क्यों कुछ लोगों ने अपना धर्म परिवर्तन किया
एक व्यक्ति के लिये ऐसा असाधारण कदम उठाने के लिये निश्चित रूप से उसके पास उचित कारण होना चाहिये। उससे उत्पन्न लाभ किसी भी हानि से प्रबल होना चाहिये।
क्या आप अपने सृष्टिकर्त्ता को जानने और उसके साथ सम्बन्ध बढ़ाने को अच्छा कारण मानते हैं? बहुतों के लिये ऐसा ही है। किसी के साथ सम्बन्ध बढ़ाने के लिये हमें उस व्यक्ति को भली प्रकार से जानना चाहिये। उदाहरण के लिये एक छोटा बच्चा किसी अजनबी का हाथ पकड़ने से डरेगा यदि वह उसे नहीं जानता है। हमारे साथ भी यही है, परमेश्वर पर भरोसा करने से पहले हमें उसे जानना चाहिये। यह सच है कि अधिकांश धर्मों में एक केन्द्रीय बिन्दु होता है जिसकी वे परमेश्वर के समान अराधना करते हैं, परन्तु क्या यह भी सही नहीं है कि अनेकों के लिये परमेश्वर अस्पष्ट और दूरगामी है जिसका कोई स्पष्ट व्यक्तित्व नहीं? अतः हम कैसे उसे जान सकते हैं?
जब हम अपने आसपास की चीजों पर दृष्टि डालते हैं हम उन्हें देखकर विस्मित हो जाते हैं हमें सुन्दरता बुद्धिमत्ता और शक्ति का पता लगता है। इन सब का उद्गम बहुतों को व्याकुल कर देता है, लेकिन एक पुस्तक है जो इसकी स्पष्ट व्याख्या करती है। यह पुस्तक बाइबल है। इसे पढ़कर हम सीखते हैं कि यह सारे आश्चर्य एक सृष्टिकर्ता से उत्पन्न हुए हैं जिसका एक नाम और विशिष्ट व्यक्तित्व है। जैसे हम बाइबल का सावधानीपूर्वक अध्ययन करते हैं, परमेश्वर का व्यक्तित्व हमारे लिये अधिक स्पष्ट होता चला जाता है। हम उसे प्रेमी और पालन-पोषण करने वाला पाते हैं। बाइबल कहती है, “परमेश्वर प्रेम है।” (१ यूहन्ना ४:८) हम इस अद्भुत व्यक्तित्व की ओर खिंचते चले जाते हैं, जो प्रेम, बुद्धि, न्याय और शक्ति में सिद्धता के स्तर तक सन्तुलित है। और एक निकट सम्बन्ध बनता चला जाता है।
मीसाय को यहोवा की ओर खिंचने का कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ। वह बताती है: “बचपन में मुझे सिखाया गया था कि बहुत से ईश्वरों का अस्तित्व है। पानी के लिये ईश्वर, वृक्षों के लिये ईश्वर और घर के लिये भी एक ईश्वर। जबकि मुझे उनके अस्तित्व पर भी सन्देह था। मैं विश्वास करती थी कि सच्चा ईश्वर एक ही होना चाहिये। मेरे बौद्ध-शिन्टो संस्कार मेरे लिये ईश्वर को डरावना बनाते, जो गलतियों के लिये दण्ड देने को तत्पर रहता। यद्यपि मेरी इच्छा थी कि चर्च जाकर मसीहियों के ईश्वर के बारे में जानकारी प्राप्त करूं परन्तु मेरी बौद्ध पृष्ठभूमि मुझे ऐसा करने से रोकती। तब एक महिला मेरे घर पर आयी और मुझे बाइबल अध्ययन करने का आग्रह किया। इस अध्ययन के दौरान मुझे ज्ञात हुआ कि परमेश्वर का एक नाम है, यहोवा। यह जानकर मैं पुलकित हो गई कि वह डरावना ईश्वर नहीं है, लेकिन प्रेम रखने वाला है, हमेशा हमारे ऊपर ध्यान देता है दण्ड देने के लिये नहीं परन्तु सहायता करने के लिये। मैं इस ईश्वर की सेवा करना चाहती थी और इसलिये मैंने अपना धर्म परिवर्तन किया।” वह परमेश्वर के साथ एक सन्तोषजनक सम्बन्ध का आनन्द ३० वर्षों से उठा रही है।
सम्बन्ध जो स्वतन्त्रता और आशा देता है
परमेश्वर के साथ सम्बन्ध बढ़ाने पर बहुतों को अन्य लाभ भी हुये हैं। जैसे उनके जीवन में दूसरे सम्बन्धों का महत्व कम होता जाता है। बहुतों ने मनुष्यों के भय से और विरोधी परम्पराओं के चोले को बनाये रखने के दुःखदायी मूल्य से स्वतन्त्र हुये हैं जो उन्हें ऋणी बना देते हैं। बाइबल चेतावनी देती है: “मनुष्य का भय खाना फंदा हो जाता है,” और सान्त्वना भी देती है, “जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह बचाया जायेगा।”—नीतिवचन २९:२५.
दूसरे जिस भय से मुक्ति मिलती है वह है मृत्यु का भय। ऊपर उल्लिखित मीसाय कहती है: “जब मैं २२ वर्ष की थी मुझे टायफाईड ज्वर हो गया था। जब मैं अर्ध-चेतन अवस्था में पड़ी रहती थी, व मित्रों और परिवार के सदस्यों को अपने बारे में बातें करते सुनती, जैसे वे मेरी मृत्यु की अपेक्षा कर रहे थे। परन्तु मुझे मृत्यु से भय लगता। मेरा एक ही विचार था कि में जीना चाहती थी, और संयोगवश में ठीक होने लगी। बाद में, अपने बाइबल अध्ययन के दौरान मुझे मृत्यु के भय से छुटकारा मिला। मैंने सीखा कि मृत्यु अल्पकाल के लिये है। बाइबल कहती है, “परन्तु मरे हुये कुछ नहीं जानते।” (सभोपदेशक ९:५, १०) यदि कोई मर जाता है उसे पुनरुत्थान की अद्भुत आशा है क्योंकि परमेश्वर मृतकों को अपनी स्मृति में जीवित रखता है।—यूहन्ना ५:२८, २९.
बहुत से अन्य लोगों ने जिन्होंने बाइबल अध्ययन किया यह पाया कि जो बातें उन्होंने सीखीं उससे उन्हें जीवन का वास्तविक अर्थ और आशा मिली। बाइबल लिखे जाने का एक कारण यह भी है कि “हम आशा रखें” (रोमियों १५:४) बुद्धों में ईश्वर के बारे में कुछ नहीं सिखाया जाता। उसमें कहा गया है कि दुष्टता और पीड़ा का हमेशा अस्तित्व रहा है और पुनर्जन्म के अन्तहीन चक्र द्वारा हमेशा जारी रहेगा। अधिकांश पश्चिमी धर्म सिखाते हैं कि अच्छे लोग, एक अनिश्चित स्थान, स्वर्ग में जायेंगे, लेकिन वे इस बात से निश्चित नहीं हैं कि वे वहाँ क्या करेंगे। ये सब धार्मिक दार्शनिकताएँ जो जीवन को बहुत कम महत्व या आशा देती है के ठीक विपरीत बाइबल सिखाती है कि मनुष्य को इस पृथ्वी के देखभालकर्ता के रूप में उस पर हमेशा आनन्दपूर्वक जीने के लिये बनाया गया था। (उत्पत्ति २:१५-१७; यशायाह ४५:१८) इस प्रकार से हमने यह जाना है कि जीवन को मात्र चीज़ों पर अधिकार जमाने या स्वार्थपूर्ति के लिये नहीं परन्तु परमेश्वर और अन्य लोगों की सेवा में निःस्वार्थ भाव से बिताना चाहिये।—सभोपदेशक १२:१३; मत्ती २२:३७-३९.
सच्चाई और सच्चे मित्रों को पाना
कुछ लोग अपने ही धर्म पर किन्ही कारणवश दोषारोपण करने को बाध्य हो जाते हैं उनके अन्दर धार्मिक सच्चाइयों को खोजने की इच्छा होती है। और वास्तव में अनेक लोग महसूस करते हैं कि ऐसा कोई तत्व पूर्ण सत्य के रूप में उपलब्ध नहीं है जैसे कि बाइबल उनके बारे में कहती है कि वे ‘कोई खोज नहीं करते।’—भजन संहिता १०:४.
परन्तु ऐसे लोग हैं जो इस तरह की खोजबीन करते हैं। साकेई थे, जो मध्य जापान में रहती है बुद्ध पेय से अन्य धर्मों में जाकर २५ वर्षों तक सत्य की खोज की। वह कभी सन्तुष्ट नहीं हुई। जैसे वह प्रत्येक संस्था में उच्च स्थान पाती, उसे ठोकर खाने जैसी बातें पता चलती, जैसे वाणिज्यवाद, अनैतिकता और फूट। उसने बौद्धवाद के मूल की खोज में भारत की यात्रा भी की, उन स्थानों की जहाँ बौद्ध रहते और शिक्षा देते थे। वह हिन्दुओं के देश में, बौद्ध धर्म के बारे में अत्यन्त क्षीण रुचि देखकर बड़ी निरुत्साहित हुई। तब यहोवा के गवाहों के साथ हुए वार्तालाप में, उसे कहा गया कि सब धर्म परमेश्वर की ओर से नहीं परन्तु उसके शत्रु शैतान की ओर से हैं।—१ कुरिन्थियों १०:२०.
इससे साकेई को बड़ा धक्का पहुँचा, परन्तु वह इससे सोचने और खोजबीन करने को भी बाध्य हुई। उसने वह पुस्तक पढ़ी व्हाट हेज़ रिलीजन डन फार मेनकाईण्ड?a और अन्य बाइबल साहित्य भी पढ़े। उसे पता चला कि जबकि जापान में बुद्ध धर्म में वर्षोपरान्त बहुत से परिवर्तन हो गये हैं लेकिन बाइबल हजारों वर्ष बाद भी अपरिवर्तित है। अन्ततः उसकी खोज पूरी हुई। उसे वह सच्चाई मिली जिसकी उसे तलाश थी। उसका आनन्द यीशु के समय के उस मनुष्य के समान था जिसे जमीन में गढ़ा खजाना मिल गया: “और मारे आनन्द के जाकर अपना सब कुछ बेच कर उस खेत को मोल लिया।”—मत्ती १३:४४.
जिन्हें धार्मिक सत्य मिल गया है, वे अन्य खोजकर्त्ताओं के लिये भाईचारे की प्रीति दिखाते हैं। (१ पतरस ३:८) वास्तव में उनकी गर्मजोशी और सच्चे प्रेम ने अनेकों को बाइबल अध्ययन करने के लिये आकर्षित किया है। (१ पतरस ३:८) यीशु ने कहा था: “यदि तुम आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो। (यूहन्ना १३:३५) ऐसा प्रेमपूर्ण वातावरण आज हम कहाँ पा सकते हैं? काजूहीको नागोया ने टोकियो के डेली योमियूरी के स्तंभ में टीका करते हुए बताया कि जब वह यहोवा के गवाहों की एक सभा में गया था तब उसका किस गर्मजोशी से स्वागत किया गया था। नागोया ने कहा: “उनकी मुस्कराहट से ऐसा लगता था मानो वे मुझे पिछली सभा से पहचानते थे और फिर से देख कर प्रसन्न थे।” परन्तु यह यहीं तक नहीं था। “मैंने उनकी ओर गहरी नज़र से देखा और पाया कि वह अजनबी थे।” जब दो अन्य लोग भी मुस्कराये, “मुझे बड़ी खुशी हुई। वे इसी प्रकार से अपनी सभाओं में किसी अजनबी को देखकर मुस्कराते हैं।”
गर्मजोशी और प्रेम लोगों का एक दूसरे को अच्छी तरह जानने पर या नियमित रूप से एक दूसरे के साथ इकट्ठा मिलने पर ही उत्पन्न नहीं होते। इसके बजाय ये बाइबल के नियमित अध्ययन और उसके सिद्धान्तों को अपने जीवन में लागू करने पर उत्पन्न होते हैं। अनेक लोग जिन्हें विदेशों में १९८५-८६ के “खराई रखनेवाले” जिला सम्मेलनों में उपस्थित होने का निमन्त्रण दिया गया था, अपने मेजबानों के प्रेम और आतिथ्य से अत्यन्त प्रभावित हुये थे। जापान से एक युगल दम्पत्ती जो फिलीपीन्स के सम्मेलन में उपस्थित हुये थे कहा: “जब हम सब अन्तिम गीत एक साथ अपनी अपनी भाषा में गा रहे थे उससे हमें प्रेरणा मिली, पहली बार हमें महसूस हुआ कि अन्तर्राष्ट्रीय भाईचारे का क्या अर्थ है।”
अन्त में, कई लोग आपको बतायेंगे कि बाइबल अध्ययन करके और उसे लागू करके उन्होंने अपने जीवन में क्या परिवर्तन किया है। भेड़िये समान व्यक्तित्व वाले लोग आज भेड़ समान बन कर मसीही संगठन में इकट्ठा हो रहे हैं। (यशायाह ११:६) कुछ लोग, मूडी, मित्रता विहिन, क्रोधी और डरपोक थे। कुछ लोग अन्तर्मुखी और आत्मकेन्द्रित थे। कुछ लोग निराश से पीड़ित थे। कई लोगों में बुरी आदतें थीं जिन्हें दूर करना था। लेकिन कढ़ा प्रयत्न और साथ में यहोवा को प्रसन्न करने की इच्छा द्वारा, वे इन प्रबल परिवर्तनों को करने में सफल हुये।
आपके बारे में क्या? क्या ऊपर बताये गये कारणों में से कोई आप पर लागू होता है? यदि ऐसा है, हम आपको उत्साह देते हैं कि बाइबल का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करें। बाइबल बताती है कि सब झूठे धर्म परमेश्वर द्वारा नाश किये जाने की कगार पर हैं। जैसे कि पिछले लेख में पायलेट का जिक्र है, आपको अपना और अपने प्रियजनों का जीवन बचाने हेतू शक्तिशाली कदम उठाने की आवश्यकता है। क्योंकि “चौड़ा और चाकल है वह मार्ग जो विनाश की ओर ले जाता है,” यीशु ने कहा, “और बहुतेरे है जो उस पर चलते हैं, परन्तु सकेत है वह फाटक और सकरा है वह मार्ग जो जीवन की ओर ले जाता है।” (मत्ती ७:१३, १४) जी हाँ, यदि आप उस चौड़े और चाकल मार्ग पर जा रहे हैं तो आपके लिये उचित कारण है कि अपना धर्म परिवर्तन कर लें!
[फुटनोट]
a वाच टावर बाइबल एण्ड ट्रेक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।
[पेज 5 पर तसवीरें]
मेरे कठोर बौद्ध-शिण्टो संस्कार, ईश्वर को मेरे लिये भयानक बनाते थे
[पेज 7 पर तसवीरें]
‘सकरा है वह मार्ग जो जीवन की ओर ले जाता है’