना और अपना कर्ज़ चुकाने के लिए मजदूरी करना जिसके लिए बहुत कम पैसे मिलते हैं या बिलकुल नहीं मिलते। ILO के डाइरेक्टर जनरल, ह्वान सोमाविया के मुताबिक, ऐसी मजदूरी, “लोगों से उनके बुनियादी अधिकार और उनका आत्म-सम्मान छीन लेती है।”

रुकी हुई गाड़ियों के अंदर तापमान

पैडिएट्रिक्स पत्रिका का एक लेख बताता है कि अमरीका में सन्‌ 2004 के दौरान, गाड़ियों के अंदर गरमी बढ़ने की वजह से 35 बच्चों की मौत हो गयी। अध्ययन दिखाते हैं कि जब बाहर का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है, तो गाड़ी के अंदर का तापमान भी कुछ ही समय में 57 से 68 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है। अगर बाहर का तापमान 22 डिग्री सेल्सियस हो, तो गाड़ी के अंदर का तापमान उससे दुगना हो सकता है। तापमान में यह बढ़ोतरी, गाड़ी खड़ी करने के 15 से 30 मिनट के अंदर होती है। कहीं जाने से पहले खिड़की का शीशा डेढ़ इंच खुला छोड़ देने या गाड़ी बंद करने से पहले कुछ देर के लिए एयर-कंडिशन चलाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। उस लेख के लेखकों का मानना है कि अगर लोगों को इस खतरे के बारे में आगाह किया जाए, तो कई जानें बच सकती हैं। (g 3/06)

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