बरूण्डी में सताहट धर्म निरपेक्षता का वचन भंग!
पश्चिमी देशों में धार्मिक स्वतन्त्रता का कोई महत्व नहीं है लेकिन, अफ्रीका के एक नगर बरूण्डी में धर्म के नाम पर दी जा रही यातनायें यह प्रदर्शित करती हैं कि यह स्वतन्त्रता कितनी क्षणभंगुर हो सकती है। सचमुच, यदि एक वर्ग के लोगों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है तब किसी के भी अधिकार सुरक्षित नहीं हो सकते। इसलिये, हम अपने पाठकों से आग्रह करते हैं कि जो कुछ बरूण्डी में हो रहा है उसका परीक्षण करें।
फरवरी १६, १९८९ ने, अफ्रीका के एक नगर बरूण्डी पर काले युग का साया पड़े देखा। उस दिन, बरूण्डी गणराज्य के राष्ट्रपति, पियरे बूयोया ने राष्ट्र के गवर्नरों के साथ एक सभा आयोजित की। उस सभा से निकलकर दूषित और विस्तृत धार्मिक सताहट तमाम यहोवा के गवाहों पर भड़क उठी। शीघ्र ही, पुरुष, स्त्रियों और बच्चे भी अवैध गिरफ्तारी, मार-पीट, प्रताड़ना और भूख से पीड़ित होने लगे।
यह कि, आज, ऐसी नृशंसता का घटित होना इस युग के लिये शर्मनाक है। तथापि, बरूण्डी में मसीहियों का सताया जाना विशेष रूप से घृणित है। क्यों? क्योंकि इसमें धार्मिक स्वतन्त्रता के वचन का विश्वासघात शामिल है।
सरकार द्वारा विश्वासघात
बरूण्डी, दक्षिणी भूमध्य रेखा पर दूर स्थित अफ्रीका का एक राष्ट्र है, जो पर्वतीय होने के कारण सदैव शीतल व सुहावने मौसम से घिरा रहता है। (देखिये मानचित्र) उस समय तक कुछ ही लोग पृथ्वी के नक्शे पर स्थित बरूण्डी से परिचित थे जब अगस्त १९८८ में वह विश्व के अख़बारों की शीर्ष पक्तियों में उभर आया। उस समय वहाँ की दो बड़ी जातियों, टटसी और हूतू में खूनी संघर्ष छिड़ गया था। इससे, निःसन्देह अनेकों के मन में बरूण्डी की छति बिगड़ गई।
तौभी इस विकसित राष्ट्र के बारे में कहने के लिए बहुत सारी अच्छी बातें हैं। इसके लोग बड़े उद्यमी और परिश्रमी हैं। द न्यू यार्क टाईम्स पत्रिका के एक लेख ने यह महसूस किया कि “बरूण्डी दिखता तो गरीब है, परन्तु कार्यशील है। मोरिस ग्रोविस जो विश्व बेंक के सरकारी प्रतिनिधी हैं, इसे एक उच्च उद्यमी देश के रूप में देखते हैं।’”
परन्तु बरूण्डी की धार्मिक स्थिति इस सकारात्मक दृष्टि को हिला देती है। लगभग ८० प्रतिशत निवासी मसीही होने का दावा करते हैं, जिनमें से अधिकांश रोमन कैथोलिक हैं। तौभी, राजनीतिक शासन ने धार्मिक व्यवहार का एक निराशाजनक तरीका अपनाया है। अक्तूबर १६, १९८५ को द क्रिश्चयन सेन्चूरी ने कहा: “पिछले वर्षों में बरूण्डी की सरकार ने गिरजे के अस्तित्व को नष्ट करने वाले कार्य किये हैं . . . जनता के अधिकारों और व्यक्तिगत उपासना और प्रार्थना के अधिकारों में तीव्रता से कटोती हुई है। कुछ सम्प्रदायों के सब गिरजे . . . बन्द कर दिये गये और उन्हें चलाने पर रोक लगा दी गई . . . दजनों मसीहियों को जेल में डाल दिया गया, कुछ को तो यातना भी दी गई। यह सब उनकी धार्मिक गतिविधियों के अधिकार को कार्य में लाने पर किया गया।”
जब सितम्बर १९८७ में, बरूण्डी में, राष्ट्रपति पियरे बूयोया के नेतृत्व में नई सरकार शासन में आई। उस समय नये राष्ट्रपति ने अपने राष्ट्र को धार्मिक स्वतन्त्रता देने का वचन दिया, और उसे पूरा करने हेतू तीव्रता से कदम भी उठाये। यू.एस. राज्य विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया: “राष्ट्रपति बूयोया ने अपने कार्यकाल के प्रथम वर्ष में, संगठित धर्मों के बारे में बरूण्डी की नीतियों में विस्तृत परिवर्तन किये और [भूतपूर्व] शासन में प्रचलित धार्मिक दबावों को पलट दिया। बूयोया ने सब धार्मिक बंदियों को मुक्त कर दिया; बंद गिरजों को खोल दिया; उनकी जब्त की गई सम्पत्ति को लौटा दिया।” इन उदार कार्यों ने, विश्व व्याप्त धार्मिक स्वतन्त्रता के प्रेमियों को राष्ट्रपति बूयोया का प्रशंसक बना दिया।
यहोवा के गवाह—पहचान के लिये संघर्ष
द न्यू यॉर्क टाईम्स लिखता है कि दशाब्दियों से कैथोलिक चर्च “एक शक्तिशाली आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के रूप में विकसित हुआ है।” इस राष्ट्र के बसते समय गिरजों को “वास्तव में देश पर शासन करने दिया गया था,” क्योंकि उसने “स्वास्थ्य रक्षा और शिक्षा उपलब्ध कराने में मुख्य भूमिका निभाई थी।” थोड़े आश्चर्य की बात है जब सरकार संगठित धर्मों से भयभीत हो जाये।
लेकिन, जब यहोवा के गवाहों ने १९६३ में, बरूण्डी में, अपना प्रचार का काम आरम्भ किया, उन्होंने राष्ट्र के मामलों में दखल देने का कोई प्रयत्न नहीं किया। इसके बजाय उन्होंने “राज्य के सुसमाचार के प्रचार” के कार्य को सुनिश्चित किया। (मत्ती २४:१४) चूंकि बाइबल कहती है कि सच्चे मसीही “इस संसार का भाग नहीं हैं,” अतः यहोवा के गवाह राजनीति में तटस्थ रहे जैसा कि विश्व भर में गवाह रहते हैं।—यूहन्ना १७:१६.
यहोवा के गवाह राजनीतिक पार्टियों में शामिल होने और राजनीतिक पार्टियों के नारे लगाने में शुद्ध अन्तःकरण से भाग नहीं लेते हैं। सरकारें अक्सर उनकी तटस्थता का गलत अर्थ लगा लेती हैं, कि उनमें देशभक्ति नहीं है या वे खतरनाक हैं। परन्तु ऐसा नहीं है। सारे संसार में यहोवा के गवाह एक आदर्श, व्यवस्था का पालन करनेवाले नागरिकों के नाम से जाने जाते हैं। वे बाइबल की इस आज्ञा गम्भीरता से लेते हैं कि सरकार के “अधीन” रहो। (रोमियों १३:१) सलामी देने से मना करके या राष्ट्रीय प्रतीकों के, जैसे राष्ट्र ध्वज के लिये कोई भक्तिभाव नहीं बता कर भी वे उन्हें अनादर की दृष्टि से नहीं देखते हैं।—निर्गमन २०:४, ५.
यहोवा के गवाहों ने १९७५ में अपने कार्य की विधिवत पहचान के लिये आवेदन किया। परन्तु १९७६ में सैनिक विद्रोह हुआ जिसमें जीन-बेप्टीस्टी बागज़ा को राष्ट्रपति बना दिया गया। उसने भी धार्मिक स्वतन्त्रता का वचन दिया। तथापि मार्च १९७७ में यहोवा के गवाहों पर बंदिश लगा दी गई। विश्वव्याप्त यहोवा के गवाहों ने, बागजा सरकार को विषय के स्पष्टीकरण हेतू बहुत कोशिश की, लेकिन पदाचार फ्रांस और बेल्जियम स्थित बरूण्डी दूतावासों में मुलाकातों का और बरूण्डी सरकार के अधिकारियों से भेटों का कोई परिणाम नहीं निकला। १९८७ में बरूण्डी में करीब ८० गवाह-पुरुष और स्त्रियाँ महीनों के लिए जेल में डाल दिये गये। एक गवाह की वहाँ मृत्यु हो गई।
तब १९८७ में हुई एक क्रान्ती में मेजर पियरे बूयोया शासन में आ गया। कैथोलिक और प्रोटेस्टेण्टों को तुरन्त धार्मिक प्रताड़नाओं से राहत मिली—लेकिन गवाहों को नहीं।
धार्मिक यातनाओं का विस्फोट
फरवरी १६, १९८९ को, राष्ट्रपति बूयोया की राज्य के गवर्नरों के साथ हुई एक सभा के बाद, रेडियो पर यह घोषणा की गई कि बरूण्डी को जिन बड़ी समस्याओं का सामना करना है, उसमें से एक यहोवा के गवाहों का विस्तार है। और आन्तरिक राज्यों के गवर्नरों ने एकजुट होकर यातनाओं की एक लहर चला दी। हालाँकि विस्तृत विवरण तैयार किया जा रहा है, लेकिन वहाँ जो हो रहा है उसकी एक झलक निम्नलिखित रिपोर्ट में प्रस्तुत की जा रही है:
गितेगा राज्य: गवर्नर यवीस मीनानी ने पुलिस और जनता को आदेश दिया कि वे मिलकर समस्त यहोवा के गवाहों को गिरफ्तार कराये। मार्च २२, १९८९ की संध्या को सुरक्षा पुलिस के प्रतिनिधी नतीबातामाबी एडमण्ड नाम के एक स्पेशल पायनियर के घर में घुस गये और उसे गिरफ्तार कर लिया। बंदीगृह में उसे भोजन से वंचित रखा गया। वह भूख से कई बार मूर्छित हो गया। उसे यह बात मानने के लिये यातना दी गई कि यहोवा के गवाह मनुष्य का लहू खाते हैं—कितना पापपूर्ण झूठ!
एडमण्ड की गिरफ्तारी के बाद नतीकाराहेरा हारून और नतीपीरनगेज़ा नाम के यहोवा के गवाहों को भी गिरफ्तार करके गितेगा की जेल में डाल दिया गया। उनके साथ भी वैसा ही पाश्विक व्यवहार किया गया।
विभिन्न मण्डलियों में भेंट करनेवाले एक यात्रा करने वाले सर्किट अध्यक्ष की पत्नी निजिम्बोरे चारलोट्टे को जब अपने मसीही भाइयों की दशा का पता चला। तब उसने जेल में भोजन ले जाने का प्रयत्न किया, परन्तु उसे मार्च १६, १९८९ उनके पति को पकड़ने हेतू जमानत के रूप में गिरफ्तार कर लिया गया।
मूरामूआ राज्य: गवर्नर अन्तोनी बाज़ा ने सब जाने पहचाने यहोवा के गवाहों को समन भेजा कि उससे मिले और प्रश्नों को उत्तर देते हुये भी उन्होंने राजनीतिक पार्टी के नारे लगाने से इन्कार कर दिया।
परिणाम स्वरूप, गवर्नर ने आम जनता को यहोवा के गवाहों पर हमला करने को उसकाया। मार्च १६, को पुलिस जाने-पहचाने यहोवा के गवाहों के घरों घुस गई और पार्टी के नारे लगाने से मना करने पर पुरुष व स्त्रियों को पीटना शुरू कर दिया। एक गवाह की दुकान जप्त कर ली गई और उसे बन्द कर दिया गया—उस परिवार को उसकी रोज़ी-रोटी से वंचित कर दिया गया।
मार्च १७, को चार स्त्रियों को इसलिये पीटा गया क्योंकि उन्होंने अपने विश्वास से मुकरने से इंकार कर दिया। उन्हें जेल की एक काल कोठरी में डाल दिया गया, उनमें से एक तो २० दिन के बच्चे की माँ थी।
मार्च २० को लाठी और टॉर्च लिये हुये, कुछ गवाह स्त्रियों के घर आक्रमण किया गया, उन्हें पीटा गया और घर से दूर ले जाकर छोड़ दिया गया। उनमें से एक ७५ वर्षीय वृद्ध थी जो यहोवा के गवाहों के साथ बाइबल अध्ययन करती थी और १४ वर्ष से कम आयु की बहुत सी लड़कियाँ भी उनमें थीं!
न्याबीहंगा प्राथमिक शाला के शाला निर्देशक, पियरे कीबीना-कन्वा ने शाला के बच्चों को राष्ट्र ध्वज को सलामी देने को बाध्य किया। असफल होने पर उसने उन्हें निकाल दिया। उस शहर के २२ गवाहों को अपना सबकुछ छोड़ कर भागने पर विवश कर दिया गया। जिन्हें गिरफ्तार किया गया था, उनमें, नद्याईसेन्गा लियोनिदास, कन्याम्बो लियनार्द, नताहोरवामीमये-अबेदनगो, बंकनगुमुरिन्दी पी. काशीग्रोगोयेर और मबोनी हानकुये थेडी थे।
बूजूम्बूरा राज्य: नगर प्रशासक मूहूता नाहीमाना मेकायरे ने समन जारी करके कावून्जो विन्सेण्ट, नदाबाजीनये सिल्वेस्टर और नदीज्वेनजानिये नामक गवाहों को एक सभा में बुलाया। वहाँ उन पर अगस्त ८८ से में हुये एक दंगे में शामिल होने का आरोप लगाया गया। हालाँकि यहोवा के गवाह उसमें बिल्कुल शामिल नहीं थे, फिर भी उनके साथ मारपीट करके उन्हें गिरफ्तार किया गया।
बूबान्जा राज्य: दो गवाहों को केवल बाइबल साहित्य रखने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया। जब उन्होंने पार्टी को सलामी देने से इन्कार किया, गवर्नर किम्बासा बाल्याजार ने उन्हें एक सैनिक छावनी में भेज दिया। वहाँ यातना देते हुये उनकी उंगलियाँ कुचल दी गई।
आप क्या कर सकते हैं
इनमें से अधिकांश दमनकार्य अन्दरूनी जगहों में विदेशियों की नज़रों से दूर किये जा रहे हैं। लेकिन इस लेख की १ करोड़ ३० लाख से भी ज्यादा प्रतियाँ १०६ भाषाओं में विश्वभर में वितरित की जायेंगी। बरूण्डी का दमनचक्र अब गुप्त नहीं रहेगा। स्वतन्त्रता के प्रेमी लोग जान लेंगे मानव अधिकारों का ऐसा हिंसात्मक दमन किया जा रहा है—अधिकार, जिसके लिये हजारों अफ्रीकावासियों ने संघर्ष किये हैं।
उस प्रकार से बरूण्डी धर्म निरपेक्षता के वचन को भंग करके बड़ा जोखिम उठा रहा है। यह उस मानहानि का जोखिम है जिसे एक उन्नतिशील परिश्रमी राष्ट्र के लिये फिर प्राप्त करना मुश्किल होगा। क्या बरूण्डी स्वयं को धार्मिक यातनाकारियों के रूप में देखा जाना पसन्द करेगा? हम नहीं सोचते वह ऐसा चाहेगा। हम केवल यही अनुमान लगा सकते हैं कि राष्ट्रपति बूयोया को उसके सलाहकारों ने गलत सूचना दी है, भरमा दिया है।
यहोवा के गवाहों पर लगाये गये आरोप, मात्र क्रोध और झल्लाहट की भड़ास निकालने के लिये हैं। यहोवा के गवाह बरूण्डी या किसी भी राष्ट्र के लिये खतरा नहीं है! वे लोग शान्तिप्रिय, व्यवस्था पर चलने वाले व राष्ट्र चिन्हों का सम्मान करनेवाले हैं। अफवाहों के विरुद्ध वे किसी भी प्रकार का लहू लेने से पूरी तरह से इन्कार करते हैं—उस समय भी जब उनका जीवन खतरे में हो।—प्रेरितों के काम १५:२८, २९.
इसलिये सारे संसार के सच्चे मसीही एक होकर बरूण्डी के भाइयों के लिए प्रार्थना करेंगे। (१ तीमुथियुस २:१, २) अनेक पाठक भी राष्ट्रपति बूयोया को आदरपूर्वक लिखने के लिये प्रेरित होंगे कि धार्मिक यातनायें बन्द की जाये और यहोवा के गवाहों को एक स्थापित धर्म के रूप में मान्यता दी जाये। बरूण्डी को प्रतिक्रिया स्वरूप सोचना होगा, यदि वह स्वयं को विश्व की निगाहों में उठाना चाहता है।
His Excellency Major Pierre Buyoya
President of the Republic of Burundi
Bujumbura
REPUBLIC OF BURUNDI
[पेज 8 पर नक्शा]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
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