बाइबल की किताब नंबर 40—मत्ती
लेखक: मत्ती
लिखने की जगह: पैलिस्टाइन
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 41
कब से कब तक का ब्यौरा: सा.यु.पू. 2-सा.यु. 33
अदन में हुई बगावत के समय, यहोवा ने एक वादा किया था, जिससे पूरी मानवजाति को तसल्ली मिलती है। वह वादा क्या था? यही कि यहोवा अपनी “स्त्री” के वंश के ज़रिए धार्मिकता से प्यार करनेवाले सभी इंसानों को छुटकारा दिलाएगा। उसने ठहराया था कि यह वंश या मसीहा इस्राएल जाति से आएगा। जैसे-जैसे सदियाँ गुज़रती गयीं, यहोवा ने इब्रानी लेखकों को वंश के बारे में ढेरों भविष्यवाणियाँ दर्ज़ करने के लिए प्रेरित किया। ये भविष्यवाणियाँ बताती हैं कि वह वंश, परमेश्वर के राज्य का शासक होगा और यहोवा के नाम पर लगे कलंक को हमेशा के लिए मिटाकर उसे पवित्र करेगा। इब्रानी लेखकों ने उस वंश के बारे में बहुत-सी जानकारी दीं, जो आगे चलकर यहोवा की हुकूमत को बुलंद करता और इंसानों को खौफ, ज़ुल्म, पाप और मौत से छुटकारा दिलाता। इब्रानी शास्त्रों की लिखाई पूरी होते-होते, यहूदियों के दिल में मसीहा के आने की उम्मीद ने मज़बूती से जड़ पकड़ ली थी।
2 इस दरमियान दुनिया में कुछ बदलाव हो रहे थे। परमेश्वर ने मसीहा के प्रकट होने की तैयारी में देशों का रुख इस तरह मोड़ा कि इस घटना की खुशखबरी दूर-दूर तक फैलाने के लिए हालात एकदम सही थे। वह कैसे? पाँचवीं विश्वशक्ति यूनान की बदौलत देश-देश में यूनानी भाषा बोली जाने लगी। छठी विश्वशक्ति रोम ने अपने अधीन देशों को एक साम्राज्य में बाँधे रखा। उसने सड़कें बनवायीं, जिससे साम्राज्य के किसी भी हिस्से में जाना मुमकिन हो सका। इसके अलावा, बहुत-से यहूदी, रोमी साम्राज्य में फैले हुए थे। इसलिए गैर-यहूदियों को पता चला कि यहूदी, मसीहा के आने की आस लगाए हुए हैं। अदन में किए गए वादे के 4,000 से भी ज़्यादा साल बीतने पर आखिरकार मसीहा प्रकट हुआ! जिस वंश का यहूदियों को बरसों से इंतज़ार था, वह आ ही गया! उसके बाद, मसीहा ने धरती पर पूरी वफादारी से अपने पिता की मरज़ी पूरी की। उसकी सेवा के दौरान जो घटनाएँ घटीं, वे इतिहास में अब तक की सबसे अहम घटनाएँ हैं।
3 एक बार फिर, वक्त आ चुका था कि इन अहम घटनाओं को ईश्वर-प्रेरणा से दर्ज़ किया जाए। यहोवा की आत्मा ने चार वफादार पुरुषों को अपना-अपना ब्यौरा लिखने के लिए उभारा। इस तरह चार लोगों ने अपनी-अपनी गवाही पेश की कि यीशु ही मसीहा, वादा किया गया वंश और राजा था। और उन्होंने यीशु की ज़िंदगी, उसकी सेवा, मौत और पुनरुत्थान के बारे में ब्यौरेवार जानकारी दी। इन ब्यौरों को “सुसमाचार की किताबें” कही जाती हैं। हालाँकि इन चारों किताबों में कुछ समानताएँ हैं और कई जगहों पर इनमें एक-जैसी घटनाएँ दी गयी हैं, मगर ये किताबें एक-दूसरे की नकल नहीं हैं। सुसमाचार की पहली तीन किताबों को अकसर समदर्शी (मतलब, “जिनका एक-सा नज़रिया हो”) कहा जाता है, क्योंकि वे धरती पर यीशु की ज़िंदगी के बारे में करीब-करीब एक-जैसा ब्यौरा देते हैं। लेकिन सभी लेखक यानी मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना अपने अंदाज़ में मसीहा की कहानी बयान करते हैं। हरेक ने एक खास विषय, मकसद और अपने पढ़नेवालों को ध्यान में रखकर किताब लिखी है। और उनकी किताबों से उनकी शख्सियत की साफ झलक मिलती है। हम जितना ज़्यादा इन किताबों का अध्ययन करेंगे, उतना ज़्यादा हम इनकी खासियतों को समझ पाएँगे। हम यह भी समझ पाएँगे कि बाइबल की इन चारों ईश्वर-प्रेरित किताबों में यीशु की ज़िंदगी के ब्यौरे एक-दूसरे से हटकर हैं और एक-दूसरे से बढ़िया मेल भी खाते हैं। यहाँ तक कि अगर एक किताब में कोई जानकारी नहीं दी गयी है, तो दूसरी किताब में वह जानकारी देकर पूरी तसवीर पेश की गयी है।
4 मसीह के बारे में सुसमाचार लिखनेवाला सबसे पहला था, मत्ती। उसका नाम मत्ती शायद इब्रानी “मत्तित्याह” का छोटा रूप है, जिसका मतलब है, “यहोवा का वरदान।” वह उन बारहों में से एक था, जिन्हें यीशु ने प्रेरित होने के लिए चुना था। जब यीशु ने पैलिस्टाइन देश में जगह-जगह जाकर परमेश्वर के राज्य के बारे में प्रचार किया और लोगों को सिखाया, तब उस दौरान मत्ती का यीशु के साथ नज़दीकी रिश्ता था। यीशु का चेला बनने से पहले, मत्ती महसूल लेनेवाला था। यह एक ऐसा पेशा था, जिससे यहूदी सख्त नफरत करते थे। क्योंकि इससे उन्हें बार-बार एहसास कराया जाता था कि वे आज़ाद नहीं, बल्कि रोमी साम्राज्य के गुलाम हैं। मत्ती को लेवी के नाम से भी जाना जाता था और वह हलफई का पुत्र था। जब यीशु ने उसे अपने पीछे आने का न्यौता दिया, तो वह फौरन उसके पीछे हो लिया।—मत्ती 9:9; मर. 2:14; लूका 5:27-32.
5 मत्ती की किताब में कहीं भी उसे इसका लेखक नहीं बताया गया है। मगर, पहली सदी में मसीहियत का अध्ययन करनेवाले इतिहासकार पुख्ता करते हैं कि मत्ती ही इसका लेखक है। उन्होंने जिस तरह साफ शब्दों में और एकमत होकर मत्ती को उसकी किताब का लेखक बताया, उस तरह शायद ही किसी प्राचीन किताब के लेखक के बारे में उन्होंने ऐसा कहा हो। हाइरापोलिस के रहनेवाले पेपीअस के समय (सा.यु. दूसरी सदी की शुरूआत) से, हमारे पास ऐसे कई कदीमी गवाह हैं, जो बताते हैं कि मत्ती ने ही यह किताब लिखी थी और उसकी किताब सच्ची है और परमेश्वर के वचन का हिस्सा है। मैकक्लिंटॉक और स्ट्रॉन्ग की साइक्लोपीडिया कहती है: “जस्टिन मार्टर, डीओग्नेटस को खत लिखनेवाला (ऑटो की किताब, जस्टिन मार्टर का भाग 2 देखिए), हजेसिपस, आइरीनियस, टेशन, अथेनागोरस, थियॉफिलस, क्लैमेंट, टर्टलियन और ऑरिजन, सभी ने मत्ती की किताब से हवाले दिए हैं।”a इसके अलावा, मत्ती एक प्रेरित था और उस पर परमेश्वर की आत्मा थी, इस बात से भी पुख्ता होता है कि उसने जो कुछ लिखा, वह सौ-फीसदी सच है।
6 मत्ती ने अपनी किताब पैलिस्टाइन में लिखी थी। हालाँकि यह नहीं कहा जा सकता कि इसे ठीक कब लिखा गया था, लेकिन (सा.यु. दसवीं सदी के बाद की) कुछ हस्तलिपियों के आखिर में दी जानकारी बताती है कि यह सा.यु. 41 में लिखी गयी थी। इस बात के भी सबूत मौजूद हैं कि मत्ती ने सुसमाचार की अपनी किताब सबसे पहले, उस ज़माने की इब्रानी भाषा में लिखी थी और बाद में उसे यूनानी में अनुवाद किया था। जेरोम अपनी किताब डे वेरिस इनलस्ट्रीबस (मशहूर हस्तियों के बारे में) के अध्याय तीन में कहते हैं: “मत्ती, जो कर वसूल करनेवाले से एक प्रेरित बना और जिसे लेवी भी बुलाया जाता था, उसने यहूदिया में मसीह के बारे में सुसमाचार की किताब लिखी। और उसने सबसे पहले खतना किए लोगों को ध्यान में रखकर इब्रानी भाषा और शैली में यह किताब लिखी।” जेरोम आगे बताते हैं कि मत्ती के सुसमाचार का इब्रानी पाठ उनके दिनों (सा.यु. चौथी और पाँचवीं सदी) में कैसरिया में पमफलस की लाइब्रेरी में महफूज़ रखा गया था।
7 तीसरी सदी की शुरूआत में यूसेबियस ने सुसमाचार की किताबों पर चर्चा करते वक्त ऑरिजन का हवाला दिया। उसने कहा कि सुसमाचार की “पहली किताब . . . मत्ती ने रची थी, . . . जिसने यहूदी धर्म के माननेवालों के लिए इसे इब्रानी भाषा में लिखा था।”b मत्ती की किताब खासकर यहूदियों को ध्यान में रखकर लिखी गयी थी, यह बात इसमें दी वंशावली से पता चलती है। यह वंशावली दिखाती है कि यीशु इब्राहीम के वंश में पैदा हुआ था और वह दाऊद के सिंहासन का कानूनी वारिस था। एक और बात से पता चलता है कि यह किताब खासकर यहूदियों के लिए लिखी गयी थी। वह यह कि इसमें कई बार इब्रानी शास्त्र से वे हवाले दिए गए हैं, जिनमें मसीहा के आने के बारे में बताया गया था। यह मानना भी सही होगा कि मत्ती ने इब्रानी शास्त्र की आयतों का हवाला देते वक्त जहाँ कहीं परमेश्वर का नाम आया होगा, वहाँ इब्रानी में परमेश्वर के नाम के चार अक्षरों का इस्तेमाल ज़रूर किया होगा। इसलिए न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन बाइबल में मत्ती की किताब में 18 बार यहोवा का नाम आता है, ठीक जैसे मत्ती किताब के पहले इब्रानी संस्करण में आता है, जिसे 19वीं सदी में विद्वान, एफ. डीलिश ने तैयार किया था। परमेश्वर के नाम के बारे में मत्ती का नज़रिया बिलकुल यीशु की तरह था। उस वक्त यहूदियों में परमेश्वर के नाम को इस्तेमाल न करने का अंधविश्वास फैला हुआ था। लेकिन मत्ती इस वजह से परमेश्वर का नाम इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटा।—मत्ती 6:9; यूह. 17:6, 26.
8 मत्ती, पेशे से महसूल लेनेवाला था, इसलिए यह लाज़िमी है कि उसने पैसों, पैसों की कीमत और आँकड़ों का खुलकर ज़िक्र किया। (मत्ती 17:27; 26:15; 27:3) वह इस बात के लिए बहुत एहसानमंद था कि परमेश्वर की दया की वजह से उसके जैसे एक तुच्छ महसूल लेनेवाले को सुसमाचार का प्रचारक और यीशु का एक करीबी साथी बनने का मौका मिला। इस वजह से हम देख सकते हैं कि सुसमाचार के सभी लेखकों में से सिर्फ मत्ती ने यीशु की बार-बार दोहरायी इस बात को दर्ज़ किया कि बलिदान करने के अलावा, दया दिखाना भी ज़रूरी है। (9:9-13; 12:7; 18:21-35) यहोवा की अपार कृपा से मत्ती को बहुत ढाढ़स मिला। इसलिए उसने यीशु के कुछ ऐसे शब्द दर्ज़ किए, जो बहुत सांत्वना देते हैं। जैसे: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।” (11:28-30) ज़रा सोचिए, यीशु के इन प्यार-भरे शब्दों से मत्ती को कितना विश्राम और राहत मिली होगी, जबकि उसे अपने जातिभाइयों से अपमान और दुतकार के सिवा कुछ नहीं मिला था।
9 मत्ती ने “स्वर्ग के राज्य” पर ज़ोर दिया, जो यीशु की शिक्षा का खास विषय था। (4:17) मत्ती के लिए यीशु एक प्रचारक और राजा था। मत्ती ने “राज्य” शब्द का इस्तेमाल इतनी बार (50 दफे से ज़्यादा) किया कि उसके सुसमाचार की किताब को ‘राज्य का सुसमाचार’ कहा जा सकता है। उसने यीशु के भाषणों और उपदेशों को सिलसिलेवार ढंग से ज़्यादा तर्क के मुताबिक पेश करने पर ध्यान दिया। उसने पहले 18 अध्यायों में राज्य के विषय पर ज़ोर दिया, इसलिए उसने घटनाओं को क्रम से पेश नहीं किया। लेकिन आखिर के 10 अध्यायों (19 से 28) में राज्य पर ज़ोर देने के साथ-साथ उसने घटनाओं को क्रम से दर्ज़ किया।
10 मत्ती की किताब की 42 प्रतिशत जानकारी बाकी तीन सुसमाचार की किताबों में नहीं पायी जाती।c इसमें कम-से-कम दस नीतिकथाएँ या दृष्टांत दिए गए हैं। जैसे, खेत में जंगली बीज (13:24-30), छिपे हुए धन (13:44), बहुमूल्य मोती (13:45, 46), बड़े जाल (13:47-50), निर्दयी दास (18:23-35), मज़दूर और दीनार (20:1-16), पिता और दो बेटे (21:28-32), राजा के बेटे के ब्याह (22:1-14), दस कुँवारियों (25:1-13), और तोड़ों (25:14-30) का दृष्टांत। कुल मिलाकर, यह किताब सा.यु.पू. 2 से लेकर सा.यु. 33 तक का ब्यौरा देती है। यानी इसमें यीशु के जन्म से लेकर उस समय तक की जानकारी दी गयी है, जब यीशु स्वर्ग लौटने से पहले अपने चेलों से आखिरी बार मिला था।
क्यों फायदेमंद है
29 सुसमाचार की चारों किताबों में पहली किताब मत्ती, सचमुच इब्रानी शास्त्र और मसीही यूनानी शास्त्र को बेहतरीन तरीके से जोड़ती है। यह बिलकुल साफ तरीके से बताती है कि मसीहा और परमेश्वर के राज्य का राजा कौन है। साथ ही, यह बताती है कि उसके चेले बनने की क्या माँगें हैं और उनको इस धरती पर क्या काम करना है। सबसे पहले, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने, फिर यीशु ने और आखिर में उसके चेलों ने यह प्रचार किया कि “स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” लेकिन यह काम आज जगत के अंत से पहले भी किया जाना है, क्योंकि यीशु ने हुक्म दिया था: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” वाकई, राज्य के प्रचार में हिस्सा लेना एक बड़ा और अनोखा सम्मान था और अभी-भी है। इस काम में ‘सब जातियों के लोगों को चेला बनाना’ भी शामिल है, ठीक जैसे हमारे स्वामी, यीशु ने किया था।—3:2; 4:17; 10:7; 24:14; 28:19.
30 मत्ती की किताब को वाकई “सुसमाचार” की किताब कहा जा सकता है। सामान्य युग पहली सदी में, इसके संदेश को कबूल करनेवालों के लिए यह “सुसमाचार” साबित हुआ। इतना ही नहीं, यहोवा परमेश्वर ने मुमकिन किया है कि यह “सुसमाचार” हमारे समय तक महफूज़ रहे। सुसमाचार की इस किताब में दिए ज़बरदस्त संदेश का उन लोगों ने भी लोहा माना है, जो मसीही नहीं हैं। मिसाल के लिए, हिंदू नेता मोहनदास (महात्मा) गांधी ने भारत के भूतपूर्व वाइसरॉय लॉर्ड अरविन से कहा था: “अगर आपका देश और मेरा देश मिलकर, मसीह की उन शिक्षाओं पर चलेंगे, जो उसने पहाड़ी उपदेश में दी थीं, तो हम न सिर्फ हमारे देशों की, बल्कि पूरे संसार की समस्याओं का हल कर लेंगे।”d एक दूसरे मौके पर गांधी ने कहा था: “पहाड़ी उपदेश में दी शिक्षाओं को अपने दिलो-दिमाग में बैठा लो। . . . क्योंकि ये शिक्षाएँ हममें से हरेक के लिए हैं।”e
31 लेकिन आज पूरी दुनिया में, यहाँ तक कि ईसाई देशों में भी समस्याएँ खत्म नहीं हुई हैं। सिर्फ मुट्ठी-भर सच्चे मसीही ही पहाड़ी उपदेश और मत्ती में दी गयी दूसरी बुद्धि-भरी सलाहों को अनमोल समझते, उनका अध्ययन करते और उन्हें ज़िंदगी में लागू करते हैं। इससे उन्हें बेहिसाब फायदे मिल रहे हैं। यीशु ने कई मामलों के बारे में बढ़िया सलाहें दी थीं। जैसे सच्ची खुशी पाना, नैतिकता और शादी, प्रेम की ताकत, परमेश्वर को भानेवाली प्रार्थना, आध्यात्मिक आदर्शों और ऐशो-आराम की चीज़ों के बारे में नज़रिया, पहले राज्य की खोज करना, पवित्र चीज़ों के लिए आदर होना, सतर्क रहना और आज्ञा मानना। इन सलाहों का बार-बार अध्ययन करना फायदेमंद है। मत्ती अध्याय 10 में यीशु उन लोगों को हिदायतें देता है, जो “स्वर्ग के राज्य” की खुशखबरी सुनाने का ज़िम्मा अपने कंधों पर लेते हैं। यीशु के कई दृष्टांतों से उन सबको ज़रूरी सबक मिलते हैं, जिनके पास ‘सुनने के लिए कान हैं।’ इसके अलावा, यीशु ने जो-जो भविष्यवाणियाँ कीं, जैसे कि ‘अपनी उपस्थिति के चिन्ह’ के बारे में दी उसकी ब्यौरेवार भविष्यवाणी, उनसे भविष्य को लेकर मज़बूत विश्वास और आशा पैदा होती है।—5:1–7:29; 10:5-42; 13:1-58; 18:1–20:16; 21:28–22:40; 24:3–25:46.
32 मत्ती की सुसमाचार की किताब ऐसी ढेरों भविष्यवाणियों से भरी पड़ी है, जो पूरी हो चुकी हैं। इनकी पूर्ति दिखाने के मकसद से मत्ती ने ईश्वर-प्रेरित इब्रानी शास्त्र से कई हवाले दिए। ये भविष्यवाणियाँ इस बात का सबूत देती हैं कि यीशु ही मसीहा है। क्योंकि जिस तरह इन भविष्यवाणियों की एक-एक बात पूरी हुई है, उनको पहले से तय करना नामुमकिन था। मिसाल के लिए, मत्ती 13:14, 15 की तुलना यशायाह 6:9, 10 से; मत्ती 21:42 की भजन 118:22, 23 से और मत्ती 26:31, 56 की जकर्याह 13:7 से कीजिए। इन भविष्यवाणियों से हमें इस बात का भी पक्का भरोसा मिलता है कि “स्वर्ग के राज्य” के बारे में यहोवा का शानदार मकसद पूरा होने के साथ-साथ मत्ती ने यीशु के बारे में जितनी भी भविष्यवाणियाँ दर्ज़ की हैं, वे सब-की-सब पूरी होंगी।
33 परमेश्वर ने अपने राज्य के राजा की ज़िंदगी की एक-एक बात की क्या ही अचूक भविष्यवाणी की! और मत्ती ने ईश्वर-प्रेरणा से इन भविष्यवाणियों के पूरा होने का क्या ही अचूक रिकॉर्ड दर्ज़ किया! जब धार्मिकता से प्यार करनेवाले, मत्ती की किताब में दी सभी भविष्यवाणियों और वादों के पूरा होने पर मनन करेंगे, तो वे यह ज्ञान और आशा पाकर खुशी से झूम उठेंगे कि यहोवा “स्वर्ग के राज्य” के ज़रिए अपने नाम को पवित्र करनेवाला है। यीशु की बागडोर में यह राज्य नम्र और आध्यात्मिक तौर पर भूखे इंसानों पर बेशुमार आशीषें और खुशियाँ बरसाएगा। यह उस समय होगा “जब सब कुछ फिर नया हो जाएगा और मनुष्य का पुत्र अपने महिमामय सिंहासन पर बैठेगा।” (मत्ती 19:28, NHT) ये सारी बातें “मत्ती रचित सुसमाचार” में दर्ज़ हैं, जिन्हें पढ़कर सचमुच हमारा हौसला बढ़ता है।
[फुटनोट]
a सन् 1981 में दोबारा छापी गयी, पाँचवाँ भाग, पेज 895.
b चर्च का इतिहास (अँग्रेज़ी), भाग 6, XXV, 3-6.
c सुसमाचार की किताबों के अध्ययन की शुरूआत (अँग्रेज़ी), सन् 1896, बी. एफ. वेस्कॉट, पेज 201.
d मसीही विश्वास का खज़ाना (अँग्रेज़ी), सन् 1949, एस. आय. स्टूबर और टी. सी. क्लार्क द्वारा संपादित, पेज 43.
e महात्मा गांधी के विचार (अँग्रेज़ी), सन् 1930, लेखक सी. एफ. ऐन्ड्रूज़, पेज 96.