वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • g 10/06 पेज 30
  • विश्‍व-दर्शन

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • विश्‍व-दर्शन
  • सजग होइए!–2006
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • विशाल स्क्विड को किया कैमरे में कैद
  • “डायनोसौर घास खाते थे”
  • कैसे उड़ती हैं मधुमक्खियाँ?
  • तरानासाज़ चूहे
  • ऑस्ट्रेलिया की बिना डंकवाली मधुमक्खियों से एक मुलाकात
    सजग होइए!–2001
  • मधुमक्खी-पालन—एक “मीठी” कहानी
    सजग होइए!–1997
  • विश्‍व-दर्शन
    सजग होइए!–2004
सजग होइए!–2006
g 10/06 पेज 30

विश्‍व-दर्शन

◼ “हमारे ग्रह के जिस इलाके में सबसे ज़्यादा जीवित प्राणी पाए जाते हैं, वह है गहरा समुद्र। यह सबसे खतरनाक जगह है . . . फिर भी, इसमें जहाँ देखो वहाँ जीवित प्राणी नज़र आते हैं, और कभी-कभी तो इतनी बेशुमार तादाद में कि हम बस देखते ही रह जाते हैं।”—न्यू साइंटिस्ट पत्रिका, ब्रिटेन।

◼ हाल ही में, अमरीकी राज्य पेन्सिलवेनिया के हेरसबर्ग शहर में, फेड्रल अदालत में एक ऐसे मुकदमे की सुनवाई हुई, जिसमें दो पार्टी के लोग संविधान के एक कानून के बारे में जानना चाहते थे। उस अदालत के जज ने यह फैसला सुनाया: “स्कूल के बच्चों को विज्ञान की क्लास में विकासवाद के बदले यह सिखाना [कि कुदरत की रचनाएँ एक कुशल दिमाग की कारीगरी हैं], संविधान के खिलाफ है।”—न्यू यॉर्क टाइम्स अखबार, अमरीका।

◼ सन्‌ 2005 में लिए गए एक सर्वे के मुताबिक, “अमरीका के 51 प्रतिशत लोग, विकासवाद के सिद्धांत को नहीं मानते।”—न्यू यॉर्क टाइम्स अखबार, अमरीका।

◼ जून 2006 में, आस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन शहर के चिड़ियाघर में, हैरीअट नाम के एक विशाल कछुए की मौत हो गयी जिसे दरअसल गलापगस द्वीप-समूह से लाया गया था। उसकी उम्र 175 साल थी और उसका वज़न 150 किलो था। बताया जाता है कि यह “दुनिया का सबसे बूढ़ा जानवर था।”—आस्ट्रेलियन ब्रॉर्डकास्टिंग कॉरपरेशन।

◼ स्विट्‌ज़रलैंड के खोजकर्ताओं ने पता लगाया है कि कुछ किस्म के मकई कैसे खुद को एक ऐसे कीड़े (western corn rootworm) से बचाते हैं जो जड़ों को खा जाते हैं। वे ज़मीन के अंदर एक तरह की गंध छोड़ते हैं। इस गंध से तागे जैसे पतले कीड़े (threadworms) खिंचे चले आते हैं जो जड़ों को खानेवाले कीड़े की इल्लियों को मार डालते हैं।—डाय वेल्ट अखबार, जर्मनी। (g 9/06)

विशाल स्क्विड को किया कैमरे में कैद

वैज्ञानिकों ने पहली बार, दक्षिण जापान के बोनन द्वीप-समूह के पास समुद्र में एक ज़िंदा विशाल स्क्विड की तसवीर ली है। इसके लिए उन्होंने छोटे-छोटे स्क्विड और गूदेदार झींगे का चारा काँटे में लगाया और उसके ऊपर कई कैमरे लटकाकर पानी में उतार दिया। फिर करीब 900 मीटर की गहराई में जाकर यह विशाल स्क्विड दिखायी दिया। अनुमान लगाया जाता है कि यह स्क्विड करीब 8 मीटर लंबा था।

“डायनोसौर घास खाते थे”

‘असोशिएटिड प्रेस’ की एक रिर्पोट कहती है: “वैज्ञानिकों” को इस खोज से “बड़ी हैरानी हुई कि डायनोसौर घास खाते थे।” इस बात का उन्हें तब पता चला जब भारत में सोरोपोड जाति के डायनोसौर के मल का फॉसिल मिला और उन्होंने उसकी जाँच की। लेकिन वैज्ञानिक इस बात से हैरान क्यों थे? रिर्पोट के मुताबिक, वैज्ञानिकों का पहले मानना था कि “डायनोसौर के मरने के अरसों बाद जाकर धरती पर घास उगने लगी थीं।” वे यह भी मानते थे कि सोरोपोड के पास “खास किस्म के दाँत नहीं थे जो कड़क घास-पत्तियों को चबाने के लिए ज़रूरी होते हैं।” खोजकर्ता दल की अगुवाई और पेड़-पौधों के फॉसिल का अध्ययन करनेवाली वैज्ञानिक, कैरोलाइन स्ट्रोमबर्ग कहती हैं: “ज़्यादातर लोगों ने ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि [सोरोपोड] घास खाया करते थे।”

कैसे उड़ती हैं मधुमक्खियाँ?

एक बार मज़ाक में कहा गया था कि इंजीनियरों ने साबित कर दिखाया है कि मधुमक्खियाँ उड़ नहीं सकतीं। मधुमक्खियों के “भारी-भरकम” शरीर के मुकाबले, उनके पंख इतने छोटे होते हैं कि ऐसा लगता कि वे उड़ान नहीं भर सकतीं। मगर वे उड़ती ज़रूर हैं। न्यू साइंटिस्ट पत्रिका कहती है, मधुमक्खी कैसे उड़ती है इसका राज़ पता लगाने के लिए, इंजीनियरों ने “उड़ती हुई मधुमक्खियों की वीडियो रिकॉर्डिंग की और यह रिकॉर्डिंग उन्होंने एक सेकंड में 6,000 तसवीरें लेने की रफ्तार से की।” खोजकर्ताओं की टीम के एक सदस्य ने कहा कि मधुमक्खियाँ जिस तरीके से उड़ती हैं, वह बहुत ही “अनोखा” है। उसने समझाया कि उनके “पंख 90 डिग्री के कोण में मुड़ते हुए पीछे की तरफ जाते हैं और फिर घूमकर वापस आगे आते हैं। वे ऐसा एक सेकंड में 230 बार करते हैं। . . . उनके पंख, हवाई जहाज़ के पीछे लगे पंखे (प्रोपेलर) की तरह गोल-गोल घूमते हैं।” शायद यह खोज इंजीनियरों की मदद करे कि वे नए और बेहतर किस्म के प्रोपेलर बनाएँ और ऐसे हवाई जहाज़ तैयार करें जिन्हें आसानी से किसी भी दिशा में उड़ाया जा सके।

तरानासाज़ चूहे

न्यू साइंटिस्ट पत्रिका रिर्पोट करती है: “चूहे गा सकते हैं, और . . . अपने होनेवाले जीवन-साथी के लिए वे जो गाना गाते हैं वे ठीक चिड़ियों के गानों की तरह पेचीदा होते हैं।” चूहे उच्च स्तर की आवाज़ (ultrasonic frequencies) में गाते हैं जिसे इंसान नहीं सुन सकते। शायद इसलिए इंसानों ने इससे पहले कभी चूहों के गीतों पर गौर नहीं किया। अमरीकी राज्य, मिज़ूरी के सेंट लुई शहर में खोजकर्ताओं ने पता लगाया है कि नर चूहे की आवाज़ में “छोटे-बड़े, दोनों सुर होते हैं और इन्हीं से तो एक ‘गीत’ बनता है।” इसलिए अब चूहे को भी एक अनोखे दल में शामिल किया जा सकता है और वह है, गानेवाले जानवरों का दल। दूसरे स्तनधारी, जो गाना गाने के लिए जाने जाते हैं, वे हैं: व्हेल, डॉल्फिन, कुछ तरह के चमगादड़ और हाँ, इंसान भी। (g 9/06)

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें