क्या आपका जीवन भाग्य के हाथों में है?
एक दिन सुबह-सुबह, एक सेल्समैन हवाई जहाज़ पकड़ने के लिए अपने घर से भागा। मगर जब तक वह हवाई अड्डे पर पहुँचा, तब तक उसका जहाज़ उड़ चुका था। कुछ समय बाद, उसने यह खबर सुनी कि वह जहाज़ एक दुर्घटना का शिकार हो गया और जहाज़ में बैठे सभी लोग मारे गए।
अकसर हमें ऐसे लोगों की खबरें सुनने को मिलती हैं, जो किसी दुर्घटना से बाल-बाल बच जाते हैं। जब ऐसा होता है, तो दूसरे उनके बारे में कहते हैं: “उनके अभी दिन पूरे नहीं हुए थे।” लेकिन जब दुर्घटना में किसी की मौत हो जाती है, तब वे कहते हैं: “उसका वक्त आ गया था।” कुछ लोग जो भगवान् को नहीं मानते, वे विश्वास करते हैं कि जब एक इंसान पैदा होता है, तो उसी वक्त उसका भाग्य किसी कुदरती नियम से तय हो जाता है। जबकि ज़्यादातर लोग मानते हैं कि एक इंसान के पिछले जन्म के पापों की सज़ा उसे इस जन्म में भुगतनी पड़ती है और इस जन्म में वह जो पुण्य कमाता है, उसका फल उसे अगले जन्म में मिलेगा। भाग्य में विश्वास करनेवाले ऐसे लोग सोचते हैं कि नेकी करने, कुछ धार्मिक रीति-रिवाज़ मानने या पूजा पाठ करने से वे अपना भाग्य बदल सकते हैं। क्या इन धारणाओं में कोई तुक है?
क्या इन धारणाओं में कोई तुक है?
आइए पहली धारणा पर गौर करें। कुछ लोग मानते हैं कि एक इंसान का भाग्य किसी कुदरती नियम से तय होता है, जिसके पीछे किसी का हाथ नहीं। क्या वाकई इस बात में कोई तुक है? उदाहरण के तौर पर सड़क के नियमों को ही लीजिए, जिनमें यह बताया जाता है कि इन्हें तोड़नेवालों को क्या सज़ा दी जाएगी। क्या यह मानना सही होगा कि ये नियम अपने आप बन जाते और लागू होते हैं?
अब आइए दूसरी धारणा पर गौर करें। लोग मानते हैं कि इंसान अपनी मौजूदा ज़िंदगी में जो दुःख-तकलीफें झेलता है, वे सब उसके पिछले जन्म के पापों की सज़ा हैं। मगर क्या यह सच है? चलो एक पल के लिए मान लिया कि एक इंसान ने पिछले जन्म में पाप किया। लेकिन अगर उसे यह नहीं मालूम कि उसने क्या पाप किया, तो भला वह अपने पापों का प्रायश्चित कैसे कर सकता है? या इन तकलीफों से गुज़रकर वह एक अच्छा इंसान कैसे बन सकता है? क्या इस बात में आपको कोई तुक नज़र आता है?
मिसाल के लिए, एक ऐसे बच्चे के बारे में सोचिए, जो बात-बात पर झूठ बोलता है। उसका पिता उसे उसकी गलती बताने के बजाय, बस इतना कहता है कि सुधर जा। इस पर हो सकता है, बेटा खूब मन लगाकर पढ़ाई करे या एक अच्छा बच्चा बनने की कोशिश करे। मगर वह शायद ही झूठ बोलने की अपनी आदत छोड़े। क्योंकि जब तक उसे यह न बताया जाए कि झूठ बोलना गलत है, तब तक उसे अपनी गलती का एहसास कैसे होगा? तो क्या पिता का बेटे के साथ इस तरह पेश आना सही है? पिछले जन्म के पापों की वजह से दुःख भोगने के बारे में एक स्त्री कहती है: “यह कहाँ का न्याय है कि मैं ज़िंदगी-भर उन पापों की सज़ा भुगतूँ, जिनके बारे में मुझे खबर तक नहीं। लेकिन मैं करूँ भी तो क्या, मेरे माथे पर जो लिखा है, उसे तो मैं मिटा नहीं सकती।”
भाग्य पर विश्वास करने के और भी दूसरे नुकसान हैं। जब लोगों पर कोई मुसीबत आती है या उनके साथ नाइंसाफी की जाती है, तो उनमें से कुछ शायद कहें: ‘अब क्या करें, यह तो मेरे भाग्य में ही लिखा था।’ जबकि दूसरे मानते हैं कि बढ़-चढ़कर पूजा पाठ करने, तावीज़ पहनने या खिड़की-दरवाज़े या पलंग की दिशा बदलने से वे अपना भाग्य बदल सकते हैं। नतीजा, इसमें लोगों का काफी पैसा खर्च हो जाता है। यहाँ तक कि वे बेईमान या ढोंगी लोगों के हाथों लुट जाते हैं।
दुःख-तकलीफों की असली वजहें
भाग्य और “पिछले जन्म” के पापों के विषय में पवित्र शास्त्र, बाइबल क्या कहती है? बाइबल ज़ोर देकर कहती है: “जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, . . . जो काम तुझे मिले उसे अपनी शक्ति भर करना, क्योंकि अधोलोक [या कब्र] में जहां तू जानेवाला है, न काम न युक्ति न ज्ञान और न बुद्धि है।” (सभोपदेशक 9:5, 10) दूसरे शब्दों में कहें तो जब एक इंसान मर जाता है, तो वह न कुछ सोच सकता है और न कुछ कर सकता है। उसमें कोई अमर आत्मा नहीं होती। इसलिए उसका पुनर्जन्म होना नामुमकिन है।
तो फिर, ऐसा क्यों होता है कि कुछ लोगों पर मुसीबतें आती हैं, जबकि दूसरों पर नहीं? इसकी पहली वजह बाइबल की किताब, सभोपदेशक 9:11 में बतायी गयी है: “सब [मनुष्य] समय और संयोग के वश में [हैं]।” अकसर लोग किसी हादसे के शिकार इसलिए होते हैं, क्योंकि वे गलत समय पर गलत जगह मौजूद होते हैं। आइए शुरू में बताए उदाहरण पर दोबारा गौर करें। हर रोज़, किसी-न-किसी वजह से लोगों की बस, हवाई जहाज़ या ट्रेन छूट जाती है। जब कोई बड़ा हादसा नहीं होता, तो ये लोग इस बारे में सोचते तक नहीं। लेकिन जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है, तो रह-रहकर उनके मन में बस यही खयाल आता है कि वे उस हादसे से इसलिए बच गए, क्योंकि अभी उनके भाग्य में मौत नहीं लिखी थी।
दुःख-तकलीफों की दूसरी वजह खुद इंसान हैं। सभोपदेशक 8:9 (बुल्के बाइबिल) कहता है: “मनुष्य दूसरों पर अधिकार जताता और उन्हें हानि पहुँचाता है।” कुछ सत्ताधारी लोग अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करते हैं और इसका अंजाम जनता जनार्दन को भुगतना पड़ता है। इतना ही नहीं, एक इंसान जिस तरह अपनी ज़िंदगी जीता है, उसका भी उस पर असर पड़ता है। मिसाल के लिए, बुरी आदतों की वजह से एक इंसान की सेहत बिगड़ सकती है और उसके गलत स्वभाव की वजह से दूसरों के साथ उसके रिश्ते में दरार पड़ सकती है। गलतियों 6:7 कहता है: “मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।”
दुःख-तकलीफों की तीसरी वजह यह है कि हम इस दुनिया के “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। आज से करीब दो हज़ार साल पहले, जब परमेश्वर का बेटा यीशु इस धरती पर था, तब उसने इन अंतिम दिनों के बारे में कहा था: “जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और जगह जगह अकाल पड़ेंगे, और भुईंडोल होंगे। . . . अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा।” (2 तीमुथियुस 3:1; मत्ती 24:3, 7, 12) दुनिया के हालात बद-से-बदतर होते जा रहे हैं, साथ ही खून-खराबा और कुदरती आफतें भी बढ़ रही हैं। इसलिए आज हमें पहले से कहीं ज़्यादा मुसीबतें झेलनी पड़ रही हैं।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इंसान का भविष्य अंधकार में है। अंतिम दिनों में क्या-क्या होगा, इसका ब्यौरा देने के बाद यीशु ने कहा: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा। और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती 24:13, 14) यहाँ जिस राज्य की बात की गयी है, वह एक ऐसी सरकार है जो परमेश्वर ने स्वर्ग में बनायी है और उसने यीशु मसीह को उसका राजा ठहराया है। जल्द ही परमेश्वर का यह राज्य धरती पर से सारी बुराइयों को खत्म कर देगा। इस तरह, वह संसार की सारी व्यवस्थाओं को भी मिटा देगा। उस वक्त, ज़िंदगी वाकई जीने लायक होगी! बाइबल कहती है: ‘परमेश्वर, मनुष्यों की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा और इसके बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।’ (प्रकाशितवाक्य 21:4) है ना यह एक खुशखबरी!
आपका भविष्य किस बात से तय होता है?
अगर हम परमेश्वर के राज्य से मिलनेवाली इन आशीषों का आनंद उठाना चाहते हैं, तो हमें क्या करना होगा? बाइबल साफ-साफ कहती है: “संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।” (1 यूहन्ना 2:17) जो लोग परमेश्वर की इच्छा पर चलते हैं, यानी ऐसे काम करते हैं जो परमेश्वर उनसे चाहता है, उन लोगों के आगे एक बढ़िया आशा है। वह है, परमेश्वर के राज्य की प्रजा बनकर इस धरती पर हमेशा-हमेशा के लिए जीना। लेकिन परमेश्वर की इच्छा पर चलने के लिए, आपको सबसे पहले यह जानना होगा कि उसकी इच्छा क्या है। इसलिए यीशु ने कहा था: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत [या एकमात्र] सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्ना 17:3) बाइबल का अध्ययन करने के ज़रिए आप जान सकते हैं कि सच्चा परमेश्वर यहोवा आपसे क्या चाहता है और यीशु मसीह की शिक्षाएँ क्या हैं। हमेशा की ज़िंदगी पाने का यह पहला और ज़रूरी कदम है।
तो फिर साफ ज़ाहिर है कि आपका भविष्य, भाग्य से तय नहीं होता। इसके बजाय, आप आज जो फैसले करते हैं, उनसे आपका भविष्य तय होता है। इसलिए परमेश्वर ने बाइबल के एक लेखक के ज़रिए उकसाया: “मैं आज आकाश और पृथ्वी दोनों को तुम्हारे साम्हने इस बात की साक्षी बनाता हूं, कि मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिये तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें।” (व्यवस्थाविवरण 30:19) हमारी आपसे गुज़ारिश है कि आप बाइबल का अध्ययन करने और परमेश्वर की इच्छा पर चलने का फैसला करें, ताकि आप भी अनंत जीवन पाने और हमेशा-हमेशा के लिए खुश रहने की आशा पा सकें!
यहोवा के साक्षियों को आपके साथ बाइबल का अध्ययन करने में बेहद खुशी होगी और इसके लिए वे आपसे पैसे नहीं लेंगे। कृपया नीचे दिए किसी भी नज़दीकी पते पर हमें लिखिए।
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इस ट्रैक्ट में द होली बाइबल हिन्दी—ओ.वी. इस्तेमाल की गयी है।