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अध्याय ४९

गलील का एक और प्रचार दौरा

लगभग दो साल तक तीव्रता से प्रचार करने के बाद, क्या अब यीशु इसे मंद गति से करेंगे? इसके विपरीत, वह एक और दौरे से, गलील का तीसरा दौरा, अपना प्रचार कार्य विस्तारित करता है। वह आराधनालयों में सिखाते और राज्य का सुसमाचार प्रचार करते हुए इस क्षेत्र के सब शहरों और गाँवों में भेंट करता है। इस दौरे पर वह जो कुछ देखता है उससे वह क़ायल हो जाता है कि प्रचार कार्य को पहले से अधिक तीव्र करने की आवश्‍यकता है।

यीशु जहाँ कहीं जाएँ, वहाँ भीड़ में आध्यात्मिक चंगाई और तसल्ली की ज़रूरत पाते हैं। वे बिना चरवाहे के भेड़ के समान व्याकुल और भटके हुए हैं, और वह उन पर तरस खाता है। वह अपने शिष्यों से कहता है: “पक्के खेत तो बहुत हैं पर मज़दूर थोड़े हैं। इसलिए खेत के स्वामी से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिए मज़दूर भेज दे।”

यीशु के पास एक कार्य-योजना है। वह १२ प्रेरितों को बुलाता है, जिन्हें उसने लगभग एक साल पहले चुना था। वह जोड़ियों में, प्रचारकों के छः जोड़ी में, उन्हें विभाजित करता है और उन्हें आदेश देता है। वह व्याख्या करता है: “अन्य जातियों की ओर न जाना, और सामरियों के किसी नगर में प्रवेश न करना। बल्कि इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों के पास जाना। और चलते चलते प्रचार कर कहो कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।”

आदर्श प्रार्थना में जिस राज्य के लिए यीशु ने उन्हें प्रार्थना करना सिखाया था, उसी राज्य के बारे में उन्हें प्रचार करना है। राज्य इस अर्थ में निकट आ गया है कि परमेश्‍वर का नियुक्‍त राजा, यीशु मसीह, उपस्थित है। उस अतिमानवीय सरकार के प्रतिनिधियों की हैसियत से अपने शिष्यों की पहचान स्थापित करने, यीशु उन्हें बीमारों को चंगा करने और मृतकों को जिलाने की भी शक्‍ति देते हैं। वह आदेश देता है कि वे यह सेवा मुफ़्त करें।

इसके बाद वह अपने शिष्यों को कहता है कि वे उनके प्रचार दौरे के लिए भौतिक तैयारियाँ न करें। “अपने कमरबंद के लिए न तो सोना, या चाँदी, या ताँबा प्राप्त करना। रास्ते के लिए न झोली रखो, न दो कुरते, न जूते और न लाठी लो, क्योंकि मज़दूर को उसका भोजन मिलना चाहिए।” (NW) इस संदेश का क़दर करनेवाले भोजन और शरण देकर अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाएँगे। यीशु कहते हैं: “जिस किसी नगर या गाँव में जाओ, पता लगाओ कि वहाँ कौन योग्य है? और जब तक वहाँ से न निकलो, उसी के यहाँ रहो।”

इसके पश्‍चात्‌ यीशु हिदायत देते हैं कि कैसे गृहस्थों से राज्य संदेश लेकर पहुँचे। वह आदेश देता है: “घर में प्रवेश करते हुए उसको आशिष देना; यदि उस घर के लोग योग्य हों तो तुम्हारा कल्याण उन पर पहुँचे; परन्तु यदि वे योग्य न हों तो तुम्हारा कल्याण तुम्हारे पास लौट आए। और जो कोई तुम्हें ग्रहण न करे, और तुम्हारी बातें न सुने, उस घर या नगर से निकलते हुए अपने पाँवों की धूल झाड़ डालो।”—NW.

उनके संदेश को इनक़ार करनेवाले शहर के बारे में यीशु प्रकट करते हैं कि उन पर न्यायदण्ड निश्‍चय ही गंभीर होगा। वे व्याख्या करते हैं: “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि न्याय के दिन उस नगर की दशा से सदोम और अमोरा के देश की दशा अधिक सहनेयोग्य होगी।” मत्ती ९:३५-१०:१५; मरकुस ६:६-१२; लूका ९:१-५.

▪ यीशु कब गलील का तीसरा प्रचार दौरा आरंभ करता है, और वह किस बात पर क़ायल हो जाता है?

▪ अपने १२ प्रेरितों को प्रचार के लिए भेजते समय, वह उन्हें क्या आदेश देता है?

▪ क्यों शिष्यों का ऐसा सिखलाना ठीक है कि राज्य निकट है?

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