यहोवा, “सारी पृथ्वी का” निष्पक्ष “न्यायी”
“पिता . . . बिना पक्षपात हर एक के काम के अनुसार न्याय करता है।”—१ पतरस १:१७.
१, २. (क) यहोवा महान न्यायी है, इस विचार से हमें क्यों भयभीत होना चाहिये और सांत्वना भी मिलनी चाहिये? (ख) राष्ट्रों के विरुद्ध यहोवा के मुकद्दमे में, उसके पार्थिव सेवकों की क्या भूमिका है?
यहोवा “सारी पृथ्वी का” महान “न्यायी” है। (उत्पत्ति १८:२५) इस विश्व के परमप्रधान परमेश्वर होने की हैसियत से, उसे अपनी सृष्टि का न्याय करने का पूर्ण अधिकार है। यह भय-योग्य होने के साथ-साथ एक सांत्वना देने वाला विचार है। मूसा ने हृदयस्पर्शी रूप से इस विरोधाभास को यह कहते हुए अभिव्यक्त किया: “तुम्हारा परमेश्वर यहोवा वही ईश्वरों का परमेश्वर और प्रभुओं का प्रभु है, वह महान् पराक्रमी और भय योग्य ईश्वर है, जो किसी का पक्ष नहीं करता और न घूस लेता है। वह अनाथों और विधवा का न्याय चुकाता, और परदेशियों से ऐसा प्रेम करता है कि उन्हें भोजन और वस्त्र देता है।”—व्यवस्थाविवरण १०:१७, १८.
२ क्या ही अनोखा संतुलन! एक महान, पराक्रमी, भय-योग्य परमेश्वर, फिर भी निष्पक्ष और अनाथों, विधवाओं, और परदेशियों के हितों की प्रेम से प्रतिरक्षा करता है। यहोवा से ज़्यादा प्रेमी न्यायी की कामना कौन कर सकता है? शैतान के संसार के राष्ट्रों के विरुद्ध अपने को एक मुकद्दमे में चित्रित करते हुए, यहोवा पृथ्वी पर अपने सेवकों को उसका गवाह बनने के लिये आमंत्रित करता है। (यशायाह ३४:८; ४३:९-१२) वह अपने ऐश्वर्य और न्यायसंगत सर्वसत्ता को सिद्ध करने के लिये उनकी गवाही पर निर्भर नहीं है। लेकिन वह अपने गवाहों को पूरी मानवजाति के सामने यह गवाही देने का एक असाधारण विशेषाधिकार प्रदान करता है कि वे उसकी सर्वोच्चता को स्वीकार करते हैं। उसके गवाह उसकी धार्मिक सर्वसत्ता की अधीनता को स्वयं स्वीकार करते हैं, और अपनी सार्वजनिक सेवकाई से, वे दूसरों को सर्वोच्च न्यायी के अधिकार के अधीन अपने आप को लाने के लिये प्रोत्साहित करते हैं।
यहोवा का न्याय करने का ढंग
३. यहोवा के न्याय करने के ढंग का सारांश किस तरह किया जा सकता है, और आदम और हव्वा के मामले में यह कैसे स्पष्ट हुआ?
३ मानवजाति के आरम्भिक इतिहास के दौरान, यहोवा ने स्वयं ही कुछ अपराधियों का न्याय किया। न्यायिक मामलों को निपटाने के उसके ढंग के उदाहरणों ने उसके उन सेवकों के लिये नमूना नियत कर दिया जो बाद में उसके लोगों के बीच न्यायिक कार्रवाई संचालित करने के लिये ज़िम्मेदार होंगे। (भजन ७७:११, १२) उसके न्याय करने के ढंग का सारांश इस तरह किया जा सकता है: दृढ़ता जहाँ आवश्यक हो, दया जहाँ संभव हो। आदम और हव्वा के मामले में, परिपूर्ण मानव प्राणी जिन्होंने जानबूझकर विद्रोह किया था, वे दया के योग्य नहीं थे। इसलिये, यहोवा ने उन्हें मृत्यु की दंडाज्ञा दी। लेकिन उनके बच्चों के प्रति उसकी दया क्रियाशील हुई। यहोवा ने मृत्यु की दंडाज्ञा के पालन को आस्थगित कर दिया, इस प्रकार आदम और हव्वा को बच्चे पैदा करने की अनुमति दी। उसने प्रेमपूर्वक उनके वंशज के लिये पाप और मृत्यु के दासत्व से छुटकारे की आशा का प्रबन्ध किया।—उत्पत्ति ३:१५; रोमियों ८:२०, २१.
४. यहोवा ने कैन के साथ कैसा बर्ताव किया, और यह मुकद्दमा ख़ास रुचि का कारण क्यों है?
४ कैन के साथ यहोवा के बर्ताव का ढंग ख़ास रुचि का विषय है क्योंकि यह आदम और हव्वा के ‘पाप के हाथ बिके हुए’ अपरिपूर्ण वंशज से संबंधित पहला अंकित मामला है। (रोमियों ७:१४) क्या यहोवा ने इसको ध्यान में रखते हुए जिस ढंग का बर्ताव उसके माता-पिता के साथ किया था उससे फ़रक बर्ताव कैन के साथ किया? और क्या यह आज के मसीही अध्यक्षों के लिये सबक़ दे सकता है? आइये देखते हैं। कैन का बलिदान अनुकूल दृष्टि से स्वीकार न होने पर उसकी ग़लत प्रतिक्रिया को समझते हुए, यहोवा ने उसे प्रेमपूर्वक उस ख़तरे के बारे में चेतावनी दी जिस में वह था। एक पुरानी कहावत है: ‘इलाज से बचाव बेहतर है।’ यहोवा जिस हद तक जा सकता था उस हद तक जाकर उसने कैन को चेतावनी दी कि वह अपनी पापी प्रवृति को अपने पर प्रभुता पाने की अनुमति दे रहा है। उसने उसे मदद करने की भरसक कोशिश की कि वह “भला करे।” (उत्पत्ति ४:५-७) यह पहला मौक़ा है जब एक पापी मनुष्य से परमेश्वर ने पश्चात्ताप करने की माँग की। कैन के पश्चात्ताप-रहित रवैया दिखाने और महापराध करने के बाद, यहोवा ने उसे निर्वासन की दंडाज्ञा दी, लेकिन इसे इस आदेश के साथ संतुलित किया कि कोई मनुष्य उसे न मारे।—उत्पत्ति ४:८-१५.
५, ६. (क) प्रलय-पूर्व पीढ़ी के साथ यहोवा ने किस प्रकार की कार्रवाई की? (ख) सदोम और अमोरा के निवासियों के विरुद्ध न्याय दंड देने से पहले यहोवा ने क्या किया?
५ जल प्रलय से पहले, जब ‘यहोवा ने देखा, कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, वह मन में अति खेदित हुआ।’ (उत्पत्ति ६:५, ६) वह केवल इस हद तक “अति खेदित हुआ” कि प्रलय-पूर्व पीढ़ी के अधिकांश लोगों ने अपनी स्वतंत्र इच्छा का दुरुपयोग किया और कि उसे उन पर न्यायदंड लाना पड़ रहा था। फिर भी, उसने नूह को “धर्म के प्रचारक” के तौर से बहुत सालों तक प्रयोग करके उन्हें पर्याप्त चेतावनी दी। उसके बाद, यहोवा के पास कोई कारण नहीं था कि वह ‘भक्तिहीन संसार को दंड देने से पीछे हटे।’—२ पतरस २:५, NW.
६ सदोम और अमोरा के भ्रष्ट निवासियों के विरुद्ध मुकद्दमा करने के लिये यहोवा इसी प्रकार विवश था। लेकिन ग़ौर करें कि उसने किस प्रकार कार्रवाई की। धर्मी लूत की प्रार्थनाओं के कारण ही उसने इन लोगों के घृणित चाल-चलन के विषय में “चिल्लाहट” सुनी। (उत्पत्ति १८:२०; २ पतरस २:७, ८) लेकिन कार्रवाई करने से पहले, उसने अपने स्वर्गदूतों के ज़रिये “उतरकर” सच्चाई की जाँच की। (उत्पत्ति १८:२१, २२; १९:१) उसने इब्राहीम को पुनः आश्वासन देने के लिये भी समय निकाला कि वह नाहक़ कार्रवाई नहीं करेगा।—उत्पत्ति १८:२३-३२.
७. यहोवा के न्याय करने के ढंग के उदाहरणों से न्यायिक कमेटियों पर काम करनेवाले प्राचीन क्या सीख सकते हैं?
७ आज प्राचीन इन उदाहरणों से क्या सीख सकते हैं? आदम और हव्वा के मामले में, यहोवा ने उन लोगों के प्रति प्रेम और लिहाज़ दिखाया जो, जबकि दोषियों से सम्बन्धित थे लेकिन, इस मामले में दोषपूर्ण नहीं थे। उसने आदम और हव्वा के वंशज के प्रति दया दिखाई। कैन के मामले में, कैन किस ख़तरे में है इसका पूर्वानुमान यहोवा ने लगा लिया था और उसके साथ कृपालु ढंग से तर्क करके, उसे पाप करने से पहले ही रोकने की कोशिश की। उसे निर्वासित करने के बाद भी, यहोवा ने कैन के प्रति लिहाज़ दिखाया। इसके अतिरिक्त, यहोवा ने प्रलय-पूर्व पीढ़ी पर काफ़ी सहनशील धैर्य दिखाने के बाद ही न्यायदंड दिया। जब उसे हठीली दुष्टता का सामना करना पड़ा, तो यहोवा “मन में अति खेदित हुआ।” उसे इस बात का खेद था कि मनुष्यों ने उसके धर्मी शासन के विरुद्ध विद्रोह किया और कि वह उन्हें प्रतिकूल न्याय देने पर विवश था। (उत्पत्ति ६:६; यहेजकेल १८:३१; २ पतरस ३:९ से तुलना कीजिये.) सदोम और अमोरा के मामले में, यहोवा ने सच्चाई की जाँच करने के बाद ही कार्रवाई की। उनके लिये क्या ही बढ़िया उदाहरण जिन्हें आज मुकद्दमों को निपटाना पड़ता है!
कुलपतियों के समय में इंसानी न्यायी
८. कुलपतियों के समय में यहोवा के कौन से बुनियादी नियम ज्ञात थे?
८ हालाँकि यह प्रत्यक्ष है कि उस समय कोई लिखित नियमावली नहीं थी, पितृतंत्रीय समाज यहोवा के बुनियादी नियमों से परिचित था, और उसके सेवक उनका पालन करने के लिये बाध्य थे। (उत्पत्ति २६:५ से तुलना कीजिये.) अदन में हुए नाटक ने यहोवा की सर्वसत्ता के प्रति आज्ञाकारिता और अधीनता रखने की ज़रूरत को दिखा दिया था। कैन के मामले ने प्रगट कर दिया था कि यहोवा हत्या को अस्वीकार करता है। जल-प्रलय के तुरन्त बाद, यहोवा ने मानवजाति को जीवन की पवित्रता, हत्या, मृत्यु दंड और खून को खाने से सम्बन्धित नियम दिये थे। (उत्पत्ति ९:३-६) इब्राहीम, सारा, और गरार, जो गाज़ा के निकट है, के राजा अबीमेलेक से संबद्ध घटना के दौरान यहोवा ने परगमन की कड़ी निन्दा की।—उत्पत्ति २०:१-७.
९, १०. कौनसे उदाहरण दिखाते हैं कि पितृतंत्रीय समाज में एक न्यायिक व्यवस्था थी?
९ उन दिनों में परिवारों के मुखिया न्यायियों के रूप में काम करते थे और क़ानूनी समस्याओं को निपटाते थे। यहोवा ने इब्राहीम के विषय मे कहा: “मैं जानता हूं, कि वह अपने पुत्रों और परिवार को जो उसके पीछे रह जाएंगे आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धर्म और न्याय करते रहें।” (उत्पत्ति १८:१९) इब्राहीम ने स्वयं अपने और लूत के चरवाहों के बीच झगड़े को निपटाने में निःस्वार्थता और विवेचन क्षमता दिखायी। (उत्पत्ति १३:७-११) पितृतंत्रीय मुखिया और न्यायी का काम करते हुए, यहूदा ने अपनी बहू तामार को, यह विश्वास करते हुए कि वह एक परपुरुषगामिनी है, पत्थरवाह करके मारने और जला देने की दंडाज्ञा दी। (उत्पत्ति ३८:११, २४; यहोशू ७:२५ से तुलना कीजिये.) बहरहाल, जब उसने सारी असलीयत जान ली, तब उसने उसे अपने से ज़्यादा धर्मी ठहराया। (उत्पत्ति ३८:२५, २६) एक न्यायिक निर्णय लेने से पहले सारी सच्चाई जान लेना कितना ज़रूरी है!
१० अय्यूब की पुस्तक एक न्यायिक व्यवस्था की ओर संकेत करती है और निष्पक्ष न्याय की चाह को दिखाती है। (अय्यूब १३:८, १०; ३१:११; ३२:२१) अय्यूब स्वयं उस समय का संस्मरण करता है जब वह एक आदरणीय न्यायी था जो नगर के फाटक पर बैठकर न्याय करता था और विधवाओं और अनाथों के हितों की रक्षा करता था। (अय्यूब २९:७-१६) अतः, इसका प्रमाण है कि पितृतंत्रीय समाज में, “पुरनिये” इब्राहीम के वंशज के बीच निर्गमन और इस्राएल के राष्ट्र को परमेश्वर-प्रदत्त क़ानूनी संविधान से पहले भी न्यायियों का काम किया करते थे। (निर्गमन ३:१६, १८) वास्तव में, व्यवस्था वाचा की शर्तें मूसा ने इस्राएल के “पुरनियों,” या प्राचीनों को पेश कीं, जो लोगों का प्रतिनिधित्व करते थे।—निर्गमन १९:३-७.
इस्राएल की न्यायिक व्यवस्था
११, १२. दो बाइबल विद्वानों के अनुसार, किस वजह से इस्राएल की न्यायिक व्यवस्था दूसरे राष्ट्रों से भिन्न थी?
११ इस्राएल में न्यायकरण आस-पास के राष्ट्रों की क़ानूनी कार्यप्रणाली से काफ़ी भिन्न था। व्यवहार-विधि और दण्ड-विधि में कोई भिन्नता नहीं की जाती थी। दोनों नैतिक और धार्मिक नियमों के साथ गुथे हुए थे। अपने पड़ोसी के विरुद्ध अपराध यहोवा के विरुद्ध अपराध था। लेखक आन्द्रे शूरॉकी अपनी पुस्तक बाइबल के लोग और विश्वास (The People and the Faith of the Bible) में लिखते हैं: “इब्रानियों की न्यायिक परंपरा उसके पड़ोसियों से केवल अपराध और दंड की परिभाषा में ही नहीं बल्कि क़ानून के सही अर्थ में भी भिन्न है। . . . तोराह [नियम] दैनिक जीवन से अलग नहीं है; यह आशीष या श्राप बनकर दैनिक जीवन की रीति और गतिविधियों पर नियंत्रण रखता है। . . . इस्राएल में . . . नगर के न्यायिक क्रियाकलापों में स्पष्ट अलगाव करना लगभग असम्भव है। वे एक ऐसे जीवन की एकता में छिपे हुए थे जो जीवित परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए पूरी तरह निर्दिष्ट है।”
१२ इस बेजोड़ स्थिति ने इस्राएल में न्याय के प्रशासन को समकालीन राष्ट्रों से कहीं ऊँचे स्तर पर कर दिया था। बाइबल विद्वान रॉलॅन ड वो लिखते हैं: “इस्राएली नियम, ढाँचे और अंतर्वस्तु में मिलता-जुलता होने के बावजूद भी, मध्य-पूर्व की ‘संधियों’ के खंडों और उनके ‘नियमों’ के अंतर्नियमों से अति भिन्न है। यह एक धार्मिक नियम है। . . . किसी भी मध्य-पूर्वी नियम की तुलना इस्राएली नियम से नहीं की जा सकती, जिसका सम्पूर्ण श्रेय परमेश्वर, इसके रचनाकार को दिया जाता है। यदि इस में नैतिक और धार्मिक विनियम हैं, और अक़सर मिलाए जाते हैं, तो ऐसा इसलिये है कि यह ईश्वरीय वाचा के पूरे क्षेत्र को सम्मिलित करता है, और क्योंकि यह वाचा लोगों के एक दूसरे से सम्बन्ध और उनके परमेश्वर से सम्बन्ध को भी नियंत्रित करती थी। यह आश्चर्य की बात नहीं कि मूसा ने पूछा: “कौन ऐसी बड़ी जाति है जिसके पास ऐसी धर्ममय विधि और नियम हों, जैसी कि यह सारी व्यवस्था जिसे मैं आज तुम्हारे साम्हने रखता हूं?”—व्यवस्थाविवरण ४:८.
इस्राएल में न्यायी
१३. आज के प्राचीनों के लिये किन सम्बन्धों में मूसा एक उत्तम उदाहरण था?
१३ इतनी उच्च न्यायिक व्यवस्था के होने के साथ, न्यायी के रूप में काम करने के लिये किस प्रकार के आदमी की ज़रूरत थी? इस्राएल में सबसे पहले नियुक्त न्यायी के विषय में बाइबल कहती है: “मूसा तो पृथ्वी भर के रहने वाले सब मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था।” (गिनती १२:३) वह अपने बारे में अतिविश्वस्त नहीं था। (निर्गमन ४:१०) जबकि उससे लोगों का न्याय करने की मांग थी, कभी-कभी वह यहोवा के सामने उनका हिमायती भी बना, उन्हें माफ़ कर देने की विनती करते हुए उनके बदले में अपना बलिदान देने का प्रस्ताव भी रखा। (निर्गमन ३२:११, ३०-३२) उसने काव्यात्मक ढंग से कहा: “मेरा उपदेश मेंह की नाईं बरसेगा, और मेरी बातें ओस की नाईं टपकेंगी, जैसे कि हरी घास पर झीसी, और पौधों पर झड़ियां।” (व्यवस्थाविवरण ३२:२) अपनी बुद्धि के सहारे लोगों का न्याय करने के बजाय, उसने घोषित किया: “जब जब उनका कोई मुकद्दमा होता है तब तब वे मेरे पास आते हैं, और मैं उनके बीच न्याय करता, और परमेश्वर की विधि और व्यवस्था उन्हें जताता हूं।” (निर्गमन १८:१६) कोई संदेह होने पर, वह मुक़द्दमा यहोवा को सौंप देता था। (गिनती ९:६-८; १५:३२-३६; २७:१-११) उन प्राचीनों के लिये जो आज ‘परमेश्वर के झुंड की रखवाली करते हैं,’ और न्यायिक निर्णय करते हैं, मूसा एक उत्तम उदाहरण था। (प्रेरितों २०:२८) अपने भाइयों के साथ इनका सम्बन्ध उसी प्रकार “हरी घास पर झीसी” के समान साबित हो।
१४. उन पुरुषों की क्या आध्यात्मिक योग्यताएँ थीं जिन्हें मूसा ने इस्राएल में न्यायी नियुक्त किया था?
१४ कुछ समय बाद मूसा लोगों के न्यायिक मुकद्दमों के बोझ को अकेले ढोने में असमर्थ हो गया। (निर्गमन १८:१३, १८) उसने दूसरों से मदद लेने के अपने ससुर के सुझाव को स्वीकार किया। फिर, किस क़िस्म के आदमी चुने गये? हम पढ़ते हैं: “इन सब लोगों में से ऐसे पुरुषों को छांट ले, जो गुणी, और परमेश्वर का भय मानने वाले, सच्चे, और अन्याय के लाभ से घृणा करने वाले हों; . . . सो उस ने सब इस्राएलियों में से गुणी गुणी पुरुष चुनकर उन्हें हज़ार-हज़ार, सौ-सौ, पचास-पचास, दस-दस लोगों के ऊपर प्रधान ठहराया। और वे सब लोगों का न्याय करने लगे; जो मुकद्दमा कठिन होता उसे तो वे मूसा के पास ले आते थे, और सब छोटे मुकद्दमों का न्याय वे आप ही किया करते थे।”—निर्गमन १८:२१-२६.
१५. इस्राएल में न्यायियों के रूप में काम करनेवालों की क्या योग्यताएँ थीं?
१५ यह देखा जा सकता है कि न्यायी के रूप में काम करने के लिये पुरुषों के चुनाव में उम्र ही एकमात्र आधार नहीं थी। मूसा ने कहा: “तुम अपने एक एक गोत्र में से बुद्धिमान और समझदार और अनुभवी पुरुष चुन लो, और मैं उन्हें तुम पर मुखिया ठहराऊंगा।” (व्यवस्थाविवरण १:१३, NW) मूसा उन बातों से अच्छी तरह वाकिफ़ था जो जवान एलीहू ने बहुत साल पहले कहीं थीं: “जो बुद्धिमान हैं वे बड़े बड़े लोग ही नहीं और न्याय के समझनेवाले बूढ़े ही नहीं होते।” (अय्यूब ३२:९) निश्चित रूप से, नियुक्त जनों को “अनुभवी पुरुष” होना था। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि उन्हें गुणी, परमेश्वर का भय मानने वाला, सच्चा, अन्याय के लाभ से घृणा करने वाला होना चाहिये था और जो बुद्धिमान और समझदार थे। इसलिये, यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि यहोशू २३:२ और २४:१ में बताए गये ‘मुख्य पुरुष’ और ‘न्यायी,’ उन्हीं आयतों मे बताए गये “वृद्ध लोगों” से भिन्न नहीं थे, बल्कि उन्हीं में से चुने गये थे।—इन्साइट ऑन द स्क्रिपचर्स, (Insight on the Scriptures) खंड २, पृष्ठ ५४९ देखिये।
न्याय करना
१६. मूसा द्वारा नए नियुक्त न्यायियों को दिये निर्देश के बारे में हमें क्या ग़ौर करना चाहिये?
१६ इन नियुक्त न्यायियों को दिये गये निर्देशों के विषय में मूसा ने कहा: “उस समय मैं ने तुम्हारे न्यायियों को आज्ञा दी, कि तुम अपने भाइयों के मुकद्दमे सुना करो, और उनके बीच और उनके पड़ोसियों और परदेशियों के बीच भी धर्म से न्याय किया करो। न्याय करते समय किसी का पक्ष न करना; जैसे बड़े की वैसे ही छोटे मनुष्य की भी सुनना; किसी का मुंह देखकर न डरना, क्योंकि न्याय परमेश्वर का काम है; और जो मुकद्दमा तुम्हारे लिये कठिन हो, वह मेरे पास ले आना, और मैं [मूसा], उसे सुनूंगा।”—व्यवस्थाविवरण १:१६, १७.
१७. न्यायियों के रूप में कौन नियुक्त किये गये, और राजा यहोशापात ने उन्हें क्या चेतावनी दी?
१७ स्वभावतः, मूसा के पास एक मुकद्दमा केवल उसके जीवन काल के दौरान ही लाया जा सकता था। अतः, कठिन मुकद्दमे याजकों, लेवियों, और ख़ास नियुक्त न्यायियों के पास ले जाने के लिये अतिरिक्त प्रबन्ध किये गये थे। (व्यवस्थाविवरण १७:८-१२; १ इतिहास २३:१-४; २ इतिहास १९:५, ८) उन न्यायियों से जिन्हें उसने यहूदा के नगर में नियुक्त किया था, राजा यहोशापात ने कहा: “सोचो कि क्या करते हो, क्योंकि तुम जो न्याय करोगे, वह मनुष्य के लिये नहीं, यहोवा के लिये करोगे; . . . यहोवा का भय मानकर, सच्चाई और निष्कपट मन से ऐसा करना। तुम्हारे भाई जो अपने अपने नगर में रहते हैं, उन में से जिसका कोई मुकद्दमा तुम्हारे साम्हने आए, . . . उनको चिता देना, कि यहोवा के विषय दोषी न होओ। ऐसा न हो कि तुम पर और तुम्हारे भाइयों पर उसका क्रोध भड़के। ऐसा करो तो तुम दोषी न ठहरोगे।”—२ इतिहास १९:६-१०.
१८. (क) वे कुछ सिद्धान्त क्या थे जिन्हें इस्राएल में न्यायियों को अमल में लाना था? (ख) न्यायियों को क्या याद रखना था, और कौन से शास्त्रवचन उनका इसे भूल जाने के परिणाम को दिखाते हैं?
१८ निम्नलिखित सिद्धान्त उन में से हैं जो इस्राएल में न्यायियों को अमल में लाने थे: अमीर और ग़रीब के लिये बराबर न्याय (निर्गमन २३:३, ६; लैव्यव्यवस्था १९:१५); सख़्त निष्पक्षता (व्यवस्थाविवरण १:१७); घूस न लेना। (व्यवस्थाविवरण १६:१८-२०) न्यायियों को यह निरन्तर याद रखना था कि वे जिनका न्याय कर रहे थे वे यहोवा की भेड़ें थीं। (भजन १००:३) वास्तव में, शारीरिक इस्राएल के याजकों और चरवाहों ने धार्मिकता से न्याय नहीं किया और लोगों के साथ कठोर व्यवहार किया, यह एक कारण था जिसकी वजह से यहोवा ने उनको अस्वीकार किया।—यिर्मयाह २२:३, ५, २५; २३:१, २; यहेजकेल ३४:१-४; मलाकी २:८, ९.
१९. सामान्य युग से पहले यहोवा के न्याय के स्तर का परिक्षण करने से हमें क्या लाभ है, और अगले लेख में किस बात पर विचार किया जायेगा?
१९ यहोवा बदलता नहीं है। (मलाकी ३:६) इस्राएल में न्याय किस ढंग से दिया जाना चाहिये था और यहोवा ने किसी भी तरह की नाइन्साफ़ी को किस नज़रिये से देखा, इसके संक्षिप्त पुनर्विचार से उन प्राचीनों को रुककर सोचने के लिये मजबूर हो जाना चाहिये जो आज न्यायिक निर्णय देने के लिये ज़िम्मेदार हैं। न्यायी के रूप में यहोवा के उदाहरण, और उसके द्वारा इस्राएल में न्यायिक व्यवस्था की स्थापना, ने सिद्धान्त स्थापित किये जो मसीही कलीसिया में न्यायकरण के लिये नमूना बने। इसे हम अगले लेख में देखेंगे।
पुनर्विचार के प्रश्न
▫ यहोवा के न्याय करने के ढंग का सारांश किस तरह किया जा सकता है?
▫ कैन और प्रलय-पूर्व पीढ़ी के साथ बर्ताव में यहोवा का ढंग किस प्रकार एक सोदाहरण प्रमाणित हुआ?
▫ कुलपतियों के समय में कौन न्यायियों के रूप में काम करते थे, और कैसे?
▫ किस वजह से इस्राएल की न्यायिक व्यवस्था दूसरे राष्ट्रों से भिन्न थी?
▫ किस क़िस्म के पुरुष इस्राएल में न्यायी नियुक्त होते थे, और उन्हें किन सिद्धान्तों पर चलना चाहिये था?
[पेज 10 पर तसवीरें]
कुलपतियों के समय में और इस्राएल में, नियुक्त पुरनिये नगर के फाटक पर न्याय किया करते थे