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  • मसीहा की उपस्थिति तथा उसका शासन
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
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मसीहा की उपस्थिति तथा उसका शासन

“यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा।”—प्रेरितों १:११.

१, २. (क) जब यीशु का स्वर्गारोहण हुआ तब उसके प्रेरितों को दो स्वर्गदूत ने कैसे सांत्वना दी? (ख) मसीह की वापसी की प्रत्याशा से क्या प्रश्‍न उठते हैं?

ग्यारह आदमी आकाश की ओर ताकते हुए, जैतून पहाड़ की पूर्वी ढाल पर खड़े थे। कुछ ही क्षण पहले उनके बीच में से यीशु मसीह का आरोहण हुआ था, और उसका रूप मन्द पड़ता गया जब तक कि बादलों ने उसे छिपा न लिया। उसके साथ बिताए वर्षों में, इन आदमियों ने यीशु को पर्याप्त प्रमाण देते हुए देखा था कि वह ही मसीहा था; उन्होंने उसकी मृत्यु के गहरे दुःख और उसके पुनरुत्थान के उल्लास का भी अनुभव किया था। अब वह चला गया था।

२ अचानक दो स्वर्गदूत दिखाई पड़े और ये सांत्वनापूर्ण शब्द कहे: “हे गलीली पुरुषो, तुम क्यों खड़े स्वर्ग की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा।” (प्रेरितों १:११) कितना आश्‍वासन मिलता है—यीशु के स्वर्गारोहण का यह अर्थ नहीं था कि उसे अब पृथ्वी और मानवजाति की कोई चिंता नहीं! इसके विपरीत, यीशु वापस आएगा। निःसंदेह इन शब्दों को सुनकर प्रेरित आशा से भर गए। आज भी लाखों लोग यीशु की वापसी की प्रतिज्ञा को बहुत महत्त्व देते हैं। कुछ लोग इसे “दूसरा आना” या “आगमन” कहते हैं। परन्तु, अधिकतर लोग अनिश्‍चित प्रतीत होते हैं कि मसीह की वापसी का वास्तव में अर्थ क्या है। मसीह किस रीति से वापस आएगा? कब? और आज हमारे जीवन पर यह कैसे प्रभाव डालता है?

मसीह की वापसी का ढंग

३. बहुत से लोग मसीह की वापसी के विषय में क्या विश्‍वास करते हैं?

३ ऐन इवैंजिलिकल क्रिस्टॉलिजी (An Evangelical Christology) पुस्तक के अनुसार, “मसीह का दूसरा आना या वापसी (पेरूसिया), परमेश्‍वर के राज्य को आख़िरकार, खुलेआम, और अनादिकाल के लिए स्थापित करता है।” यह व्यापक रूप से मानी गई बात है कि मसीह की वापसी प्रकट रूप से दृश्‍य होगी, और पृथ्वी-ग्रह पर हरेक व्यक्‍ति को यह शाब्दिक रूप से नज़र आएगी। इस धारणा का समर्थन करने के लिए, बहुत से लोग प्रकाशितवाक्य १:७ की ओर संकेत करते हैं, जो कहता है: “देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है; और हर एक आंख उसे देखेगी, बरन जिन्हों ने उसे बेधा था, वे भी उसे देखेंगे।” परन्तु क्या इस आयत को शाब्दिक रूप में लेना चाहिए?

४, ५. (क) हम कैसे जानते हैं कि प्रकाशितवाक्य १:७ का अर्थ शाब्दिक नहीं है? (ख) यीशु के अपने शब्द इस समझ को कैसे निश्‍चित करते हैं?

४ याद रखिए, प्रकाशितवाक्य की पुस्तक “चिह्नों में” पेश की गई है। (प्रकाशितवाक्य १:१, NW) यह परिच्छेद, फिर, प्रतीकात्मक होगा; फिर भी, “जिन्हों ने उसे बेधा था” वे लोग मसीह को वापस आते हुए कैसे देख सकते थे? उन्हें मरे तो तक़रीबन २० शताब्दियाँ बीत चुकी हैं! इसके अतिरिक्‍त, दूतों ने कहा कि मसीह “जिस रीति से” गया उसी रीति से लौटेगा। तो फिर, वह कैसे गया था? लाखों लोगों के देखते-देखते? नहीं, कुछ ही वफ़ादार जनों ने उस घटना को देखा। और जब स्वर्गदूतों ने उन से बात की, तब क्या प्रेरित स्वर्ग तक यीशु के सफ़र को शाब्दिक रूप से देख रहे थे? नहीं, बादलों ने यीशु को उनकी नज़रों से छिपा लिया था। इसके कुछ ही समय बाद, वह आत्मिक स्वर्ग में एक आत्मिक व्यक्‍ति के रूप में गया होगा, जो मानवी आंखों को अदृश्‍य था। (१ कुरिन्थियों १५:५०) सो, अधिक से अधिक, प्रेरितों ने केवल यीशु की यात्रा का आरंभ ही देखा; वे यात्रा का अन्त, उसका अपने पिता, यहोवा की स्वर्गीय उपस्थिति में लौटना, न देख सके। यह बात वे सिर्फ़ अपनी विश्‍वास की नज़रों से देख सकते थे।—यूहन्‍ना २०:१७.

५ बाइबल सिखाती है कि यीशु इसी रीति से वापस आता है। अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले स्वयं यीशु ने कहा: “थोड़ी देर रह गई है कि फिर संसार मुझे न देखेगा।” (यूहन्‍ना १४:१९, तिरछे टाइप हमारे.) उसने यह भी कहा कि “परमेश्‍वर का राज्य प्रगट रूप से नहीं आता” है। (लूका १७:२०) तो फिर, किस अर्थ में “हर एक आंख उसे देखेगी”? उत्तर देने के लिए, पहले आवश्‍यक है कि हम स्पष्ट रूप से उस शब्द को समझें जो यीशु और उसके अनुयायियों ने उसकी वापसी के सम्बन्ध में प्रयोग किया था।

६. (क) क्यों ‘वापस आना,’ “पहुँच,” “आगमन,” और “आना,” जैसे शब्द यूनानी शब्द पे·रू·सिʹया के उपयुक्‍त अनुवाद नहीं हैं? (ख) कौन-सी बात दिखाती है कि पे·रू·सिʹया, या “उपस्थिति,” किसी क्षणिक घटना से अधिक लम्बे समय तक रहती है?

६ सत्य तो यह है, मसीह सिर्फ़ ‘वापस आता’ ही नहीं, बल्कि उससे भी बढ़कर करता है। वह शब्द, “आना,” “पहुँच” या “आगमन” शब्दों की तरह, समय के एक क्षण में हुई एक ही घटना को संकेत करता है। परन्तु यीशु और उसके अनुयायियों ने जिस यूनानी शब्द का प्रयोग किया था उसका अर्थ इससे बढ़कर है। वह शब्द पे·रू·सिʹया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “साथ होना” या “उपस्थिति।” अधिकतर विद्वान्‌ लोग सहमत हैं कि यह शब्द केवल आगमन ही नहीं बल्कि अनुवर्ती उपस्थिति को भी सम्मिलित करता है—जैसे एक राजकीय व्यक्‍ति की एक सरकारी भेंट। यह उपस्थिति एक क्षणिक घटना नहीं है; यह एक ख़ास युग, समय की एक चिह्नित अवधि है। मत्ती २४:३७-३९ [NW] में, यीशु ने कहा कि “मनुष्य के पुत्र की उपस्थिति [पे·रू·सिʹया],” “नूह के दिन” की तरह होगी, जो प्रलय के साथ पराकाष्ठा पर पहुँची थी। इससे पहले कि प्रलय ने आकर उस भ्रष्ट व्यवस्था को मिटा दिया, नूह कई दशकों तक जहाज़ बना रहा था और दुष्टों को चेतावनी दे रहा था। तो फिर, वैसे ही, मसीह की अदृश्‍य उपस्थिति कुछ दशकों की अवधि तक रहती है, इससे पहले कि यह भी एक बड़े विनाश के साथ पराकाष्ठा तक पहुँचे।

७. (क) कौन-सी बात प्रमाणित करती है कि पे·रू·सिʹया मानवीय आंखों द्वारा दृश्‍य नहीं है? (ख) वे शास्त्रवचन कैसे और कब पूरे होंगे जो वर्णन करते हैं कि यीशु की वापसी “हर एक आंख” द्वारा दृश्‍य होगी?

७ निःसंदेह, यह पे·रू·सिʹया मानवीय आंखों को शाब्दिक रूप से दृश्‍य नहीं है। यदि होता, तो यीशु अपने अनुयायियों को चिह्न देने में इतना समय क्यों बिताता, जैसे हम देखेंगे, ताकि उन्हें इस उपस्थिति को समझने में सहायता मिल सके?a तो भी, जब मसीह शैतान की विश्‍व व्यवस्था को नाश करने आएगा, तब उसकी उपस्थिति का तथ्य ज़बरदस्त रीति से सब लोगों पर स्पष्ट होगा। उस समय “हर एक आंख उसे देखेगी।” यहाँ तक कि यीशु के विरोधी भी, निराश होकर, यह समझ सकेंगे कि मसीह का शासन यथार्थ है।—मत्ती २४:३०; २ थिस्सलुनीकियों २:८; प्रकाशितवाक्य १:५, ६ देखिए.

यह कब आरंभ होता है?

८. मसीह की उपस्थिति के आरंभ को कौन-सी घटना चिह्नित करती है, और यह कहाँ पर हुई?

८ मसीहा की उपस्थिति ऐसी घटना से आरंभ होती है जो मसीहा-संबंधी भविष्यवाणियों के आवर्ती विषय को पूरी करती है। उसे स्वर्ग में राजा के तौर पर शासन सत्ता दी जाती है। (२ शमूएल ७:१२-१६; यशायाह ९:६, ७; यहेजकेल २१:२६, २७) यीशु ने ख़ुद दिखाया कि उसकी उपस्थिति उसके राजत्व से सम्बन्धित होगी। कई दृष्टांतों में, उसने अपनी तुलना एक स्वामी के साथ की जो अपनी गृहस्थी और दासों को पीछे छोड़कर, एक लम्बे समय के लिए सफ़र करता हुआ “दूर देश” को गया, जहाँ उसे “राजपद” मिलता है। उसकी पे·रू·सिʹया कब आरंभ होगी, इस विषय पर अपने प्रेरितों के प्रश्‍न का उत्तर देते समय उसने एक ऐसा ही दृष्टांत दिया; एक और दृष्टांत उसने इसलिए दिया क्योंकि “वे समझते थे, कि परमेश्‍वर का राज्य अभी प्रगट हुआ चाहता है।” (लूका १९:११, १२, १५; मत्ती २४:३; २५:१४, १९) सो पृथ्वी पर मानव के रूप में बिताए समय के दौरान, उसकी ताजपोशी को अभी काफ़ी समय था, जो कि “दूर देश” स्वर्ग में होती। यह कब होती?

९, १०. क्या प्रमाण है कि मसीह इस समय स्वर्ग में शासन कर रहा है, और उसने अपना शासन कब आरंभ किया था?

९ जब यीशु के शिष्यों ने उससे पूछा: “तेरे आने [उपस्थिति, NW] का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” तो यीशु ने उत्तर के तौर पर उन्हें भविष्य के उस समय का एक विस्तृत वर्णन दिया। (मत्ती, अध्याय २४; मरकुस, अध्याय १३; लूका, अध्याय २१; साथ ही २ तीमुथियुस ३:१-५; प्रकाशितवाक्य, अध्याय ६ भी देखिए.) यह चिह्न एक अशान्त युग के विस्तृत शब्दचित्र के बराबर है। यह एक ऐसा समय है जो अंतरराष्ट्रीय युद्धों, बढ़ते हुए अपराध, बिगड़ते हुए पारिवारिक जीवन, महामारियों, अकालों, और भूकम्पों से चिह्नित है—स्थानीय समस्याओं के रूप में नहीं, बल्कि विश्‍वव्यापी संकट के रूप में। क्या यह जाना-पहचानासा लगता है? बीतता हुआ हर दिन इसकी पुष्टि करता है कि २०वीं सदी यीशु के वर्णन पर बिलकुल सही बैठती है।

१० इतिहासकार मानते हैं कि १९१४ मानव इतिहास का एक मोड़ था, एक ऐसा निर्णायक वर्ष जिसके पश्‍चात्‌ इन में से अनेक समस्याएँ विश्‍वव्यापी पैमाने पर बढ़ती हुईं, नियंत्रण के बाहर होने लगीं। जी हाँ, बाइबल भविष्यवाणी की पूर्ति में भौतिक संसार की घटनाएँ सब १९१४ की ओर संकेत करती हैं कि यही वह वर्ष है जब यीशु स्वर्ग में राजा के रूप में शासन करने लगा। इसके अतिरिक्‍त, दानिय्येल अध्याय ४ में एक भविष्यवाणी कालक्रमिक प्रमाण देती है जो हमें ठीक उसी वर्ष—१९१४—तक ले जाता है जिस समय यहोवा का नियुक्‍त राजा अपना शासन शुरू करेगा।b

क्यों संकटों का समय?

११, १२. (क) कुछ लोगों को यह विश्‍वास करना क्यों कठिन लगता है कि मसीह इस समय स्वर्ग में शासन कर रहा है? (ख) यीशु को राजा के रूप में शासन सत्ता मिलने के पश्‍चात्‌ जो हुआ, उस बात को हम कैसे दृष्टांत द्वारा समझा सकते हैं?

११ परन्तु कुछ लोग सोचते हैं, ‘यदि मसीहा स्वर्ग में शासन कर रहा है तो संसार इतने संकट में क्यों है? क्या उसका शासन अप्रभावकारी है?’ शायद एक दृष्टांत सहायता करे। एक देश पर दुष्ट राष्ट्रपति का राज है। उसने एक भ्रष्ट व्यवस्था स्थापित की है जिसका प्रभाव देश के हर कोने में फैला हुआ है। पर एक चुनाव होता है; एक अच्छा आदमी जीत जाता है। अब क्या? जैसे कि कुछ लोकतांत्रिक देशों में होता है, इससे पहले कि नया राष्ट्रपति को पद पर प्रतिष्ठित किया जाए, कुछ महिनों की संक्रमण अवधि होती है। ये दोनों आदमी इस अवधि के दौरान कैसे कार्य करेंगे? क्या वह अच्छा आदमी तुरंत ही आक्रमण करके अपने पूर्वाधिकारी द्वारा पूरे देश में निर्मित की गई बुराई को हटा देगा? इसके बजाय, क्या पहले वह राजधानी पर ध्यान केंद्रित न करेगा, और एक नया मंत्रिमंडल बनाकर पहले के राष्ट्रपति के बेईमान साथियों तथा अनुचरों से सब सम्बन्ध न तोड़ेगा? ऐसा करने से, जब वह पूर्ण अधिकार में आएगा, तब वह एक साफ़, कार्यकुशल अधिकारपूर्ण केंद्र से कार्यवाई कर सकेगा। जहाँ तक उस भ्रष्ट राष्ट्रपति का सवाल है, इससे पहले कि वह पूर्ण शक्‍ति खो बैठे, क्या वह बचे थोड़े समय का पूरा लाभ उठाकर उस देश से जितनी पाप की कमाई निकाल सके, न निकालेगा?

१२ वस्तुतः, मसीह की पे·रू·सिʹया के साथ भी ऐसा ही है। प्रकाशितवाक्य १२:७-१२ दिखाता है कि जब मसीह को स्वर्ग में राजा बनाया गया, तब उसने पहले शैतान और पिशाचों को स्वर्ग से बाहर फेंका, और इस प्रकार अपनी सरकार के केंद्र को साफ़ किया। इससे पहले कि मसीह पृथ्वी पर अपना पूरा अधिकार चलाए, काफ़ी समय से प्रतीक्षा की हुई इस हार को भोगने के बाद शैतान उस ‘थोड़े ही समय’ के दौरान कैसा व्यवहार करता है? उस भ्रष्ट राष्ट्रपति के समान, वह इस पुरानी व्यवस्था से जितना हो सके उतना लाभ प्राप्त करने की कोशिश करता है। उसे पैसे का लोभ नहीं; उसे तो मानवीय जीवन चाहिए। वह जितना हो सके, उतने ही ज़्यादा लोगों को यहोवा तथा उसके शासन करनेवाले राजा से दूर करना चाहता है।

१३. शास्त्रवचन कैसे दिखाते हैं कि मसीह के शासन का आरंभ पृथ्वी पर एक संकट का समय होगा?

१३ तो फिर, यह आश्‍चर्य की बात नहीं कि मसीहा के शासन की शुरूआत का अर्थ है ‘पृथ्वी पर हाय’ का समय। (प्रकाशितवाक्य १२:१२) इसी प्रकार, भजन ११०:१, २, ६ दिखाता है कि मसीहा “अपने शत्रुओं के बीच में” शासन आरंभ करता है। केवल बाद में ही वह पूर्ण रूप से, शैतान की भ्रष्ट व्यवस्था के हर पहलू के साथ-साथ, “जाति जाति” को कुचलकर ख़त्म कर देता है!

जब मसीहा पृथ्वी पर शासन करता है

१४. शैतान की दुष्ट रीति-व्यवस्था को नष्ट करने के बाद मसीहा क्या कर सकेगा?

१४ शैतान की व्यवस्था और वे सब जो इसे सहयोग देते हैं को नष्ट करने के बाद, मसीहाई राजा, यीशु मसीह आख़िरकार उन शानदार बाइबल भविष्यवाणियों को पूरा करने की स्थिति में होगा, जो उसके सहस्राब्दिक शासन का वर्णन करती हैं। यशायाह ११:१-१० हमें यह समझने में सहायता करता है कि मसीहा किस प्रकार का शासक होगा। आयत २ हमें बताती है कि उस में “यहोवा की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्‍ति और पराक्रम की आत्मा” होगी।

१५. मसीहाई शासन में “पराक्रम की आत्मा” का क्या अर्थ होगा?

१५ विचार कीजिए कि यीशु के शासन में “पराक्रम की आत्मा” का क्या अर्थ होगा। जब वह पृथ्वी पर था, उसे कुछ हद तक परमेश्‍वर की ओर से पराक्रम प्राप्त था, जिससे वह चमत्कार कर सका। और उसने लोगों की सहायता करने के प्रति एक हार्दिक इच्छा दिखाई, यह कहते हुए, “मैं चाहता हूं।” (मत्ती ८:३) परन्तु उन दिनों में उसके चमत्कार केवल भविष्य के उन कार्यों की एक झलक थी जो वह स्वर्ग से शासन करते समय करेगा। यीशु विश्‍वव्यापी पैमाने पर चमत्कार करेगा! बीमार, अंधे, बहरे, अपंग, और लँगड़े लोग सर्वदा के लिए चंगे किए जाएंगे। (यशायाह ३५:५, ६) न्यायसंगत रीति से वितरण किए गए भोजन की बहुतायत, भूख को सर्वदा के लिए ख़त्म कर देगी। (भजन ७२:१६) क़ब्रों में उन अनगिनत लाखों लोगों के बारे में क्या, जिन्हें स्मरण रखकर परमेश्‍वर ख़ुश है? यीशु के “पराक्रम” में इन लोगों को पुनर्जीवित करने की शक्‍ति सम्मिलित होगी, और हरेक को परादीस में सर्वदा के लिए जीवित रहने का मौका दिया जाएगा! (यूहन्‍ना ५:२८, २९) फिर भी, इतना पराक्रम होने के बावजूद भी, यह मसीहाई राजा हमेशा अति निरभिमान रहेगा। उसे ‘यहोवा का भय . . . भाता है।’—यशायाह ११:३.

१६. मसीहाई राजा किस प्रकार का न्यायाधीश होगा, और यह कैसे मानवीय न्यायाधिशों के रिकार्ड के प्रतिकूल होगा?

१६ यह राजा एक परिपूर्ण न्यायाधीश भी होगा। वह “मुंह देखा न्याय न करेगा और न अपने कानों के सुनने के अनुसार निर्णय करेगा।” अतीत में या वर्तमान समय के कौनसे मानवी न्यायाधीश का ऐसे वर्णन किया जा सकता है? एक अति विवेकपूर्ण आदमी भी केवल देखी या सुनी हुई बातों पर न्याय कर सकता है, चाहे वह अपनी प्राप्त की हुई कितनी ही बुद्धि या समझ क्यों न प्रयोग करे। इस प्रकार, इस पुराने संसार के न्यायाधीश और जूरी भी चतुर कुतर्क, न्यायालय में अदाकारियों, या परस्पर-विरोधी प्रमाण द्वारा प्रभावित हो सकते हैं या उलझन में पड़ सकते हैं। अक़सर केवल धनवान्‌ और शक्‍तिशाली लोग ही एक प्रभावकारी प्रतिवाद का ख़र्च दे सकते हैं, वास्तव में न्याय को ख़रीद लेते हैं। मसीहाई न्यायाधीश के अधीन ऐसा नहीं होगा! वह हृदयों के भेद निकालता है। उसकी नज़रों से कुछ न बचेगा। प्रेम और कृपा द्वारा मन्द किया गया न्याय बिकाऊ नहीं होगा। वह सर्वदा प्रबल होगा।—यशायाह ११:३-५.

कैसे उसका शासन आप पर असर करता है

१७, १८. (क) यशायाह ११:६-९ में मानवजाति के भविष्य का कौनसा शानदार चित्र बनाया गया है? (ख) मुख्यतः यह भविष्यवाणी किन पर लागू होती है, और ऐसा क्यों? (ग) इस भविष्यवाणी की शाब्दिक पूर्ति कैसे होगी?

१७ स्वाभाविक रूप से, मसीहा का शासन अपनी प्रजा पर अत्यधिक असर करता है। यह लोगों को परिवर्तित करता है। यशायाह ११:६-९ दिखाता है कि ऐसे परिवर्तन कितने विस्तृत होंगे। यह भविष्यवाणी ख़तरनाक, हिंसक पशुओं—रीछ, भेड़िये, चीते, सिंह, करैत—का अहानिकर पालतू पशुओं और यहाँ तक कि बच्चों की संगति में रहने का एक हृदयग्राही चित्र बनाती है। परन्तु उन हिंसक पशुओं से कोई ख़तरा नहीं! क्यों? आयत ९ उत्तर देती है: “मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई दुःख देगा और न हानि करेगा; क्योंकि पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।”

१८ निःसंदेह, वास्तविक पशुओं पर “यहोवा के ज्ञान” का कोई असर नहीं हो सकता; इसलिए ये आयतें मुख्यतः लोगों पर लागू होती होंगी। मसीहा का शासन एक विश्‍वव्यापी शिक्षा कार्यक्रम प्रवर्तित करता है, जो लोगों को यहोवा और उसके मार्गों के बारे में सिखाता, सबको अपने संगी मनुष्यों के प्रति प्रेम, आदर, और सम्मान के साथ व्यवहार करना सिखाता है। आनेवाले परादीस में, मसीहा चमत्कारिक तरीक़े से मानवजाति को शारीरिक और नैतिक पूर्णता में लाएगा। अपरिपूर्ण मानवीय स्वभाव में बाधा डालनेवाले हिंसक, पाशविक गुण नहीं रहेंगे। शाब्दिक अर्थ में भी, आख़िरकार पशुओं के साथ मानवजाति शांति में रहेगी!—उत्पत्ति १:२८ से तुलना कीजिए.

१९. इन अंतिम दिनों में लोगों की ज़िन्दगियों पर मसीहा का शासन कैसे असर करता है?

१९ परन्तु याद रखिए, मसीहा इस समय शासन कर रहा है। अभी भी उसके राज्य की प्रजा आपस में शांतिपूर्ण तरीक़े से रहना सीख रही है, और एक अर्थ में यशायाह ११:६-९ की पूर्ति कर रही है। इसके अतिरिक्‍त, लगभग ८० साल से यीशु, यशायाह ११:१० को पूरा कर रहा है: “उस समय यिशै की जड़ देश देश के लोगों के लिये एक झण्डा होगी; सब राज्यों के लोग उसे ढूंढ़ेंगे, और उसका विश्रामस्थान तेजोमय होगा।” हरेक राष्ट्र के लोग मसीहा की ओर घूम रहे हैं। क्यों? क्योंकि जब से उसने शासन करना शुरू किया, वह ‘एक झण्डे’ की नाईं खड़ा है। उस विशाल शैक्षिक कार्यक्रम के द्वारा जिसका वर्णन ऊपर किया है, वह अपनी उपस्थिति को पूरे विश्‍व में स्पष्ट कर रहा है। वास्तव में, यीशु ने पूर्वबताया था कि इस पुरानी व्यवस्था के अन्त से पहले उसकी उपस्थिति का एक उल्लेखनीय चिह्न, एक विश्‍वव्यापी प्रचार कार्य होगा।—मत्ती २४:१४.

२०. मसीहा के शासन की सब प्रजा को कौनसी मनोवृत्ति से दूर रहना चाहिए, और क्यों?

२० सो राजकीय शक्‍ति में मसीहा की उपस्थिति एक दूरवर्ती, सैद्धांतिक मामला नहीं है जो धर्म-विज्ञानियों के बीच सिर्फ़ एक बौद्धिक वाद-विवाद का विषय है। उसका शासन पृथ्वी पर ज़िन्दगियों पर असर करके उन्हें परिवर्तित करता है, जैसे यशायाह ने पूर्वबताया था कि ऐसा ही होगा। यीशु अपने राज्य के लिए प्रजा के तौर पर लाखों लोगों को इस भ्रष्ट विश्‍व व्यवस्था से बाहर लाया है। क्या आप एक ऐसी प्रजा हैं? तो उस पूरे जोश और आनन्द से सेवा कीजिए, जिसके योग्य हमारा शासक है! मान लिया, यह बहुत ही आसान है कि हम थक जाएं, और संसार की निंदक पुकार में सम्मिलित हों: “उसके आने की प्रतिज्ञा कहां गई?” (२ पतरस ३:४) परन्तु जैसे कि स्वयं यीशु ने कहा: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।”—मत्ती २४:१३.

२१. हम सब मसीहाई आशा के प्रति अपने मूल्यांकन को कैसे बढ़ा सकते हैं?

२१ बीतता हुआ हर दिन हमें उस बड़े दिन के और निकट ले जाता है जब यहोवा अपने पुत्र को निर्देशन देगा कि वह अपनी उपस्थिति पूरे संसार पर प्रकट करे। उस दिन के प्रति अपनी आशा को कभी भी धुँधला न होने दीजिए। यीशु के मसीहापन और शासन करनेवाले राजा के रूप में उसके गुणों पर विचार कीजिए। साथ ही, यहोवा परमेश्‍वर के बारे में गहरी रीति से विचार कीजिए, जो कि बाइबल में प्रस्तुत की गई उस शानदार मसीहाई आशा का स्रोत और रचनाकार है। जैसे-जैसे आप यह करेंगे, निःसंदेह आप प्रेरित पौलुस की तरह महसूस करते जाएंगे, जब उसने लिखा: “आहा! परमेश्‍वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है!”—रोमियों ११:३३.

[फुटनोट]

a अठारह सौ चौंसठ में धर्मशास्त्री आर. गोवेट ने इस रीति से कहा: “मुझे यह बहुत निर्णायक प्रतीत होता है। उपस्थिति का चिह्न देना दिखाता है कि यह गुप्त है। जिस चीज़ को हम देखते हैं उसकी उपस्थिति को समझने के लिए हमें कोई संकेत की ज़रूरत नहीं होती है।”

b तफ़सील के लिए, “तेरा राज्य आए” पुस्तक, पृष्ठ १३३-९ देखिए।

आप कैसे उत्तर देंगे?

▫ मसीह किस रीति से वापस आता है?

▫ हम कैसे जानते हैं कि मसीह की पे·रू·सिʹया अदृश्‍य है और काफ़ी समय की अवधि तक रहती है?

▫ मसीह की उपस्थिति कब आरंभ होती है, और हम यह कैसे जानते हैं?

▫ मसीहा किस प्रकार का स्वर्गीय शासक है?

▫ मसीहा का शासन अपनी प्रजा की ज़िन्दगी पर किन तरीक़ों से असर करता है?

[पेज 9 पर तसवीरें]

यीशु के वफ़ादार प्रेरितों के लिए यह आशा बहुत अर्थ रखती थी कि वह वापस आएगा

[पेज 11 पर तसवीरें]

स्वर्ग से शासन करते हुए, यीशु विश्‍वव्यापी पैमाने पर चमत्कार करेगा

[चित्र का श्रेय]

Earth: Based on NASA photo

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