विवाह में नए मनुष्यत्व को विकसित करना
“तुम अपने मन को प्रेरित करने वाली शक्ति में नये बनते जाओ। और नये मनुष्यत्व को पहिन लो।”—इफिसियों ४:२३, २४.
१. विवाह को क्यों गम्भीरता से लिया जाना चाहिए?
ज़िन्दगी में उठाए गए अति गम्भीर कदमों में से एक कदम विवाह है, इसलिए इसे हमेशा गम्भीरता से लिया जाना चाहिए। ऐसा क्यों? क्योंकि यह किसी दूसरे व्यक्ति के साथ जीवन-भर की वचनबद्धता की मांग करता है। इसका मतलब है कि उस व्यक्ति के साथ अपनी पूरी ज़िन्दगी बिताना। यदि उस वचनबद्धता को मज़बूत होना है, तो प्रौढ़ता से निर्णय करने की आवश्यकता होगी। यह एक सकारात्मक प्रभाव की भी मांग करता है, जो ‘मन को प्रेरित करे और इस प्रकार नए मनुष्यत्व को रूप दे।’—इफिसियों ४:२३, २४; उत्पत्ति २४:१०-५८; मत्ती १९:५, ६ से तुलना कीजिए.
२, ३. (क) बुद्धिमानी से एक विवाह साथी चुनने के लिए किस चीज़ की आवश्यकता है? (ख) एक विवाह में क्या सम्मिलित है?
२ शरीर की शक्तिशाली अभिलाषाओं में बहकर जल्दी से विवाह न करने का अच्छा कारण है। प्रौढ़ मनुष्यत्व और चरित्र विकसित करने के लिए समय की आवश्यकता होती है। समय के साथ-साथ अनुभव और ज्ञान भी प्राप्त होते हैं जो सही निर्णय करने के लिए एक बुनियाद हो सकते हैं। तब, एक योग्य जीवन साथी चुनने में ज़्यादा सफलता मिल सकती है। एक स्पेनिश कहावत स्पष्ट रूप से कहती है: “बुरी रीति से विवाहित होने से अकेले चलना बेहतर है।”—नीतिवचन २१:९; सभोपदेशक ५:२.
३ स्पष्ट है कि एक सफल विवाह के लिए सही साथी चुनना अत्यावश्यक है। उसके लिए एक मसीही को केवल शारीरिक आकर्षण और अनुचित जज़बात तथा रोमांस सम्बन्धी दबावों द्वारा नियंत्रित होने के बजाय, बाइबलीय सिद्धांतों का अनुसरण करना चाहिए। विवाह दो शरीरों के मिलन से बढ़कर है। यह दो व्यक्तित्व, दो परिवार और शैक्षिक पृष्ठभूमि, और शायद दो संस्कृतियों और भाषाओं का मेल है। विवाह में दो व्यक्तियों का मिलन निश्चय ही ज़बान के सही प्रयोग की मांग करता है; बोलने की शक्ति से, हम या तो ढाते हैं या बनाते हैं। इन सब बातों से, हम पौलुस की सलाह की बुद्धिमत्ता भी देखते हैं कि ‘केवल प्रभु में विवाह करो,’ यानी कि, एक संगी विश्वासी के साथ।—१ कुरिन्थियों ७:३९; उत्पत्ति २४:१-४; नीतिवचन १२:१८; १६:२४.
विवाह के तनावों का सामना करना
४. विवाह में कभी-कभी संघर्ष और तनाव क्यों उत्पन्न होते हैं?
४ एक अच्छी बुनियाद होने के बावजूद भी, संघर्ष, दबाव, और तनाव के समय होंगे। ये सभी के लिए एक समान हैं, चाहे विवाहित हों या नहीं। आर्थिक तथा स्वास्थ्य समस्याएं किसी भी सम्बन्ध में तनाव पैदा कर सकती हैं। बदलती मनोदशा के कारण अच्छे से अच्छे विवाह में भी व्यक्तित्वों के बीच टकराव हो सकते हैं। एक और तत्त्व यह है कि ज़बान पर किसी का सम्पूर्ण नियंत्रण नहीं है, जैसे कि याकूब ने कहा: “हम सब बहुत बार चूक जाते हैं: जो कोई वचन में नहीं चूकता, वही तो सिद्ध मनुष्य है; और सारी देह पर भी लगाम लगा सकता है। . . . जीभ . . . एक छोटा सा अंग है और बड़ी बड़ी डींगें मारती है: देखो, थोड़ी सी आग से कितने बड़े बन में आग लग जाती है।”—याकूब ३:२, ५.
५, ६. (क) जब ग़लतफ़हमियाँ उत्पन्न हों, तब किस चीज़ की आवश्यकता है? (ख) एक सम्बन्ध-विच्छेद को ठीक करने के लिए शायद कौनसे क़दम उठाने की आवश्यकता पड़े?
५ जब विवाह में दबाव आएं, तब हम उस स्थिति को कैसे काबू में कर सकते हैं? हम कैसे एक ग़लतफ़हमी को झगड़े में, और एक झगड़े को टूटे सम्बन्ध तक बढ़ने से रोक सकते हैं? यहाँ पर मन को प्रेरित करने वाली शक्ति काम में आती है। यह प्रेरित करने वाली शक्ति सकारात्मक या नकारात्मक, प्रोत्साहक और आध्यात्मिक तौर से प्रवृत्त या अपमानजनक, शारीरिक प्रवृत्तियों द्वारा नियंत्रित हो सकती है। यदि यह प्रोत्साहक है, तो वह व्यक्ति सम्बन्ध-विच्छेद को ठीक करने और अपने विवाह को सही मार्ग पर रखने के लिए क़दम उठाएगा। बहस और असहमतियों से विवाह का अन्त नहीं होना चाहिए। बाइबल की सलाह लागू करने से ग़लतफ़हमी मिटायी जा सकती है और आपसी आदर तथा समझौता फिर से स्थापित किया जा सकता है।—रोमियों १४:१९; इफिसियों ४:२३, २६, २७.
६ इन परिस्थितियों में, पौलुस के शब्द बहुत उपयुक्त हैं: “इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो। और यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो। और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो।”—कुलुस्सियों ३:१२-१४.
७. कुछ लोग अपने विवाह में कौनसी समस्या पा सकते हैं?
७ वह पाठ पढ़ने को तो आसान है, लेकिन आधुनिक जीवन के दबावों के तहत इसे हर समय लागू करना इतना आसान नहीं है। एक बुनियादी समस्या क्या हो सकती है? कभी-कभी, अनजाने में, एक मसीही शायद दो भिन्न प्रकार के सिद्धांतों का अनुकरण करे। राज्यगृह में, वह भाइयों के बीच में है, और वह कृपा और लिहाज़ के साथ पेश आता है। फिर, वापस घर, घरेलू नित्यक्रम में, वह अपने आध्यात्मिक सम्बन्ध को भूल सकता है। वहाँ केवल वे दोनों हैं, पति और पत्नी। और दबाव के तहत वह (या उसकी पत्नी) शायद ऐसी कठोर बात कह दे जो एक राज्यगृह में कभी नहीं कही जाती। क्या हुआ? पलभर के लिए, मसीहियत ओझल हो गई है। परमेश्वर का एक सेवक भूल गया है कि वह (या उसकी पत्नी) घर में भी एक मसीही भाई (या बहन) है। मन को प्रेरित करने वाली शक्ति सकारात्मक होने के बजाय, नकारात्मक हो गई है।—याकूब १:२२-२५.
८. जब मन को प्रेरित करने वाली शक्ति नकारात्मक हो, तब क्या परिणाम हो सकता है?
८ परिणाम क्या होता है? पति शायद ‘बुद्धिमानी से अपनी पत्नी के साथ जीवन निर्वाह करना और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करना’ छोड़ दे। पत्नी अब शायद अपने पति का आदर न करे; उसकी “नम्रता और मन की दीनता” नहीं रही। मन को प्रेरित करने वाली शक्ति आध्यात्मिक होने के बजाय शारीरिक हो गई है। एक “शारीरिक समझ” ने नियंत्रण कर लिया है। तो, उस प्रेरित करने वाली शक्ति को आध्यात्मिक और सकारात्मक बनाए रखने के लिए क्या किया जा सकता है? हमें अपनी आध्यात्मिकता को मज़बूत बनाना होगा।—१ पतरस ३:१-४, ७; कुलुस्सियों २:१८.
शक्ति को मज़बूत बनाइए
९. दैनिक जीवन में हमें कौनसे चुनाव करने पड़ते हैं?
९ प्रेरित करने वाली शक्ति वह मानसिक प्रवृत्ति है जो तब काम आती है जब हमें निर्णय और चुनाव करना होता है। ज़िन्दगी चुनावों का एक निरंतर सिलसिला पेश करती है—अच्छा या बुरा, स्वार्थी या अस्वार्थी, नैतिक या अनैतिक। सही निर्णय करने के लिए कौनसी चीज़ हमारी मदद करेगी? मन को प्रेरित करने वाली शक्ति, यदि यह यहोवा की इच्छा पूरी करने पर केंद्रित है। भजनहार ने प्रार्थना की: “हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग दिखा दे; तब मैं उसे अन्त तक पकड़े रहूंगा।”—भजन ११९:३३; यहेजकेल १८:३१; रोमियों १२:२.
१०. मन को प्रेरित करने वाली शक्ति को सकारात्मक रूप से हम कैसे मज़बूत बना सकते हैं?
१० यहोवा के साथ एक मज़बूत सम्बन्ध हमारी मदद करेगा कि हम उसको प्रसन्न करें और बुरी बातों से मुँह मोड़ें, जिसमें विवाह में विश्वासघात भी सम्मिलित है। इस्राएल को प्रोत्साहित किया गया था कि वे “वह काम करे जो [उनके] परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में भला और ठीक है।” परन्तु परमेश्वर ने यह भी सलाह दी: “हे यहोवा के प्रेमियो, बुराई से घृणा करो।” दस आज्ञाओं की सातवीं आज्ञा को नज़र में रखते हुए कि “तू व्यभिचार न करना,” इस्राएलियों को व्यभिचार से घृणा करनी थी। उस आज्ञा से विवाह में वफ़ादारी के विषय में परमेश्वर के सख़्त विचार का पता चलता था।—व्यवस्थाविवरण १२:२८; भजन ९७:१०; निर्गमन २०:१४; लैव्यव्यवस्था २०:१०.
११. मन को प्रेरित करने वाली शक्ति को हम और कैसे मज़बूत बना सकते हैं?
११ मन को प्रेरित करने वाली शक्ति को हम और कैसे मज़बूत बना सकते हैं? आध्यात्मिक क्रियाविधियों और मूल्यों का मूल्यांकन करने के द्वारा। इसका यह मतलब हुआ कि हमें नियमित रूप से परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने की आवश्यकता को पूरा करना चाहिए और एक साथ मिलकर यहोवा के विचार तथा सलाह पर चर्चा करने में आनन्द लेना सीखना चाहिए। हमारे हार्दिक मनोभाव भजनहार के जैसे होने चाहिएं: “मैं पूरे मन से तेरी खोज में लगा हूं; मुझे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटकने न दे! मैं ने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूं। हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग दिखा दे; तब मैं उसे अन्त तक पकड़े रहूंगा। मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूंगा और पूर्ण मन से उस पर चलूंगा।”—भजन ११९:१०, ११, ३३, ३४.
१२. मसीह के मन को प्रतिबिम्बित करने में कौनसी चीज़ हमें एक कर सकती है?
१२ यहोवा के धार्मिक सिद्धांतों के लिए इस प्रकार का मूल्यांकन केवल बाइबल का अध्ययन करने से ही नहीं परन्तु मसीही सभाओं में नियमित रूप से भाग लेने और मसीही सेवकाई में एक साथ जाने से कायम रहता है। ये दोनों शक्तिशाली प्रभाव, हमारे मन को प्रेरित करने वाली शक्ति को लगातार मज़बूत बना सकते हैं ताकि हमारी अस्वार्थी जीवन-शैली हमेशा मसीह के मन को प्रतिबिम्बित करे।—रोमियों १५:५; १ कुरिन्थियों २:१६.
१३. (क) मन को प्रेरित करने वाली शक्ति को मज़बूत बनाने में प्रार्थना क्यों एक बहुमूल्य तत्त्व है? (ख) इस विषय में यीशु ने क्या उदाहरण प्रस्तुत किया?
१३ एक और तत्त्व वह है जो इफिसियों को लिखे अपने पत्र में पौलुस विशिष्ट करता है: “हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना, और बिनती करते रहो।” (इफिसियों ६:१८) पति-पत्नियों को एक साथ प्रार्थना करने की आवश्यकता है। अकसर ये प्रार्थनाएं हृदय को खोलती हैं और किसी भी सम्बन्ध-विच्छेद को ठीक करनेवाली खुली बातचीत की ओर ले जाती हैं। परीक्षा और प्रलोभन के समयों में, हमें मदद और आध्यात्मिक बल मांगते हुए परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए ताकि मसीह के मन के अनुसार काम कर सकें। परिपूर्ण यीशु ने भी बल मांगने के लिए कई अवसरों पर अपने पिता से प्रार्थना की। उसकी प्रार्थनाएं हार्दिक और भावप्रवण थीं। उसी प्रकार आज भी, शरीर की अभिलाषा के सामने झुककर विवाह-शपथ से विश्वासघात करने से बचे रहने में हमारी मदद करने के लिए, हम यहोवा को पुकारने के द्वारा प्रलोभन के समय सही निर्णय लेने के लिए बल पा सकते हैं।—भजन ११९:१०१, १०२.
आचरण के विपरीतार्थक उदाहरण
१४, १५. (क) प्रलोभन के प्रति यूसुफ ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई? (ख) प्रलोभन का प्रतिरोध करने के लिए किस बात ने यूसुफ की मदद की?
१४ हम प्रलोभन का कैसे सामना कर सकते हैं? इस विषय में यूसुफ और दाऊद द्वारा अपनाए गए मार्ग में हम स्पष्ट अन्तर पाते हैं। जब पोतीपर की पत्नी ने रूपवान् यूसुफ को भ्रष्ट करने की निरंतर कोशिश की, जो स्पष्टतः उस समय अविवाहित था, तब उसने आख़िरकार उसे यह कहते हुए जवाब दिया: “इस घर में मुझ से बड़ा कोई नहीं, और [तेरे पति] ने, तुझे छोड़, जो उसकी पत्नी है; मुझ से कुछ नहीं रख छोड़ा; सो भला, मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं?”—उत्पत्ति ३९:६-९.
१५ जबकि प्रलोभन के सामने झुक जाना इतना आसान होता, किस बात ने यूसुफ को सही मार्ग अपनाने की मदद की? उसके मन को एक प्रभावशाली शक्ति प्रेरित कर रही थी। यहोवा के साथ अपने सम्बन्ध के विषय में वह अति सचेत था। वह जानता था कि इस प्रेमांध स्त्री के साथ व्यभिचार करना केवल उसके पति के विरुद्ध ही नहीं, परन्तु इससे भी अधिक परमेश्वर के विरुद्ध एक पाप होता।—उत्पत्ति ३९:१२.
१६. दाऊद ने एक प्रलोभन के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखाई?
१६ इसके विपरीत, दाऊद के साथ क्या हुआ? वह एक विवाहित पुरुष था, और उसकी कई पत्नियां थीं जैसे कि व्यवस्था के अनुसार अनुमति थी। एक शाम उसने अपने महल से एक स्त्री को नहाते हुए देखा। यह अति सुन्दर बतशेबा, ऊरिय्याह की पत्नी थी। स्पष्ट रूप से दाऊद चुन सकता था कि उसे क्या करना है—देखते रहना जब तक कि उसके हृदय में कामवासना न बढ़ जाए या मुँह मोड़कर उस प्रलोभन को ठुकरा देना। उसने क्या करने का चुनाव किया? उसने उसे अपने महल में बुलवाकर उसके साथ परस्त्रीगमन किया। इससे भी बुरा, उसने आगे जाकर उसके पति की मृत्यु करवाई।—२ शमूएल ११:२-४, १२-२७.
१७. दाऊद की आध्यात्मिक स्थिति के विषय में हम क्या तथ्य निकाल सकते हैं?
१७ दाऊद की क्या समस्या थी? बाद में भजन ५१ में उसके पश्चातापी पाप-स्वीकरण से हम कुछ तथ्य निकाल सकते हैं। उसने कहा: “हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्न कर।” यह स्पष्ट है कि उसके प्रलोभन के समय, उस में शुद्ध और स्थिर आत्मा नहीं थी। शायद उसने यहोवा की व्यवस्था पढ़ने में उपेक्षा की हो, और परिणामस्वरूप, उसकी आध्यात्मिकता कमज़ोर पड़ गई। या शायद उसने अपनी पदवी और राजा के तौर पर शक्ति द्वारा अपनी बुद्धि को भ्रष्ट होने दिया जिससे वह कामुक अभिलाषा का शिकार हो गया। निश्चय ही, उस समय उसके मन को प्रेरित करने वाली शक्ति स्वार्थी और पापमय थी। इस प्रकार, उसे यह एहसास हुआ कि उसे एक ‘नये सिरे से उत्पन्न की गई स्थिर आत्मा’ की आवश्यकता थी।—भजन ५१:१०; व्यवस्थाविवरण १७:१८-२०.
१८. परगमन के विषय में यीशु ने क्या सलाह दी?
१८ कुछ मसीही विवाह नष्ट हुए हैं क्योंकि एक या दोनों साथियों ने अपने आपको, राजा दाऊद की तरह, आध्यात्मिक कमज़ोरी की स्थिति में पड़ने दिया है। उसके उदाहरण से हमें चेतावनी मिलनी चाहिए कि हम कामवासना के साथ अन्य स्त्री, या पुरुष, की ओर निरंतर न देखें, क्योंकि अंत में परगमन परिणित हो सकता है। यीशु ने दिखाया कि वह इस विषय में मानवीय भावनाओं को समझता है, क्योंकि उसने कहा: “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, कि व्यभिचार न करना। परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।” ऐसी स्थिति में, मन को प्रेरित करने वाली शक्ति स्वार्थी और शारीरिक है, आध्यात्मिक नहीं। तो फिर, मसीही लोग परगमन से बचने के लिए और अपने विवाह को सुखी तथा संतोषजनक बनाने के लिए क्या कर सकते हैं?—मत्ती ५:२७, २८.
विवाह के बंधन को मज़बूत बनाइए
१९. एक विवाह को कैसे मज़बूत बनाया जा सकता है?
१९ राजा सुलैमान ने लिखा: “यदि कोई अकेले पर प्रबल हो तो हो, परन्तु दो उसका साम्हना कर सकेंगे। जो डोरी तीन तागे से बटी हो वह जल्दी नहीं टूटती।” निःसन्देह, एक सद्भावपूर्ण विवाह में दो जन साथ मिलकर एक जन से अधिक बेहतर रीति से विपत्ति का सामना कर सकते हैं। परन्तु यदि परमेश्वर को सम्मिलित करने से उनका बंधन तीन तागे की डोरी की नाईं है, तो वह विवाह मज़बूत होगा। और परमेश्वर एक विवाह में कैसे हो सकता है? दंपति का उसके सिद्धांतों और विवाह के लिए सलाह लागू करने के द्वारा।—सभोपदेशक ४:१२.
२०. एक पति को कौनसी बाइबल सलाह मदद कर सकती है?
२० निःसन्देह, यदि एक पति निम्नलिखित शास्त्रवचनों की सलाह लागू करे, तो उसके विवाह में सफलता का बेहतर आधार होगा:
“हे पतियो, तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो, यह समझकर कि हम दोनों जीवन के बरदान के वारिस हैं, जिस से तुम्हारी प्रार्थनाएं रुक न जाएं।”—१ पतरस ३:७.
“हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया। इसी प्रकार उचित है, कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है।”—इफिसियों ५:२५, २८.
“उसका पति भी उठकर उसकी ऐसी प्रशंसा करता है: बहुत सी स्त्रियों ने अच्छे अच्छे काम तो किए हैं परन्तु तू उन सभों में श्रेष्ठ है।”—नीतिवचन ३१:२८, २९.
“क्या हो सकता है कि कोई अंगारे पर चले, और उसके पांव न झुलसें? जो पराई स्त्री के पास जाता है, उसकी दशा ऐसी है; वरन जो कोई उसको छूएगा वह दण्ड से न बचेगा। जो परस्त्रीगमन करता है . . . अपने प्राणों को नाश . . . करता है।”—नीतिवचन ६:२८, २९, ३२.
२१. एक पत्नी को कौनसी बाइबल सलाह मदद कर सकती है?
२१ यदि एक पत्नी निम्नलिखित बाइबल सिद्धांतों पर ध्यान दे, तो यह उसके विवाह के स्थायित्व को बढ़ाएगा:
‘हे पत्नियों, तुम भी अपने पति के आधीन रहो। इसलिये कि यदि इन में से कोई ऐसे हों जो वचन को न मानते हों, तोभी तुम्हारे भय [आदर, फुटनोट] सहित पवित्र चालचलन [और तुम्हारी] नम्रता और मन की दीनता को देखकर बिना वचन के अपनी अपनी पत्नी के चालचलन के द्वारा खिंच जाएं।’—१ पतरस ३:१-४.
“पति अपनी पत्नी का [लैंगिक] हक्क पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का। . . . तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से।”—१ कुरिन्थियों ७:३-५.
२२. (क) कौनसे अन्य तत्त्व एक विवाह को अच्छाई के लिए प्रभावित कर सकते हैं? (ख) यहोवा स्त्री-त्याग को किस दृष्टि से देखता है?
२२ बाइबल यह भी दिखाती है कि विवाह के रत्न के अन्य आवश्यक पहलू प्रेम, कृपा, करुणा, धीरज, समझौता, प्रोत्साहन, और प्रशंसा हैं। इनके बिना विवाह धूप और पानी से रहित एक पौधे की तरह है—वह कभी-कभार ही खिलता है। इसलिए हमारे मन को प्रेरित करने वाली शक्ति को अपने विवाह में एक दूसरे को प्रोत्साहित और ताज़ा करने के लिए उकसाने दें। याद रखिए कि यहोवा “स्त्री-त्याग से घृणा करता” है। यदि मसीही प्रेम का प्रयोग किया जा रहा है, तो परगमन और विवाह के टूटने की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। क्यों? क्योंकि “प्रेम कभी टलता नहीं।”—मलाकी २:१६; १ कुरिन्थियों १३:४-८; इफिसियों ५:३-५.
क्या आप समझा सकते हैं?
▫ एक सुखी विवाह के लिए क्या अत्यावश्यक है?
▫ मन को प्रेरित करने वाली शक्ति कैसे एक विवाह को प्रभावित कर सकती है?
▫ हमारे मनों को प्रेरित करने वाली शक्ति को मज़बूत बनाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
▫ प्रलोभन के तहत यूसुफ और दाऊद ने कैसे भिन्न प्रतिक्रिया दिखाई?
▫ विवाह के बंधन को मज़बूत बनाने के लिए पति-पत्नियों को कौनसी बाइबल सलाह मदद करेगी?
[पेज 24 पर तसवीरें]
क्या हम दो भिन्न प्रकार के सिद्धांतों का अनुकरण करते हैं—कलीसिया में कृपालु और घर पर कठोर?