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  • क्या आपको धन्यवाद कहना याद रहता है?

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  • महान शिक्षक से सीखिए
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महान शिक्षक से सीखिए
lr अध्या. 18 पेज 97-101

पाठ 18

क्या आपको धन्यवाद कहना याद रहता है?

क्या आज आपने खाना खाया?— क्या आपको मालूम है खाना किसने बनाया?— शायद आपकी मम्मी ने या फिर किसी और ने। हमें खाने के लिए परमेश्‍वर को धन्यवाद देना चाहिए। मगर परमेश्‍वर को क्यों?— क्योंकि परमेश्‍वर ही पेड़-पौधे उगाता है, जिनसे हमें खाना मिलता है। परमेश्‍वर के अलावा हमें उनको भी धन्यवाद देना चाहिए जिन्होंने खाना बनाया या परोसा है।

जब दूसरे हमारे लिए कुछ अच्छा काम करते हैं, तो कभी-कभी हम उन्हें धन्यवाद देना भूल जाते हैं। क्या आपके साथ भी ऐसा होता है?— जब महान शिक्षक धरती पर था, तो कुछ कोढ़ी उसे धन्यवाद कहना भूल गए।

पता है कोढ़ी किसे कहते हैं?— कोढ़ी उसे कहते हैं, जिसे कोढ़ की बीमारी हो जाती है। इस बीमारी में एक इंसान का मांस गलकर गिरने लगता है। यीशु के समय में कोढ़ के रोगी को दूसरे लोगों से अलग रहना होता था। और अगर एक कोढ़ी किसी को अपनी तरफ आते देखता तो उसे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना होता था, ताकि वह आदमी सावधान हो जाए और उसके पास न आए। यह इसलिए किया जाता था क्योंकि अगर वह आदमी उस कोढ़ी के पास आता तो उसे भी यह बीमारी हो सकती थी।

यीशु के दिल में कोढ़ियों के लिए दया थी, वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करता था। एक दिन जब यीशु यरूशलेम की ओर जा रहा था, तो उसे एक छोटे-से नगर से गुज़रना था। जब वह उस नगर के पास पहुँचा, तो दस कोढ़ी उससे मिलने आए। उन्होंने सुना था कि यीशु के पास हर तरह की बीमारी ठीक करने की शक्‍ति है। और यह शक्‍ति उसे परमेश्‍वर ने दी है।

कोढ़ी लोग यीशु के करीब नहीं आए। वे दूर ही खड़े रहे। लेकिन उन्हें विश्‍वास था कि यीशु उनकी कोढ़ की बीमारी ठीक कर सकता है। इसलिए जब उन्होंने महान शिक्षक को देखा, तो वे ज़ोर-ज़ोर से कहने लगे: ‘हे गुरु यीशु, हमारी मदद कर!’

जब आप किसी बीमार इंसान को देखते हो, तो क्या आपको उस पर तरस आता है?— यीशु को बीमार लोगों पर बड़ा तरस आता था। वह जानता था कि कोढ़ की बीमारी कितनी दर्दनाक होती है और कोढ़ियों को कितना कुछ सहना पड़ता है। इसलिए उसने कोढ़ियों से कहा: “जाओ और खुद को याजकों को दिखाओ।”—लूका 17:11-14.

दस कोढ़ी यीशु से मदद की भीख माँगते हैं

यीशु इन कोढ़ियों से क्या करने को कह रहा है?

यीशु ने उनसे ऐसा करने के लिए क्यों कहा? क्योंकि यहोवा ने अपने लोगों को जो नियम दिया था, उसमें बताया गया था कि अगर किसी कोढ़ी को लगता कि उसकी बीमारी ठीक हो गयी है, तो उसे याजक के पास जाना चाहिए। याजक उसका शरीर देखकर बताता कि उसकी बीमारी पूरी तरह से ठीक हो गयी है या नहीं। जब वह पूरी तरह से ठीक हो जाता, तब वह फिर से सेहतमंद लोगों के साथ रह सकता था।—लैव्यव्यवस्था 13:16, 17.

लेकिन यीशु ने जिन कोढ़ियों से कहा कि जाओ याजक को दिखाओ, उनका कोढ़ तो तब तक ठीक नहीं हुआ था। क्या वे यीशु की बात मानकर याजक के पास गए?— हाँ, वे तुरंत याजक के पास गए। शायद उन्हें यकीन था कि यीशु उनकी बीमारी ठीक कर देगा। तो क्या उनकी बीमारी ठीक हुई?

जब वे याजक को दिखाने जा रहे थे, तब रास्ते में ही उनका कोढ़ ठीक हो गया। उनका शरीर एकदम स्वस्थ हो गया। यीशु पर विश्‍वास करने का उन्हें कितना बढ़िया इनाम मिला। अपना भला-चंगा शरीर देखकर उन्हें कितनी खुशी हुई होगी! लेकिन अब वे यीशु का एहसान चुकाने के लिए क्या कर सकते थे? अगर आप उनकी जगह होते, तो आप क्या करते?—

ठीक होनेवाले कोढ़ियों में से एक कोढ़ी यीशु के पैरों पर गिरकर उसका धन्यवाद करता है

यह कोढ़ी क्या करना नहीं भूला?

जिन दस कोढ़ियों को यीशु ने ठीक किया था, उनमें से एक यीशु के पास वापस आया। वह यहोवा की महिमा करने लगा। उसका ऐसा करना सही था। क्योंकि यीशु ने परमेश्‍वर की शक्‍ति से ही उसे ठीक किया था। वह आदमी महान शिक्षक के पैरों पर गिरकर उसका धन्यवाद करने लगा। वह यीशु का बहुत एहसानमंद था।

लेकिन बाकी नौ कोढ़ियों का क्या हुआ? यीशु ने पूछा: ‘क्या सभी दस कोढ़ी ठीक नहीं हुए? बाकी नौ कहाँ हैं? क्या परमेश्‍वर की महिमा करने के लिए सिर्फ तुम ही अकेले वापस आए?’

जी हाँ, सिर्फ एक ने परमेश्‍वर की महिमा की और वापस आकर यीशु को धन्यवाद दिया। यह आदमी उस देश का रहनेवाला भी नहीं था, वह एक सामरी था। बाकी नौ आदमियों ने न तो परमेश्‍वर को और न ही यीशु को धन्यवाद दिया।—लूका 17:15-19.

आप उन दस आदमियों में से किसकी तरह बनना चाहोगे? हम ज़रूर उस सामरी आदमी की तरह बनना चाहेंगे, है ना?— तो जब कोई हमारे लिए कुछ अच्छा करता है, या हमारी मदद करता है, तब हमें क्या बात याद रखनी चाहिए?— हमें उसे धन्यवाद कहना चाहिए। अकसर लोग धन्यवाद कहना भूल जाते हैं। पर धन्यवाद या शुक्रिया कहना अच्छी बात है। जब हम ऐसा करते हैं, तो परमेश्‍वर यहोवा और उसके बेटे यीशु को खुशी होती है।

एक माँ अपनी बीमार बच्ची को बाँहों में लेती है और उसे दवा देती है

यीशु के पास जो कोढ़ी वापस आया, आप उसकी तरह कैसे बन सकते हो?

अब अपनी बात लीजिए। क्या कभी किसी ने आपकी कुछ मदद की है? अगर आप इस बारे में सोचने बैठें तो आपको ऐसे कई लोग याद आएँगे, जिन्होंने आपकी मदद की। अच्छा बताओ, क्या कभी आप बीमार पड़े हो?— शायद आपको उन दस कोढ़ियों के जैसी बड़ी बीमारी न हुई हो, मगर छोटी-मोटी बीमारी जैसे ज़ुकाम या पेट दर्द तो हुआ होगा। उस वक्‍त क्या किसी ने आपकी देखभाल की?— हो सकता है उन्होंने आपको दवा दी हो या आपके लिए कुछ और किया हो। क्या इस बात से आप खुश नहीं कि उन्होंने आपकी देखभाल की और आप ठीक हो गए?—

सामरी आदमी ने यीशु को धन्यवाद कहा, क्योंकि यीशु ने उसे ठीक किया था। इस बात से यीशु को खुशी हुई। जब आपके मम्मी-पापा आपके लिए कुछ करते हैं, तब अगर आप उन्हें धन्यवाद या शुक्रिया कहें, तो क्या वे खुश नहीं होंगे?— ज़रूर खुश होंगे।

टीचर को खुशी होती है जब एक लड़का उसका धन्यवाद करता है

धन्यवाद या शुक्रिया कहना क्यों ज़रूरी है?

कुछ लोग रोज़ या हर हफ्ते आपके लिए कुछ-न-कुछ करते होंगे। हो सकता है यह उनका काम हो। वे शायद अपना काम खुशी-खुशी करते हों। लेकिन आप शायद उनसे धन्यवाद या शुक्रिया कहना भूल जाएँ। आपकी टीचर शायद आप बच्चों को पढ़ाने के लिए बहुत मेहनत करती हो। माना कि यह उसका काम है। लेकिन वह पढ़ाई में आपकी जो मदद करती है, उसके लिए अगर आप उसे धन्यवाद दें, तो उसे बहुत खुशी होगी।

कभी-कभी लोग आपके लिए कुछ छोटा-मोटा काम करते हैं। क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप दरवाज़े से अंदर आनेवाले थे कि कोई आपके लिए दरवाज़ा खोलकर खड़ा हो गया? या आप खाना खाने के लिए बैठे थे कि किसी ने आपको खाना परोसकर दिया? इस तरह के छोटे-मोटे कामों के लिए भी धन्यवाद कहना अच्छी बात है।

एक लड़का अपनी माँ को गले लगाकर उसे फूल देता है

अगर हम लोगों को धन्यवाद कहना याद रखेंगे, तो हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता को भी धन्यवाद कहना नहीं भूलेंगे। यहोवा ने हमारे लिए कितना कुछ किया है, जिसके लिए हमें उसे धन्यवाद ज़रूर देना चाहिए! उसने हमें जीवन दिया है। साथ ही, दूसरी बहुत-सी अच्छी चीज़ें भी दी हैं, जिनकी वजह से हमारी ज़िंदगी मज़ेदार हो जाती है। इन सारी बातों के लिए हम हर दिन परमेश्‍वर के बारे में अच्छी-अच्छी बातें कर सकते हैं। इस तरह हम परमेश्‍वर की महिमा कर सकते हैं।

धन्यवाद कहने के बारे में ये आयतें पढ़िए: भजन 92:1; इफिसियों 5:20; कुलुस्सियों 3:17 और 1 थिस्सलुनीकियों 5:18.

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