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अपनी वक्‍तव्य क्षमता और शिक्षण क्षमता कैसे सुधारें
ht अध्या. 18 पेज 86-92

अध्ययन १८

ठवन और व्यक्‍तिगत दिखाव-बनाव

१-९. ठवन और आत्मविश्‍वास की परिभाषा दीजिए, और बताइए कि इन्हें किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है।

ठवन रखनेवाला वक्‍ता एक तनावमुक्‍त वक्‍ता होता है। वह शान्त और स्थिर होता है क्योंकि स्थिति उसके नियंत्रण में है। दूसरी ओर, ठवन की कमी आत्मविश्‍वास की ख़ास कमी को प्रदर्शित करती है। ये दोनों साथ-साथ जाते हैं। इसीलिए “आत्मविश्‍वास और ठवन” को भाषण सलाह परची पर एक ही मुद्दा बताया गया है।

२ जबकि आत्मविश्‍वास और ठवन वक्‍ता की ओर से वांछनीय हैं, उन्हें अतिविश्‍वास नहीं समझा जाना चाहिए, जो यदि बैठे हैं तो इठलाने या इतराने या अत्यधिक आरामदेह रीति से झुककर बैठने से, अथवा यदि घर-घर प्रचार कर रहे हैं तो अत्यधिक लापरवाही से चौखट के सहारे खड़े होने से प्रदर्शित होता है। यदि आपकी प्रस्तुति में कुछ ऐसी बात है जो अतिविश्‍वासी मनोवृत्ति सुझाती है तो आपका स्कूल ओवरसियर निःसन्देह आपको निजी सलाह देगा। यह इसलिए है क्योंकि आपकी सेवकाई की प्रभावकारिता को संभवतः कम करनेवाली कोई भी ऐसी छाप जो आप शायद छोड़ रहे हैं उससे बचने में आपको मदद देने में वह दिलचस्पी रखता है।

३ लेकिन, यदि आप एक नए वक्‍ता हैं, तो यह अधिक संभव है कि आप मंच पर आते हुए संकोच और शर्म महसूस करेंगे। आप वास्तव में आशंकित और घबराए हुए होंगे जिसके कारण आप यह मान लेंगे कि आप एक प्रभावहीन प्रस्तुति पेश करेंगे। इसे ऐसा होने की ज़रूरत नहीं। आत्मविश्‍वास और ठवन कड़ी मेहनत और इसकी कमी के कारण के बारे में ज्ञान से प्राप्त किए जा सकते हैं।

४ कुछ वक्‍ताओं में आत्मविश्‍वास की कमी क्यों है? सामान्यतः दो कारणों में से एक या दोनों की वजह से। पहला, तैयारी की कमी या उनका विषय के प्रति ग़लत नज़रिया। दूसरा, वक्‍ता के तौर पर अपनी योग्यताओं के प्रति एक नकारात्मक दृष्टिकोण।

५ कौन-सी बात आपको आत्मविश्‍वास दिलाएगी? मूलतः इस बात का ज्ञान या विश्‍वास कि आप अपने उद्देश्‍य को पूरा कर पाएँगे। यह ऐसा आश्‍वासन है कि स्थिति आपके नियंत्रण में है और कि आप इसे नियंत्रित कर सकते हैं। मंच पर इसके लिए शायद कुछ अनुभव की ज़रूरत हो। कई भाषण देने की वजह से आप काफ़ी हद तक निश्‍चित हो सकते हैं कि यह भाषण भी सफल होगा। लेकिन चाहे आप तुलनात्मक रूप से नए हों, आपके पहले के भाषणों को आपको प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि आप जल्द ही इस गुण को काफ़ी हद तक प्रदर्शित कर सकें।

६ चाहे आप अनुभवी हों या न हों, आत्मविश्‍वास के लिए एक और अनिवार्य माँग है, आपके विषय का ज्ञान और यह दृढ़विश्‍वास कि यह विषय उपयोगी है। इसका अर्थ आपके विषय की पूर्ण पूर्वतैयारी ही नहीं परन्तु प्रस्तुति के लिए ध्यानपूर्ण तैयारी भी है। यदि आप समझते हैं कि यह आपकी अपनी ईश्‍वरशासित प्रगति के लिए साथ ही उपस्थित भाइयों के शिक्षण के लिए भी है, तो आप मंच पर प्रार्थनापूर्ण मनोवृत्ति से आएँगे। आप विषय में मशगूल हो जाएँगे और आप अपने आपको और अपनी घबराहट को भूल जाएँगे। आप मनुष्यों को नहीं परन्तु परमेश्‍वर को ख़ुश करने के बारे में सोच रहे होंगे।—गल. १:१०; निर्ग. ४:१०-१२; यिर्म. १:८.

७ इसका अर्थ है कि आप जो कुछ भी कहने जा रहे हैं उसके बारे में आपको विश्‍वस्त होना चाहिए। अपनी तैयारी में निश्‍चित कीजिए कि यह ऐसा है। और एक दिलचस्प और सजीव भाषण को तैयार करने के लिए जो कुछ आप कर सकते हैं उसे करने के बाद, यदि आपको तब भी महसूस होता है कि भाषण आकर्षक नहीं है या उत्साहहीन है, तो याद रखिए कि एक सजीव श्रोतागण आपके भाषण को सजीव बना सकता है। अतः अपनी प्रस्तुति से अपने श्रोतागण को सजीव बनाइए, और उनकी दिलचस्पी आपको जो प्रस्तुत करना है उसमें आत्मविश्‍वास प्रदान करेगी।

८ जैसे एक डॉक्टर रोगलक्षण ढूँढता है, वैसे ही आपका सलाहकार भी वे लक्षण ढूँढेगा जो निःसन्देह आत्मनियंत्रण की कमी को सूचित करते हैं। और जैसे एक अच्छा डॉक्टर लक्षणों के बजाय आपकी बीमारी के कारण को हटाने की कोशिश करेगा, वैसे ही आपका सलाहकार आत्मविश्‍वास और ठवन की कमी के वास्तविक कारणों पर विजय पाने में आपकी मदद करने की कोशिश करेगा। लेकिन, लक्षणों को जानना और उन पर नियंत्रण रखना सीखना इन लक्षणों के आधारभूत कारणों पर विजय प्राप्त करने के लिए वास्तव में आपकी मदद करेंगे। वे क्या हैं?

९ आम तौर पर, दबी हुई भावनाओं या तनाव के दो निकास हैं। इन्हें भौतिक या शारीरिक प्रमाण और मौखिक प्रदर्शन में वर्गीकृत किया जा सकता है। जब इसे ज़रा-सा भी प्रदर्शित किया जाता है तो हम कहते हैं कि उस व्यक्‍ति में ठवन की कमी है।

१०, ११. शारीरिक हाव-भाव आत्मविश्‍वास की कमी को कैसे प्रदर्शित कर सकता है?

१० शारीरिक हाव-भाव में ठवन प्रकट। अतः, ठवन का पहला प्रमाण आपके शारीरिक हाव-भाव से प्रकट होता है। यदि आप में आत्मविश्‍वास की कमी है तो यहाँ कुछ बातें हैं जो यह प्रकट कर सकती हैं। पहले हाथों के बारे में विचार कीजिए: हाथों को पीछे कसकर पकड़ना, बगल में अकड़े हुए रखना या वक्‍ता के स्टैन्ड को कसकर पकड़ना; हाथ बार-बार जेबों में डालना, कोट का बटन बार-बार लगाना, बिना उद्देश्‍य के गाल, नाक और चश्‍मे की तरफ हाथ का जाना; अधूरे हाव-भाव; घड़ी, पेन्सिल, अंगूठी या नोट्‌स के साथ खेलना। अथवा पैरों का निरन्तर स्थान बदलने, शरीर के डोलने, पीठ छड़ के समान सीधी या घुटनों के मोड़ने; बार-बार होठों को गीला करने, बार-बार निगलने, तेज़ और कम श्‍वास लेने के बारे में विचार कीजिए।

११ घबराहट के ये सभी प्रमाण सचेतन प्रयास से नियंत्रित या कम किए जा सकते हैं। यदि आप वह प्रयास करेंगे तो आप अपने शारीरिक व्यवहार में ठवन का बोध कराएँगे। अतः स्वाभाविक तथा शान्त भाव से श्‍वास लीजिए और तनावमुक्‍त होने का एक निश्‍चित प्रयास कीजिए। बोलना शुरू करने से पहले रुकिए। आपके श्रोतागण ज़रूर सकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया दिखाएँगे और क्रमशः यह आपको वह आत्मविश्‍वास प्राप्त करने में मदद देगा जिसे आप चाहते हैं। अपने श्रोतागण के बारे में चिन्तित होने या अपने बारे में सोचने के बजाय अपने विषय पर ध्यान केन्द्रित कीजिए।

१२-१४. यदि एक व्यक्‍ति की आवाज़ आत्मविश्‍वास की कमी सूचित करती है, तो ठवन प्राप्त करने के लिए क्या किया जा सकता है?

१२ नियंत्रित आवाज़ द्वारा ठवन प्रकट। घबराहट प्रदर्शित करनेवाले मौखिक प्रमाण हैं एक असाधारणतः ऊँचा स्वर, आवाज़ में कंपन, बार-बार गले को साफ़ करना, तनाव के कारण प्रतिध्वनि की कमी की वजह से स्वर का असाधारण पतलापन। इन समस्याओं और व्यवहार वैचित्र्यों पर भी कड़ी मेहनत से विजय प्राप्त की जा सकती है।

१३ मंच की ओर जाते वक़्त या अपने नोट्‌स को व्यवस्थित करते वक़्त जल्दबाज़ी न कीजिए, परन्तु तनावमुक्‍त रहिए और जो आपने तैयार किया है उसे बाँटने के लिए ख़ुश होइए। यदि आपको मालूम है कि भाषण शुरू करते वक़्त आप घबराए हुए होते हैं तो आपको प्रस्तावना में सामान्य से धीमा और जितना आपको सामान्य प्रतीत होता है उससे कम स्वर में बोलने का एक ख़ास प्रयास करना चाहिए। यह आपको अपनी घबराहट नियंत्रित करने में मदद देगा। आप पाएँगे कि दोनों, हाव-भाव और ठहराव आपको तनावमुक्‍त होने में मदद देंगे।

१४ लेकिन इन सब बातों का अभ्यास करने के लिए मंच पर जाने तक मत रुकिए। अपनी दैनिक बातचीत में ठवन और नियंत्रण रखना सीखिए। यह आपको मंच पर और आपकी क्षेत्र सेवकाई में, जहाँ इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, आत्मविश्‍वास प्रदान करने में बहुत मदद देगा। एक शान्त प्रस्तुति आपके श्रोतागण को तनावमुक्‍त करेगी और इस प्रकार वे विषय पर ध्यान केन्द्रित कर सकेंगे। सभाओं में नियमित रूप से टिप्पणी करना आपको एक समूह के सामने बात करने का आदी होने में मदद देगा।

१५. अच्छा व्यक्‍तिगत दिखाव-बनाव इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?

१५ अच्छा व्यक्‍तिगत दिखाव-बनाव आपको उचित ठवन में मदद प्रदान करेगा, लेकिन यह अन्य कारणों से भी महत्त्वपूर्ण है। यदि इस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है, तो सेवक शायद पाए कि उसका दिखाव-बनाव उसके श्रोतागण को विकर्षित करता है, सो जो वह कह रहा है उस पर वे वास्तव में ध्यान नहीं देते हैं। इसके बजाय, वह अपनी ओर ध्यान केन्द्रित कर रहा है, जो निश्‍चित ही वह नहीं करना चाहता है। यदि एक व्यक्‍ति अपने दिखाव-बनाव के बारे में अत्यधिक लापरवाह है तो उसके कारण लोग उस संगठन का भी तिरस्कार कर सकते हैं जिसका वह भाग है, और जो संदेश वह प्रस्तुत कर रहा है उसे ठुकरा सकते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। सो, हालाँकि “व्यक्‍तिगत दिखाव-बनाव” भाषण सलाह परची में आख़िर में सूचीबद्ध है उसे सबसे कम महत्त्व का नहीं समझा जाना चाहिए।

१६-२१. उचित पहनावे और सँवरने पर क्या सलाह दी गई है?

१६ उचित पहनावा और सँवरना। आत्यन्तिक पहनावे से दूर रहना चाहिए। एक मसीही सेवक सांसारिक फ़ैशनों को नहीं अपनाएगा जो अपनी ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। वह आत्यन्तिक पहनावे से अथवा कपड़े की ओर ध्यान आकर्षित करनेवाले बहुत ही भड़कीले पहनावे से दूर रहेगा। साथ ही वह सावधानी बरतेगा कि उसके कपड़े मैले-कुचैले न हो। अच्छा पहनावा होने का अर्थ यह नहीं कि एक व्यक्‍ति नया सूट पहने, परन्तु वह हमेशा साफ़-सुथरा हो सकता है। पैंट इस्तिरी की हुई और टाई सीधी पहनी हुई होनी चाहिए। ये ऐसी बातें हैं जो कोई भी कर सकता है।

१७ पहनावे के बारे में जो सलाह प्रेरित पौलुस ने लिखी जैसे १ तीमुथियुस २:९ में पायी जाती है, आज मसीही स्त्रियों के लिए उपयुक्‍त है। जैसे भाइयों के बारे में सच है, उन्हें उस प्रकार कपड़े नहीं पहनने चाहिए कि वे अपनी ओर ध्यान आकर्षित करें, न ही उनके लिए यह उचित होगा कि वे सांसारिक तौर-तरीक़ों के आत्यन्तिक पहनावे को अपनाएँ जो शालीनता की कमी का प्रमाण देते हैं।

१८ जी हाँ, यह याद रखा जाना चाहिए कि सभी जन एक समान कपड़े नहीं पहनेंगे। उनसे इसकी अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। लोगों की अलग-अलग पसन्द होती है, और यह बिलकुल उचित है। संसार के अलग-अलग भागों में जिसे स्वीकार्य पहनावा माना जाता है वह भी अलग-अलग होता है, लेकिन यह हमेशा अच्छा है कि उस तरह के पहनावे से दूर रहें जिससे श्रोतागण में बैठे लोगों के मनों में प्रतिकूल विचार आए और जो हमारी सभाओं में आते हैं उन्हें ठोकर देने से दूर रहें।

१९ स्कूल या सेवा सभा में भाषण देते वक़्त भाइयों के लिए उचित पहनावे के बारे में कहा जा सकता है कि उन्हें उसी तरह के कपड़े पहनने चाहिए जैसे कि वह भाई पहनेगा जो जन भाषण देता है। यदि आपके क्षेत्र में जो जन भाषण देते हैं वे साधारणतः टाई और कोट पहनते हैं तो यह भी उचित पहनावा होगा जब ईश्‍वरशासित सेवकाई स्कूल में भाषण देते हैं, क्योंकि आप जन वक्‍तव्य के लिए प्रशिक्षित किए जा रहे हैं।

२० ठीक तरह से बाल बनाने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। कंघी न किए गए बाल एक ग़लत छाप छोड़ सकते हैं। उचित ध्यान रखा जाना चाहिए कि एक व्यक्‍ति इस मामले में साफ़-सुथरा दिखे। उसी प्रकार कलीसिया में जब पुरूषों की सभाओं में नियुक्‍तियाँ होती हैं उन्हें ध्यान देना चाहिए कि वे अच्छी तरह दाढ़ी बनाएँ।

२१ जहाँ तक उचित पहनावे और बाल बनाने के इस मामले में सलाह का सवाल है, जहाँ सराहना की जा सकती है वहाँ यह हमेशा मंच से उचित रूप से की जा सकती है। वास्तव में, जब उन लोगों की सराहना की जाती है जो अपने पहनावे और सँवरने पर उचित ध्यान देते हैं, तो यह दूसरों को प्रोत्साहित करता है कि वे उस अच्छे उदाहरण का अनुकरण करें। लेकिन, जहाँ पहनावे और सँवरने के मामले में सुधार की ज़रूरत है, बेहतर होगा कि स्कूल ओवरसियर मंच पर से विद्यार्थी को सलाह देने के बजाय इन सुझावों को कृपापूर्वक निजी तौर पर दें।

२२-२८. चर्चा कीजिए कि कैसे मुद्रा एक व्यक्‍ति के व्यक्‍तिगत दिखाव-बनाव को प्रभावित कर सकती है?

२२ उचित मुद्रा। व्यक्‍तिगत दिखाव-बनाव में सही मुद्रा भी शामिल है। फिर से, सभी लोग एक ही रीति से पेश नहीं आते हैं और भाइयों को किसी सख़्त नमूने के अनुरूप करने की कोई कोशिश नहीं की जानी चाहिए। लेकिन, आत्यन्तिक बातें जो वांछनीय नहीं हैं और जो संदेश से हटकर व्यक्‍ति की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं उनकी ओर कुछ ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि उन्हें सुधारा या हटाया जा सके।

२३ उदाहरण के लिए, हरेक व्यक्‍ति अपने पैर एक जैसे नहीं रखता है, और सामान्यतः, आप कैसे खड़े होते हैं इससे बहुत कम फ़र्क पड़ता है, जब तक कि आप सीधे खड़े होते हैं। लेकिन यदि वक्‍ता अपने पैरों को इतना फैला कर खड़ा होता है कि वह श्रोतागण को यह प्रतीत कराता है कि वह घोड़े पर बैठे होने की कल्पना कर रहा है, तो यह बहुत ही विकर्षक हो सकता है।

२४ वैसे ही, जब एक वक्‍ता झुका हुआ है, सीधा नहीं खड़ा है, तो यह वक्‍ता के प्रति श्रोतागण के तरस की भावना को उकसाता है क्योंकि वह बीमार प्रतीत होता है और निःसन्देह यह उसकी प्रस्तुति से विकर्षित करता है। उनके विचार उस पर हैं, वह जो कह रहा है उस पर नहीं।

२५ एक पैर पर खड़े होकर दूसरे पैर को उसके पीछे रखना ठवन की कमी का स्पष्ट प्रमाण देता है, वैसे ही जैसे अपनी जेबों में हाथ डालकर खड़ा होना इसे प्रदर्शित करता है। ये वे बातें हैं जिनसे दूर रहना है।

२६ उसी प्रकार, यह ग़लत नहीं है कि एक वक्‍ता कभी-कभी वक्‍ता के स्टैन्ड पर, अगर है तो, अपने हाथ रखता है। लेकिन निश्‍चित ही उसे वक्‍ता के स्टैन्ड के सहारे खड़ा नहीं होना चाहिए, वैसे ही जैसे क्षेत्र सेवकाई में एक प्रकाशक दरवाज़े के सहारे खड़ा नहीं होगा। यह अच्छा नहीं दिखता है।

२७ लेकिन, इस पर फिर ज़ोर दिया जाना चाहिए कि लोग भिन्‍न होते हैं। हरेक व्यक्‍ति एक ही समान खड़ा नहीं होता है और मात्र अवांछनीय आत्यन्तिक बातें जो एक व्यक्‍ति की प्रस्तुति से विकर्षित करती हैं उन्हीं पर ईश्‍वरशासित सेवकाई स्कूल में ध्यान दिया जाना चाहिए।

२८ अपनी मुद्रा को सुधारना निश्‍चित ही तैयारी की बात है। यदि आपको इस बारे में सुधार करने की ज़रूरत है तो आपको पहले से ही सोचना होगा और याद रखना होगा कि जब आप मंच पर जाते हैं तब बोलना शुरू करने से पहले आपको सही मुद्रा ले लेनी चाहिए। यह भी एक ऐसी बात है जिसे प्रतिदिन उचित मुद्रा का अभ्यास करने से सुधारा जा सकता है।

२९-३१. हमारी सामग्री को साफ़-सुथरा क्यों होना चाहिए?

२९ साफ़-सुथरी सामग्री। यदि जब एक व्यक्‍ति दरवाज़े पर बातचीत कर रहा है या मंच से भाषण दे रहा है, तब कुछ काग़ज़ उस बाइबल से गिर जाते हैं जो वह व्यक्‍ति इस्तेमाल कर रहा है, तो यह स्पष्टतः विकर्षित करता है। यह अच्छा नहीं दिखता। इसका अर्थ यह नहीं है कि बाइबल में कभी कुछ नहीं रखा जाना चाहिए, परन्तु जब समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं जो एक व्यक्‍ति के भाषण से विकर्षित करती हैं, तो यह सूचित करता है कि उचित दिखाव-बनाव के प्रति अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। आपकी बाइबल के दिखाव-बनाव को भी जाँचना अच्छा होगा। बहुत ज़्यादा इस्तेमाल की वजह से यह गंदी या पुरानी हो सकती है और अस्त-व्यस्त दिख सकती है। अतः यह निश्‍चित करना अच्छा होगा कि जिस बाइबल का मंच पर या क्षेत्र सेवकाई में इस्तेमाल किया जाता है वह उन लोगों को नाराज़ न कर दे जिन्हें हम मदद करने की कोशिश कर रहे हैं।

३० वही बात एक व्यक्‍ति के साहित्य बैग़ के बारे में भी सच है। अनेक तरीक़े हैं जिनसे एक साहित्य बैग़ को साफ़-सुथरे तरीक़े से भरा जा सकता है, लेकिन यदि, जब हम दरवाज़े पर जाते हैं और अपने बैग़ में से साहित्य निकालने की कोशिश करते हैं तो हमें बहुत सारे कागज़ों के बीच उसे ढूँढना पड़ता है, या यदि जब हम एक पत्रिका निकालते हैं तो अन्य वस्तुएँ दहलीज़ पर गिर जाती हैं, तो इस बारे में निश्‍चित ही कुछ किया जाना चाहिए।

३१ श्रोतागण के लिए यह भी बहुत ही विकर्षक हो सकता है यदि वक्‍ता की बाहर की जेबें पॆन और पॆनसिलों और अन्य चीज़ों से भरी हुई हैं जो स्पष्टतः दिखती हैं। इस बारे में कोई नियम नहीं बनाया जाना चाहिए कि एक व्यक्‍ति इन चीज़ों को कहाँ रखता है, परन्तु जब वे भाषण से ध्यान हटाकर अपनी ओर आकर्षित करना शुरू करती हैं तब कुछ समंजन करने की ज़रूरत होती है।

३२-३४. हमारे दिखाव-बनाव में मुखभाव क्या भाग अदा करते हैं?

३२ कोई अनुचित मुखभाव नहीं। जब एक भाषण को तैयार किया जाता है तो वह विषय जिस भावना की माँग करता है उस पर भी ध्यान देना उचित होगा। उदाहरण के लिए, मृत्यु और विनाश के बारे में बात करते वक़्त अपने चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान रखना अनुचित होगा। उसी प्रकार, नई रीति-व्यवस्था की ख़ुशहाल परिस्थितियों के बारे में बात करते वक़्त श्रोतागण को क्रोध-भरी दृष्टि से देखना बिलकुल उचित नहीं होगा।

३३ मुखभाव साधारणतः एक समस्या नहीं है, और हाँ, कुछ लोग दूसरों से ज़्यादा गंभीर भाव प्रदर्शित करने की ओर प्रवृत होते हैं। लेकिन, जिससे सावधान रहना है वह है, आत्यन्तिक भावनाएँ जो भाषण से ध्यान विकर्षित करती हैं। यदि मुखभाव श्रोतागण के मनों में वक्‍ता की निष्कपटता पर संदेह पैदा करेगा तो यह निश्‍चय ही वांछनीय नहीं है।

३४ अतः अच्छा है कि भाषण तैयार करते वक़्त उसे जिस भावना के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए उस पर भी विचार किया जाए। यदि यह एक गंभीर विषय है जो दुष्टों के विनाश के सम्बन्ध में है तो उसे गंभीर रीति से पेश किया जाना चाहिए। और यदि आप विषय के बारे में सोच रहे हैं और उसे ध्यान में रखते हैं तो अधिकांश मामलों में आपका मुखभाव उसे स्वाभाविक रूप से प्रतिबिंबित करेगा। यदि यह एक ख़ुशी का विषय है, एक ऐसा विषय जिससे श्रोतागण के मन में आनन्द पैदा होना चाहिए, तो उसे आनन्दित रीति से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। और यदि आप मंच पर तनावमुक्‍त महसूस करते हैं तो आपका मुखभाव सामान्यतः उस आनन्द को विकिर्णित करेगा।

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