अनन्त जीवन के लिए उचित रीति से प्रवृत्त जनों की खोज करना
“अनन्त जीवन के लिए जितने उचित रीति से प्रवृत्त थे, विश्वासी बन गए।”—प्रेरितों १३:४८, न्यू.व.
१. मनुष्य के हृदय के सम्बन्ध में यहोवा के पास कौनसी क्षमता है?
यहोवा परमेश्वर हृदय पढ़ सकते हैं। यह उस समय स्पष्ट किया गया जब भविष्यवक्ता शमूएल, यिशै के पुत्र को इस्राएल का राजा अभिषेक करने के लिए गया था। एलीआब को देखकर शमूएल तुरन्त बोला: “निश्चय जो यहोवा के सामने है वही उसका अभिषिक्त होगा। परन्तु यहोवा ने शमूएल से कहा: ‘न तो उसके रूप पर दृष्टि कर, और न उसके डील की ऊँचाई पर, क्योंकि मैं ने उसे अयोग्य जाना है। क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्यों का सा नहीं है, मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है; परन्तु यहोवा की दृष्टि दिल पर रहती है।’” तदनुसार, दाऊद को अभिषिक्त करने का निर्देशन शमूएल को मिला, जो ‘यहोवा के मन के अनुसार’ सिद्ध हुआ।—१ शमुएल १३:१३, १४; १६:४-१३.
२. एक व्यक्ति के लाक्षणिक हृदय में क्या बात जड़ पकड़े हुए है, और इस कारण इसके बारे में हम शास्त्रों में क्या पढ़ते हैं?
२ एक व्यक्ति एक निश्चित प्रबल अभिवृत्ति प्रदर्शित करता है। उसका एक विशेष मनोवृत्ति है जो उसके लाक्षणिक हृदय में जड़ पकड़े हुए है। (मत्ती १२:३४, ३५; १५:१८-२०) इस कारण, हम ऐसे व्यक्ति के बारे में पढ़ते हैं जिसका “दिल लड़ाई के लिए प्रवृत्त है।” (भजन ५५:२१, न्यू.व.) हमें बताया गया है कि “अत्यन्त क्रोध करनेवाला मनुष्य अपराधी भी होता है।” और हम पढ़ते हैं: “एक दूसरों को नाश करनेवाले साथी भी होते हैं, परन्तु ऐसा मित्र होता है जो भाई से अधिक मिला रहता है।” (नीतिवचन १८:२४; २९:२२) ख़ुशी की बात है कि अनेक व्यक्ति प्राचीन पिसिदिया के अन्ताकिया में कुछ अन्यजातिय जनों के समान सिद्ध हुए। यहोवा के उद्धार के प्रबन्ध के बारे में सुनकर वे “आनंदित हुए और यहोवा के वचन की बड़ाई करने लगे, और अनन्त जीवन के लिए जितने उचित रीति से प्रवृत्त थे विश्वासी बन गए।”—प्रेरितों १३:४४-४८, न्यू.व.
विश्वासियों के “हृदय शुद्ध हैं”
३, ४. (अ) हृदय में शुद्ध कौन है? (ब) जो लोग हृदय में शुद्ध हैं वे परमेश्वर को कैसे देखते हैं?
३ अन्ताकिया में वे विश्वासी बपतिस्मा प्राप्त मसीही बन गए, और उन में से जो वफ़ादार थे यीशु के शब्दों को अपने ऊपर लागू कर सकें: “ख़ुश हैं वे जिनके हृदय शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।” (मत्ती ५:८, न्यू.व.) परन्तु, “हृदय में शुद्ध” कौन हैं? और वे कैसे “परमेश्वर को देखेंगे?”
४ हृदय में शुद्ध व्यक्ति अन्दर से स्वच्छ हैं। उनकी क़दरदानी, स्नेह, आकांक्षा, और उद्देश्यों की शुद्धता है। (१ तीमुथियुस १:५) वे परमेश्वर को अब देखते हैं चूँकि वे यह निरीक्षण करते हैं कि परमेश्वर सत्यनिष्ठा रखनेवालों के प्रति कार्य करते हैं। (निर्गमन ३३:२०; अय्यूब १९:२६; ४२:५.) यूनानी शब्द से अनुवाद किया हुआ शब्द “देखना” का अर्थ “मन से देखना, महसूस करना, जानना” है। क्योंकि यीशु परमेश्वर के व्यक्तित्व को सिद्धता से प्रतिबिंबित करते थे, इस लिए उस व्यक्तित्व में सूक्ष्मदृष्टि का आनंद “हृदय में शुद्ध” मनुष्यों द्वारा उठाया जाता है जो मसीह और उनके पाप से प्रायश्चित करनेवाली बलिदान में विश्वास करते हैं, अपने पापों की क्षमा प्राप्त करते हैं, और परमेश्वर को स्वीकारयोग्य उपासना करने के क़ाबिल हैं। (यूहन्ना १४:७-९; इफिसियों १:७) अभिषिक्त जनों के ख़ातिर, परमेश्वर को देखने की पराकाष्ठा तब होती है जब वे स्वर्ग को पुनरूत्थित होते हैं जहाँ वे वास्तव में परमेश्वर और मसीह को देखते हैं। (२ कुरिन्थियों १:२१, २२; १ यूहन्ना ३:२) लेकिन परिशुद्ध ज्ञान और सच्ची उपासना से परमेश्वर को देखना उन सभी के लिए संभव है जो हृदय में शुद्ध हैं। (भजन २४:३, ४; १ यूहन्ना ३:६; ३ यूहन्ना ११) वे स्वर्ग में या परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन के लिए उचित रूप से प्रवृत्त हैं।—लूका २३:४३; १ कुरिन्थियों १५:५०-५७; १ पतरस १:३-५.
५. सिर्फ़ कैसे एक व्यक्ति विश्वासी और यीशु मसीह का सच्चा अनुयायी बन सकता है?
५ वे लोग जो अनन्त जीवन के लिए उचित रूप से प्रवृत्त नहीं हैं, विश्वासी नहीं बनेंगे। उनके लिए विश्वास करना सम्भव नहीं। (२ थिस्सलुनीकियों ३:२) इसके अलावा, कोई भी व्यक्ति यीशु का सच्चा शिष्य नहीं बन सकता जब तक वह सिखाने योग्य न हो, और हृदय को जाँचनेवाले यहोवा, उस व्यक्ति को नज़दीक न लाए। (यूहन्ना ६:४१-४७) निस्संदेह, घर-घर के प्रचार में, यहोवा के गवाह पहले से किसी का भी न्याय नहीं करते हैं। वे हृदयों को नहीं पढ़ सकते परन्तु परिणाम को परमेश्वर के प्रेममय हाथों में छोड़ देते हैं।
६. (अ) घर-घर की सेवकाई में निजी सम्पर्क के बारे में क्या कहा गया है? (ब) यहोवा के गवाहों को अनन्त जीवन के लिए उचित रूप से प्रवृत्त जनों की खोज में मदद के लिए क्या प्रबन्ध किए गए हैं?
६ एक विद्वान ने उचित रूप से कहा है: “[पौलुस] ने खुले आम और घर-घर जाकर, सच्चाई सिखायी। मंच से ही नहीं, परन्तु व्यक्तियों से निजी सम्पर्क रखते हुए उसने मसीह का प्रचार किया। अक़सर दूसरों तक पहुँचने में निजी शैली किसी भी दूसरे तरीके से अधिक प्रभावशाली होता है।” (ऑगस्ट वैन रिन) थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल गाइडबुक, रीज़नींग फ्रॉम द स्क्रिपचर्स् और हमारी राज्य सेवा जैसे प्रकाशन यहोवा के गवाहों को वार्ताएँ प्रस्तुत करने और क्षेत्र सेवकाई में अधिक निजी सम्पर्क बनाए रखने में मदद करते हैं। साथ ही, सेवकाई सभा के प्रदर्शन और ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल की सलाह भी उपयोगी हैं। स्कूल में उपस्थित होनेवाले, अच्छी प्रस्तावनाएँ, शास्त्र वचनों का उचित प्रयोग, तर्कसंगत विकास, विश्वासोत्पादक वाद-विवाद, दृष्टान्तों का प्रयोग और प्रभावशाली निष्कर्ष आदि वाक् गुणों पर बहुमूल्य प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। आइये देखें कि बाइबल कैसे इन हिदायतों को बढ़ाती है जो अनन्त जीवन के लिए उचित रूप से प्रवृत्त होनेवालों की खोज करने में परमेश्वर के लोगों को और अधिक प्रभावशाली बनाती है।
विचार-उत्तेजक प्रस्तावनाएँ
७. प्रस्तावना के बारे में यीशु के पर्वतीय उपदेश के प्रारंभिक वचन क्या सिखाते है?
७ घर-घर की गवाही देने की तैयारी करनेवाले यीशु के उदाहरण से प्रस्तावनाओं के विषय में वे बातें सीख सकते हैं जो रूचि उत्पन्न करते हैं। पर्वतीय उपदेश को प्रारम्भ करते हुए, उन्होंने “ख़ुश,” (न्यू.व) शब्द को नौ बार प्रयोग किया। उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा, “ख़ुश हैं वे जो अपनी आत्मिक आवश्यकताओं के लिए जागरूक हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। . . . ख़ुश हैं वे जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। (मत्ती ५:३-१२, न्यू.व.) कथन सीधे और सुस्पष्ट थे। और इस प्रस्तावना ने वस्तुतः रूचि उत्पन्न की, और उनके सुननेवालें को उसमें शामिल किया, क्योंकि कौन ख़ुश नहीं रहना चाहता?
८. घर-घर की सेवकाई में, वार्तालाप के विषय को किस तरह प्रस्तुत किया जाना चाहिए?
८ घर-घर की सेवकाई में इस्तेमाल किया जानेवाले किसी भी वार्तालाप के विषय को सकारात्मक और सुहावने ढंग से शुरू किया जाना चाहिए। परन्तु, किसी ने भी स्तब्ध कर देनेवाली प्रस्तावना का उपयोग नहीं करना चाहिए, जैसे, “मेरे पास आप के ख़ातिर बाहृय अंतरिक्ष से संदेश है।” सुसमचार का स्रोत स्वर्गीय ही है, लेकिन ऐसी प्रस्तावना गृहस्वामी को यह सोचने पर मजबूर करेगा कि उस गवाह की बात को गंभीरता से न सुने, या जितने जल्दी हो सके भेज दे।
परमेश्वर के वचन को सही ढंग से संभालना
९. (अ) सेवकाई में शास्त्रों को कैसे पेश करना, पढ़ना और लागू किया जाना चाहिए? (ब) यीशु ने प्रश्नों का उपयोग कैसे किया यह दिखाने के लिए कौनसा उदाहरण बताया गया है?
९ जैसे मंच पर उसी प्रकार क्षेत्र सेवकाई में भी शास्त्र वचनों को उचित ढंग से परिचय देकर, आवश्यक ज़ोर देकर पढ़ना चाहिए और स्पष्ट और यथार्थ ढंग से लागू किया जाना चाहिए। गृहस्वामी को शास्त्रीय मुद्दों पर सोचने के लिए मजबूर करनेवाले प्रश्नों को सामने रखना सहायक सिद्ध हो सकता है। यहाँ पर भी, यीशु के तरीके ज्ञानात्मक हैं। एक अवसर पर, मूसा की व्यवस्था से भली भाँति परिचित एक व्यक्ति ने उन से पूछा: “हे गुरु, अनन्त जीवन का वारिस होने के लिए मैं क्या करूँ?” बदले में यीशु ने पूछा: “व्यवस्था में क्या लिखा है? तू कैसे पढ़ता है?” निस्संदेह, यीशु यह जानते थे कि वह व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर दे सकता है। उसने सही उत्तर देते हुए कहा, “‘तू यहोवा अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख,’ और, ‘अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।’” इसके लिए, यीशु ने उसकी प्रशंसा की और आगे बातचीत जारी रही।—लूका १०:२५-३७.
१०. जहाँ तक वार्तालाप के विषय का सम्बन्ध है कौनसी बात मन में रखनी चाहिए, और गृहस्वामी से प्रश्न पूछते समय किस बात से बचना चाहिए?
१० घर-घर की सेवकाई करनेवालों को वार्तालाप के विषय के मुद्दे पर ज़ोर देना चाहिए और उस विषय को विकसित करनेवाले, बाइबल पाठों को पढ़ने के कारण, साफ़ बताना चाहिए। चूँकि गवाह, गृहस्वामी के हृदय तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है, इसलिए उसने घबड़ा देनेवाले प्रश्नों को नहीं पूछना चाहिए। परमेश्वर के वचन को प्रयोग करते हुए, ‘हमारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो।’—कुलुस्सियों ४:६.
११. ग़लत विचारों को सुधारने के लिए शास्त्रों को उपयोग में लाते हुए, शैतान द्वारा यीशु का प्रलोभन से कौनसा उदाहरण हमारे पास है?
११ मुख्यतः पुनःभेंट के समय, ग़लत विचारों को सुधारने के लिए शास्त्रों से दिखाने की आवश्यकता हो सकती है, कि वे वास्तव में क्या कहते हैं या उनका क्या अर्थ है। यीशु ने शैतान को झिड़कते हुए कुछ ऐसा ही किया था, जिसने कहा था: “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो अपने आप को नीचे गिरा दे [मंदिर के कंगूरे से, संभाव्य आत्महत्या के समान]; क्योंकि लिखा है, ‘वह तेरे विषय में स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा और वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे, कहीं ऐसा न हो कि तेरे पाँवों में पत्थर से ठेस लगे।’” शैतान द्वारा उद्धृत किया गया भजन संहिता ९१:११, १२, जीवन को, जो परमेश्वर की ओर से उपहार है, जोखिम में डालने उचित सिद्ध नहीं करता। यह महसूस करते हुए कि अपने जीवन से खेलते हुए, यहोवा को परखना ग़लत था, यीशु ने शैतान से कहा: “यह भी लिखा है कि तूम यहोवा अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर।” (मत्ती ४:५-७) निस्संदेह, शैतान सत्य का खोजी नहीं है। लेकिन जब समझदार व्यक्ति उन ग़लत विचारों को व्यक्त करते हैं जो उनकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधा डाल सकते हैं तो परमेश्वरीय वचन के सेवक को कुशलता से यह दिखाना चाहिए कि शास्त्र वचन क्या कहते हैं और उनका क्या अर्थ है। यह सब “सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाने” के अंतर्गत है—जो कि ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल में सिखाया जानेवाला एक महत्त्वपूर्ण सबक है।—२ तीमुथियुस २:१५.
अनुनय का अपना स्थान है
१२, १३. क्यों सेवकाई में अनुनय का उपयोग उचित है?
१२ मसीही सेवकाई में अनुनय का एक उचित स्थान है। उदाहरण के लिए, पौलुस ने अपने सहकर्मी तीमुथियुस से यह आग्रह किया कि जो बातें उसने सीखी थी और जिनपर “विश्वास करने के लिए सहमत किया गया था,” उन में बना रहे। (२ तीमुथियुस ३:१४, न्यू.व.) कुरिन्थयुस में, पौलुस “हर सब्त के दिन आराधनालय में वाद विवाद करके यहूदियों और यूनानियों को समझाता था।” (प्रेरितों १८:१-४) इफिसुस में, वह सफलतापूर्वक ‘परमेश्वर के राज्य के बारे में वार्ताएँ देता रहा और सहमत करवाता रहा।’ (प्रेरितों १९:८, न्यू.व.) और जब वह रोम में नज़रबंद था तो प्रेरित ने लोगों को अपने निवासस्थान पर बुलाया और “सहमति के लिए अनुनय का प्रयोग,” करके गवाही दी और कुछ लोग विश्वासी बन गए।—प्रेरितों २८:२३, २४, न्यू.व.
१३ कोई गवाह चाहे कितनी भी अच्छी तरह से सहमत कराने की कोशिश क्यों न करें, केवल वही जो अनन्त जीवन के लिए उचित रीति से प्रवृत्त हैं, विश्वासी बनेंगे। विश्वासोत्पादक वादविवाद और स्पष्ट विवरण कुशलतापूर्वक प्रस्तुत करते हुए उन्हें विश्वासी बनने के लिए सहमत कर सकते हैं। लेकिन उन्हें सहमत कराने में और क्या बात मदद करेगी?
तर्कसंगत और विश्वासोत्पादक बनें
१४. (अ) तर्कसंगत, स्थिर अनुरूप विकास में क्या शामिल है? (ब) विश्वासोत्पादक वाद-विवाद क्या माँग करते हैं?
१४ ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल के वाक् गुणों में से एक गुण जिसपर ज़ोर दिया जाता है वह तर्कसंगत, स्थिर अनुरूप विकास है। इस में सभी मुख्य विचारों और सुसंगत विषयों को उपयुक्त क्रम में शामिल करना है। साथ ही, विश्वासोत्पादक वाद-विवाद भी ज़रूरी है, जिसके लिए एक अच्छी नींव और ठोस प्रमाणों को प्रदान करने की आवश्यकता है। इसी समान भाव से, सामान्य विषय को बनाए रखकर, मुद्दों को सही ढंग से विकसित करके और उन्हें प्रभावशाली ढंग से लागू करके सुननेवालों को तर्क करने में सहायता करना है। यहाँ पर भी शास्त्र निर्देशन का प्रबन्ध करते हैं।
१५. (अ) जब पौलुस ने मार्स पर्वत पर भाषण दिया उसने ध्यान कैसे आकर्षित किया और सामान्य विषय स्थापित किया? (ब) पौलुस के भाषण में, तर्कसंगत, स्थिर अनुरूप विकास का हमारे पास क्या प्रमाण है?
१५ प्रेरित पौलुस की प्राचीन अथेने में मार्स पर्वत पर दिए गए प्रसिद्ध भाषण में यह वाक् गुण प्रगट होते हैं। (प्रेरितों १७:२२-३१) उसकी प्रस्तावना ने ध्यान आकर्षित किया और एक सामान्य विषय को स्थापित किया, क्योंकि उसने कहा था, “हे अथेने के लोगों, मैं देखता हूँ कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े माननेवाले हो।” निस्संदेह उन्हें यह एक प्रशंसा की बात लगी। “अंजाने ईश्वर के लिए” समर्पित एक वेदी का उल्लेख करने के बाद, पौलुस ने अपने तर्कसंगत, स्थिर अनुरूप विकास और विश्वासोत्पादक वाद-विवाद को जारी रखा। उसने बताया यह परमेश्वर ने, जिसे वे नहीं जानते, “पृथ्वी की सब वस्तुओं को बनाया।” अथेना और अन्य यूनानी देवताओं के समान, ‘वह हाथ के बनाए हुए मंदिरों में नहीं रहता, न किसी वस्तु का प्रयोजन रखकर मनुष्य के हाथों की सेवा लेता है।’ इसके बाद प्रेरित ने दर्शाया कि इस परमेश्वर ने हमें जीवन दिया और हमें अंधों के समान, अपने आप को टटोलने नहीं देता है। पौलुस ने फिर तर्क किया कि हमारा सृष्टिकर्ता जिसने मूर्तिपूजक अज्ञानता के समय को नज़रदांज़ किया, ‘अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है।’ यह बात तार्किक रूप से इस मुद्दे की ओर ले गयी कि ‘परमेश्वर एक नियुक्त मनुष्य के द्वारा जिसे उन्होंने मरे हुओं में से जिलाया है, धार्मिकता से पृथ्वी वासियों का न्याय करेगा।’ क्योंकि पौलुस, “यीशु के सुसमाचार और पुनरूत्थान की घोषणा कर रहा था,” अथेने निवासी जाने गए कि यह न्यायाधीश यीशु मसीह होगा।—प्रेरितों १७:१८.
१६. पौलुस के मार्स पर्वत के उपदेश द्वारा और ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल के प्रशिक्षण द्वारा एक व्यक्ति की सेवकाई कैसे प्रभावित हो सकती है?
१६ यह सही है कि पौलुस मार्स पर्वत पर घर-घर की गवाही नहीं दे रहा था। परन्तु उसकी वार्ता और ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल में दिए गए प्रशिक्षण से यहोवा के गवाह बहुत कुछ सीख सकते हैं, जिन से उनकी क्षेत्र सेवकाई में उन्नति होगी। जी हाँ, यह सभी उन्हें अधिक प्रभावशाली सेवक बनने में मदद करता है, जैसे पौलुस का तर्कसंगत विकास और विश्वासोत्पादक वाद-विवाद द्वारा अथेने के कुछ निवासी विश्वासी बनने के लिए सहमत हुए।—प्रेरितों १७:३२-३४.
शिक्षाप्रद दृष्टान्तों का प्रयोग करें
१७. सेवकाई में हमें किस तरह के दृष्टान्तों का उपयोग करना चाहिए?
१७ ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल परमेश्वर के सेवकों को घर-घर की गवाही और सेवकाई के अन्य क्षेत्रों में अच्छे दृष्टान्तों का उपयोग करने में भी सहायता करती है। साधारण दृष्टान्तों को, जो सुरुचिपूर्ण हो, महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ज़ोर देने के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। गवाह ने इन दृष्टान्तों को जानी पहचानी परिस्थितियों में से लेना चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि उनके विनियोग को स्पष्टता से लागू किया जाना चाहिए। यीशु के दृष्टान्तों ने इन सभी माँगों को पूरा किया।
१८. सेवकाई में मत्ती १३:४५, ४६ कैसे लाभदायक सिद्ध हो सकता है?
१८ उदाहरण के लिए, यीशु के शब्दों पर ध्यान दें: “स्वर्ग का राज्य एक व्यापारी के समान है जो अच्छे मोतियों की खोज में था। जब उसे एक बहुमूल्य मोती मिला तो उसने जाकर अपना सब कुछ बेच दिया और उसे मोल ले लिया।” (मत्ती १३:४५, ४६) मोती मूल्यवान रत्न हैं जो शुक्ति और अन्य मोलस्क के सीपी के अन्दर पाए जाते हैं। परन्तु, कुछ मोतियाँ ही “बहुमूल्य” होते हैं। व्यापारी को इस एक मोती की उत्कृष्ट क़ीमत का मूल्यांकन करने के लिए विवेकपूर्ण समझ थी और इसे पाने के लिए वह अपना सब कुछ छोड़ने तैयार था। शायद एक पुनःभेंट या गृह बाइबल अध्ययन के दौरान, इस दृष्टान्त को यह दर्शाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है कि एक व्यक्ति जो वास्तव में परमेश्वर के राज्य की क़दर करता है, वह उस व्यापारी के समान कार्य करेगा। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में राज्य को प्राथमिकता देगा, यह जानते हुए कि यह राज्य किसी भी त्याग के योग्य है।
प्रेरणा के साथ समाप्त करें
१९. घर-घर की सेवकाई में, निष्कर्ष द्वारा गृहस्वामी को क्या प्रदर्शित होना चाहिए?
१९ ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल में, परमेश्वर के लोग यह भी सीखते हैं कि किसी वार्ता या चर्चा का निष्कर्ष विषय से सीधा सम्बन्ध रखना चाहिए और सुननेवालों को यह बतलाना चाहिए कि वे क्या करें और ऐसा करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। घर-घर की सेवकाई में गृहस्वामी को यह निश्चित बताने की ज़रूरत है कि उससे कौनसा रास्ता अपनाने की अपेक्षा है, जैसे कि एक बाइबल साहित्य स्वीकार करना या पुनःभेंट के लिए राज़ी होना।
२०. मत्ती ७:२४-२७ में प्रोत्साहन पूर्ण निष्कर्ष का कौनसी उत्तम मिसाल है?
२० यीशु के पर्वतीय उपदेश का निष्कर्ष एक अच्छी मिसाल प्रदान करता है। सरलता से समझे जानेवाले एक दृष्टान्त के द्वारा यीशु ने दिखाया कि उनके वचनों पर ध्यान देना बुद्धिमानी का मार्ग होगा। उन्होंने निष्कर्ष निकाला: “इसलिए जो कोई मेरी यह बातें सुनकर उन्हें मानता है, वह उस बुद्धिमान मनुष्य की नाई ठहरेगा जिस ने अपना घर चट्टान पर बनाया। और मेंह बरसा और बाढ़ें आयी, और आन्धियाँ चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं, परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी। परन्तु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता वह उस निर्बुद्धि मनुष्य की नाई ठहरेगा जिसने अपना घर बालू पर बनाया। और मेंह बरसा, और बाढ़ें आयीं, और आंधियाँ चलीं, और उस घर पर टक्करें लगी और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।” (मत्ती ७:२४-२७) यह कितनी अच्छी तरह से दर्शाता है कि यहोवा ने प्रयत्न करना चाहिए कि गृहस्थ को प्रेरण करें!
२१. हमारे इस विचार-विमर्श ने क्या समझाया है, मगर क्या पहचानना आवश्यक है?
२१ यह सभी मुद्दे समझाते हैं कि ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल कैसे अनेक व्यक्तियों को योग्य राज्य उद्घोषक बनने में सहायता कर सकता है। बेशक, पर्याप्त रूप से योग्य होना, मूल रूप से परमेश्वर की ओर से है। (२ कुरिन्थियों ३:४-६) और कोई सेवक कितना भी योग्य क्यों न हो, वह लोगों को विश्वासी बनने के लिए राज़ी नहीं कर सकता, जब तक परमेश्वर उन्हें मसीह के द्वारा आकर्षित न किए जाते। (यूहन्ना १४:६) फिर भी, यहोवा द्वारा जितने भी प्रबन्ध किए गए हैं उनका लाभ परमेश्वर के लोगों को अवश्य उठाना चाहिए जब वे अनन्त जीवन के लिए उचित रूप से प्रवृत्त लोगों की खोज करते हैं।
आपके जवाब क्या हैं?
▫ “हृदय में शुद्ध” कौन हैं, और वे कैसे “परमेश्वर को देखेंगे”?
▫ घर-घर के कार्य में राज्य संदेश को प्रस्तुत करते समय कौनसे मुद्दों को ध्यान में रखना चाहिए?
▫ सेवकाई में परमेश्वर के वचन को किस तरह सही रीति से उपयोग में लाया जा सकता है?
▫ क्षेत्र सेवकाई में तर्कसंगत, क़ायल करानेवाले प्रस्तावनाओं को प्रस्तुत करने में क्या मददकारी होगा?
▫ सेवकाई में दृष्टान्तों के उपयोग के बारे में क्या बात याद रखनी चाहिए?
▫ गवाही के कार्य में निष्कर्ष के द्वारा क्या पूरा किया जा सकता है?
[पेज 11 पर तसवीरें]
यीशु ने कहा कि “हृदय में शुद्ध” व्यक्ति “परमेश्वर को देखेंगे।” इसका क्या अर्थ है?
[पेज 13 पर तसवीरें]
शास्त्रवचनों का परिचय उचित रूप से कराना चाहिए, पर्याप्त ज़ोर देकर पढ़ना चाहिए, और स्पष्ट एवं यथार्थ ढंग से लागू करना चाहिए