पाठकों के प्रश्न
किसी मसीही को अदालत द्वारा हुक़्म किए गए या प्राधिकृत रक्ताधान का प्रतिरोध कितनी सख़्ती से करना चाहिए?
हर परिस्थिति बेजोड़ है, इसलिए इस विषय में सभी बातों को शामिल करनेवाली कोई हिदायत नहीं है। मसीही ‘कैसर की चीज़ें कैसर को’ आदरपूर्वक लौटाने, यानी सांसारिक सरकार के नियमों का पालन करने के लिए प्रसिद्ध हैं। फिर भी, वे समझते हैं कि उनका अभिभावी उत्तरदायित्व परमेश्वर के नियम का उल्लंघन न करके, ‘परमेश्वर की चीज़ें परमेश्वर को’ देना है।—मरकुस १२:१७.
रोमियों १३:१-७ में सरकारी “प्रधान अधिकारियों” के साथ मसीहियों के सम्बन्ध पर विचार-विमर्श किया गया है। ऐसे सरकारों को, आम तौर से जनता के सामान्य हित को आगे बढ़ाने के लिए, क़ानून बनाने या निर्देश जारी करने का अधिकार है। और सरकारें अपने क़ानूनों को लागू करने तथा ‘उनके क़ानूनों के अनुसार बुरे काम करनेवालों को क्रोध का दण्ड देने’ के लिए ‘तलवार ली हुई हैं।’ चूँकि मसीही प्रधान अधिकारियों के अधीन हैं, वे क़ानूनों और अदालत के आदेशों का पालन करना चाहते हैं, परन्तु इस अधीनता को आपेक्षिक होना चाहिए। अगर किसी मसीही को ऐसी कोई बात मान लेने को कहा जाए जो परमेश्वर के उच्चतर नियम का उल्लंघन होगा, तो फिर ईश्वरीय नियम पहले आता है; इसे पूर्ववर्तिता मिलती है।
कुछेक आधुनिक नियम जो मूलतः अच्छे हैं, शायद किसी मसीही को ज़बरदस्ती रक्ताधान देने का अधिकार प्रदान करने के लिए ग़लत रूप से लागू किया जा सकता है। इस हाल में मसीहियों को वही स्थिति अपनानी चाहिए जो प्रेरित पतरस ने अपनायी: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।”—प्रेरितों ५:२९.
यहोवा ने इस्राएलियों को आदेश दिया: “परन्तु उनका लहू न खाने के लिए अटल रूप से दृढ़निश्चयी होना, क्योंकि लहू प्राण ही है, और तुम्हें मांस के साथ प्राण कभी भी न खाना चाहिए।” (व्यवस्थाविवरण १२:२३, NW.) वर्ष १९१७ के एक यहूदी अनुवाद में यूँ लिखा गया है: “मात्र लहू न खाने के बारे में अटल रहना।” और आइज़ॅक लीज़र ने इस आयत का अनुवाद इस प्रकार किया: “सिर्फ़ इतना अटल रहो कि तुम रक्त को न खाओ।” क्या इस से लगता है कि परमेश्वर के सेवकों को उनके नियम का पालन करने में लापरवाह या निष्क्रिय होना था?
सरकार ने उन्हें अन्य प्रकार से करने की आज्ञा अगर दी भी हो, तब भी मसीही सकारण ही परमेश्वर का आज्ञापालन करने के लिए सम्पूर्णतया कृतसंकल्प रहे हैं। प्राध्यापक रॉबर्ट एल. विल्केन लिखते हैं: “मसीहियों ने न सिर्फ़ [रोमी] सैन्य सेवा करना नामंज़ूर किया, लेकिन वे लोक-पद स्वीकार नहीं करते और न ही शहरों के शासन के लिए कोई ज़िम्मेदारी ग्रहण करते।” (मसीही लोग जैसे रोमी उन्हें समझते थे, The Christians as the Romans Saw Them) इनकार करने का मतलब शायद यह हो सकता था कि उन्हें नियम तोड़नेवालों के तौर से कलंक लगाया जाता या फिर रोमी अखाड़े में प्राणदण्ड दिया जाता।
आज के मसीहियों को भी ईश्वरीय नियम का उल्लंघन न करने के लिए कृतसंकल्प होकर अटल रहना चाहिए, चाहे अगर इस से सरकारों की ओर से कुछ ख़तरों का सामना ही क्यों न करना पड़े। इस विश्व के सर्वोच्च नियम—परमेश्वर के नियम—से यह आवश्यक होता है कि वे लहू के दुरुपयोग से बचे रहें, उसी तरह जिस तरह मसीहियों को व्यभिचार (लैंगिक अनैतिकता) से बचे रहने का आदेश दिया जाता है। बाइबल इन निषेधों को ‘आवश्यक बातें’ कहती है। (प्रेरितों १५:१९-२१, २८, २९) ऐसे ईश्वरीय नियम का लापरवाही से विचार करना नहीं चाहिए, मानो यह एक ऐसी बात हो जिसका पालन तब ही करना चाहिए अगर यह सुविधाजनक हो या इस से कोई समस्याएँ उत्पन्न नहीं होती हों। परमेश्वर के नियम का आज्ञापालन किया जाना ही चाहिए!
तो फिर, हम इस बात की क़दर कर सकते हैं कि पृष्ठ १२ पर ज़िक्र किए गए तरुण मसीही ने अदालत से कहा कि “वह रक्ताधान को उसके शरीर पर एक हमला मानती थी और उसकी तुलना बलात्कार से की।” कोई मसीही स्त्री, चाहे बूढ़ी हो या जवान, अगर कोई क़ानूनी अनुमति भी होती कि लैंगिक हमले के द्वारा व्यभिचार किया जा सकता है, क्या बलात्कार से सामने निष्क्रिय रूप से हार मानती?
उसी तरह, उसी पृष्ठ पर उद्धृत की गयी १२ वर्षीया ने इस बात के बारे में कोई सन्देह न छोड़ा कि ‘वह जितनी भी शक्ति जुटा सकती, उससे वह अदालत द्वारा प्राधिकृत ऐसे किसी भी रक्ताधान के विरुद्ध लड़ती, कि वह चिल्लाती और हाथ-पैर मारती, अपनी बाँह से सुई लगाने वाले उपकरण को खींच कर निकाल देती, और अपने पलंग के ऊपर लटकी थैली के रक्त को नष्ट करने की कोशिश करती।’ वह ईश्वरीय नियम का पालन करने के लिए कृतसंकल्प थी।
यीशु उस क्षेत्र से हट गया जब भीड़ ने उसे राजा बनाना चाहा। उसी तरह, अगर अदालत द्वारा प्राधिकृत रक्ताधान दिया जाना संभव लगे, तो एक मसीही परमेश्वर के नियम का उल्लंघन न करने की ख़ातिर शायद यह करना पसन्द करेगा कि वह किसी के हाथों लगने से बचे रहे। (मत्ती १०:१६; यूहन्ना ६:१५) साथ ही, मसीही को बुद्धिमान रूप से वैकल्पिक चिकित्सीय उपचार की खोज में रहना चाहिए, जिस से वह ज़िन्दगी को बनाए रखने तथा पूरा स्वास्थ्य फिर से हासिल करने के लिए एक असली कोशिश करता है।
अगर किसी मसीही ने लहू के विषय में परमेश्वर के नियम के एक उल्लंघन से बचे रहने के लिए बहुत ही ज़ोरदार कोशिशें कीं, तो शायद अधिकारी उसे एक नियम तोड़नेवाला समझें या उसके ख़िलाफ़ मुकद्दमा चलाया जाना संभव करें। अगर दण्ड मिल भी जाए, तो मसीही इसे धार्मिकता की ख़ातिर तक़लीफ़ उठाना समझ सकता है। (१ पतरस २:१८-२० से तुलना करें।) लेकिन अधिकांश स्थितियों में, मसीही रक्ताधान से दूर रहे हैं और सक्षम चिकित्सीय देख-भाल पाकर ठीक हुए हैं, जिस से कोई स्थायी क़ानूनी समस्याएँ न हुईं। और सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि उन्होंने अपने ईश्वरीय जीवन-दाता और न्यायी के प्रति अपनी ईमानदारी बनाए रखे हैं।