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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
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क्या आपको याद है?

क्या आपने प्रहरीदुर्ग के हाल के अंको को पढ़ने में आनन्द प्राप्त किया है? यदि किया है, तो निःसंदेह निम्नलिखित बातों को पुनःस्मरण करना आपको दिलचस्प लगेगा?

▫ यहोवा के गवाहों के मध्य हुई चमत्कारिक वृद्धि किन कारणों से है?

मुख्यतः, यह परमेश्‍वर की आशीष के कारण है। यह परमेश्‍वर का कार्य है। अपने सुसमाचार प्रचार के कार्य में यहोवा के गवाह जो सिखाते हैं, वह बाइबल पर आधारित है। उनके सफ़ल होने की एक और कुंजी यह है कि उन्होंने मसीह यीशु को मसीही कलीसिया के नियुक्‍त सिर के तौर पर पूरी तरह से स्वीकार किया है।—१२/१, पृष्ठ १२.

▫ बतशेबा के साथ दाऊद के महा पाप के विषय में यहोवा ने उसे दया क्यों दिखाई?

यह मुख्यतया राज्य वाचा के कारण था जो परमेश्‍वर ने दाऊद के साथ बान्धी थी, लेकिन यह दाऊद की अपनी दयालुता और उसके वास्तविक पश्‍चात्ताप के कारण भी था। (१ शमूएल २४:४-७; २ शमूएल ७:१२; १२:१३; भजन ५१:१, २, १७)—३/१, पृष्ठ २०, २१.

▫ यीशु के मसीहापन के समर्थन में मसीही यूनानी शास्त्र कौनसे तीन प्रकार के प्रमाण देते हैं?

यीशु का वंश पहला प्रमाण है। (मत्ती १:१-१६; लूका ३:२३-३८) दूसरा प्रमाण है पूरी हुई भविष्यवाणी। यीशु को मसीहा के तौर पर पहचान करानेवाली शाब्दिक रूप से बहुत-सी भविष्यवाणियाँ हैं, जैसे कि वह जो दानिय्येल ९:२५ में पाई जाती है। तीसरा प्रमाण है स्वयं परमेश्‍वर की गवाही; उसने यह स्वयं अपनी आवाज़ में तीन अवसरों पर प्रदान की। (मत्ती १७:५; लूका ३:२१, २२; यूहन्‍ना १२:२८)—४/१, पृष्ठ १०, १२.

▫ यीशु का क्या अर्थ था जब उसने कहा, जैसे कि मत्ती २४:३७ में दर्ज है: “जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा”?

इससे पहले कि जलप्रलय ने आकर उस भ्रष्ट विश्‍व-व्यवस्था को मिटा दिया, नूह दशकों की अवधि से जहाज़ बना रहा था और दुष्टों को चेतावनी दे रहा था। इसी प्रकार, इससे पहले कि यह भी एक महा विनाश में प्रतिफलित हो, मसीह की अदृश्‍य उपस्थिति कई दशकों की अवधि तक रहेगी, जिसके दौरान एक विश्‍वव्यापी गवाही दी जाएगी।—४/१, पृष्ठ १६.

▫ एक अच्छे पारिवारिक बाइबल अध्ययन के लिए कुछ अनिवार्य तत्त्व क्या हैं?

अध्ययन करने के लिए समय निकालना पड़ता है। हमें टी.वी. या अन्य मनोरंजन को इसका स्थान नहीं लेने देना चाहिए। परिवार की ख़ास ज़रूरतों पर विचार किया जाना चाहिए। यह निश्‍चित करने के लिए कि बच्चे सीखीं हुई बातों को समझ रहे हैं, दृष्टिकोण सवालों का प्रयोग कीजिए। (मत्ती १७:२५) वातावरण को तनाव से मुक्‍त रखिए। उत्साही होइए, और अध्ययन में सबको शामिल कीजिए।—१/१, पृष्ठ २८.

▫ मसीहियों को कितना चिन्तित होना चाहिए कि शायद खाद्य उत्पादनों में लहू के अवयव मिलाए गए हों?

मसीहियों को मात्र संभावना या अफ़वाह द्वारा चिन्तित होने के विरुद्ध सावधान रहना चाहिए, और परचे की जाँच करने या कसाइयों से पूछ-ताछ करने के विषय में भी तर्क-संगति की आवश्‍यकता है। तो भी, यदि यह जाना जाए कि—चाहे खाद्य पदार्थ में या चिकित्सीय दवाओं में—लहू व्यापक रूप से स्थानीय जगह में इस्तेमाल किया जाता है, तब मसीहियों को लहू से परहेज़ करने की परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करने के प्रति सावधान होना चाहिए। (प्रेरितों १५:२८, २९)—१/१, पृष्ठ ३०-१.

▫ इस्राएल में प्रयुक्‍त शिक्षा-विधियों की आध्यात्मिक गहराई को नीतिवचन की पुस्तक कैसे प्रकाशमय करती है?

नीतिवचन की पुस्तक दिखाती है कि इसका उद्देश्‍य “अनुभवहीनों” को ऐसी उच्च चीज़ों के विषय में शिक्षा देना था जैसे बुद्धि, अनुशासन, समझ, अंतर्दृष्टि, न्याय, चतुराई, ज्ञान, और विवेक—सब ‘यहोवा के भय’ में। (नीतिवचन १:१-७; २:१-१४, NW)—२/१, पृष्ठ ५.

▫ युवा लोगों को आज शिक्षा के प्रति कौनसा संतुलित दृष्टिकोण रखना चाहिए?

मसीहियों के लिए शिक्षा एक लक्ष्य की प्राप्ति का साधन होना चाहिए। इन अन्तिम दिनों में, उनका उद्देश्‍य है कि जितनी ज़्यादा और जितने प्रभावकारी रूप से यहोवा की सेवा कर सकें, उतनी करें, और यदि संभव हो तो पूर्ण-समय की सेवकाई में।—२/१, पृष्ठ ११.

▫ यहोवा ने इस्राएल के राष्ट्र से दशमांश देने की माँग क्यों की?

पहला, ताकि वे एक सुनिश्‍चित ढंग से परमेश्‍वर की भलाई के लिए अपनी क़दरदानी दिखा सकें। दूसरा, ताकि वे लेवियों के भरण-पोषण की तरफ़ अपना योगदान दे सकें, जो फिर अपने दायित्व पर ध्यान केंद्रित कर सकते थे, जिस में व्यवस्था सिखाना सम्मिलित था। (२ इतिहास १७:७-९ देखिए.)—३/१, पृष्ठ १५.

▫ वह दशमांश क्या है जिसे मसीहियों को लाने का निमंत्रण दिया जाता है? (मलाकी ३:१०)

दशमांश हमारे उस अंश को चित्रित करता है जिसे हम यहोवा के सम्मुख लाते हैं या उसकी सेवा में उपयोग करते हैं। उसके लिए यह हमारे प्रेम के एक प्रमाण और इस तथ्य की स्वीकृति के रूप में है कि हम उसी के हैं।—३/१, पृष्ठ १५.

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