युवा लोग पूछते हैं . . .
मैं इतने सारे नियमों का पालन क्यों करूँ?
“मेरे मम्मी-डैडी कहते हैं कि मुझे रात को फलाँ वक्त तक घर लौट आना चाहिए। उफ! उनके इस नियम ने तो मेरा जीना दूभर कर दिया है। मुझे इस बात पर बहुत गुस्सा आता है कि दूसरे बच्चों को उनके माँ-बाप देर रात तक बाहर रहने देते हैं, पर मेरे मम्मी-पापा मुझे इजाज़त नहीं देते।”—ऐलन।
“अगर आपके मम्मी-पापा बराबर नज़र रखें कि आप अपने सेल फोन पर किससे, क्या बातें कर रहे हैं, तो आपको कैसा लगेगा? मुझे तो इतनी चिढ़ आती है कि क्या बताऊँ। ऐसा लगता है कि वे अब भी मुझे कोई छोटी बच्ची समझते हैं!”—एलिज़बेथ।
क्या माँ-बाप की लगायी बंदिशों से आपका दम घुटता है? क्या कभी आपका मन किया है कि आप उन बंदिशों को तोड़ दें, जैसे उस वक्त जब आप अपने दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने के लिए रात को चोरी-छिपे घर से निकलना चाहते हैं? या फिर, क्या कभी आपने अपनी करतूतों पर परदा डालने के लिए अपने मम्मी-डैडी से झूठ बोला है? अगर हाँ, तो फिर आप शायद 17 साल की उस लड़की की तरह महसूस करें, जो कहती है कि उसके माँ-बाप उसे हद-से-ज़्यादा सुरक्षित रखना चाहते हैं और इसलिए उस पर कई पाबंदियाँ लगाते हैं। वह आगे कहती है: ‘उन्हें कभी तो मुझे अपनी मरज़ी से कुछ करने की आज़ादी देनी चाहिए।’
आपके माँ-बाप ने या जिन्होंने आपको पाल-पोसकर बड़ा किया है, उन्होंने शायद आपको घर के कुछ नियम दिए होंगे। जैसे, आपको कितने बजे तक घर लौटना है, कब होमवर्क करना है, कब घर के काम-काज में हाथ बँटाना है, और कितनी देर तक फोन पर बात करना, टी.वी. देखना और कंप्यूटर का इस्तेमाल करना है। घर के नियमों के अलावा वे आपको कुछ दूसरे नियम भी दें, जैसे स्कूल में आपका बर्ताव कैसा होना चाहिए और आपको किसके साथ दोस्ती करनी चाहिए।
कई जवान अकसर अपने माता-पिता के दिए नियमों का पालन करने से चूक जाते हैं। एक सर्वे के दौरान जिन किशोरों का इंटरव्यू लिया गया, उनमें से लगभग दो-तिहाई किशोरों ने कहा कि घर के नियमों को तोड़ने की वजह से ही उन्हें ताड़ना मिली है। इससे पता चलता है कि किशोरों को सबसे ज़्यादा सज़ा नियम तोड़ने के लिए मिलती है।
ज़्यादातर जवान यह कबूल करते हैं कि घर में शांति बनाए रखने के लिए थोड़े-बहुत नियम होना ज़रूरी है। लेकिन अगर ये नियम इतने ही ज़रूरी हैं, तो फिर जवानों को ऐसा क्यों लगता है कि कुछ नियमों ने उनका जीना दूभर कर दिया है? और अगर आपको लगता है कि मम्मी-डैडी नियम बनाकर आपकी आज़ादी छीन रहे हैं, तो आप इस समस्या से कैसे निपट सकते हैं?
“मैं अब बच्ची नहीं रही”!
एमली नाम की एक लड़की पूछती है: “मैं अपने मम्मी-पापा को कैसे समझाऊँ कि मैं अब बच्ची नहीं रही और उन्हें मुझे थोड़ी-बहुत छूट देनी चाहिए?” क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया है? एमली की तरह शायद आप भी अपने माता-पिता के बनाए नियमों से तंग आ गए हों, क्योंकि आपको लगता है कि वे अभी-भी आपको दूध-पीता बच्चा समझते हैं। मगर ऐसी बात नहीं है। हो सकता है, आपके माता-पिता इसलिए आपको नियम दें क्योंकि उन्हें लगता है कि ये नियम आपकी हिफाज़त के लिए और आपको एक ज़िम्मेदार इंसान बनाने के लिए बहुत ज़रूरी हैं।
बड़े होने पर आपके माँ-बाप आपको थोड़ी-बहुत आज़ादी दें, पर फिर भी शायद आपको लगे कि वे आपकी उम्र के हिसाब से उतनी आज़ादी नहीं दे रहे हैं। आप खासकर इस बात से खीज उठें कि जब आपके भाई-बहन आपकी उम्र के थे, तब उनके साथ उतनी सख्ती नहीं बरती गयी थी, जितनी कि आपके साथ बरती जा रही है। मारसी नाम की एक जवान कहती है: “मैं 17 साल की हो गयी हूँ, फिर भी मेरे मम्मी-पापा मुझे रात को जल्दी घर आने के लिए कहते हैं। मैं कोई भी गलती करूँ, वे सज़ा के तौर पर मेरा घर से निकलना बंद कर देते हैं। लेकिन मेरा भाई जब मेरी उम्र का था, तब उसे तो उन्होंने कभी घर जल्दी आने के लिए नहीं कहा। और ना ही उसे कभी घर में बंद रहने की सज़ा दी गयी थी।” मैथ्यू उन दिनों को याद करता है जब वह एक किशोर था। वह अपनी बहन और फुफेरी बहनों के बारे में कहता है: “इन लड़कियों को तो बड़ी-से-बड़ी गलती करने पर भी कोई सज़ा नहीं मिलती थी।”
क्या नियमों का न होना वाकई फायदेमंद है?
हम समझ सकते हैं कि आप, अपने माता-पिता के बनाए नियमों से आज़ाद होना चाहते हैं। लेकिन ज़रा सोचिए, क्या उनके नियमों से आज़ादी पाकर आपको सचमुच फायदा होगा? आप शायद कुछ हमउम्र नौजवानों को जानते हों जो देर रात तक बाहर रहते हैं, मनचाहे कपड़े पहनते हैं और अपने दोस्तों के साथ कभी-भी और कहीं-भी घूमने चले जाते हैं। हो सकता है, उनके माँ-बाप उन्हें रोकते-टोकते न हों क्योंकि खुद उन्हें अपने कामों से इतनी फुरसत नहीं मिलती कि वे अपने बच्चों पर ध्यान दे सकें। बात चाहे जो भी हो, मगर इस तरह छूट देने से नुकसान बच्चों का ही हुआ है। (नीतिवचन 29:15) आज हम अपने चारों तरफ प्यार की जो कमी देखते हैं, उसकी अहम वजह यह है कि लोग स्वार्थी हो गए हैं। और इनमें से कई लोग ऐसे घरों में पले-बढ़े हैं, जहाँ पर कोई नियम या अनुशासन ही नहीं था।—2 तीमुथियुस 3:1-5.
हो सकता है, आज आप नियमों से नफरत करें, मगर एक दिन आएगा जब आप इन्हीं नियमों को अलग नज़र से देखेंगे। गौर कीजिए कि कुछ जवान लड़कियों पर किए अध्ययन से क्या पता चला है। इन लड़कियों की परवरिश के दौरान इनके माता-पिता ने इन्हें बस एकाध नियम दिए थे और वे इन्हें बहुत कम या बिलकुल भी नहीं रोकते-टोकते थे। उनमें से हरेक लड़की को इस बात का अफसोस है कि उसके माँ-बाप ने उसे बचपन में अनुशासन नहीं दिया था। उन्हें ऐसा लगा कि उनके माँ-बाप उनकी कोई परवाह नहीं करते थे या वे उनकी परवरिश करने के काबिल नहीं थे।
जिन जवानों को कुछ भी करने की छूट मिलती है, उन्हें देखकर मन-ही-मन कुढ़ने के बजाय, यह समझने की कोशिश कीजिए कि आपके माता-पिता इसलिए आपको कुछ नियम देते हैं क्योंकि वे आपसे प्यार करते हैं और उन्हें आपकी फिक्र है। वे आप पर कुछ हद तक पाबंदियाँ लगाकर दरअसल यहोवा परमेश्वर की मिसाल पर चल रहे होते हैं। यहोवा अपने लोगों से कहता है: “मैं तुझे बुद्धि दूँगा और जिस मार्ग पर तुझे चलना है उसमें तेरी अगुवाई करूंगा, मैं अपनी दृष्टि तुझ पर लगाए रखकर तुझे सम्मति दूंगा।”—भजन 32:8, NHT.
लेकिन, फिलहाल शायद आपको अपने माता-पिता के नियमों को मानना मुश्किल लगे। ऐसे में भी आप अपने माता-पिता के साथ एक अच्छा रिश्ता कैसे बनाए रख सकते हैं? आइए कुछ कारगर सुझावों पर गौर करें।
ऐसी बातचीत करना जिससे अच्छे नतीजे मिलें
क्या आप ज़्यादा आज़ादी चाहते हैं? या फिर जितनी आज़ादी आपको मिली है, उसी में खुशी पाना चाहते हैं? तो फिर यह ज़रूरी है कि आप अपने माता-पिता से खुलकर बातचीत करें। लेकिन कुछ जवान शायद कहें: ‘मैं अपने मम्मी-पापा से बात करने की बहुत कोशिश करता हूँ, पर वे मेरी एक नहीं सुनते!’ अगर आपके साथ भी ऐसा होता है, तो खुद से पूछिए: ‘क्या मैं अपने बातचीत करने के तरीके में निखार ला सकता/ती हूँ?’ याद रखिए, अच्छी बातचीत एक अहम ज़रिया है जिसकी मदद से (1) आपकी ख्वाहिश पूरी की जाती है या (2) आप बेहतर तरीके से समझ पाते हैं कि आपकी ख्वाहिश क्यों पूरी नहीं की गयी। अगर आप चाहते हैं कि बड़ों की तरह आपको भी कुछ करने की आज़ादी दी जाए, तो आपसे यह उम्मीद करना सही है कि आप उनकी तरह बातचीत करने में समझदारी दिखाएँ।
◼ अपनी भावनाओं को काबू में रखना सीखिए। बाइबल बताती है: “मूर्ख अपने सारे मन की बात खोल देता है, परन्तु बुद्धिमान अपने मन को रोकता, और शान्त कर देता है।” (नीतिवचन 29:11) खुलकर बातचीत करने का यह मतलब नहीं कि आप बात-बात पर अपने मम्मी-पापा से शिकायत करें। ऐसा करने से आपको उनसे डाँट ही पड़ेगी! इसलिए शिकायत करने, रूठने और रोने-धोने से दूर रहिए। जब माता-पिता आप पर कोई पाबंदी लगाते हैं, तो शायद आप गुस्से में आकर दरवाज़ा धड़ाम से बंद करें या अपने पैर पटकें। मगर इस तरह की बचकानी हरकतों से आज़ादी मिलना तो दूर, आप पर और भी पाबंदियाँ लगा दी जाएँगी।
◼ अपने माता-पिता के नज़रिए को समझने की कोशिश कीजिए। ट्रेसी एक मसीही जवान है जिसकी परवरिश अकेली उसकी माँ ने की थी। वह बताती है कि किस बात ने उसे अपनी माँ का नज़रिया समझने में मदद दी है: “मैं खुद से पूछती हूँ: ‘आखिर मम्मी ने मुझे इतने सारे नियम क्यों दिए हैं?’ क्योंकि वह चाहती है कि मैं एक अच्छी इंसान बनूँ।” (नीतिवचन 3:1,2) ट्रेसी की तरह अगर आप भी अपने माता-पिता का नज़रिया समझने की कोशिश करेंगे, तो आप उन्हें अपनी बात समझा पाएँगे। मान लीजिए, वे आपको किसी पार्टी में जाने की इजाज़त देने से हिचकिचा रहे हैं। ऐसे में उनके साथ बहस करने के बजाय, आप उनसे पूछ सकते हैं: “अगर मैं अपने साथ किसी प्रौढ़ और भरोसेमंद दोस्त को ले जाऊँ, तो क्या तब आप मुझे जाने देंगे?” आपके माता-पिता शायद आपकी हर गुज़ारिश पूरी न करें। लेकिन अगर आप उनकी चिंताओं और उनके नज़रिए को समझने की कोशिश करेंगे, तो आप उन्हें कोई ऐसा उपाय सुझा पाएँगे जिससे वे बिना किसी हिचकिचाहट के आपकी गुज़ारिश मंज़ूर कर दें।
◼ अपने मम्मी-डैडी का भरोसा जीतिए। अपने मम्मी-डैडी का भरोसा जीतना बैंक में पैसा जमा करने की तरह है। बैंक से आप उतना ही पैसा निकाल सकते हैं जितना कि आपने जमा किया है। अगर आप जमा की हुई रकम से ज़्यादा पैसा निकालें, तो इसका आपको जुर्माना भरना पड़ सकता है। और अगर आप इस तरह बैंक से कई बार पैसा निकालें, तो बैंकवाले आपका खाता बंद कर सकते हैं। उसी तरह आपके माता-पिता आपको ज़्यादा आज़ादी तभी देंगे, अगर आपने उनका भरोसा जीता है और अपने बर्ताव से साबित कर दिखाया है कि आप एक ज़िम्मेदार इंसान हैं।
◼ हद-से-ज़्यादा की उम्मीद मत कीजिए। आप जो कुछ करते हो, उसके लिए आपके माँ-बाप को जवाबदेह ठहराया जाएगा, इसलिए वे आप पर ज़रूरी बंदिशें लगाते हैं। तभी तो बाइबल “पिता की आज्ञा” और “माता की शिक्षा” का ज़िक्र करती है। (नीतिवचन 6:20) लेकिन, आपको ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि उनके दिए नियमों से आपकी ज़िंदगी बरबाद हो जाएगी। इसके उलट, अगर आप अपने मम्मी-डैडी के अधिकार को मानेंगे, तो यहोवा वादा करता है कि आगे चलकर आपका ‘भला होगा’!—इफिसियों 6:1-3. (g 12/06)
“युवा लोग पूछते हैं . . .” के और भी लेख, वेब साइट www.watchtower.org/ype पर उपलब्ध हैं
इस बारे में सोचिए
◼ किन नियमों का पालन करना आपको सबसे मुश्किल लगता है?
◼ अपने मम्मी-डैडी के दिए नियमों को मानने के लिए, इस लेख के कौन-से मुद्दे आपकी मदद करेंगे?
◼ अपने मम्मी-डैडी का भरोसा जीतने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
[पेज 11 पर बक्स/तसवीरें]
जब कोई नियम तोड़ा जाता है
आप शायद इस हालात से अच्छी तरफ वाकिफ होंगे: मम्मी-पापा ने आपके लिए घर आने का जो समय ठहराया था उसे आपने नहीं माना है, या आपने अपना काम पूरा नहीं किया है या फिर, फोन पर जितने समय तक बात करने की आपको इजाज़त दी गयी थी, उससे ज़्यादा समय बिताया है। अब आपको अपने मम्मी-डैडी को जवाब देना है कि आपने ऐसा क्यों किया। इस तनाव-भरे माहौल को आप और भी बिगड़ने से कैसे रोक सकते हैं?
◼ सच बोलिए। अपने माता-पिता को धोखा देने की कोशिश करने का कोई फायदा नहीं, इसलिए सच बोलिए और उनके सवालों का सही-सही जवाब दीजिए। (नीतिवचन 28:13) अगर आप सच परदा डालने के लिए अपने मम्मी-पापा को बनी-बनायी कहानियाँ सुनाएँगे, तो उनका आप पर जो थोड़ा-बहुत भरोसा है, वह भी खत्म हो जाएगा। अपनी गलती को सही ठहराने या उसे हलका बताने की कोशिश मत कीजिए। हमेशा याद रखिए कि “कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है।”—नीतिवचन 15:1.
◼ माफी माँगिए। अपने मम्मी-पापा को चिंता में डालने, उन्हें दुःख पहुँचाने या उनका काम बढ़ाने के लिए उनसे माफी माँगना सही है। ऐसा करने से शायद वे आपको सज़ा देने में थोड़ी-बहुत नरमी बरतें। (1 शमूएल 25:24) मगर आपको अपनी गलती पर सच्चा पछतावा होना चाहिए।
◼ अंजाम कबूल कीजिए। हो सकता है, आप पहले-पहल सज़ा कबूल करने के लिए तैयार न हों, खासकर तब जब आपको लगे कि यह सज़ा आपको मिलनी ही नहीं चाहिए। (नीतिवचन 20:3) लेकिन अपनी गलतियों को मानना एक प्रौढ़ और समझदार इंसान की निशानी है। (गलतियों 6:7) इसके बाद, आप एक बार फिर अपने माता-पिता का भरोसा जीतने की कोशिश कर सकते हैं।
[पेज 12 पर तसवीर]
अपने मम्मी-पापा की चिंताओं को समझने की कोशिश कीजिए