सभी सच्चे मसीहियों को सुसमाचारक होना चाहिए
“एक सुसमाचारक का [या, मिशनरी का] काम कर।”—२ तीमुथियुस ४:५, फुटनोट, NW.
१. वह सुसमाचार क्या था जो पहली सदी में सुसमाचारकों ने प्रचार किया?
आज एक सुसमाचारक होने का क्या अर्थ है? क्या आप एक हैं? यह शब्द “सुसमाचारक” यूनानी शब्द इयू·एग·गॅ·लि·स्टीसʹ (eu·ag·ge·li·stesʹ) से आता है, जिसका अर्थ है “सुसमाचार का प्रचारक।” सा.यु. ३३ में मसीही कलीसिया की स्थापना के समय से, मसीही सुसमाचार ने परमेश्वर द्वारा उद्धार के साधन को विशिष्ट किया तथा यह घोषित किया कि यीशु मसीह मानव-जाति पर राज्य शासन शुरू करने के लिए कुछ समय बाद लौटकर आएगा।—मत्ती २५:३१, ३२; २ तीमुथियुस ४:१; इब्रानियों १०:१२, १३.
२. (क) सुसमाचार का सारांश हमारे दिनों में कैसे सम्पन्न किया गया है? (ख) आज सभी मसीहियों का क्या कर्तव्य बनता है?
२ उन्नीस सौ चौदह से, प्रमाण बढ़ने लगे कि जो चिन्ह यीशु ने अपने लौटने तथा अदृश्य उपस्थिति के विषय में दिया था, वह पूरा हो रहा था। (मत्ती २४:३-१३, ३३) एक बार फिर, सुसमाचार “परमेश्वर का राज्य निकट है” के शब्दों को शामिल कर सकता था। (लूका २१:७, ३१; मरकुस १:१४, १५) निश्चय ही, अब समय आ गया था कि मत्ती २४:१४ में दी गयी यीशु की भविष्यवाणी की शानदार पूर्ति हो: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” इसलिए, अब सुसमाचार के प्रचार में, परमेश्वर के स्थापित राज्य तथा जो आशीषें यह जल्द ही आज्ञाकारी मानव-जाति के लिए लाएगा, को घोषित करना शामिल है। सब मसीही इस कार्य को करने तथा ‘चेले बनाने’ की आज्ञा के आधीन हैं।—मत्ती २८:१९, २०; प्रकाशितवाक्य २२:१७.
३. (क) “सुसमाचारक” शब्द का और अतिरिक्त अर्थ क्या है? (इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स, खण्ड १, पृष्ठ ७७०, स्तम्भ २, परिच्छेद २ देखिए.) (ख) इससे क्या सवाल उठते हैं?
३ सुसमाचार को सामान्य रूप से प्रचार करने के साथ-साथ, बाइबल “सुसमाचारक” शब्द को उन लोगों के संबंध में एक विशेष अर्थ में प्रयोग करती है, जो अछूते क्षेत्रों में सुसमाचार प्रचार करने के लिये अपने गृह क्षेत्र को छोड़ते हैं। पहली सदी में, बहुत से मिशनरी सुसमाचारक थे, जैसे फिलिप्पुस, पौलुस, बरनबास, सीलास, तथा तीमुथियुस। (प्रेरितों २१:८; इफिसियों ४:११) परन्तु १९१४ से हमारे विशेष समय के बारे में क्या? क्या यहोवा के लोगों ने आज अपने आपको स्थानीय तथा मिशनरी सुसमाचारकों के तौर पर उपलब्ध बनाया है?
१९१९ के समय से प्रगति
४, ५. उन्नीस सौ चौदह के कुछ ही समय बाद सुसमाचार प्रचार कार्य के लिए सम्भावनाएँ क्या थीं?
४ जब १९१८ में प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हुआ, तो परमेश्वर के सेवकों ने धर्मत्यागियों तथा मसीही जगत के पादरी व उनके राजनीतिक मित्रों दोनों से बढ़ते विरोध का अनुभव किया। असल में, जून १९१८ में वास्तविक मसीही सुसमाचार का प्रचार क़रीब-क़रीब रुक ही गया था जब अमेरिका में वॉच टावर सोसाइटी के अग्रगामी अधिकारियों को झूठे अभियोग पर २० साल के क़ैद की दंडाज्ञा दी गई। क्या परमेश्वर के शत्रु, सुसमाचार के प्रचार का अन्त करने में सफ़ल हो गये थे?
५ अचानक ही, मार्च १९१९ में संस्था के अधिकारियों को छोड़ा गया और बाद में वे उन सब झूठे अभियोग से, जिन के कारण वे क़ैदखाने में थे, बरी किये गये। अपनी नई स्वतंत्रता को पाकर, इन अभिषिक्त मसीहियों को महसूस हुआ कि परमेश्वर के राज्य में संगी वारिस के तौर पर उनका उनके स्वर्गीय इनाम के लिए उठाए जाने से पहले अभी बहुत कार्य बाकी था।—रोमियों ८:१७; २ तीमुथियुस २:१२; ४: १८.
६. उन्नीस सौ उन्नीस और १९३९ के बीच में सुसमाचार प्रचार कार्य में कैसी प्रगति हुई?
६ आगे १९१९ में ४,००० से भी कम लोग थे जिन्होंने सुसमाचार को फैलाने में भाग लेने की रिपोर्ट दी। अगले दो दशकों के दौरान, कई व्यक्तियों ने अपने आपको मिशनरी सुसमाचारकों के तौर पर पेश किया, और कुछेक को अफ्रीका, एशिया, तथा यूरोप के देशों में भेजा गया। उन्नीस सौ उन्तालीस में, राज्य प्रचार के २० साल बाद, यहोवा के गवाह बढ़कर ७३,००० से अधिक हो गये थे। यह विशिष्ट बढ़ोतरी, जो काफ़ी सताहट के बावजूद प्राप्त हुई, उसी बढ़ोतरी के समान थी जो मसीही कलीसिया के प्रारम्भिक वर्षों में हुई थी।—प्रेरितों ६:७; ८:४, १४-१७; ११:१९-२१.
७. सा.यु. ४७ और १९३९ के वर्षों में, मसीही सुसमाचार प्रचार कार्य के सम्बन्ध में क्या समान स्थिति थी?
७ तो भी, यहोवा के अधिकांश गवाह उस समय अंग्रेज़ी बोलनेवाले प्रोटेस्टेंट देशों में संकेन्द्रित थे। असल में, ७३,००० राज्य प्रचारकों में ७५ प्रतिशत से अधिक तो ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, न्यू ज़ीलैंड, तथा अमेरिका से थे। जैसे लगभग सा.यु. ४७ में स्थिति थी, वैसे ही सुसमाचारकों को प्रोत्साहित करने के लिए किसी चीज़ की ज़रूरत थी कि वे पृथ्वी के कम काम किए हुए देशों को ज़्यादा ध्यान दें।
८. उन्नीस सौ बानवे तक, गिलियड स्कूल क्या कुछ करने में सफ़ल हुआ?
८ युद्धकालीन पाबंदियाँ तथा सताहटें यहोवा की शक्तिशाली पवित्र आत्मा को उसके सेवकों को अधिक विस्तार करने के लिए तैयार होने के लिए अभिप्रेरित करने से न रोक सकीं। उन्नीस सौ तितालीस में, जब द्वितीय विश्वयुद्ध अपने शिखर पर था, परमेश्वर के संगठन ने सुसमाचार को और दूर-दूर तक फैलाने के उद्देश्य के साथ वॉचटावर स्कूल ऑफ गिलियड स्थापित किया। मार्च १९९२ तक, यह स्कूल ६,५१७ मिशनरियों को १७१ अलग-अलग देशों में भेज चुका था। इसके अतिरिक्त, विदेश में वॉच टावर सोसाइटी की शाखाओं की देख-भाल करने के लिए पुरुषों को प्रशिक्षण दिया गया। उन्नीस सौ बानवे में ९७ शाखा कमेटी कोऑर्डिनेटरों में से, ७५ को गिलियड में प्रशिक्षण मिला था।
९. सुसमाचार प्रचार तथा शिष्य बनाने के कार्य की उन्नति में किन प्रशिक्षण कार्यक्रमों ने भूमिका अदा की है?
९ गिलियड स्कूल के अलावा, दूसरे प्रशिक्षण कार्यक्रमों ने यहोवा के लोगों को अपने सुसमाचार प्रचार कार्य को फैलाने तथा सुधारने के लिए तैयार किया है। उदाहरण के लिए, थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल पृथ्वी भर में यहोवा के गवाहों की कलीसियाओं में परिचालित है। साप्ताहिक सेवा सभा के साथ-साथ, इस प्रबंध ने लाखों राज्य प्रचारकों को सार्वजनिक सेवकाई में प्रभावकारी होने के लिए प्रशिक्षण दिया है। फिर राज्य सेवकाई स्कूल भी है, जिसने प्राचीनों तथा सहायक सेवकों को बहुमूल्य प्रशिक्षण दिया है ताकि वे बढ़ती हुई कलीसियाओं की देख-भाल ज़्यादा अच्छी तरह से कर सकें। पायनियर सेवा स्कूल ने बहुत से पूर्ण-समय के सुसमाचारकों को अपने प्रचार कार्य में और प्रभावकारी बनने के लिए सहायता की है। और हाल में, अलग-अलग देशों में मिनिस्टीरियल ट्रेनिंग स्कूल परिचालित हुआ है ताकि अविवाहित प्राचीनों तथा सहायक सेवकों को आधुनिक-दिन के तीमुथियुस बनने के लिए सहायता दी जा सके।
१०. परमेश्वर के संगठन द्वारा प्रबन्ध किये सब उत्तम प्रशिक्षण का क्या परिणाम हुआ है? (पेटी में दी गयी जानकारी को सम्मिलित कीजिए.)
१० इन सब प्रशिक्षण का क्या परिणाम हुआ? उन्नीस सौ इक्यानवे में, यहोवा के गवाह ४० लाख से कहीं अधिक राज्य उद्घोषकों के शिखर तक पहुँच चुके थे जो कि २१२ देशों में सक्रिय थे। परन्तु, १९३९ की स्थिति से भिन्न, इन में ७० प्रतिशत लोग कैथोलिक, ऑरथोडॉक्स, ग़ैर-मसीही, या दूसरे देशों से हैं, जहाँ अंग्रेज़ी प्रधान भाषा नहीं है।—“१९३९ के समय से विस्तार” पेटी को देखिए.
क्यों सफल
११. प्रेरित पौलुस ने अपने एक सफ़ल सेवक होने का श्रेय किस को दिया?
११ यहोवा के गवाह इस विस्तार के लिए श्रेय नहीं लेते हैं। इस के बजाय, वे अपने कार्य को उसी दृष्टि से देखते हैं जिस दृष्टि से प्रेरित पौलुस देखता था, जैसे उसने कुरिन्थियों को लिखी अपनी पत्री में स्पष्ट किया। “अपुल्लोस क्या है? और पौलुस क्या? केवल सेवक, जिन के द्वारा तुम ने विश्वास किया, जैसा हर एक को प्रभु ने दिया। मैं ने लगाया, अपुल्लोस ने सींचा, परन्तु परमेश्वर ने बढ़ाया। इसलिये न तो लगानेवाला कुछ है, और न सींचनेवाला, परन्तु परमेश्वर जो बढ़ानेवाला है। क्योंकि हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं; तुम परमेश्वर की खेती और परमेश्वर की रचना हो।”—१ कुरिन्थियों ३:५-७, ९.
१२. (क) सफ़ल मसीही सुसमाचार प्रचार में परमेश्वर का वचन क्या भूमिका अदा करता है? (ख) कौन मसीही कलीसिया के सिर के रूप में नियुक्त हुआ है, और उसकी अध्यक्षता के प्रति हमारी अधीनता को प्रदर्शित करने का एक महत्त्वपूर्ण तरीक़ा क्या है?
१२ इस में कोई संदेह नहीं कि यहोवा के गवाहों के मध्य हुई चमत्कारिक वृद्धि का कारण परमेश्वर की आशीष है। यह परमेश्वर का कार्य है। इस तथ्य को समझते हुए, वे नियमित रूप से परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने में अपने आपको निरन्तर लगाए रहते हैं। वे अपने सुसमाचार प्रचार के कार्य में जो भी सिखाते हैं, उसे वे बाइबल पर आधारित करते हैं। (१ कुरिन्थियों ४:६; २ तीमुथियुस ३:१६) उनके सफ़ल सुसमाचार-प्रचार की एक और कुंजी यह है कि उन्होंने प्रभु यीशु मसीह को पूरी तरह से स्वीकार किया जिसे परमेश्वर ने कलीसिया के सिर के तौर पर नियुक्त किया है। (इफिसियों ५:२३) जिन्हें यीशु ने प्रेरितों के तौर पर नियुक्त किया था, उनको सहयोग देकर पहली सदी के मसीहियों ने यह स्वीकृती दिखाई। पहली सदी का मसीही शासी निकाय, यरूशलेम कलीसिया के दूसरे प्राचीनों के साथ-साथ, इन्हीं व्यक्तियों से बना था। समस्याओं को सुलझाने तथा सुसमाचार प्रचार के कार्य का निर्देशन करने के लिए स्वर्ग से प्रभु यीशु मसीह ने प्रौढ़ मसीहियों के इस समूह का प्रयोग किया। पौलुस का इस ईश्वरीय प्रबंध को उत्साहपूर्ण सहयोग देने से, उन कलीसियाओं में वृद्धि हुई जहाँ उसने भेंट की। (प्रेरितों १६:४, ५; गलतियों २:९) वैसे ही आज, परमेश्वर के वचन को दृढ़ता से पकड़े रहने तथा शासी निकाय की ओर से आये निर्देशन को उत्साहपूर्वक सहयोग देने से, मसीही सुसमाचारकों को यह आश्वासन है कि उन्हें उनकी सेवकाई में सफलता मिलेगी।—तीतुस १:९; इब्रानियों १३:१७.
दूसरों को अपने से अच्छा समझना
१३, १४. (क) प्रेरित पौलुस ने क्या सलाह दी जो फिलिप्पियों २:१-४ में दर्ज़ है? (ख) सुसमाचार प्रचार कार्य में भाग लेते समय इस सलाह को याद रखना क्यों ज़रूरी है?
१३ प्रेरित पौलुस ने सत्य के खोजियों के लिए सच्चा प्रेम दिखाया और एक अभिमानी या प्रजातिवादी मनोवृत्ति नहीं प्रदर्शित की। इसलिए, वह संगी विश्वासियों को सलाह दे सकता था कि ‘दूसरों को अपने से अच्छा समझो।’—फिलिप्पियों २:१-४.
१४ इसी समान, सच्चे मसीही सुसमाचारक आज अलग-अलग जाति तथा संस्कृति के लोगों से व्यवहार करते समय एक अभिमानी मनोवृत्ति नहीं रखते हैं। अफ्रीका में मिशनरी के तौर पर कार्य करने के लिए नियुक्त किया गया एक अमेरिका से आया यहोवा का गवाह, कहता है: “बस मैं जानता हूँ कि हम वरिष्ट नहीं हैं। शायद हमारे पास ज़्यादा पैसा है तथा वह जिसे हम तात्त्विक शिक्षा कहते हैं, लेकिन उन [स्थानीय लोगों] के पास वे गुण हैं जो हमारे गुणों से बढ़कर हैं।”
१५. विदेश में काम करने के लिए नियुक्त किए हुए लोग कैसे संभावित शिष्यों के लिए सच्चा आदर दिखा सकते हैं?
१५ निश्चय ही, जिन को हम सुसमाचार सुनाते है, उनके प्रति सच्चा आदर दिखाकर हम उनके लिए बाइबल के संदेश को स्वीकार करना अधिक आसान बनाएँगे। जब एक मिशनरी सुसमाचारक यह दिखाए कि वह उन लोगों के बीच में रहकर ख़ुश है जिनकी सहायता करने के लिए वह नियुक्त किया गया है, तो यह भी सहायता करता है। एक सफ़ल मिशनरी जिस ने अफ्रीका में पिछले ३८ साल बिताए हैं, समझाता है: “मैं अपने मन की गहराई से महसूस करता हूँ कि यही मेरा घर है, और जिस कलीसिया में मुझे नियुक्त किया गया है वहां के लोग मेरे भाई-बहन हैं। जब मैं वापस कनाडा छुट्टियों पर जाता था, तो मुझे घर जैसा महसूस नहीं होता था। कनाडा में आख़री कुछ दिन, मैं वापस आने को तड़प रहा था। मैं हमेशा ऐसा ही महसूस करता हूं। मैं अपने बाइबल विद्यार्थियों को तथा भाई-बहनों को बताता हूं कि मैं वापस आकर कितना ख़ुश हूँ, और वे मूल्यांकन करते हैं कि मैं उनके साथ होना चाहता हूँ।”—१ थिस्सलुनीकियों २:८.
१६, १७. (क) अपनी सेवकाई में अधिक प्रभावकारी होने के लिए बहुत से मिशनरियों तथा स्थानीय सुसमाचारकों ने कौनसी चुनौती को स्वीकार किया है? (ख) स्थानीय भाषा में बोलने से एक मिशनरी को क्या अनुभव प्राप्त हुआ?
१६ जब वे अपने स्थानीय क्षेत्रों में एक बड़े विदेशी-भाषा अंतःक्षेत्र पाते हैं, तो कई एक ने उस भाषा को सीखने का यत्न किया है, इससे दिखाते हुए कि वे दूसरों को अपने से अच्छा समझते है। “दक्षिणी अफ्रीका में,” एक मिशनरी कहता है, “कभी-कभी अफ्रीकी संस्कृति के लोग तथा यूरोपीय संस्कृति के लोगों के बीच अविश्वास की भावना होती है। परन्तु हमारा स्थानीय भाषा में बात करने से यह भावना जल्द ही ख़त्म हो जाती है।” जिन को हम सुसमाचार सुनाते है, उनकी ही भाषा बोलना उनके हृदय तक पहुंचने के लिए एक बृहत् सहायता है। कठिन कार्य तथा विनम्र प्रयत्न की ज़रूरत होती है। एक मिशनरी जो एक एशियाई देश में है, स्पष्ट करता है: “गलतियाँ करते जाना जब कि तुम्हारी गलतियों के लिए लगातार तुम्हारी हँसी उड़ाई जा रही हो, एक परीक्षा हो सकती है। शायद हार मान लेना ज़्यादा आसान लगे।” फिर भी, परमेश्वर तथा पड़ोसियों के प्रति प्रेम ने इस मिशनरी को प्रयत्न करते रहने में सहायता की।—मरकुस १२:३०, ३१.
१७ स्वाभाविक रूप से, जब एक विदेशी उन्हीं की भाषा में सुसमाचार सुनाने का यत्न करता है तो यह बात उनके हृदय को छू लेती है। कभी-कभी इसका परिणाम अनपेक्षित आशीषें होती हैं। अफ्रीकी देश लसोटो में एक मिशनरी सेसुटु भाषा में एक दूसरी औरत से बात कर रही थी, जो चित्रकम्बल दूकान में काम करती थी। दूसरे एक अफ्रीकी देश से आये सरकारी मंत्री उस इलाके का दौरा कर रहा था और उसने यह वार्तालाप सुन ली। उसने आकर बहन को हार्दिक शाबाशी दी, जिस पर वह उस सरकारी मंत्री से उसकी ही भाषा में बात करने लगी। “जबकि आप स्वाहीली भाषा भी जानती हैं, तो आप [मेरे देश] में आकर हमारे लोगों के बीच क्यों नहीं काम करतीं?” उसने पूछा। कुशलतापूर्वक, उस मिशनरी ने जवाब दिया: “यह तो बहुत अच्छा होगा। किन्तु मैं एक यहोवा की गवाह हूँ, और इस समय आपके देश में हमारा कार्य ग़ैरकानूनी माना जाता है।” “कृपया,” उसने जवाब दिया, “ऐसे न सोचिए कि हम सब आपके कार्य के विरुद्ध हैं। हम में से बहुत से लोग यहोवा के गवाहों के पक्ष में हैं। शायद एक दिन आप हमारे लोगों के बीच में खुलकर सिखा सकेंगी।” कुछ समय बाद, वह मिशनरी यह सुनकर बहुत रोमांचित हुई कि उसी देश में यहोवा के गवाहों को उपासना की स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई है।
अधिकारों को त्यागने के लिए तत्पर
१८, १९. (क) कौन से महत्त्वपूर्ण तरीक़े से पौलुस ने अपने स्वामी, यीशु मसीह, का अनुकरण करने का यत्न किया? (ख) एक अनुभव (परिच्छेद में दिया गया या आपका अपना) सुनाइये जो दिखाये कि जिनको हम सुसमाचार सुनाते हैं, उनको कोई ठोकर का कारण देने से बचे रहना कितना ज़रूरी है।
१८ जब प्रेरित पौलुस ने लिखा: “तुम मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूं,” वह दूसरों को ठोकर खिलाने से बचे रहने की ज़रूरत पर ही विचार-विमर्श कर रहा था, यह कहते हुए कि: “सो तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिये करो। तुम न यहूदियों, न यूनानियों, और न परमेश्वर की कलीसिया के लिये ठोकर के कारण बनो। जैसा मैं भी सब बातों में सब को प्रसन्न रखता हूं, और अपना नहीं, परन्तु बहुतों का लाभ ढूंढ़ता हूं, कि वे उद्धार पाएं।”—१ कुरिन्थियों १०:३१-३३; ११:१.
१९ पौलुस के समान सुसमाचारक जिन लोगों को प्रचार करते हैं वे उन के लाभ के लिए बलिदान करने को तत्पर हैं, और इससे वे आशीष प्राप्त करते हैं। उदाहरण के लिए, एक अफ्रीकी देश में, एक मिशनरी दंपति अपने विवाह-जयन्ती मनाने के लिए एक स्थानीय होटल में रात के खाने के लिए गये। पहले उनका इरादा था कि खाने के साथ मदिरा मंगवाएं, क्योंकि बाइबल में शराब के पेय के संयमी प्रयोग की मनाई नहीं है। (भजन १०४:१५) पर फिर इस दंपति ने ऐसा न करने का निर्णय किया ताकि ऐसा न हो कि स्थानीय लोगों को बुरा लगे। “कुछ समय के बाद,” पति याद करता है, “हमें एक आदमी मिला जो उस होटल में प्रधान रसोइया था, तथा हमने उसके साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया। काफ़ी समय बाद उसने हमें बताया: ‘क्या आपको याद है जब आप रात के खाने के लिए होटल आए थे? हम सब रसोई के दरवाज़े के पीछे से आप को देख रहे थे। जैसे आप जानते हैं, गिरजे के मिशनरियों ने हमें बताया कि हमारा पीना ग़लत है। परन्तु, जब वे होटल आते हैं, वे खुलकर मदिरा मंगवाते हैं। हम ने इसलिए निर्णय किया कि अगर आप कुछ पीने के लिए मंगवाते, तो हम आपकी बात नहीं सुनेंगे जब आप हमारे पास प्रचार करने को आते।’” आज, वह प्रधान रसोइया तथा उस होटल में काम करनेवाले कई दूसरे लोग बपतिस्मा प्राप्त गवाह हैं।
अभी भी काफ़ी कुछ करने को है
२०. उत्साहपूर्ण सुसमाचारकों के तौर पर हमारा बने रहना क्यों इतना ज़रूरी है, और बहुत से लोग किस आनंद-भरे विशेषाधिकार को पकड़ रहे हैं?
२० जैसे ही इस दुष्ट व्यवस्था का अन्त तेज़ी से निकट आता जा रहा है, बहुत लोग अभी भी सुसमाचार सुनने के लिए तरस रहे हैं, और अब पहले से अधिक अत्यावश्यक है कि हर एक मसीही वफ़ादार सुसमाचारक के तौर पर बना रहे। (मत्ती २४:१३) क्या आप फिलिप्पुस, पौलुस, बरनबास, सीलास, तथा तीमुथियुस की तरह एक विशेष अर्थ में सुसमाचारक बनकर इस कार्य में अपने भाग को बढ़ा सकते हैं? बहुत लोग पायनियर वर्ग में सम्मिलित होकर तथा उन जगहों पर जहां ज़्यादा ज़रूरत है सेवा करने के लिए अपने आप को उपलब्ध बनाकर ऐसा ही कुछ कर रहे हैं।
२१. किस तरह यहोवा के लोगों के लिए “एक उपयोगी और बड़ा द्वारा खुला” है?
२१ हाल ही में, अफ्रीका, एशिया, तथा पूर्वी यूरोप के देशों में सुसमाचार प्रचार करने के लिए विशाल क्षेत्र खुल गये हैं, जहां पहले यहोवा के गवाहों के कार्य पर प्रतिबन्ध लगाया गया था। जैसे प्रेरित पौलुस के साथ हुआ, यहोवा के लोगों के लिए “एक बड़ा और उपयोगी द्वारा खुला है।” (१ कुरिन्थियों १६:९) उदाहरण के लिए, मिशनरी सुसमाचारक जो हाल ही में अफ्रीकी देश मोज़म्बिक में आये हैं, उन लोगों की गिनती को नहीं संभाल सकते हैं जो बाइबल अध्ययन चाहते हैं। हम कितने ख़ुश हो सकते हैं कि फरवरी ११, १९९१ से उस देश में यहोवा के गवाहों का कार्य वैध बनाया गया है!
२२. चाहे हमारे स्थानीय क्षेत्र में बहुत कार्य हुआ है या नहीं, हम सब को क्या करने के लिए दृढ़ रहना चाहिए?
२२ जहाँ हमें हमेशा उपासना की आज़ादी रही है, उन देशों में भी हमारे भाई लगातार वृद्धि का आनन्द ले रहे हैं। जी हाँ, हम जहाँ भी रहें, अभी भी ‘प्रभु के काम में काफ़ी कुछ करने को है।’ (१ कुरिन्थियों १५:५८, NW) ऐसी बात होने से, आइये हम शेष समय का बुद्धिमानी से प्रयोग करते रहें, जैसे-जैसे हम में से हरेक ‘सुसमाचार प्रचार का काम करे और अपनी सेवा को पूरा करे।’—२ तीमुथियुस ४:५; इफिसियों ५:१५, १६.
क्या आप समझा सकते हैं?
▫ सुसमाचारक क्या है?
▫ उन्नीस सौ चौदह के उपरान्त सुसमाचार का सारांश कैसे सम्पन्न किया गया?
▫ उन्नीस सौ उन्नीस से सुसमाचार प्रचार कार्य की प्रगति कैसे हुई है?
▫ किन मूल तत्त्वों ने सुसमाचार प्रचार कार्य में सहयोग दिया है?
[पेज 12 पर बक्स]
१९३९ के समय से विस्तार
तीन महाद्वीप से आए उदाहरणों पर विचार कीजिए, जहाँ गिलियड-प्रशिक्षित मिशनरी भेजे गये थे। आगे उन्नीस सौ उन्तालीस में पश्चिम अफ्रीका से सिर्फ़ ६३६ राज्य उद्घोषकों ने रिपोर्ट किया था। उन्नीस सौ इक्यानवे तक पश्चिम अफ्रीका के १२ देशों में यह गिनती बढ़कर २,००,००० से अधिक हो गई थी। दक्षिण अमेरिका के देशों में असाधारण वृद्धि में भी मिशनरियों का सहयोग है। एक है ब्राज़ील, जो १९३९ में ११४ राज्य उद्घोषकों से बढ़कर, अप्रैल १९९२ में ३,३५,०३९ हो गये। एशिया के देशों में मिशनरियों के आने के उपरान्त ऐसी ही समान वृद्धि हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, जापान में यहोवा के गवाहों की छोटी संख्या को कठोरतापूर्वक सताया गया, और उनका कार्य गतिरोध हो गया। फिर, १९४९ में, कार्य को पुनर्गठित करने में सहायता करने के लिए १३ मिशनरी पहुँचे। उस सेवा वर्ष में, पूरे जापान में दस से कम स्थानीय प्रचारकों ने क्षेत्र सेवकाई को रिपोर्ट किया, जबकि अप्रैल १९९२ में प्रचारकों का सर्वयोग १,६७,३७० तक पहुँचा।
[पेज 14 पर बक्स]
मसीही जगत और भाषा की समस्या
मसीही जगत के मिशनरियों में से कुछ एक ने विदेशी भाषा सीखने का मन लगाकर यत्न किया, परन्तु बहुतों ने स्थानीय लोगों से अपेक्षा की कि वे उनकी यूरोपीय भाषा बोलें। जैसे जैफ़री मोअरहाउस अपनी किताब द मिशनरीज़ (The Missionaries) में स्पष्ट करता है:
“समस्या यह थी कि स्थानीय भाषा की प्राप्ति को अकसर शास्त्रवचन का अनुवाद करने के एक साधन से बढ़कर कुछ नहीं समझा जाता था। तुलनात्मक दृष्टि से व्यक्तियों ने या उनको नियोजित करनेवाली संस्थाओं ने यह निश्चित करने के लिए थोड़ा ही यत्न किया, कि एक मिशनरी एक देशी के साथ उसी की भाषा में ऐसी वाक्पटुता से बात कर सके, केवल जिससे दो मनुष्यों के बीच गहरी समझ हो सकती है। हर मिशनरी स्थानीय शब्दावली का ऊपरी ज्ञान तो हासिल करता . . . इसके अलावा, संचार आम तौर पर नाममात्र पिजिन अंग्रेज़ी के घृण्य तथा बेतुके लय में किया जाता था, इस निर्विवाद धारणा के साथ कि अफ्रीकी देशी को अपने आपको अंग्रेज़ अतिथि की मर्यादों के अधीन करना ही होगा। बुरे से बुरा, यह प्रजातीय श्रेष्ठता का एक और प्रदर्शन था।”
उन्नीस सौ बाईस में लंडन में पूर्वी तथा अफ्रीकी अध्ययनों के स्कूल ने भाषा की समस्या पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की। “हमारा यह विचार है,” रिपोर्ट ने कहा, “कि मिशनरियों द्वारा स्थानीय बोली में प्राप्त की गई निपुणता का औसत स्तर . . . खेदपूर्वक और यहाँ तक कि घोर रूप से नीचा है।”
वॉच टावर सोसाइटी के मिशनरियों ने हमेशा स्थानीय भाषा को सीखना ज़रूरी समझा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उन्हें मिशनरी क्षेत्र में क्यों सफ़लता मिली है।