“राज्य का यह सुसमाचार”
१. वह कौनसे प्रश्न हैं जो भविष्य के लिए मनुष्य की आशा के सम्बन्ध में हमारे सामने आते हैं?
भविष्य के लिये आपकी क्या आशा है? क्या यही कि पृथ्वी पर जो चन्द वर्ष जिन्दा रहे तो उस थोड़े समय में कुछ सुखविलास और आनन्द प्राप्त कर ले इससे पहले कि मृत्यु इसका अन्त कर दे? क्या आप को मृत्यु के पश्चात जीवन की कोई आशा है? भविष्य में मानव जाति के लिये पृथ्वी पर क्या रखा है? क्या कोई दुर्घटना अन्त में पृथ्वी और उस पर के समस्त जीवन को नष्ट कर देगी?
२. (अ) विभिन्न जगहों के लोग इन प्रश्नों का उत्तर कैसे देते हैं? (ब) भविष्य के लिए निश्चित आशा रखने के लिये बुद्धिमत्ता की क्या बात होगी, और ऐसा क्यों करना चाहिये?
२ पृथ्वी के विभिन्न भागों में रहनेवाले लोग इन प्रश्नों के उत्तर विभिन्न रीति से देंगे। अनेक प्रकार के धर्म हैं और इस विषय में कि भविष्य में मानवजाति के लिये क्या रखा है, अनेक प्रकार के विचार भी हैं। कुछ लोग तो अपने परिणाम पर पहुँच गए हैं कि उनका भविष्य क्या होगा। यदि हम भविष्य के लिये निश्चित आशा चाहते हैं तो बुद्धिमत्ता की बात यह है कि हम मालूम करे कि सर्वोच्च और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का मक़सद मनुष्य और इस पृथ्वी के लिये जो मनुष्य का घर है, क्या है? चूंकि उसने मनुष्य को सृजा है इसीलिये वही हमारे भविष्य का फैसला कर सकता है और यह उसने किया हुआ है। वह जो सृष्टिकर्ता को खुश करते हैं, उनका भविष्य आनन्दमय है, और इस आनन्दमय भविष्य की सूचना पृथ्वी पर मनुष्य को सृष्टिकर्ता के खास प्रतिनिधी यीशु मसीह के द्वारा दी गई थी। उसकी सूचना को यीशु मसीह ने स्वयं “राज्य का यह सुसमाचार” कहा है।—मत्ती २४:१४, द होली बाइबल, न्यू.व.a
३. “इस सुसमाचार” के बारे में सब कुछ समझने के लिये हम आवश्यक ज्ञान कहाँ से प्राप्त कर सकते हैं, और यह वहाँ ही क्या मिलेगा?
३ “यह सुसमाचार” क्या है? इन बातों को समझने के लिये कि वह क्या है और वह “राज्य” क्या है जिसकी यहाँ चर्चा हुई है, और वह मानव जाति के लिये कैसे आशीष लाएगा, यह आवश्यक है कि हम परमप्रधान परमेश्वर के चंद एक मक़सदों और मानवजाति के साथ उसके बर्ताव को जानें। इन बातों की सूचना हमें एक पुस्तक में मिलती है वह पवित्र बाइबल हैं। वह जो सूर्य, चाँद और तारों, इस पृथ्वी और उस पर की सारी आश्चर्यजनक वस्तुएँ, मछलियाँ, चिड़ियाँ, पशु, पेड़ और फूल, और मनुष्य को पैदा कर सकता है, वह एक पुस्तक को भी रच सकता है। चूँकि सृष्टिकर्ता का यह मक़सद है कि यह सूचना सारे संसार को इस विधि से मिले कि हर कोई स्वयं इस ज्ञान की जाँच—पड़ताल करने के योग्य हो जाए, इसलिये एक ऐसे अभिलेख का होना आवश्यक है जिसे हर कोई सबूत के लिए देख सके। केवल बाइबल ही वह लिखित रेकॉर्ड है जिसमें मनुष्य और पृथ्वी के लिये सृष्टिकर्ता का संकल्प पाया जाता है, यह वह पवित्र पुस्तक है जिसको परमेश्वर ने समयों से बचाए रखा है और जिसका सैक़ड़ों भाषाओं में अनुवाद किया गया है। हम इस पुस्तक में उन सारे अनिवार्य प्रश्नों का उत्तर पाएँगे जो यहाँ पृथ्वी पर हमारे जीवन और भविष्य के लिये हमारी आशाओं से सम्बन्ध रखते हैं।
४. चंद एक जरूरी सवाल क्या है जिसका उत्तर बाइबल हमारे लिये देती है, और अब हमें क्या करना चाहिये?
४ परमेश्वर कौन है? उसने कैसे और क्यों मनुष्य को बनाया था? पृथ्वी पर दुष्टता और दुःख क्यों हैं? इनका अंत कब होगा? पृथ्वी और मनुष्य का भविष्य क्या है, और परमेश्वर से अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए क्या करना पड़ता है? यह सब और बहुत से प्रश्नों के उत्तर हमारे लिये बाइबल में दिये हुए हैं। बाइबल परमेश्वर का वचन है जिसमें वह अपने आपको और अपने मक़सदों को हम पर प्रकट करता है। (यूहन्ना १७:१७; २ तीमुथियुस ३:१५-१७) अतः आइये इस पुस्तक को पढ़े और उसकी चंद एक बातों को सीखें।
सच्चा परमेश्वर
५. जीवन प्राप्त करने के लिये हमें परमेश्वर के संबंध में किस बात को स्वीकार कर लेना चाहिये, और उपासना के लिये परमेश्वर की मूर्ति बनाने का प्रयत्न करना क्यों उचित नहीं है?
५ केवल एक ही सच्चा परमेश्वर है जो सर्वशक्तिमान और सर्वोच्च है और जो सृष्टिकर्ता है जिसने “स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उन में है बनाया।” (प्रेरितों के काम ४:२४) हर कोई जो जीवन चाहता है, और इस में परमेश्वर का श्रेष्ठ पुत्र यीशु मसीह भी सम्मिलित है, उसे उसकी सर्वोच्च सत्ता मानना चाहिये और उसके अधीन रहना चाहिए। (१ कुरिन्थियों १५:२८) परमेश्वर मानव आँखों से ओझल है और ‘परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा।’ (१ यूहन्ना ४:१२) तब मनुष्य के लिये उचित नहीं कि वह उपासना करने के लिये परमेश्वर की मूर्ति बनाने का प्रयत्न करे। उसका किसी से मिलान नहीं हो सकता है। उसका कोई तुल्य नहीं। यशायाह नबी ने उसके बारे में अध्याय ४०:१८ और २५ आयतों में लिखा था कि: “तुम परमेश्वर को किस के समान बताओगे और उसकी उपमा किससे दोगे?” वह सारे जीवन का मूल स्रोत है इसलिये हमें भविष्य में अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिये आशा के साथ उसकी ओर ताकना चाहिये।
६. परमेश्वर को नाम की आवश्यकता क्यों है, वह नाम क्या है, और हमें उसके नाम से जानना क्यों आवश्यक है?
६ अपने आपको बहुत सारे झूठे ईश्वरों से फ़र्क करने के लिये जिनकी उपासना की जाती है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का एक अपना नाम है। वह नाम यहोवा है। भजन संहिता ८३:१८ उसके बारे में यों कहती है: “ताकि लोग जान ले की तू जिसका नाम यहोवा है केवल तू सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान हैं।” इसलिये उसे सच्चे उपासक बनने के लिये आवश्यक है कि उसके नाम यहोवा से जाना जाए।
यीशु मसीह
७. परमेश्वर की सृष्टी में सब से बड़ा कौन है, और वह वचन क्यों कहलाया गया था?
७ परमेश्वर की सृष्टि में सबसे मुख्य उसका पुत्र है जो उसके अधीन है, वह पृथ्वी पर आया था और उसे यीशु नाम दिया गया था। बाइबल प्रकट करती है कि पृथ्वी पर आने से पहले वह आत्मिक प्राणी के रूप में स्वर्ग में रह चुका था। उस समय उसका नाम वचन था; अर्थात वह दूसरी तमाम सृष्टि के लिए जो पैदा की जा चुकी थी यहोवा का अधिवक्ता था। (यूहन्ना १:१; कुलुस्सियों १:१६; प्रकाशितवाक्य १९:१३) जब उन्होंने बपतिस्मा लिया और उन पर परमेश्वर की आत्मा उतरी तब उन्हें मसीह अथवा अभिषिक्त व्यक्ति कहलाया गया।—मत्ती ३:१३-१७.
८. क्या यीशु और यहोवा परमेश्वर एक ही व्यक्ति हैं, क्या वे बराबर का दरजा रखते हैं? यीशु ने इसके विषय में क्या कहा था?
८ यीशु और यहोवा परमेश्वर एक ही व्यक्ति नहीं है, और न ही यीशू परमेश्वर के बाराबर है। यहोवा अकेला ही सर्वोच्च है। इसी कारण से यीशु ने यहोवा के बारे में कहा था: “पिता मुझ से बड़ा है।” (यूहन्ना १४:२८) वह हमेशा और अभी भी अपने स्वर्गीय पिता का आज्ञाकार रहा है और हमेशा ही परमेश्वर के धर्म के कामों में उसके साथ मिला हुआ था या एक हुआ है। चूंकि वह दोनों एक विचार के थे इसलिये यीशु कह सकता था: “मैं और मेरा पिता एक है।” (यूहन्ना १०:३०) परन्तु इससे उसका यह मतलब न था कि वे एक ही व्यक्ति थे। ऐसा कहना मूर्खता है क्योंकि बाद में हम यीशु को अपने पिता से इन शब्दों में प्रार्थना करते पाते हैं: “हे मेरे पिता, यदि हो सके तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तथापि जैसे मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है, वैसा ही हो।’—मत्ती २६:३९; इसकी तुलना यूहन्ना १७:२०-२२ से करें।
९. यीशु अब किसका शासक बन चुका है, और उसने अपने अनुयायियों को किस बात के लिये प्रार्थना करना सिखाया था?
९ यीशु परमेश्वर का सब से मुख्य और अत्यन्त प्रिय पुत्र है और वह परमेश्वर के उस राज्य का राजा बन चुका है जिसके द्वारा नये प्रबन्ध में धार्मिकता और शान्ति लाई जाएगी। जब वह पृथ्वी पर था तो उसने अपने अनुयायियों को अपने स्वर्गीय पिता यहोवा से उसी राज्य के लिये प्रार्थना करना सिखाया था, “सो तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो: ‘हे हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसे पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती ६:९, १०) इससे पहले कि हम उस विषय में बातचीत करे कि यीशु मनुष्य बन कर पृथ्वी पर क्यों आया और मरा और राज्य के बारे में उसका प्रचार क्यों सुसमाचार था, आइये हम उस काल को लौट चलें जब परमेश्वर ने अदन की बाग में प्रथम मनुष्य आदम को रचा था।
पाप, मृत्यु और इब्लीस
१०. प्रथम पुरुष और स्त्री की रचना कैसे हुई थी, और उन्हें क्या करने का हुक्म मिला था?
१० आरम्भ में परमेश्वर ने प्रथम पुरुष और स्त्री को रचा था जिसका नाम आदम और हव्वा था। वे सिद्ध थे और परमेश्वर ने उन्हें एक परादीस बाग में रखा था जो पृथ्वी के उस भाग में था जिसे अदन कहते थे। उसने उन्हें यह आदेश दिया था: “फूलो-फलो, और पृथ्वी मे भर जाओ और उसको अपने वश में कर लो,” और उन्हें पृथ्वी पर की समस्त सृजी हुई वस्तुओं पर अधिकार दे दिया था।—उत्पत्ति १:२७-३१.
११. उनका आज्ञा पालन कैसे परखा गया था, और वह कौन था जिसने उन्हें आज्ञा भंग करने के लिये बहकाया था?
११ यदि वह अपने सृष्टिकर्ता के प्रति वफ़ादार और आज्ञाकारी रहते तो वह पृथ्वी पर मन की इच्छित वस्तुओं के साथ शान्तिपर्वू हमेशा के लिये जीवित रहते। यद्यपि उनके मन और शरीर सिद्ध थे परन्तु यह अभी तक परखे नहीं गए थे और परमेश्वर ने उन्हे अवसर दिया कि वह आजमाइश में अपने आज्ञा पालन का सबूत दें। उसने आदम को यह कहते हुए हुक्म दिया: “तू बाग के प्रत्येक वृक्ष में से तृप्त होकर खा सकता है परन्तु जहाँ तक भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष है, उसका फल तू न खाना, क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन निश्चय मर जाएगा।” (उत्पति २:१६, १७) क्या उन्होंने इस आजमाइश में अपनी वफ़ादारी का सबूत दिया? बाइबल का वर्णन यह प्रकट करता है कि वह वफ़ादार नहीं रहे थे। उत्पत्ति की किताब के तीसरे अध्याय में परमेश्वर का आदेश पूरा करने में पहिले स्त्री और फिर पुरुष की असफलता का वर्णन है, और उन्होंने मना किए हुए वृक्ष का फल खाया था। वह कौन था जिसने हव्वा को धोका दिया था? अभिलेख एक साँप का ज़िक्र करता है, परन्तु उस साँप के कार्यों के पीठ पीछे अवश्य कोई अनदेखी शक्ति होगी जो मानव शक्ति से अधिक बलवान होगी। हम अभी देखेंगे कि वह अनदेखी शक्ति कौन थी।
१२. पाप करने के बाद आदम और हव्वा पर क्या कुछ बीता था, और अदन की बाटी में साँप के पीठ पीछे वह अनदेख शक्ती कौन थी?
१२ इस वृक्ष के फल के विषय में परमेश्वर ने अपने आदेश में आदम को कहा था कि “जिस दिन तू उस में से खायेगा, तू निश्चय मर जाएगा।” (उत्पत्ति २:१७) अतः अब परमेश्वर ने इस दण्ड को उन पर लगा दिया। पहिले उसने आदम और हव्वा को उस परादीश बाग से बाहर निकाल दिया, और उस दिन से उन्होंने मरना आरम्भ कर दिया और एक दिन ऐसा आया कि वह बिलकुल मर गए और मिट्टी में वापस जा मिले जिस में से वह बनाए गए थे। उनका परमेश्वर की आज्ञा भंग करना, उनका परमेश्वर के आदेश के विरुद्ध बगावत करना उनपर मृत्यु को ले आया; चूँकि उनके सब बच्चे उनके पाप करने के पश्चात पैदा हुए थे इसलिए उनकी संतान को, जिस में हम भी सम्मिलित हैं, पाप और मृत्यु वरसे मिले। “एक मनुष्य के द्वारा पाप ने संसार में प्रवेश किया और पाप के द्वारा मृत्यु आई और इस प्रकार मृत्यु सब मनुष्य में फैल गयी क्योंकि सब ने पाप किया।” (रोमियों ५:१२) साँप के पीठ पीछे जो अनदेखी शक्ति थी जिस ने उन्हे परमेश्वर के विरुद्ध बगावत करने के लिय बहकाया था, उनकी मृत्यु का जिम्मेवार था और वह एक खूनी था। यीशु ने हमें उस खूनी की पहचान बताई है जब उसने इस दुष्ट के अनुयायियों को कहा था: “तु अपने पिता इबलीस से हो और तुम अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह आरम्भ से हत्यारा था, और वह सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि उस में सत्य नहीं है। जब वह झूठ बोलता है तब वह अपने स्वभाव ही से बोलता है, क्योंकि वह झूठा है, बल्कि झूठ का पिता है।” (यूहन्ना ८:४४) अतः वह अनदेखी शक्ति जो अदन में साँप के पीठ पीछे थी, वह शैतान अर्थात इबलीस था जो परमेश्वर और उसके उद्देश्यों के विरुद्ध सबसे बड़ा बगावत फैलाने वाला है।
१३. (अ) शैतान कैसे बना था? (ब) मना किए हुए फल के खाने के नतीजा के विषय में किसने सच कहा था, और इब्लीस ने नतीजा के खण्डन में कौनसी कोशिश की है?
१३ आदि में इबलीस परमेश्वर का बेटा था और इस प्रकार वह सिद्ध था; परन्तु उसने परमेश्वर के समान बनने के लिये लालच और घमंड को अपने मन में बढ़ने दिया और इसने उसे बगावत करने और आदम और हव्वा को इस बगावत में अपने साथ मिलाने के लिये उसकाया। वह एक ईश्वर के समान बनना चाहता था कि, सारी सृष्टि उसकी उपासना और सेवा करे। (२ कुरिन्थियों ४:४) आदम और हव्वा को अपनी ओर करने का एक ही तरीका था कि वह हव्वा से झूठ बोले। आपको याद होगा कि परमेश्वर ने यह कहा हुआ था कि यदि आदम मना किया हुआ फल खाएगा तो मर जाएगा, परन्तु शैतान ने साँप के द्वारा हव्वा से यह कहा था: “तुम निश्चय न मरोगे क्योंकि परमेश्वर जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे, तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी और तुम भले-बुरे का ज्ञान प्राप्त कर अवश्य परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।” (उत्पत्ती ३:४, ५) किस ने सच कहा था, परमेश्वर ने कि शैतान ने? क्या आदम वास्तव मरा था? बाइबल यह कहती है वह मरा था: “और आदम की कुल अवस्था नौ सौ तीस वर्ष की हुई। तत्पश्चात वह मर गया।” (उत्पत्ति ५:५) तथापि शैतान झूठा पाया गया। लेकिन इसके खण्डन में उसने इस धार्मिक विचार का प्रचार किया कि जब मनुष्य मरता है तो ऐसा ज्ञात होता है कि वह मर गया है, परन्तु वास्तव में वह नहीं मरता, बल्कि उसका केवल शरीर ही मरता है, परन्तु उसके अन्दर की वस्तु अर्थात प्राण (Soul) या आत्मा (Spirit) जीवित रहती है, वह या तो किसी दूसरे मनुष्य या पशु मे फिर से जन्म लेती है या किसी आत्मिक लोक को चली जाती है। क्या यह सच है? मरने के पश्चात मनुष्य के साथ क्या होता है?
१४. क्या परमेश्वर ने आदम को चेतवानी दी थी कि केवल उसका शरीर ही मरेगा, और इस बात के विषय में कि मरे हुए आदमी का प्राण (soul) किसी और जगह जीवित रहती है बाइबल के हवाले क्या प्रकट करते हैं?
१४ जब परमेश्वर ने यह कहा था कि आदम आज्ञा भंग करने पर मरेगा तो उसे केवल शरीर के मरने और उसका प्राण (Soul) का किसी और स्थान पर जाकर जीवित रहने के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा था। उसने सिर्फ यह कहा था: “तू निश्चय मर जाएगा।” बाइबल के इन हवालों को नोट कीजिए जो स्पष्टतया प्रकट करते हैं कि जब मनुष्य मरता है, तो वह बिलकुल मुरदा होता है और वह किसी और जगह जीवित नहीं रहता। “तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्ती नहीं। उसका भी आत्मा (Spirit) निकलेगा, वह भी मिट्टी में मिल जाएगा, उसी दिन उसकी सब कल्पनाएँ नाश हो जाएँगी।” (भजन संहिता १४६:३, ४) “क्योंकि जिन्दा जानते हैं कि वे मरेंगे; परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, और न उसको बदला मिल सकता है, क्योंकि उनकी स्मृति मिट गई है। जो काम तुझे मिले, उसे अपनी शक्ति भर करना, क्योंकि शिय्योल में जहाँ तुम जानेवाला है, न काम है न युक्ति न ज्ञान और न बुद्धी काम देती है।” (सभोपदेशक ९:५, १०) “देखो, सभों के प्राण (Soul)—मेरे हैं। जैसे पिता का प्राण (Soul) वैसे पुत्र का प्राण (Soul)—वे मेरे हैं। जो प्राण (Soul) पाप करेगा—वह स्वयं मर जाएगा।”—यहेजकेल १८:४.
१५. क्या मरने के बाद मनुष्य का प्राण (soul) सीधे किसी अनदेखे राज्य को चली जाती है, और ऐसी शिक्षा किस बात पर आधारित है?
१५ अतः जब मनुष्य मरता है तो उसका प्राण (Soul) न तो सीधी स्वर्ग को जाती है, न ही प्राण (Soul) किसी तड़पन की जगह जाती है जिसे “नरक” (Hell) कहते हैं, न ही वह प्राण (Soul) “आत्मा” (Spirit) या “भूत” बन कर अपने रिश्तेदारों को तंग करने वापस आती है। ऐसी सारी शिक्षा शैतान के उस धार्मिक झूठ पर आधारित है कि मनुष्य का प्राण (Soul) नहीं मरता है, और उसने बहुतेरों को ऐसी बातों पर विश्वास करने दिया है ताकि उन्हें डरा कर अपने काबू में रख सके और उन्हें परमेश्वर के उद्देश्यों का शुद्ध मतलब समझने से दूर रखे।
१६. लोगों को मरे हूए मनुष्यों की “आत्माओं” (spirits) और जादूगरों के बारे में क्या विश्वास करना सिखाया गया है, और जादूगरी के कार्य के विषय में बाइबल क्या कहती है?
१६ बहुत लोगों को यह विश्वास करना सिखाया गया है कि बिमारियाँ और मरियाँ मरे हुए लोगों की “आत्माओं” (Spirits) के प्रभाव से उत्पन्न होती है, और ये लोग जादुगारों के पास गए हैं जो यह दावा करते हैं कि वह “आत्माओं” (Spirits) को प्रसन्न कर सकते हैं। ऐसी जादूगरनियाँ भी है जो यह दावा करती हैं कि वह मरे हुए लोगों से मिल सकती हैं और उनका संदेश जिन्दों को पहुँचा सकती हैं और यह कि उनके पास दैविक शक्तियाँ हैं जो उन्हें मरे हुए लोगों की “आत्माओं” (Spirits) की सहायता से प्राप्त हुई हैं। यह विश्वास भी उसी प्रकार शैतान इबलीस के झूठ पर आधारित है और उसने इन विश्वासों को फैलने दिया है ताकि मनुष्य यह विश्वास करे कि मृत्यु के आने पर वह नहीं मरता हैं। बाइबल खास तौर पर चेतावनी देती है कि कोई जादूगरी के प्रकार के काम न करे। “तुझ में कोई ऐसा न हो जो अपने बेटे वा बेटी को आग में होम करके चढानेवाला, वा भावी कहनेवाला, वा शुभ-अशुभ मुहर्तों का माननेवाला, वा टोन्हा, वा तान्त्रिक, वा बाजीगर, वा ओझों से पूछनेवाला, वा भूत साधनेवाला, भूतों का जगानेवाला हो। क्योंकि जितने ऐसे-ऐसे काम करते हैं वे सब यहोवा के सम्मुख घृणित हैं और इन्ही घृणित कामों के कारण तेरा परमेश्वर यहोवा उनको तेरे सामने से निकालने पर है।”—व्यवस्थाविवरण १८:१०-१२.
१७. इसलिये जब मनुष्य मरता है तो उसके साथ क्या होता है? परमेश्वर ने मरती हुई मानव जाति के लिये क्या प्रबन्ध किया हुआ है?
१७ इस बात के विषय में सीधी सी सच्चाई यह है कि जब मनुष्य मरता है तो वह मुर्दा है, अचेत है और कुछ नहीं जानता है। शायद आप कहें कि, ऐसी दशा में क्या कोई भविष्य नहीं है? यदि, जब मनुष्य मरता है और कब्र में चला जाता है, और वह उनका अन्त है तो हमारे लिये क्या आशा है? अब यहाँ इन प्रश्नों के उत्तर में बाइबल हमें यहोवा का अत्यंत आश्चर्यजनक और करूणामय प्रबन्ध दर्शाती है जो उसने मानव जाति के लिये किया हुआ है, और वह प्रबन्ध है
छुड़ौती
१८. छुड़ौती क्या है? परमेश्वर ने मानव जाति के लिये इसका प्रबन्ध कैसे किया था, और उस पर विश्वास करनेवाले मनुष्य को क्या लाभ पहुँचता है?
१८ छुड़ौती वह वस्तु है जो बन्धन को खोलती है, या छुटकारा देती है, यह ऐसी बहुमूल्य वस्तु है जो गुलामी से छुट जाने के बदले में दी जाती है। बाइबल में इसका मतलब परमेश्वर के उस प्रबन्ध से है जो मनुष्य को पाप और पाप के कारण आई हुई मृत्यु से छुटकारा देता है; अतः हम मत्ती १०:२८ में यों पढ़ते हैं: “मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे, और, बहुतों की छुड़ौती के लिए अपना प्राण (Soul) दे।” यों यहोवा परमेश्वर ने अपने पुत्र यीशु मसीह को पृथ्वी पर भेज कर उसके और उसकी मृत्यु के द्वारा छुड़ौती की कीमत प्रदान की। वे व्यक्ति जो इस प्रबन्ध पर विश्वास लाते हैं और परमेश्वर की वफ़ादारी से सेवा करते हैं, मौरुसी पाप और उसके परिणाम हमेशा की मृत्यु से छुटकारा पाकर अनन्त जीवन का वरदान प्राप्त करेंगे। हम रोमियों ६:२३ में यों पढ़ते हैं: “क्योंकि पाप की मजदूरी मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारा प्रभु मसीह यीशु मे अनन्त जीवन है।”
१९. छुड़ौती देने के लिये किस चीज की आवश्यकता थी, और वह बहुमूल्य वस्तु यीशु द्वारा कैसे दी गई थी?
१९ जैसा कि हम पहले देख चुके हैं कि पाप और मृत्यु ने संसार में उस समय प्रवेश किया था जब आदम ने परमेश्वर के विरुद्ध बगावत की थी। आदम ने अपने और अपनी संतान के लिये परादीश पृथ्वी पर सिद्ध मानव जीवन को खो दिया। परन्तु मसीह यीशु ने छुड़ौती के द्वारा उसे वापस मोल ले लिया जो कि खो दिया था अर्थात सिद्ध मानव जीवन अपने सारे अधिकार व पृथ्वी सम्बन्धी आशाओं सहित। व्यवस्थाविवरण १९:२१ में परमेश्वर की व्यवस्था यह थी कि प्राण के बदले प्राण का दण्ड दिया जाय; इसलिये खोए हुए सिद्ध मानव जीवन के लिए एक सिद्ध मानव जीवन का बलिदान देना आवश्यक था। पृथ्वी पर कोई भी मनुष्य जो पापी आदम का वंशज था, इस छुड़ौती को नहीं दे सकता था, क्योंकि हर एक स्वयं पाप और मृत्यु के दण्ड के अधीन था जो उसने आदम से वरसे में पाया था। आदम के वंशज में किसी के पास सिद्ध मानव जीवन नहीं था जो वह बलिदान के लिए पेश करते। केवल परमेश्वर ही उस छुड़ौती को प्रदान कर सकता था और यह उसने इस तरह किया कि अपने इकलौते पुत्र के जीवन को जो उसके साथ स्वर्ग में रहता था, मरियम नामक यहुदी कुंवारी के गर्भ में परिवर्तित कर दिया। (मत्ती १:२३) यों यीशु ने बिना सांसारिक पिता की सहायता के आश्चर्यजनक रीति से एक सिद्ध मनुष्य जन्म लिया था। इस विधिसे उसने आदम के दण्ड को वरसे में नहीं पाया था। यह बालक यीशु बढ़ाकर सिद्ध पुरुष बना और इस प्रकार उसके पास वह बहुमूल्य वस्तु अर्थात सिद्ध मानव जीवन रहा जो छुड़ौती के काम आ सकता था।
२०. यीशु को क्यों बलिदान किया गया था, और वह छुड़ौती का मूल्य देने के योग्य कैसे बना? उसने उसे कहाँ और किसे पेश किया?
२० यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने यीशु को अपनी ओर आते देखकर उसे बलिदान के मेम्ने से उपमा दी और यह कहा: “देखो, परमेश्वर का मेम्ना जो जगत का पाप उठा ले जाता है।” (यूहन्ना १:२९) वह बहुमूल्य वस्तु जो छुड़ौती में उपयोग की जाती है यीशु का सिद्ध मानव जीवन है जिसे उसने मृत्यु में दिया था। मरने के तीन दिन बाद यीशु जिन्दा किया गया था, और उसके चालीस दिन के पश्चात वह स्वर्ग पर चढ़ गया। जी उठने पर उसने अपने मानव जीवन को वापस नहीं लिया था क्योंकि वह आत्मिक प्राणी के रूप में जीवित किया गया था। (१ पतरस ३:१८) जब वह स्वर्गपर चढ़ गया तो उसने अपने सिद्ध मानव जीवन के मूल्य को परमेश्वर के सामने भेंट या बलिदान के रूप में पेश किया जो पापों को उठा ले जा सकता था।—इब्रानियों ९:२४, २६.
२१. वह कौन लोग हैं जो छुड़ौती से लाभ उठाते हैं?
२१ वह कौन है जो छुड़ौती से लाभ उठाते हैं? यीशु यूहन्ना ३:१६ में यह उत्तर देता है: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना इकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नाश न हो परन्तु अनन्त जीवन पाएँ।”
२२. छुड़ौती के प्रबन्ध ने किस आशा का मार्ग खोल दिया, और वह कहाँ सफल होगी?
२२ यों छुड़ौती के प्रबन्ध ने अनन्त जीवन की आशा का मार्ग खोल दिया। बाइबल यह प्रकट करती है कि छुड़ौती के द्वारा कुछ विश्वास करने वाले लोगों को स्वर्ग में जीवन दिया जायेगा और दूसरे लोगों को पृथ्वी पर जीवन प्राप्त होगा। आइये, अब हम यह देखे कि बाइबल आनेवाले जीवन की आशा के विषय में क्या कहती है।
“स्वर्ग का राज्य”
२३. (अ) बाइबल “स्वर्ग” शब्द का उपयोग कैसे करती है? (ब) परमेश्वर ने पृथ्वी पर एक नया शासन स्थापित करने का संकल्प क्यों किया था, और शासन करनेवाले कौन और कितने लोग होंगे?
२३ जब प्रतिभा सम्पन्न प्राणियों के निवासस्थान के सम्बन्ध में शब्द “स्वर्ग” का उपयोग होता है तो वह आत्मिक लोग को निर्देश करता है। यह वह स्थान है जहाँ परमेश्वर अपने पवित्र दूतों के साथ रहता है। शब्द “स्वर्ग” उन आत्मिक शासकों के लिए भी इस्तेमाल होता है जो मनुष्य में उच्च और अधिक बलवान है या और यह पृथ्वी पर आत्मिक शक्तियों के अनदेखे राज्य को भी प्रकट करता है। आदि में आदम और हव्वा पर एक धार्मिक स्वर्गीय राज्य के प्रभाव था और परमेश्वर ने उनसे अपने बच्चों के समान बातचीत की थी। (उत्पत्ति १:२६-३०; २:७-२४) शैतान इबलीस के बगावत के साथ दुष्ट आत्मिक शासनने मनुष्य जाति पर अधिकार जमा लिया, तब परमेश्वर ने पृथ्वी के ऊपर एक नया स्वर्गीय राज्य स्थापित करने का संकल्प किया। जो “स्वर्ग का राज्य” कहलाया जाएगा। (मत्ती ३:२) इस स्वर्गीय राज्य को सिय्योन से उपमा दी गई थी, वो पर्वत जिसपर यरुशलेम का राजा दाऊद राज्य करता था। यह स्वर्गीय राज्य परखे हुए और परीक्षित लोगों से बना होगा जो ईमानदारी से जगत में यीशु मसीह के कदमों पर चलते हुए मरते दम तक अपनी वफादारी को स्थिर रखेंगे। प्रकाशितवाक्य के ७ और १४ अध्यायों में ऐसों की संख्या १,४४,००० मनुष्यों तक परिमित की गई है और यह पृथ्वी की आबादी के मुकाबिले में काफी छोटी संख्या है। जब यीशु पृथ्वी पर था तो उसने उन लोगों को चुनना आरम्भ किया था जो उसके साथ इस स्वगीर्य राज्य में सम्मिलित किए जाएँगे। उसने उनकी तुलना भेड़ों से की और कहा, “हे छोटे झुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिताने तुम्हें राज्य देने के लिए स्वीकार किया है।” (लूका १२:३२) यीशु के समय से अब तक स्वर्गीय राज्य के सदस्यों के चुनावों का काम जारी रहा है, और आज १९ शताब्दियों के चुनावों के बाद उस १,४४,००० की संख्या का छोटा शेष भाग अभी तक पृथ्वी पर है।
२४. ये लोग स्वर्गीय राज्य के लिए कैसे बुलाये गये हैं, और वह राज्य वर्ग कब पूरा हो जाएगा?
२४ वे मसीही लोग जो स्वर्ग के राज्य की सभा बनाते हैं यहोवा के वचन (बाइबल) और उसकी पवित्र आत्मा के द्वारा “बुलाए” गए हैं; अर्थात यहोवा के वचन के द्वारा उन्हें स्वर्गीय राज्य में सेवा करने की आशा का ज्ञान हुआ है, और यहोवा अपनी पवित्र आत्मा के द्वारा जो इनपर प्रभाव डालती है, उन्हें आत्मिक पुत्र बनाता है और उन्हें यह विश्वास दिलाता है कि यह आशा उन्हीं के लिए है। रोमियों ८:१६, १७ में ऐसे मसीहियों पढ़ते हैं: “आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की संतान है। यदि संतान हैं, तो वारिस भी: बल्कि परमेश्वर के वारिस, और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके साथ दुःख उठाएँ कि उसके साथ महिमा भी पाएँ।” (इसके साथ यूहन्ना ३:३-५ भी देखें।) जब इस राजकीय वर्ग के अन्तिम सदस्य जान देने तक वफादार रहकर अपनी पृथ्वी पर की सेवा समाप्त कर लेते हैं तब उस समय राजा यीशु मसीह के अधीन १,४४,००० सदस्यों से बना हुआ स्वर्गीय राज्य पुरा होगा, जब कि उन्हें स्वगीर्य जीवन के लिए मुर्दों में से जीवित किया जाएगा। यह राजकीय वर्ग उन तमाम प्राणियों पर शासन करेगा जो स्वर्ग में है और उन पर जो पृथ्वी पर जीवन प्राप्त करेंगे।
२५. “राज्य का यह सुसमाचार” के प्रचार का काम किन को सौंपा गया है, और यह क्यों “सुसमाचार” है?
२५ इस राजकीय वर्ग के बचे हुए जो अभी तक शरीर में इस पृथ्वी पर जिन्दा है [शेष लोग], उन्हें परमेश्वर की ओर से “राज्य का यह सुसमाचार” के प्रचार का काम सौंपा गया है। (मत्ती २४:१४) राज्य का यह सुसमाचार कितना आनन्ददायक है! यही वह स्वर्गीय राज्य हैं जो तमाम बग़ावत को कुचल देगा और विश्व मण्डल में शान्ति और धार्मिकता को स्थापित करेगा। वह शैतान और उसके सारे कार्यकर्ताओं को नष्ट करेगा। राज्य के धार्मिक शासन के अधीन सृष्टिकर्ता का प्राथमिक मक़सद पूरा किया जाएगा: अर्थात, पृथ्वी को ऐसे मनुष्यों से आबाद किया जाएगा जो अपने प्रिय परमेश्वर की सेवा, प्रशंसा और आदर करेंगे। यह सब कुछ यहोवा परमेश्वर के नाम, वचन और संकल्प को दोषरहित और सत्य सिद्ध करेंगे। यह इस वास्तविकता को प्रकट करेगा कि वह संपूर्ण सत्ताधारी है। चूंकि स्वर्ग का राज्य ही यह सब कुछ पूरा करेगा, इसलिए जाहिर है कि यह राज्य तमाम दूसरी वस्तुओं से अधिक महत्व रखता है और उसकी शिक्षा देना बाइबल का महत्वपूर्ण धार्मिक शिक्षा है।
पृथ्वी पर जीवन
२६. भजन संहिता ३७:११, २९ कहाँ पर अनन्त जीवन का आनन्द उठाने की आशा दिलाती है? वह प्रार्थना जो यीशु ने अपने अनुयायीयों को सिखाई थी कैसे इसके अनुकूल सिद्ध होती है?
२६ बहुत समय पहले भजन संहिता के लेखक ने भविष्यवाणी करते हुए लिखा था: “परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएँगे। धार्मिक लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे और उस में सदा बसे रहेंगे।” (भजन संहिता ३७:११, २९) बाद में यीशु ने मत्ती ५:५ में इसी भजन का हवाला दिया था और इस तरह पृथ्वी पर हमेशा के जीवन की आशा को सत्य सिद्ध कर दिया था। कुछ धार्मिक संस्थाएँ या तो स्वर्ग में जीवन बिताने की आशा दिलाती है या नरक की आग में अनन्त पीड़ा भोगने की सूचना देती है। जैसा की हम देख चूके हैं कि बाइबल मनुष्य के प्राणों (Soul) को हमेशा की पीड़ा मिलने के विचार को नहीं सराहती है और न ही आनेवाला जीवन, शान्ति और आनन्द में बिताने की आशा को केवल स्वर्ग तक सीमित करती है। स्वर्गीय राज्य के अधीन (जिसके लिये केवल सीमित संख्या में लोग बुलाए गए हैं) लोगों की एक अपरिमित संख्या पृथ्वी पर सिद्ध मानव जीवन के आशीष को प्राप्त करेगी। इसलिये यीशु ने अपने अनुयायियों को परमेश्वर से यह प्रार्थना करना सिखाया था: “तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, पृथ्वी पर भी हो।”—मत्ती ६:९, १०.
२७. किस प्रकार के लोगो को पृथ्वी पर जीवन बिताने की आशा के लिये अलग किया जा रहा है, और यीशु ने एक चरवाहे की तरह इनके विषय में क्या कहा था?
२७ स्वर्गीय उत्तराधिकार के लिये बुलाहाट अब बन्द हो रही है, परन्तु बाइबल स्पष्ट करती है कि यहोवा भेड़ का सा नम्र स्वभाव रखनेवाले लोगों की एक बड़ी भीड़ के कृपा पात्रों को अपनी ओर करके अलग कर रहा है जो उसकी सेवा करने की इच्छुक हैं और जिनकी आशा स्वर्गीय राज्य के अधीन परादीश पृथ्वी पर जीवन प्राप्त करना है। यीशु ने एक चरवाहे के नाई इन दूसरी भेड़ों के विषय में यूहन्ना १०:१६ में कहा था: “मेरी और भी भेड़ें हैं जो इस भेड़शाला की नहीं: मुझे उन का भी लाना अवश्य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी, तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा।”
२८. (अ) मानव जाति पर ऐसी बरकतों के आने के लिये कौन से परिवर्तन का होना आवश्यक है? (ब) इसलिए आजकल “सुसमाचार” क्या है?
२८ परन्तु इससे पहले कि मानव जाति को ऐसी बरकतें मिलें, बहुत बड़े परिवर्तन का होना आवश्यक है, क्या यह ठीक नहीं? शान्ति और धार्मिकता फलने और फूलने के लिये आवश्यक है कि दुष्टता, विनाश, बिमारी और मृत्यु पृथ्वी पर से चली जाएँ। परन्तु यह कब और कैसे होगा? बाइबल यह प्रकट करती है कि यह सब कुछ यीशु मसीह के दूसरे आगमन और स्वर्गीय राज्य के स्वर्ग में स्थापित होने के पश्चात होगा। आजकल खुशी की खबर यह है कि यीशु मसीह आ चुका है और उसके द्वारा परमेश्वर का राज्य स्थापित हो चुका है जो स्वर्ग में शासन कर रहा हैं, और बहुत शीघ्र ही शैतान, उसके दुष्ट दूत और पृथ्वी पर के उसके दृष्टिगोचर होनेवाले सेवक नष्ट कर दिए जाएँगे। हम यह कैसे जानते हैं?
राज्यसत्ता में यीशु की उपस्थिती
२९. क्या यीशु के दूसरे आगमन को मानव आँखों से देख सकता है? कौनसी वास्तविक तथ्य और पवित्र शास्त्र के हवाले प्रमाणित उत्तर देते हैं?
२९ जब यीशु ने कहा था कि वह फिर आएगा तो उसका मतलब यह नहीं था कि वह शरीर में पृथ्वी पर वापस आएगा ताकि लोग उसे देख सकें। वह अपने पार्थिव जीवन को छुड़ौती के रूप में दे चुका है, और इसलिये वह इस जीवन को वापस नहीं ले सकता है। जब वह पहिली बार पृथ्वी पर मानव रूप में आया था तो वह उसके लिए अपमानित साबित हुई थी। (इब्रानियों २:९) तथापि वह अपनी दूसरी मौजूदगी में मनुष्य बन कर नहीं आता है जो “स्वर्गदूतों से कम” है बल्कि वह अपनी पूरी महिमा के साथ आत्मिक प्राणी बन कर आता है। (मत्ती २५:३१) अतः ऐसे रूप में शाही अधिकार के साथ पृथ्वी पर उसकी वापसी मनुष्य की आँखों से ओझल है। पृथ्वी के छोड़ने से पहिले उसने अपने चेलों को कहा था: “और थोड़ी देर रह गई है कि दुनिया मुझे फिर न देखेगी।” (यूहन्ना १४:१९) यीशु अब अपने पिता का “उचित प्रतिनिधी” बना दिया गया है और इसी कारण अपने पिता के साथ उस अप्राप्य ज्योति में रहता है, और उसकी महिमा में उसे “न किसी मनुष्य ने देखा और न कभी देख सकता है।” (इब्रानियों १:३; १ तिमुथियुस ६:१६) इस कारण यीशु का दूसरा आगमन और मौजूदगी मानव आँखों से नहीं बल्कि समझ की आँखों से देखी जाती है।
३०. पृथ्वी पर रहनेवाले लोग किस तरीके से जान लेंगे कि यीशु फिर उपस्थित है और राजा बन गया है?
३० राजसत्ता में अपनी मौजूदगी को साबित करने के लिये यीशु ने कई विशिष्ट प्रमाणों की भविष्य सूचना दी थी जो सब मिलकर एक बड़ा “चिन्ह” बनेंगी। इन प्रत्यक्ष प्रमाणों को देखकर जो “चिन्ह” को बनाती हैं, और उनका मतलब समझने से पृथ्वी पर रहने वाले लोग यह जान लेंगे कि यीशु ने स्वर्ग में शाही अधिकार प्राप्त कर लिया है, और वह उस राज्य का राजा बनकर उपस्थित है जिस के विषय में बहुत समय पहिले प्रतिज्ञा की गई थी। वह कौन सी बातें हैं जो इस “चिन्ह” को बनाएगी?
३१. यीशु के प्रेरितें ने इस विषय में अपने प्रश्न को कैसे पेश किया था, और यीशु ने मुसीबतों के आरम्भ होने के बारे में क्या कहा था?
३१ यह प्रश्न यीशु के प्रेरितों के दिमागों में उठा था, क्योंकि उन्होंने पूछा था कि: “हमें बता कि यह बातें कब होंगी, और तेरे उपस्थिति और रीति व्यवहार के अन्त का चिन्ह क्या होगा?” (मत्ती २४:३) यीशु ने उत्तर में कहा था कि: “जाति पर जाति और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और जगह-जगह अकाल पड़ेंगे और भुईड़ोल होंगे। यह सब बातें पीड़ाओं की आरम्भ होगी।”—मत्ती २३:७, ८; लूक २१:१०, ११.
३२. “पीड़ाओं का आरम्भ” के विषय में भविष्यवाणी किस रीति से पूरी हुई थी, और उस समय से विपत्तियों के काल के बारे में यीशु ने क्या भविष्य सूचना दी थी?
३२ अब इस वृत्तान्त के अनुसार यह बड़ा चिन्ह सांसारिक युद्ध के साथ आरम्भ होगा। १९१४ से १९१८ के वर्षों में तीस जातियाँ एक दूसरे के साथ युद्ध में संयुक्त थीं, और इसलिये वह पहिला विश्व युद्ध कहलाया गया था। इसके साथ कई जगहों में अकाल और मरियाँ भी आई जो विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद पृथ्वी पर दुःख और पीड़ा लाती रही। वास्तव में चार वर्षों के युद्ध में जितने लोग मारे गए थे उनसे अधिक संख्या में लोग मरियों से मृत्यु को प्राप्त हुए थे। इसके अतिरिक्त, १९१४ से पहिले के काल के मुकाबिले में उसके पश्चात के काल में अधिक संख्या में भूचालों की खबरें आती रही है, जिनसे माल और जान दोनों पर बड़ी तबाही आई। इसपर भी यीशु ने कहा था: “यह सब बातें पीड़ाओं का आरम्भ होगी।” अतः पहिले विश्व युद्ध से पीड़ाओं का समय चला आया है और इसमें एक और विश्व-युद्ध भी सम्मिलित है जो कि पहले युद्ध से अत्यन्त भयानक था। आजकल एक और युद्ध का भी खतरा है जिस में नाश के भयंकर हथियारों के इस्तेमाल का डर है। अकाल और भूचाल अभी तक मानवजाति पर क्लेश ला रहे हैं। सारी मानव जाती में संशय का बोध फैला हुआ है और वे हैरान हैं कि न मालूम भविष्य में उन पर क्या कुछ आनेवाला है। यीशु ने इन हालतों का बिलकुल ठीक वर्णन दिया था जो उस चिन्ह का भाग है जिसकी उसने भविष्य सूचना दी थी। उसने कहा था कि, “पृथ्वी पर देश देश के लोगों को संकट होगा क्योंकि वे समुद्र के गरजने और टकरों के कोलाहल से घबरा जाएँगे, और भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते-देखते लोगों के जी में जी न रहेगा।”—लूका २१:२५, २६.
३३, ३४. यीशु ने कौनसे साल में राज्य करना आरम्भ कर दिया था, और राज्य के जन्म लेने पश्चात स्वर्ग में कौनसी घटनाएँ प्रकट हुई थी?
३३ अतः यह सब बातें प्रकट करती हैं कि यीशु ने १९१४ में अपना शाही अधिकार प्राप्त किया और आकाश से राज्य करना आरम्भ कर दिया है। परन्तु यह आश्चर्यजनक घटना अपने साथ पृथ्वी पर दुःख और क्लेश क्यों ले आई? प्रकाशितवाक्य की किताब का अध्याय १२ हमें इसका उत्तर देता है।
३४ शैतान को, जो यहोवा परमेश्वर का सब से बड़ा शत्रु है, इस समय तक स्वर्ग में परमेश्वर के आत्मिक प्राणियों के बीच में आने की अनुमति था। शैतान नहीं चाहता था कि यह राज्य शासन करना आरम्भ कर दे या जैसा कि प्रकाशितवाक्य के अध्याय १२ की लाक्षणिक भाषा वर्णन करती है, “जन्म ले”। शैतान पृथ्वी का राज्य अपने लिये रखना चाहता था; अतः जब समय आया कि यहोवा, अपने बेटे यीशु मसीह को राज्य करने की आज्ञा दे तो इस नए जन्म लिये हुए राज्य और शैतान के बीच में लड़ाई होना निश्चित था। हम प्रकाशितवाक्य १२:७-१० में यों पड़ते हैं: “फिर स्वर्ग में लड़ाई हुई। मीकाईल और उसके स्वर्गदूत अजगर से लड़ने को निकले, और अजगर और उसके दूत उस से लड़े परन्तु प्रबल न हुए और स्वर्ग में उन के लिये जगह न रहीं। और वह बड़ा अजगर, अर्थात वही पुराना साँप, जो इब्लीस और शैतान कहलाता है, और सारे संसार का भरमानेवाला है, पृथ्वी पर गिरा दिया गया; और उसके दूत उसके साथ गिरा दिए गए। फिर मैं ने स्वर्ग से यह बड़ा शब्द आते हुए सुना कि: ‘अब हमारे परमेश्वर का उद्धार, और सामर्थ्य, और राज्य, और उसके मसीह का अधिकार प्रकट हुआ, क्योंकि हमारे भाईयों पर दोष लगानेवाला जो रात दिन हमारे परमेश्वर के सामने उन पर दोष लगाया करता था, गिरा दिया गया!”
३५. अतः पृथ्वी पर दुःख और विपत्तियाँ क्यों जारी है, परन्तु यीशु ने क्यों कहा था कि हमें इन हालतों को देखकर निराश नहीं होना चाहिये?
३५ यद्यपि शैतान के ऊपर इस विजय ने स्वर्गवासियों में प्रसन्नता उत्पन्न कर दी थी, परन्तु उस ने पृथ्वी पर से शैतान के प्रभाव को दूर नहीं किया था। अब उसके कार्यों को पृथ्वी तक सीमित कर दिया था, इसलिये जानते हुए, कि उसका अन्त निकट है, वह भरपूर शक्ति के साथ पृथ्वी के वासियों को यहोवा से दूर रखने का प्रयत्न करेगा। प्रकाशितवाक्य १२:१२ में हम पढ़ते हैं: “इस कारण हे स्वर्गों और उन में रहनेवालों मगन हो, हे पृथ्वी और समुद्र, तुम पर हाय! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उत्तर आया है, क्योंकि वह जानता है कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” परन्तु हमें इन हालतों को देखकर निराश नहीं होना चाहिये क्योंकि यह इस बात का निशान है कि मुदत से प्रतिज्ञा किया हुआ राज्य आकाश पर स्थापित हो चुका है। इसका मतलब यह है कि शैतान का समय बहुत थोड़ा रह गया है और शीघ्र ही वह और उसके सब कार्यकर्ता नष्ट कर दिये जाएँगे। इसलिये यीशु ने कहा था: “और जब यह बातें होने लगे तो सीधे होकर सिर ऊपर उठाना क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट होगा।”—लूका २१:२८.
३६. मत्ती २४:१४ में “चिन्ह” के कौनसे भाग के बारे में भविष्य सूचना दी गई है, और आपने स्वयं उसे कैसे पूरा होते देखा है?
३६ इस चिन्ह का एक और भी भाग है जिसका जिक्र हमने अभी तक नहीं किया, उसका हवाला मत्ती २४:१४ में दिया हुआ है: “और राज्य के इस सुसमाचार का प्रचार सारी बसी हुई पृथ्वी पर किया जायेगा ताकि सब जातियों के लिये गवाही हो; और फिर अन्त आ जाएगा।” (न्यू.व.) अतः जब कि संसार दुःख और पीड़ा में तड़प रहा है और अपने भविष्य के लिये भयभीत है, तो भविष्यवाणी के अनुसार ऐसे लोगों का होना आवश्यक है, जो सब जातियों में “राज्य के इस सुसमाचर” का प्रचार करते फिरते हों। वह लोगों को यह बताते हों कि राज्य स्थापित हो चुका है। चिन्ह का यह भाग भी पूरा किया जा रहा है और आप स्वयं उसे देख चुके हैं। क्या किसी ने आप के यहाँ आकर इस राज्य के विषय में नहीं बताया है? यहोवा के मसीह गवाहों के द्वारा स्थापित राज्य के इस सुसमाचार का प्रचार १६० से अधिक भाषाओं में पृथ्वी और समुद्र के २०० से ज्यादा देशों और टापुओं में किया जा रहा है।
३७. इस प्रचार के कारण “चिन्ह” का और कौनसा भाग पूरा हुआ है?
३७ यहोवा के गवाह राज्य का प्रचार करने के काम में वफादार रहने के कारण सारे देशों में कठोरता से सताए गए हैं। इस बात को भी यीशु ने पहिले से उन्हें बता दिया था: “और मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुमसे बैर रखेंगे।”—मत्ती २४:९.
३८. इस प्रचार का मक़सद क्या है, और जो उसे खुशी से सुनते हैं और जो नहीं सुनते हैं उन्हें किस से उपमा दी गई?
३८ इस प्रचार के काम का मक़सद यह है कि उन तमाम लोगों को सही रास्ता लेने के लिये चेतावनी दी जाए जो धार्मिकता पर प्रीति रखते हैं और यहोवा की उपासना करना चाहते हैं ताकि वह उस विनाश से बच जाए जो शैतान के व्यवस्था पर आनेवाला है, और धार्मिकता के नये व्यवस्था में सर्वदा जिन्दा रहें। यीशु ने ऐसे लोगों को भेड़ों से उपमा दी थी जो इस संदेश को सुनेगे और उस पर विश्वास रखें। उनको, जो उस संदेश को ठुकराते हैं और उसका विरोध करते हैं उन्हें उसने बकरियों से उपमा दी थी। अतः राज्य के प्रचार का काम संसार को दो भागों में कर रहा है अर्थातः भेड़ों को एक ओर, और बकरियों को दूसरी ओर। “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्गदूत उसके साथ आएँगे, तो वह अपनी महिमायुक्त सिंहासन पर विराजमान होगा। और सब जातियाँ उसके सामने इकट्ठी की जाएगी, जैसा रखवाला भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। और वह भेड़ों को अपनी दहिनी ओर और बकरियों को अपने बाई ओर खड़ी करेगा।”—मत्ती २५:३१-३३.
इस रीति व्यवहार का अन्त
३९. (अ) इस “चिन्ह” के अन्य भागों का पूरा होना क्या साबित करता है? (ब) “रीति-व्यवहार” के अन्त का क्या मतलब है?
३९ इस प्रकार हम यीशु के बताए हुए चिन्ह के विभिन्न भागों को पूरा होते हुए देखते हैं: विश्व युद्ध, अकाल, मरियाँ; समस्त संसार में फैली हुई घबराहट, पृथ्वी पर संकट, “राज्य का यह सुसमाचार” का प्रचार किया जाना, उस सुसमाचार के प्रचारकों को सताया जाना, और लोगों को दो ढागों में अलग किया जाना। इस चिन्ह का पूरा होना न ही केवल साबित करता है कि मसीह यीशु स्वर्ग पर से राज्य कर रहा है, बल्कि यह भी कि इस “रीति व्यवहार” का अन्त नज़दीक आ पहुँचा है। (मत्ती २४:३, न्यू.व.) इसका मतलब हमारी पृथ्वी के अन्त से नहीं है, क्योंकि बाइबल बताता है: “पृथ्वी सर्वदा बनी रहती है।” (सभोपदेशक १:४) जिसे अन्त प्राप्त होगा वह यह दुष्ट रीति व्यवहार है जिसका ईश्वर शैतान है, उसे और उसके दुष्ट दूतों पर प्रतिबन्ध लाया जाएगा और उन सब पर जो पृथ्वी पर उसके अनुयायी है, विनाश लाएगा। (२ कुरिन्थियों ४:४) इस प्रकार इस पृथ्वी को सारी दुष्टता से शुद्ध कर दिया जाएगा।
४०. कौन-सी फैसला देने वाली लड़ाई की अभी आवश्यकता है, और परमेश्वर के सेवक उस में क्यों भाग नहीं लेंगे?
४० चूँकि शैतान अभी तक “इस रीति व्यवहार का ईश्वर” बने रहने के लिए अपने पद पर डटा हुआ है, इसलिये उसके दृष्टव्य संगठन और यहोवा के बीच में एक और युद्ध का होना निश्चित है और वह युद्ध आरमागेडेन की लड़ाई। पृथ्वी पर परमेश्वर के सेवकों को इस युद्ध में भाग लेने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी। शैतान दृष्टव्य संगठन के विरुद्ध अन्तिम आक्रमण में मसीह यीशु यहोवा के दूतों के स्वर्गीय सेनाओं की अगुवाई करेगा, और उन्हें बिलकुल ही नष्ट करके आज्ञाकारी मानव जाति को छुटकारा देकर धार्मिकता के नए व्यवस्था में ले आएगा। (प्रकाशितवाक्य १६:१४-१६; १९:११-२१) दुष्टता को दूर करने और शान्ति और धार्मिकता को बढ़ने और फूलने का अवसर मिलने के लिये केवल एक ही तरीका है कि इस रीति व्यवहार का इसी तरह से अन्त किया जाए। वह केवल सर्व शक्तिमान परमेश्वर यहोवा ही कर सकता है।
४१. यहोवा के गवाह उन बरकतों के अतिरिक्त जो परमेश्वर के चाहनेवालों के लिये हैं, और किस बात का प्रचार करते हैं, और क्यों करते हैं?
४१ क्या मनुष्य दुष्टता और अधर्म को पृथ्वी पर से दूर करने में कभी सफल हुए हैं? क्या वे जातियों में एकता और मिलाप उत्पन्न करने के योग्य बने हैं जो कि भाषा, जाति और धर्म के विचार से एक दूसरे से बिलकुल अलग हैं? नहीं, वे कभी सफल नहीं हुए। इसलिये, “राज्य का यह सुसमाचार” एक मात्र अनन्त इलाज जिक्र करता है। इसके अतिरिक्त “यह सुसामचार” इस रीति व्यवहार के अन्त के बारे में भी बताता है और, यही कारण है कि, यहोवा के गवाह इमानदारी से न ही उन बरकतों का वर्णन करते हैं, जो यहोवा ने अपने चाहनेवालों और सेवा करनेवालों के लिये सुरक्षित रखे हैं, बल्कि वे उसे विनाशी दण्डों के बारे में भी बताते हैं जो वह अपने विरोधकों और दुष्टों को देगा। यहोवा परमेश्वर की ओर से मिला हुआ अधिकार उन्हें हुक्म देता है कि वे “नम्र लोगों को सुसमाचार सुनाएँ... और यहोवा के प्रसन्न रहने के वर्ष का और हमारे परमेश्वर के पलटा लेने के दिन का प्रचार करें; और सब विलाप करनेवालों को शान्ति दे।”—यशायाह ६१:१, २.
४२. वह कौनसी बातें हैं जो थोड़े समय के बाद सदा के लिये जाती रहेंगी, और भविष्यवाणी के अनुसार कौन सी बातें हैं जो परमेश्वर की ओर फिरनेवालों के बीच में पाई जाएँगी?
४२ हाँ, यह जानना खुशी की खबर है कि शीघ्र ही दुष्टता, अनैतिकता, झगडे, लड़ाई हाँ, रोग और बीमारी भी दुःख वा विलाप सहित सदा के लिये जाते रहेंगे। उन हालतों का वर्णन करते हुए जो इस रीति व्यवहार के अन्त के समय में यहोवा की ओर फिरनेवालों की बीच में पाई जाएगी, बाइबल का अभिलेख यों कहता है: “और वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएँगे। तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध तलवार फिर न चलाएगी और लोग आगे की युद्ध-विद्या न सीखेंगे। बल्कि वे अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले बैठा करेंगे, और कोई उनको न डराएगा; सेनाओं के यहोवा ने यही वचन दिया है।” (मीका ४:३, ४) न ही केवल मनुष्य के बीच में शांति होगी बल्कि मनुष्य और पशू भी मेल मिलाप से रहेंगे: “तब भेड़ियाँ भेड़ के बच्चे के संग रहा करेगा, और चीता बकरी के बच्चे के साथ बैठा करेगा, और बछड़ा और जवान सिंह, और पला हुआ बैल मिल जुलकर रहेंगे, और एक छोटा लड़का उनकी अगुवाई करेगा। और गाय और रीछ़नी मिलकर चरेंगी; और उनके बच्चे इकट्ठे बैठेंगे, और यहाँ तक कि सिंह बैल की नाई भूसा खाएगा। और दूध पीता हुआ बच्चा करैत के बील पर खेलेगा, और दूध छुडाया हुआ लड़का नाग के बिल में हाथ डालेगा। मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई दुःख देगा और न हानि करेगा; क्योंकि पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।”—यशायाह ११:६-९.
४३. सम्राट के पुत्र के लिए भजन संहिता के लेखक की प्रार्थना किस प्रकार ऊपर दिये हुए बयान से मेल खाती है?
४३ सनातन सम्राट यहोवा परमेश्वर के पुत्र धर्मी राजा मसीह यीशु की सम्पूर्ण हुकूमत पृथ्वी के छोर तक होगी और उस समय पृथ्वी पर रहनेवाले लोग उसके न्यायरीती और धार्मिक राज्य की भलाईयाँ अनुभव करेंगे। इसलिये प्रेरितीय भजन संहिता के लेखक ने प्रार्थना की थी: “हे परमेश्वर राजा को अपना न्यायिक निर्णय बता, राजपुत्र को अपना धर्म सिखा। वह तेरी प्रजा का न्याय धर्म से और तेरे दीन लोगों का न्यायिक निर्णय करेगा। पहाड़ों और पहाडियों से प्रजा के लिये, धर्म के द्वारा शान्ति मिला करेगी। वह प्रजा के दीन लोगों का न्याय करेगा, और दरिद्र लोगों को बचाएगा, और अन्धेर करनेवालों को चूर करेगा। जब तक सूर्य और चन्द्रमा बने रहेंगे तब तक लोग पीढ़ी-पीढ़ी तेरा भय मानते रहेंगे।”—भजन संहिता ७२:१-५.
४४. आप ऐसे सिद्ध संसार में कैसे रह सकते हैं, और जब ऐसी भविष्य की आशा हो तो यीशु ने “चिन्ह” को देखने पर क्या करने के लिये कहा था?
४४ क्या ही अद्भुत भविष्य हमारे आँखों के सामने हैं! क्या आप ऐसे सिद्ध नई रीति रिवाज में रहना पसंद करेंगे? आप ऐसा कर सकते हैं यदि आप भेड़ के से गुण अर्थात नम्रता और अनुगामिता को प्रकट करें और अब आप अच्छे चरवाहा मसीह यीशु के पीछे हो लीजिए और “राज्य के इस सुसमाचार” पर विश्वास लाकर यहोवा की ओर हो जाइये। नए व्यवस्था की सुखद घटनाओं की आशा को नजर में रखते हुए भेड़ के नाई लोग मसीह यीशु के इन शब्दों पर ध्यान दे सकते हैं जो उसने अपनी मौजूदगी के चिन्ह पर बातचीत करने के पश्चात कहे थे: “जब यह बातें होने लगें, तो सीधे होकर अपने सिर ऊपर उठाना, क्योंकि तुम्हारा छुटाकरा निकट होगा। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक यह सब बातें न हो लें, तब तक इस पीढी का कदापि अन्त न होगा।” (लूका २१:२८, ३२) हाँ, आप भी उन “भेड़ों” में से एक बन सकते हैं जो इस पीढी के समय में रहते हैं और जिनको आरमागेडेन की अन्तिम लड़ाई से बचाकर उस पार साफ और शुद्ध पृथ्वी में लाया जाएगा। प्रभु यीशु की “दूसरी भेड़ों” में एक बनने और उसके आशीष को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिये? (यूहन्ना १०:१६) आइये, हम उन बातों पर ध्यान करें जिनका करना बाइबल आवश्यक बताती है।
समर्पण
४५. इससे पहले कि हम उन कामों का पालन करे जो परमेश्वर हम से चाहता है, क्या करना आवश्यक है?
४५ इस से पहिले की हम उन कार्यों का पालन करें जो परमेश्वर हम से चाहता है यह आवश्यक है कि हम उसको जानें, उसके मकसदों के बारे में ज्ञान प्राप्त करें और उस पर और उसके पुत्र मसीह यीशु पर विश्वास करना चाहिए। विश्वास ज्ञान पर आधारित है और सही ज्ञान बाइबल में मिलती है। इन दिनों में यहोवाने इस बात का खास तौर पर ध्यान रखा हुआ है कि पृथ्वी के नम्र लोग उसके पवित्र वचन से परिचित किये जाएँ। इसी कारण उसके अपने गवाहों को लोगों के बीच में भेजा हुआ है कि वे “राज्य का यह सुसमाचार” प्रचार करें और परमेश्वर के वचन के सीखने में उन लोगों को जो इन बातों को सुनकर विश्वास करते हैं उन्हें सहायता करें और यों वे उस ज्ञान को प्राप्त करें जो उन्हें जीवन प्रदान करेगा।” “सो विश्वास सुनने से उत्पन्न होता है। और सुनना परमश्वर के वचन से होता है।”—रोमियों १०:१७.
४६. विश्वास रखने का क्या मतलब है? और अपने आपको समर्पण करने का क्या मतलब है?
४६ विश्वास का मतलब यह है कि बाइबल से ज्ञान प्राप्त करने के कारण मनुष्य को पक्का यकीन हो जाता है कि परमेश्वर अस्तित्व में है और वह अपने सच्चे खोजने वालों को प्रतिफल देगा और यह कि बाइबल सत्य है और मनुष्य का निश्चित पथदर्शक है। इसके अतिरिक्त विश्वास रखने का मतलब यह भी है कि यीशु को अपना उद्धारकर्ता और छुड़ौती देनेवाला स्वीकार किया जाए। ऐसा विश्वास रखने के कारण मनुष्य अपने जीवन का ढंग बदल देता है। वह इस संसार के दुष्टता का अनुकरण करने से और अपने स्वार्थी लालसाओं को पूरा करने से मुँह फेर कर परमेश्वर की इच्छा को पूरी करता है। यह जानते हुए कि जो कुछ उसके पास है वह परमेश्वर की और से है और यह कि परमेश्वर को प्रसन्न करने का केवल एक ही तरीका उसकी सेवा करना है, वह अपने आप को परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिये समर्पण करता है। इसका मतलब यह हुआ कि वह उन सब बातों को करने के लिये निश्चय करता है कि जो परमेश्वर का वचन उसे करने को कहता है। यीशु ने कहा था: “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने खुद का इन्कार करे और अपनी यातना कारक शूली उठाए और निरंतर मेरे पीछे चेले।”—मत्ती १६:२४.
४७. हर एक मनुष्य जो परमेश्वर की ईच्छा पूरी करने के लिये निश्चय करता है उसे बपतिस्मा क्यों लेना चाहिये?
४७ यीशु ने अपनी पिता की इच्छा पूरी करने के लिए अपने आप को अर्पण किया, और इस तथ्य का उसने ऐलानिया इकरार किया था। वह कैसे? पानी में बपतिस्मा लेकर। उसने अपने चेलों को यह शिक्षा दी थी कि “सब जातियों के लोगों को चेला बनाओं और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो।” (मत्ती २८:१९) अतः हर एक मनुष्य जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिये निश्चय करता है, उसे बपतिस्मा लेना चाहिये।—भजन संहिता ४०:८; मरकुस १:९-११; इब्रानियों. १०:७.
४८. बपतिस्मा किस चीज़ को पूरी करता है, और इसे कैसे देना चाहिये?
४८ बपतिस्मा किस चीज को पूरा करता है और उसे कैसे देना चाहिये? यीशु को यरदन नदी के पानी में पूर्ण रूप से गोता देकर बपतिस्मा दिया गया था। इस लिये आज कल भी उसी रीति से पानी में गोता देकर बपतिस्मा देना चाहिये। यह डुबकी बपतिस्मा पाने वाले को पाप से शुद्ध नहीं करती है। क्योंकि मसीहियों के बपतिस्मा पाने का मक़सद यह नहीं है। पानी के नीचे जाना इस बात का चिन्ह है कि बपतिस्मा पानेवाले अपने जीवन के पुराने रीति के लिये मर जाता है। अर्थात् वह स्वयं अपनी मरजी से परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए अपना जीवन व्यतीत करने का निश्चय करता है। उसका पानी में से उपर उठाया जाना इस बात को चित्रित करती है कि वह परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए बाहर आता है।
४९. समर्पित और बपतिस्मा पाए हुए मनुष्य को क्या करना चाहिये कि वह उन में गिना जाए जिन्हें यहोवा अपने नए प्रबन्ध में चाहता है?
४९ समर्पित और बपतिस्मा पाए हुए मनुष्य के लिये आवश्यक है कि वह यहावो परमेश्वर की ईमानदारी से सेवा करते हुए आगे बढ़ता जाए। उसे नित्य परमेश्वर के वचन से सीखते रहना चाहिये कि वह परमेश्वर की इच्छा को पहचान सके, और उसे यहोवा की आत्मा पर भरोसा रखना चाहिये जो उसे परमेश्वर की इच्छा ईमानदारी से पूरी करने के लिए शक्ति देगा। उसकी सारी आशाएँ अब यहोवा के नए प्रबन्ध पर लगी रहती हैं। वह अपने ही जैसे विश्वास रखनेवाले लोगों से मिलना और परमेश्वर के लोगों की सभा में नियमित रूप से मिलना पसन्द करेगा। तथापि यहोवा की पूर्ण स्वीकृति प्राप्त करने के लिये उसे आर्मगेडेन बल्कि नए प्रबन्ध तक यहोवा का वफादार रहना चाहिये। यदि आप इन मनुष्यों में से एक बनना चाहते हैं तो आप उसी प्रकार का मनुष्य बन कर साबित कीजिये जिसे यहोवा अपने नए व्यवस्था में रखना चाहता है।
५०. हम किन बातों में इस रीति-रिवाज के हम शकल न बनना चाहिये, और हमें किस मनुष्यत्व को पहिन लेना चाहिए? कैसे?
५० पौलूस प्रेरित रोमियों १२:२ में यह उपदेश देता है: “इस रीति रिवाज के सदृश न बनों, बल्कि अपनी बुद्धि को नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली और भावती और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।” फिर हम इस रति रिवाज के लोगों के समान नहीं बन सकते हैं जिनमें झगड़े और इर्षा और बैर के साथ साथ बेईमानी और चोरी, झुठ बोलना और खून करना और अशुद्धता और व्यभिचार कूट-कूट कर भरा हो। क्योंकि ऐसी ही बातें के कारण “परमेश्वर का प्रकोप आ पड़ा है। और तुम भी जब इन बातों में जीवन बिताते थे, तो उन के ही अनुसार चलते थे। परन्तु अब तुम वास्तव में इन सब को अर्थात क्रोध, रोष, बैरभाव, निन्दा और मुह से गालियाँ बकना छोड़ दो। एक दूसरे से झुठ मत बोलो। पुराने मनुष्यत्व को उसके कामों समेत उतार डालो और नए मनुष्यत्व को पहिन लो, जो शुद्ध ज्ञान के द्वारा अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार नया बनता जाता है।”—कुलुस्सियों ३:६-१०.
५१. (अ) मसीही सेवकों को क्या आदेश दिया जाता है? (ब) घरों में बाइबल सिद्धान्तों के अनुसार चलने से पतियाँ, पत्नियों और बच्चों में क्या बदलाहट उत्पन्न होगी?
५१ एक मसीही जो कुछ भी करता है वह इस संसार से बिलकुल विभिन्न होता है। हम इस संसार में लोगों को देखते हैं जो नौकरी पर लगे हुए हैं और अपने मालिकों को ठगाते हैं और वह ईमानदारी से उनके लिये काम नहीं करते हैं। परन्तु पवित्र शास्त्र यह उपदेश देता है: “हे सेवको, जो शरीर के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, सब बातों में उन की आज्ञा का पालन करो, मनुष्यों को प्रसन्न करने वालों की नाई दिखाने के लिये नहीं, परन्तु मन की सिधाई, और यहोवा का भय से। और जो कुछ तुम करते हो, तन-मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु यहोवा के लिए करते हो।” (कुलुस्सियों ३:२२, २३) बाइबल के सिद्धातों के अनुसार चलने से आप अपने घर में भी परिवर्तन पाएँगे। कितने घराने ऐसे हैं जहाँ शान्ति और मेल-मिलाप नहीं, जहाँ पति अपनी पत्नियों के साथ कठोरता से पेश आते हैं या जहाँ पत्नियाँ अपने पतियों के अधीन नहीं और उनका आदर नहीं करती है! “हे पत्नियों, जैसा कि प्रभु के आदेशानुसार उचित है, वैसा ही अपने पतियों के आधीन रहो। हे पतियों अपने पत्नियों से प्रेम करते रहो और उन से कठोरता न करो। हे बालको, सब बातों में अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्न होता है।” (कुलुस्सियों ३:१८-२०) हाँ, बच्चों को अभी से नए व्यवहार के अनुसार रहने के लिए सीखना चाहिये और यह वह अपने माता-पिता के आज्ञाकारी रहने से कर सकते हैं जो मसीही बन चुके हैं और जो समर्पित उनको परमेश्वर की सेवा करना सिखाते हैं।
समाप्ति
५२. (अ) समाप्ति में हमने परमेश्वर और संसार में पाप और मृत्यु के कारण और मानवजाति के छुड़ाने के उपाय और तरीकों के विषय में, क्या सीखा है? (ब) यह सुसमाचार क्यों हैं, और अब आपको इस सुसमाचार के सम्बन्ध में क्या करना चाहिये?
५२ हमने संक्षेप में परमेश्वर के वचन से उन प्रश्नों के उत्तर प्राप्त किए है जो कि इस पुस्तिका के आरम्भ में उठाए गये थे। हमने मालुम कर लिया कि परमेश्वर कौन है, कि वह सृष्टिकर्ता है और उसका नाम यहोवा है, उस ने मनुष्य को पृथ्वी पर सर्वदा शान्ति में रहने के लिये बनाया था; परन्तु शैतान की बगावत के कारण और क्योंकि पहले पुरुष और स्त्री ने बेवफाई की और शैतान का साथ दिया, पाप और मृत्यू संसार में प्रवेश कर गये और यों दुःख और दुष्टता बढ़ गई। आपने यह भी देखा है कि मसीही यीशु के छुड़ौती का बलिदान और उसके द्वारा परमेश्वर के राज्य से पाप और मृत्यु से छुटकारा मिलता है, और निकट समय में परमेश्वर मसीही यीशु के द्वारा से शैतान और सारी दुष्टता को नष्ट करेगा। तब स्वर्ग में परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर मानवजाति के लिये अनन्त आशीष लाएगा। इस लिए यह सूचना, जिसे हमने सीखा है, सुसमाचार है, क्या यह सही नहीं? केवल यही खुशी का समाचार है क्योंकि इसका सम्बन्ध सर्व शक्तिमान यहोवा के राज्य से है, जिस राज्य की आशीषों का कभी अन्त न होगा। (भजन सहिंता १४५:१३) अब परमेश्वर और आपके साथ मुनष्य की ओर से आप पर जिम्मेदारी आती है कि आप दूसरों को “राज्य का यह सुसमाचार” बताएँ।
[फुटनोट]
a इस पुस्तक में शास्त्र-उद्धरण, “न्यू वर्ल्ड ट्रान्सलेशन ऑफ द होली स्क्रिपचर्स” (न्यू.व.) से लिये गये हैं जो १९६१ का संशोधित संस्करण है।