अध्ययन १४
उत्साह और स्नेह-भाव व्यक्त करना
१. कौन-सी बात उत्साह को बढ़ाएगी?
उत्साह भाषण को सजीव बनाता है। यदि आप जो कह रहे हैं उसके बारे में आप उत्साही नहीं हैं तो आपका श्रोतागण निश्चित ही उत्साही नहीं होगा। यदि यह आपको प्रेरित नहीं करता है तो यह उन्हें भी प्रेरित नहीं करेगा। लेकिन वक्ता के तौर पर वास्तविक उत्साह व्यक्त करने के लिए आपको इस बारे में पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि आप जो कहने जा रहे हैं उसे श्रोतागण को सुनने की ज़रूरत है। इसका अर्थ है कि भाषण को तैयार करते वक़्त आपने उनके बारे में विचार किया है, और उन मुद्दों को चुना है जो उनके लिए सबसे ज़्यादा लाभदायक होंगे, और उन्हें इस रीति से ढाला है कि आपके श्रोता उनके मूल्य की आसानी से क़दर करेंगे। यदि आपने ऐसा किया है तो आप गंभीरता से बोलने के लिए प्रेरित होंगे और आपका श्रोतागण प्रतिक्रिया दिखाएगा।
२-५. एक सजीव प्रस्तुति में उत्साह कैसे होता है?
२ उत्साह सजीव प्रस्तुति द्वारा प्रदर्शित। उत्साह आपकी प्रस्तुति में सजीवता से सबसे अच्छा प्रकट होता है। आप लापरवाह या उदासीन मनोवृत्ति नहीं रख सकते हैं। आपका मुखभाव, आपका स्वर और बोलने का आपका ढंग पूर्णतः सजीव होना चाहिए। इसका अर्थ है कि आपको बल और शक्ति के साथ बात करनी चाहिए। उस बात पर आपका विश्वास प्रकट होना चाहिए परन्तु आप हठधर्मी नहीं प्रतीत होने चाहिए। आपको उत्साही होना चाहिए परन्तु आपको भावुक नहीं होना चाहिए। आत्म-संयम खोने का अर्थ होगा अपने श्रोतागण को खोना।
३ उत्साह संक्रामक होता है। यदि आप अपने भाषण के बारे में उत्साही हैं तो आपके श्रोतागण उस उत्साह को प्राप्त करेंगे। क्रमशः, अच्छे श्रोतागण सम्पर्क से यह वापस आपके पास आएगा और आप अपना उत्साह क़ायम रखेंगे। दूसरी ओर, यदि आप उत्साहहीन हैं तो आपके श्रोतागण भी आपके साथ उत्साहहीन होंगे।
४ पौलुस ने कहा कि हमें आत्मिक उन्माद में भरे रहना है। यदि आप ऐसे हैं, तो आपकी सजीव प्रस्तुति श्रोतागण में भी परमेश्वर की आत्मा को प्रवाहित करेगी और आपके श्रोतागण को कार्य करने के लिए प्रेरित करेगी। अपुल्लोस ने अपने भाषण में ऐसी आत्मा प्रदर्शित की, और उसे एक कुशल वक्ता कहा गया है।—रोमि. १२:११; प्रेरि. १८:२५; अय्यू. ३२:१८-२०; यिर्म. २०:९.
५ किसी भाषण के बारे में उत्सुक होने के लिए आपको विश्वस्त होना चाहिए कि आपके पास कुछ ऐसा है जो प्रस्तुत करने योग्य है। जिस जानकारी को आप प्रस्तुत करने जा रहे हैं उस पर तब तक कार्य कीजिए जब तक आपको नहीं लगता कि आपके पास कुछ ऐसा है जो पहले वक्ता के तौर पर आपको उकसाएगा। उसे नई जानकारी होने की ज़रूरत नहीं, परन्तु उस विषय के प्रति आपका नज़रिया नया हो सकता है। यदि आपको लगता है कि आपके पास कुछ ऐसी जानकारी है जो आपके श्रोतागण को उनकी उपासना में सुदृढ़ करेगी, जो उन्हें बेहतर सेवक या बेहतर मसीही बनाएगी, तो आपको अपने भाषण के बारे में उत्सुक होने का हर कारण है और आप निःसन्देह होंगे।
६-९. भाषण के विषय का प्रस्तुति में उत्साह से क्या सम्बन्ध है?
६ विषय के लिए उपयुक्त उत्साह। आपके भाषण में विविधता के लिए और आपके श्रोतागण के फ़ायदे के लिए, आपको अपने पूरे भाषण के दौरान अत्यधिक उत्सुकता नहीं प्रदर्शित करनी चाहिए। यदि आप ऐसा करेंगे तो वे कार्य करने से पहले ही थक जाएँगे। यह फिर इस ज़रूरत पर ज़ोर देता है कि विषय तैयार करते वक़्त उसमें पर्याप्त विविधता होनी चाहिए ताकि आपकी प्रस्तुति में भी विविधता संभव हो। इसका अर्थ है कि कुछ मुद्दे जिनकी आप चर्चा करते हैं वे स्वाभाविक रूप से दूसरों से ज़्यादा उत्साही प्रस्तुति की माँग करते हैं, और उन्हें कुशलतापूर्वक पूरे भाषण में व्याप्त होना चाहिए।
७ ख़ासकर मुख्य मुद्दों को उत्साही रीति से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। आपके भाषण में शिखर होने चाहिए, ऐसी पराकाष्ठाएँ जिनकी ओर आप बातचीत को ले चलते हैं। क्योंकि ये आपके भाषण के मुख्य भाग हैं, साधारणतः ये वे भाग होंगे जिन्हें आपके श्रोतागण को उकसाने के उद्देश्य से, आपके तर्क के अनुप्रयोग अथवा आपके सलाह देने के कारण को समझाने के लिए तैयार किए गए हैं। अपने श्रोतागण को विश्वास दिलाने के बाद, आपको अब उन्हें उकसाने की, आपकी समाप्तियों के फ़ायदे, इन विश्वासों का पालन करने से उन्हें प्राप्त होनेवाली ख़ुशियों तथा विशेषाधिकारों को प्रदर्शित करने की ज़रूरत है। यह उत्साही प्रस्तुति की माँग करती है।
८ लेकिन इसके बावजूद, अन्य समयों पर अपनी प्रस्तुति में आपको कभी भावनाहीन नहीं पड़ जाना चाहिए। आपको कभी अपने विषय के प्रति अपनी गहरी भावनाएँ नहीं खोनी चाहिए या दिलचस्पी की कमी नहीं प्रदर्शित करनी चाहिए। अपने मन में एक हिरण को एक छोटे निर्वृक्ष क्षेत्र में शान्ति से चरते हुए कल्पना कीजिए। हालाँकि दिखने में वह शान्त है फिर भी उसकी पतली टाँगों में ऐसी गुप्त शक्ति है जो ख़तरे के मामूली संकेत पर ही उसे बड़ी चौकड़ियाँ भरती हुई दूर ले जा सकती हैं। वह आराम से खड़ा है परन्तु हमेशा सतर्क है। आप भी ऐसे ही हो सकते हैं, जब आप अपनी पूरी उत्सुकता से बात नहीं कर रहे हैं तब भी।
९ तो फिर इन सब का अर्थ क्या है? यह कि सजीव प्रस्तुति कभी ज़बरदस्ती से नहीं दी जाती। उसके लिए एक कारण होना चाहिए और आपकी जानकारी को वह कारण प्रदान करना चाहिए। आपका सलाहकार इस बारे में विचार करेगा कि क्या आपका उत्साह आपके विषय के लिए उपयुक्त था। क्या यह बहुत ज़्यादा, बहुत कम या असाधारण था? जी हाँ, वह आपके अपने व्यक्तित्व को भी ध्यान में रखेगा, लेकिन वह आपको प्रोत्साहित करेगा यदि आप शर्मीले और संकोची हैं, और आपको सावधान करेगा यदि आप जो कुछ भी कहते हैं उसके बारे में अत्यधिक उत्सुक प्रतीत होते हैं। अतः अपने विषय के अनुसार अपना उत्साह रखिए और अपने विषय में विविधता रखिए ताकि आपकी उत्साही प्रस्तुति पूर्णतः संतुलित रहे।
१०-१२. स्नेह-भाव और सरगर्मी का क्या अर्थ है?
१० उत्साह स्नेह-भाव और सरगर्मी से नज़दीकी सम्बन्ध रखता है। लेकिन, भिन्न भावनाएँ उन अभिव्यक्तियों को प्रेरित करती हैं और वे आपके श्रोतागण पर भिन्न परिणाम लाती हैं। वक्ता के तौर पर, आप साधारणतः अपने विषय के कारण उत्सुक होते हैं, लेकिन आपमें स्नेह-भाव तब होगा जब आप अपने श्रोतागण के बारे में उनकी मदद करने की इच्छा से विचार करेंगे। “स्नेह-भाव, सरगर्मी” जो आपकी भाषण सलाह परची में सूचीबद्ध है, ध्यानपूर्ण विचार के योग्य है।
११ यदि आप स्नेह-भाव और सरगर्मी व्यक्त करते हैं, तो आपका श्रोतागण यह महसूस करेगा कि आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो प्रेम, कृपा और कोमल करुणा प्रदर्शित करते हैं। एक ठण्डी रात को जिस प्रकार लोग आग की ओर आकर्षित होते हैं वैसे ही वे आपकी ओर आकर्षित होंगे। एक उत्साही प्रस्तुति प्रेरित करनेवाली होती है, परन्तु कोमल भावना की भी ज़रूरत होती है। हमेशा मन को ही समझाना काफ़ी नहीं है; आपको दिल को छूना होगा।
१२ उदाहरण के लिए, क्या अपनी शैली में इन गुणों को प्रतिबिम्बित किए बग़ैर गलतियों ५:२२, २३ से प्रेम, धीरज, कृपा, और नम्रता के बारे में पढ़ना उचित होगा? १ थिस्सलुनीकियों २:७, ८ में पौलुस के शब्दों में व्यक्त कोमल भावना पर भी ध्यान दीजिए। ये वे अभिव्यक्तियाँ हैं जो स्नेह-भाव और सरगर्मी की माँग करती हैं। इसे कैसे प्रदर्शित किया जाना चाहिए?
१३, १४. मुखभाव से स्नेह-भाव कैसे प्रदर्शित किया जा सकता है?
१३ मुखभाव से स्नेह व्यक्त। यदि आपको अपने श्रोतागण के प्रति कोमल भावना है तो वह आपके चहरे पर दिखनी चाहिए। यदि यह आपके चेहरे पर नहीं दिखती है तो आपके श्रोतागण शायद यह विश्वास न करें कि आप वास्तव में उनसे स्नेह-भाव रखते हैं। लेकिन इसे वास्तविक होना चाहिए। इसे एक मुखोटे के तौर पर नहीं पहना जा सकता। न ही स्नेह-भाव और सरगर्मी को भावुकता समझा जाना चाहिए। एक कृपापूर्ण मुखभाव सच्चाई और निष्कपटता प्रदर्शित करेगा।
१४ अधिकांशतः आप मैत्रीपूर्ण श्रोतागणों से बात करेंगे। अतः, यदि आप वास्तव में अपने श्रोतागण की ओर देखेंगे तो आप उनके प्रति स्नेह-भाव महसूस करेंगे। आप तनावमुक्त और दोस्ताना महसूस करेंगे। श्रोतागण में किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढिए जिसका ख़ासकर एक दोस्ताना चेहरा है। उस व्यक्ति से व्यक्तिगत तौर पर कुछ मिनट बात कीजिए। दूसरे व्यक्ति को चुनिए और उससे बात कीजिए। यह न केवल आपको अच्छा श्रोतागण सम्पर्क प्रदान करेगा परन्तु आप ख़ुद को अपने श्रोतागण की ओर आकर्षित महसूस करेंगे, और आपके स्नेहपूर्ण मुखभाव की प्रतिक्रिया में आपके श्रोतागण आपकी ओर आकर्षित होंगे।
१५-१९. बताइए कि कौन-सी बातें एक वक्ता की आवाज़ में स्नेह-भाव और सरगर्मी व्यक्त कराएँगी।
१५ स्नेह-भाव और सरगर्मी स्वर-शैली में व्यक्त। यह अच्छी तरह साबित किया जा चुका है कि आपके स्वर से जानवर भी कुछ हद तक आपकी भावनाओं को समझ सकते हैं। तो फिर, अपने स्वर से स्नेह-भाव और सरगर्मी व्यक्त करनेवाली आवाज़ के प्रति श्रोतागण कितने और अधिक प्रतिक्रिया दिखाएँगे।
१६ यदि आप वास्तव में अपने श्रोतागण से कटा हुआ महसूस करते हैं, यदि आप जो शब्द कह रहे हैं उनके बारे में ज़्यादा सोच रहे हैं न कि अपने श्रोतागण की उनके प्रति प्रतिक्रिया के बारे में, तो इसे एक सतर्क श्रोतागण से छिपाना मुश्किल होगा। लेकिन यदि आपकी दिलचस्पी निष्कपट रूप से उनपर केन्द्रित है जिनसे आप बात कर रहे हैं और उन तक अपने विचार संचारित करने की आप में तीव्र इच्छा है जिससे वे भी आपकी तरह सोचें, तो आपकी भावना आपके हर सुर-परिवर्तन में प्रतिबिम्बित होगी।
१७ लेकिन स्पष्टतः इसे निष्कपट दिलचस्पी होना चाहिए। वास्तविक स्नेह-भाव भी उत्सुकता की तरह धारण नहीं किया जा सकता। एक वक्ता को कभी भी कपटी मीठापन महसूस नहीं कराना चाहिए। न ही स्नेह-भाव और सरगर्मी को भावुकता या तुच्छ भावोत्तेजित व्यक्ति की बनावटी काँपती आवाज़ समझी जानी चाहिए।
१८ यदि आपकी आवाज़ कठोर, मोटी है तो आपकी अभिव्यक्ति में स्नेह-भाव प्रदर्शित करना मुश्किल होगा। ऐसी किसी भी समस्या पर विजय पाने के लिए आपको ईमानदार और अध्यवसायी रीति से कोशिश करनी चाहिए। यह आवाज़ की गुणवत्ता की बात है और इसमें समय लगेगा, लेकिन उचित ध्यान और कोशिश से आपकी आवाज़ में बेहतर स्नेह-भाव होने के लिए काफ़ी कुछ किया जा सकता है।
१९ एक बात जो आपको पूर्णतः यन्त्रिक तौर पर शायद मदद दे वह यह याद रखना है कि छोटे, कटे स्वर बोली को कठोर बना देते हैं। स्वरों को लम्बा खींचना सीखिए। यह उन्हें कोमल बनाएगा और आपके भाषण की स्वर-अभिव्यक्ति में अपने आप अधिक स्नेह-भाव लाएगा।
२०, २१. किस तरह भाषण का विषय प्रस्तुति में स्नेह-भाव और सरगर्मी को प्रभावित करता है?
२० विषय के लिए उपयुक्त स्नेह-भाव और सरगर्मी। ठीक जैसे उत्साह के मामले में है, वैसे ही आप अपनी अभिव्यक्ति में जो स्नेह और सरगर्मी प्रदर्शित करते हैं वह काफ़ी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि आप क्या कह रहे हैं। इसका एक उदाहरण है मत्ती २३ में यीशु का शास्त्रियों और फरीसियों का खण्डन। हम यह कल्पना नहीं कर सकते कि उसने निन्दा के ये अत्यन्त कठोर शब्द नीरस और उत्साहहीन रीति से कहे होंगे। लेकिन रोष और क्रोध की इस अभिव्यक्ति के बीच स्नेह-भाव और कोमल भावना से भरा हुआ एक वाक्यांश है जो यीशु की करूणा को इन शब्दों से व्यक्त करता है: “—कितनी ही बार मैं ने चाहा कि जैसे मुर्ग़ी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे कर लूं, परन्तु तुम ने न चाहा।” यहाँ स्पष्टतः कोमल भावना दिखती है, परन्तु अगला कथन: “देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है,” में वही भावना नहीं है। यह स्वर ठुकराने का, घृणा का है।
२१ तो फिर, स्नेह-भाव और सरगर्मी कहाँ उचित होगी? क्षेत्र सेवकाई में या एक विद्यार्थी भाषण में वे अधिकांश बातें जो आप साधारणतः कहेंगे उनकी इस प्रकार की अभिव्यक्ति होगी लेकिन ख़ासकर तब जब आप तर्क कर रहे हैं, प्रोत्साहित कर रहे हैं, प्रेरित कर रहे हैं, सांत्वना दे रहे हैं, इत्यादि। स्नेह-भाव व्यक्त करने को याद रखने में जहाँ उपयुक्त हो वहाँ उत्साही होना न भूलिए। सभी बातों में संतुलित रहिए, लेकिन आप जो कुछ भी कहेंगे उसको यथासंभव पूर्ण अभिव्यक्ति दीजिए।