क्या डर हमेशा बुरा होता है?
यह खुशी को बर्बाद और आशा को नाश कर सकता है। इसे मानसिक ज़हर, अक़्ल को नाश करनेवाला, कहा गया है, और सबसे बदतर शारीरिक रोग से अधिक विनाशकारी कहा गया है। जी हाँ, डर एक शक्तिशाली भावना है। तो भी, क्या यह हमेशा बुरा होता है?
कल्पना करें कि आप एक अनजानी सड़क पर गाड़ी चला रहे हैं। सड़क पहाड़ों पर चली जाती है और टेढ़ी-मेढ़ी तथा घमावदार हो जाती है। रात होने लगती है, और साथ ही हल्की सी बर्फ़ गिरने लगती है। आपकी कार थोड़ी सी फिसलती है, और आप महसूस करते हैं कि आप एक ऐसी ऊँचाई पर पहुँच गए हैं जहाँ सड़क बर्फ़ीली होती जा रही है।
अब आपको बहुत सावधान रहना होगा। जैसे-जैसे आप सावधानी से गाड़ी को हर बर्फ़ीले मोड़ से निकाल ले जाते हैं, आप विचार करते हैं कि फिसलन भरी जगह पर कार का बेक़ाबू हो जाना और नीचे घाटी में जा गिरना कितना आसान होगा। और, आपको यह भी अन्दाज़ा नहीं कि अँधेरे में और कौन-कौन से ख़तरे छिपे हुए हैं। जैसे ही ऐसे विचार आपके मन में आते हैं, आप का मुँह सूखने लगता है और दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। आप पूरी तरह से चौकन्ना हैं। इस से पहले आप चाहे कुछ भी सोच रहे थे, पर अब आप इस काम में, जो आपके पास है, पूरी तरह व्यस्त हैं: कि कार को सड़क पर रखें और दुर्घटना से बचें।
आख़िरकार, सड़क निम्नतर ऊँचाई पर आती है। यहाँ सड़क पर बत्तियाँ हैं और बर्फ़ भी नहीं है। धीरे-धीरे तनाव आपके शरीर से दूर हो जाता है। आप अपने अंगों को ढीला छोड़ देते हैं और चैन की साँस लेते हैं। व्यर्थ ही इतना सारा डर!
लेकिन क्या वह डर व्यर्थ था? दरअसल नहीं। ऐसी परिस्थितियों में पर्याप्त मात्रा में घबराहट एक सामान्य प्रतिक्रिया है। यह हमें चौकन्ना, सतर्क बनाती है। लाभप्रद डर हमारी सहायता कर सकता है कि हम कोई जल्दबाज़ी न कर बैठें और अपने आप को चोट न पहुँचाएँ। जी हाँ, डर हमेशा बुद्धि नाशक या एक मानसिक ज़हर नहीं है। कुछ परिस्थितियों में यह लाभदायक भी हो सकता है।
बाइबल डर के विषय में बताती है और दो विशेष प्रकार के डर की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है। एक प्रकार का डर तो वास्तव में एक मानसिक ज़हर है। लेकिन दूसरा न केवल सामान्य और लाभप्रद है परन्तु हमारे उद्धार के लिए भी आवश्यक है। ये दो प्रकार के डर कौनसे हैं? और हम एक से बचे रहकर दूसरे को उत्पन्न करने के लिए कैसे सीख सकते हैं? अगले लेख में इस पर विचार किया जाएगा।