क्यों मनुष्यों से नहीं, परमेश्वर से डरें?
“मनुष्य का भय खाना फन्दा हो जाता है, पर जो यहोवा पर भरोसा रखता है उसे सुरक्षित रखा जाएगा।” (नीतिवचन २९:२५, न्यू.व.) इन शब्दों से प्राचीन नीतिवचन हमें इस प्रकार के डर से चौकन्ना करता है जो सचमुच एक मानसिक ज़हर है—मनुष्य का भय। इसकी तुलना एक फंदे से की गयी है। क्यों? क्योंकि एक छोटा जानवर, जैसा ख़रगोश, जब फंदे में फँस जाता है, तब वह असहाय हो जाता है। वह भाग जाना चाहता है, परन्तु जाल उसे निर्दयता से जकड़े रहता है। शिकार, असल में, स्तंभित हो जाता है।
यदि मनुष्य के डर ने हमें पकड़ लिया है, तो हम उस ख़रगोश के काफ़ी समान हैं। हम शायद जानते होंगे कि हमें क्या करना चाहिए। हम शायद वह करना भी चाहेंगे। लेकिन डर हमें अपना ग़ुलाम बना लेता है। हम स्तंभित हो जाते हैं और कुछ कर नहीं पाते।
मनुष्य से डरने का फंदा
बाइबल के समय में ऐसे लोगों के कुछ उदाहरणों पर ध्यान दें जो भय के फंदे से पकड़े गए। यहोशू के दिनों में, इस्राएलियों के आयोजित हमले से पहले, १२ मनुष्यों को कनान देश को भेद लेने के लिए भेजा गया था। भदियों ने वापस आकर बताया कि देश उपजाऊ और धनी है, ठीक वैसा ही जैसा परमेश्वर ने कहा था। लेकिन दस भेदिए वहाँ के निवासियों की शक्ति से आतंकित हो गए। इस तरह मनुष्य के भय की पकड़ में आकर उन्होंने इस्राएलियों को इस शक्ति का वर्णन बढ़ा-चढ़ाकर किया और इसके कारण सारी जाति को भय ने जकड़ लिया। इस्राएलियों ने कनान पर हमला करने और देश पर कब्ज़ा कर लेने की परमेश्वर की आज्ञा मानने से इन्कार किया। इसके परिणामस्वरूप, अगले ४० वर्षों के दौरान, केवल कुछों को छोड़, उस समय की संपूर्ण प्रौढ़ पुरुष जनसंख्या वीराने में मर गयी।—गिनती १३:२१-१४:३८.
योना मनुष्य के डर का एक और शिकार था। जब उसे बड़े शहर नीनवे में प्रचार करने को कहा गया, वह “यहोवा के सम्मुख से तर्शीश को भाग जाने के लिए उठा।” (योना १:३) क्यों? नीनवे के निवासी निर्दयी और हिंसक लोगों के तौर से प्रसिद्ध थे और यक़ीनन योना यह जानता था। मनुष्य के भय से वह नीनवे से दूर भाग गया। यह सच है कि अन्त में उसने सौंपा गया कार्य स्वीकार किया, परन्तु सिर्फ़ यहोवा से असाधारण अनुशासन पाने के बाद।—योना १:४, १७.
राजा भी मनुष्यों से डर सकते हैं। एक समय, राजा शाऊल ने परमेश्वर की आज्ञा का सीधे रूप से उल्लंघन किया। उसका बहाना? “मैं ने तो अपनी प्रजा के लोगों का भय मानकर और उनकी बात सुनकर यहोवा की आज्ञा और तेरी बातों का उल्लंघन किया है।” (१ शमूएल १५:२४) कुछ शताब्दियों बाद, जब यरूशलेम पर बाबेलियों ने हमला किया, तब विश्वासी भविष्यद्वक्ता, यिर्मयाह, ने राजा सिदकिय्याह को हथियार डालने और इस प्रकार यरूशलेम को रक्तपात से बचाने की सलाह दी। परन्तु सिदकिय्याह ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। क्यों? उसने यिर्मयाह के सामने क़बूल किया: “जो यहूदी लोग कसदियों के पास भाग गए हैं, मैं उन से डरता हूँ, ऐसा न हो कि मैं उनके वश में कर दिया जाऊँ और वे मुझ से दुर्व्यवहार करें।”—यिर्मयाह ३८:१९.
और अन्त में, एक प्रेरित भी डर सकता है। जिस दिन यीशु की मृत्यु होनेवाली थी, उन्होंने अपने शिष्यों को चेतावनी दी कि वे सब उसे छोड़ देते। लेकिन पतरस ने निडरता से कहा: “हे प्रभु, मैं तेरे साथ बन्दीगृह जाने, वरन मरने को भी तैयार हूँ।” (लूका २२:३३; मत्ती २६:३१, ३३) वे शब्द कितने ग़लत साबित हुए! केवल कुछ ही घंटों बाद, पतरस ने भयभीत होकर यीशु के साथ होने, यहाँ तक कि उसे जानने से भी इन्कार कर दिया। मनुष्य के भय ने उस पर क़ाबू पा लिया। जी हाँ, मनुष्य का डर यक़ीनन एक मानसिक ज़हर है।
हम किससे डरें?
मनुष्य के डर पर हम कैसे क़ाबू पा सकते हैं? उसकी जगह पर एक हितकर डर को काम करने देने से। इसी प्रेरित, पतरस, ने इस तरह का डर प्रोत्साहित किया, जब उसने कहा: “परमेश्वर से डरो।” (१ पतरस २:१७) प्रकाशितवाक्य में यूहन्ना ने जिस स्वर्गदूत को देखा, उसने मनुष्यजाति से कहा: “परमेश्वर से डरो: और उसकी महिमा करो।” (प्रकाशितवाक्य १४:७) बुद्धिमान राजा सुलैमान ने भी ऐसा डर प्रोत्साहित किया, जब उसने कहा: “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।” (सभोपदेशक १२:१३) जी हाँ, परमेश्वर का भय मानना एक बाध्यता है।
परमेश्वर से डरना लाभदायक है। प्राचीन भजनकार ने गाकर कहा: “निश्चय [यहोवा के] डरवैयों के उद्धार का समय निकट है।” (भजन ८५:९) बाइबल का एक नीतिवचन भी ज़ोर देता है: “यहोवा के भय मानने से आयु बढ़ती है।” (नीतिवचन १०:२७) जी हाँ, यहोवा का भय हितकर और लाभदायक है। ‘परन्तु निश्चय ही,’ आप शायद कहेंगे, ‘यहोवा एक प्रेममय परमेश्वर हैं। हम प्रेम के परमेश्वर से क्यों डरें?’
प्रेम के परमेश्वर से डरें?
इसलिए कि परमेश्वर का डर, वह अधम, शक्तिहीन कर देनेवाला डर नहीं, जो कुछ स्थितियों में मनुष्य को जकड़ लेता है। यह इस तरह का डर है जो एक बच्चा अपने पिता के लिए महसूस करता है, हालाँकि वह अपने पिता से प्रेम करता है और जानता है कि उसका पिता उससे प्रेम करता है।
परमेश्वर का भय वास्तव में सृष्टिकर्ता के लिए एक गहरा समादर है, जो इस अनुभूति से उत्पन्न होता है कि वह धार्मिकता, न्याय, बुद्धि और प्रेम का पूर्ण साकार रूप हैं। इस में परमेश्वर को नाराज़ करने का एक स्वास्थ्यकर डर शामिल है, क्योंकि वह सर्वोच्च न्यायी हैं, जिनके पास दण्ड और प्रतिफल देने की शक्ति है। “जीवते परमेश्वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है,” प्रेरित पौलुस ने लिखा। (इब्रानियों १०:३१) परमेश्वर का प्रेम ऐसी वस्तु नहीं, जिसे पाने की हम पहले से ही अपेक्षा कर सकते हैं, और न ही उनका न्याय ऐसा है जिसे तुच्छ समझा जाए। इसलिए बाइबल हमें याद दिलाती है: “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है।”—नीतिवचन ९:१०.
बहरहाल, हमें याद रखना चाहिए कि जबकि यहोवा अपनी आज्ञा न माननेवालों को दण्ड देने की ताक़त रखते हैं—और उन्होंने अकसर ऐसा किया भी है—वह कदापि खूँखार या क्रूर नहीं हैं। वह सचमुच एक प्रेम के परमेश्वर हैं, हालाँकि वह, एक प्रेममय पिता की तरह, कभी-कभी सकारण नाराज़ होते हैं। (१ यूहन्ना ४:८) इसीलिए उन से डरना लाभदायक है। इस से हम उनके नियमों पर चलने के लिए प्रवृत्त होते हैं, जो हमारे हित के लिए रचे गए हैं। परमेश्वर के नियमों का पालन करने से खुशी मिलती है, जबकि उनका उल्लंघन करने से हमेशा बुरे परिणाम मिलते हैं। (गलतियों ६:७, ८) भजनकार यह घोषित करने के लिए प्रेरित हुआ: “हे यहोवा के पवित्र लोगों, उसका भय मानो, क्योंकि उसके डरवैयों को किसी बात की घटी नहीं होती।”—भजन ३४:९.
आप किससे डरते हैं?
परमेश्वर का डर हमें मनुष्य के डर पर क़ाबू पाने में कैसे सहायता करता है? ख़ैर, मनुष्य सही काम करने के कारण शायद हमारा मज़ाक उड़ाएँ या हमें सताए भी, जिस से हम पर दबाव पड़ता है। लेकिन परमेश्वर के एक आदरपूर्ण भय से सही मार्ग पर ही रहने के लिए हम पर दबाव होगा, इसलिए कि हम उन्हें नाराज़ नहीं करना चाहते। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर से प्रेम हमें वही करने के लिए उकसाएगा जो उनके दिल को खुश करे। और, हम यह याद रखते हैं कि परमेश्वर सही काम करने पर प्रचुर मात्रा में प्रतिफल देते हैं, जिस से हम उन्हें और भी ज़्यादा प्रेम करते हैं और उनकी इच्छा पूरा करने को हमारा और जी चाहता है। इसलिए, परमेश्वर के बारे में एक सन्तुलित दृष्टिकोण रखने से हमें मनुष्यों के किसी भी तरह के डर पर क़ाबू पाने में सहायता मिलती है।
उदाहरणार्थ, बहुत जन इस डर के कारण कि उनके समकक्ष क्या सोचेंगे, ग़लत काम करने के दबाव में आ जाते हैं। विद्यालय में युवजन शायद धूम्रपान, गन्दी भाषा का प्रयोग, (वास्तविक या काल्पनिक) लैंगिक अनुभव का घमण्ड और शराब या नशीली पदार्थों का भी प्रयोग करेंगे। क्यों? हमेशा इसलिए नहीं कि वे ऐसा करना चाहते हैं, बल्कि इसलिए कि वे डरते हैं कि अगर उनका आचरण अलग रहा तो उनके समवयस्क क्या कहेंगे। एक किशोर के लिए उपहास और हँसी सहन करना उतना ही कठिन होगा जितना कि शारीरिक उत्पीड़न।
एक प्रौढ़ व्यक्ति भी ग़लत काम करने का दबाव महसूस कर सकता है। शायद नौकरी की जगह पर मालिक एक कर्मचारी को किसी ग्राहक का बिल बढ़ाकर बनाने या कर की ज़िम्मेदारी घटाने के लिए कंपनी का फ़ॉर्म बेईमानी से भरने को कहे। शायद मसीही महसूस करे कि अगर उसने आज्ञा नहीं मानी, तो उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़े। इस प्रकार, मनुष्य का डर ग़लत काम करने के लिए उस पर दबाव डाल सकता है।
दोनों स्थितियों में, परमेश्वर के लिए एक हितकर डर और उनकी आज्ञाओं के लिए आदर, एक मसीही को मनुष्य के डर के सामने शक्तिहीन होने से रोकेगा। और परमेश्वर के लिए उसका प्रेम उसे ऐसे काम करने से रोकेगा, जो परमेश्वर ने मना किए हैं। (नीतिवचन ८:१३) इसके अतिरिक्त, परमेश्वर में उसका विश्वास उसे आश्वासन देगा कि अगर उसने अपने बाइबल-प्रशिक्षित अंतःकरण के अनुसार काम किया, तो परिणाम चाहे जो भी हो, परमेश्वर उसका समर्थन करते। प्रेरित पौलुस ने अपना विश्वास इन शब्दों में अभिव्यक्त किया: “जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूँ।”—फिलिप्पियों ४:१३.
बाइबल उन पुरुषों और स्त्रियों के बहुत सारे उदाहरण देती है जो कड़ी परीक्षा में भी यहोवा के प्रति वफ़ादार रहे। वे “ठट्ठों में उड़ाए जाने; और कोड़े खाने . . . वरन बाँधे जाने और क़ैद में पड़ने के द्वारा परखे गए। पत्थरवाह किए गए, आरे से चीरे गए, उन की परीक्षा की गयी, तलवार से मारे गए।” (इब्रानियों ११:३६, ३७) लेकिन उन्होंने मनुष्य के डर को अपने मन पर क़ाबू पाने नहीं दिया। उलटा, उन्होंने वही बुद्धिमान सलाह अपना ली जो यीशु ने बाद में अपने शिष्यों को दी: “जो शरीर को घात करते हैं, परन्तु प्राण को घात नहीं कर सकते, उन से मत डरना; परन्तु उसी से डरना जो प्राण और शरीर दोनों को ‘गेहेन्ना’ में नाश कर सकते हैं।”—मत्ती १०:२८, न्यू.व.
मनुष्य को डरने के बजाय परमेश्वर से डरने की यीशु की इस सलाह पर चलने से प्राचीन मसीही भी “सुसमाचार के कारण,” हर प्रकार की मुश्किलें, परीक्षाएँ और उत्पीड़न सह सके। (फिलेमोन १३) प्रेरित पौलुस इस संबंध में एक ध्यान देने योग्य उदाहरण है। कुरिन्थियों को लिखी अपनी दूसरी पत्री में, वह दिखाता है कि किस तरह परमेश्वर के भय ने उसकी हिम्मत बढ़ायी कि वह क़ैद होने में, कोड़े खाने में, पत्थरवाह किए जाने में, जहाज़ टूटने में, सड़क के विभिन्न जोख़िमों में, जागते रहने में, भूख-प्यास में, जाड़े में और उघाड़े रहने में सहन कर सका।—२ कुरिन्थियों ११:२३-२७.
परमेश्वर के डर ने उन प्राचीन मसीहियों को रोमी साम्राज्य के अधीन कड़े उत्पीड़न सहने की भी शक्ति दी, जब कुछों को जंगली जानवरों के सामने अखाड़ों में डाला जाता था। मध्य युगों में, साहसी विश्वासियों को सार्वजनिक रूप से जला कर मार दिया जाता था इसलिए कि वे अपने विश्वास से समझौता नहीं करते। पिछले विश्व युद्ध में, मसीहियों ने ऐसे काम करने के बजाय जिस से परमेश्वर नाराज़ होते, दुःख उठाना और नज़रबन्दी-शिबिरों में मर जाना पसंद किया। परमेश्वर का डर क्या ही मज़बूत ताक़त है! यक़ीनन, अगर इसने मसीहियों को ऐसी कठिन परिस्थितियों में मनुष्य के डर पर क़ाबू पाने की शक्ति दी, तो, हम अपने आप को चाहे किसी भी स्थिति में क्यों न पाएँ, यह हमें भी शक्ति दे सकेगा।
आज, शैतान हर संभव कोशिश कर रहा है कि हम उसके दबाव में आकर परमेश्वर को नाराज़ करें। सच्चे मसीहियों को वैसा ही दृढ़निश्चय रखना चाहिए जैसा प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हम हटनेवाले नहीं, कि नाश हो जाएँ पर विश्वास करनेवाले हैं कि प्राणों को बचाएँ।” (इब्रानियों १०:३९) यहोवा का भय शक्ति का एक असली स्रोत है। इसकी सहायता से हम “बेधड़क” हों और कहें: “यहोवा मेरा सहायक है; मैं न डरूँगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?”—इब्रानियों १३:६, न्यू.व.
[पेज 7 पर तसवीरें]
परमेश्वर के भय ने पौलुस की हिम्मत बढ़ायी, कि वह, कोड़े, क़ैद, और टूटे जहाज़ों को सम्मिलित करके, सब कुछ सहन कर सका—२ कुरिन्थियों ११:२३-२७