माता-पिताओं, आपके बच्चों को विशिष्टीकृत ध्यान की ज़रूरत है
“तेरी मेज़ के चारों ओर तेरे बालक जलपाई के पौधे से होंगे।”—भजन १२८:३.
१. किस प्रकार पौधे उगाने और बच्चों का पालन-पोषण करने की तुलना की जा सकती है?
बच्चे कई तरह से पौधों के समान बढ़ते और विकसित होते हैं। इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि बाइबल एक पुरुष की पत्नी को “फलवन्त दाखलता” कहती है और उसके बच्चों की समानता ‘उसकी मेज़ के चारों ओर जलपाई के पौधों’ से करती है। (भजन १२८:३) एक किसान आपको बताएगा कि छोटे पौधों की फ़सल उगाना आसान नहीं है, ख़ासकर जब मौसम और मिट्टी अनुकूल नहीं होते। उसी प्रकार, इन कठिन “अन्तिम दिनों” में बच्चों को ऐसे ढंग से पालना बहुत मुश्किल है कि वे सुसमंजित, परमेश्वर का भय माननेवाले वयस्क बनें।—२ तीमुथियुस ३:१-५.
२. एक अच्छी फ़सल उपजाने के लिए अकसर किस चीज़ की ज़रूरत होती है?
२ एक अच्छी फ़सल काटने के लिए किसान को उपजाऊ मिट्टी, गर्म धूप, और पानी की ज़रूरत होती है। जुताई और निराई करने के अलावा, उसे कीटाणु-नाशक डालने और अन्य सुरक्षात्मक देख-रेख करने की ज़रूरत होती है। फ़सल बढ़ते समय और कटनी तक मुश्किलें आ सकती हैं। कितना दुःख होता है जब फ़सल अच्छी नहीं निकलती! फिर भी, किसान कितना संतुष्ट हो सकता है जब इतनी कड़ी मेहनत के बाद एक अच्छी फ़सल काटता है!—यशायाह ६०:२०-२२; ६१:३.
३. महत्त्व में पौधों और बच्चों की क्या तुलना है, और बच्चों को किस क़िस्म का ध्यान मिलना चाहिए?
३ एक सफल, उत्पादक मानव जीवन निश्चित ही एक किसान की कटनी से अधिक मूल्यवान है। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि एक बच्चे का सफलतापूर्वक पालन-पोषण करना एक बड़ी फ़सल उगाने से अधिक समय और प्रयास ले सकता है। (व्यवस्थाविवरण ११:१८-२१) जीवन की वाटिका में लगाए गए एक छोटे बच्चे को यदि प्रेम से पानी और पोषण दिया जाए और स्वास्थ्यकर सीमाओं में रखा जाए, तो वह अस्वास्थ्यकर नैतिक मूल्यों से भरे संसार में भी आध्यात्मिक रूप से बढ़ सकता, खिल सकता है। लेकिन यदि बच्चे के साथ दुर्व्यवहार या अत्याचार किया जाए, तो वह अन्दर से मुरझा जाएगा और संभवतः आध्यात्मिक रूप से मर जाएगा। (कुलुस्सियों ३:२१; साथ ही यिर्मयाह २:२१; १२:२ से तुलना कीजिए.) सचमुच, सभी बच्चों को विशिष्टीकृत ध्यान की ज़रूरत है!
बालकपन से दैनिक ध्यान
४. “बालकपन से” बच्चों को किस क़िस्म का ध्यान मिलना चाहिए?
४ माता-पिताओं को एक नवजात शिशु को लगभग निरन्तर ध्यान देना पड़ता है। लेकिन, क्या शिशु को हर दिन मात्र शारीरिक या भौतिक ध्यान की ही ज़रूरत होती है? परमेश्वर के सेवक तीमुथियुस को प्रेरित पौलुस ने लिखा: “बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे . . . उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है।” (२ तीमुथियुस ३:१५) इसलिए तीमुथियुस ने बालकपन से जो जनकीय ध्यान प्राप्त किया वह आध्यात्मिक क़िस्म का भी था। लेकिन बालकपन कब शुरू होता है?
५, ६. (क) अजन्मे बच्चे के बारे में बाइबल क्या कहती है? (ख) क्या बात सूचित करती है कि माता-पिता को अजन्मे बच्चे के कल्याण के बारे में चिन्तित होना चाहिए?
५ पौलुस ने यहाँ जिस यूनानी शब्द का प्रयोग किया (ब्रीफॉस) वह अजन्मे बच्चे के लिए भी प्रयोग होता है। यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले की माँ, इलीशिबा ने अपनी रिश्तेदार मरियम को बताया: “ज्योंही तेरे नमस्कार का शब्द मेरे कानों में पड़ा, त्योंही बच्चा [ब्रीफॉस] मेरे पेट में आनन्द से उछल पड़ा।” (लूका १:४४) अतः, अजन्मे को भी बच्चा कहा जाता है, और बाइबल दिखाती है कि वे गर्भ के बाहर की गतिविधियों के प्रति प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं। इसलिए क्या जन्मपूर्व देख-रेख में, जिसके लिए आजकल अकसर प्रोत्साहन दिया जाता है, अजन्मे शिशु के आध्यात्मिक कल्याण को ध्यान देना सम्मिलित है?
६ इस पर विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि प्रमाण दिखाता है कि अजन्मे बच्चे जो कुछ सुनते हैं उससे या तो लाभ पा सकते हैं या उन पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है। एक संगीत निर्देशक ने पाया कि विभिन्न संगीत रचनाएँ जिनका वह अभ्यास कर रहा था उसे अजीब तरह से परिचित लग रही थीं, ख़ासकर वायलिन वाला भाग। जब उसने उन संगीत रचनाओं के नाम अपनी माँ को बताए, जो एक पेशेवर वायलिनवादक थी, तो उसने कहा कि जब वह गर्भ में था तब वह इन्हीं संगीत रचनाओं का अभ्यास किया करती थी। इसी प्रकार, अजन्मे बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है यदि उनकी माताएँ आदतन टी. वी. धारावाहिक देखती हैं। अतः, एक चिकित्सा पत्रिका ने “भ्रूण धारावाहिक लत” के बारे में कहा।
७. (क) किस प्रकार अनेक माता-पिताओं ने अपने अजन्मे बच्चे के कल्याण की ओर ध्यान दिया है? (ख) एक बच्चे में क्या योग्यताएँ होती हैं?
७ सकारात्मक प्रेरणा से शिशुओं को हुए लाभों को समझते हुए अनेक माता-पिता अपने बच्चे के जन्म से पहले ही उसके लिए पढ़ना, उससे बात करना, और उसके लिए गाना शुरू कर देते हैं। आप भी ऐसा ही कर सकते हैं। जबकि हो सकता है कि आपका शिशु शब्दों को न समझे, संभवतः वह आपकी शामक आवाज़ और उसके प्रेममय सुर से लाभ उठाएगा। जन्म के बाद, बच्चा आपके शब्दों को समझने लगेगा। शायद वह शब्दों को इतनी जल्दी समझने लगे जितना कि आप सोचें भी नहीं। केवल दो या तीन सालों में, बच्चा सिर्फ़ सुनते-सुनते ही एक जटिल भाषा सीख जाता है। बच्चा बाइबल सच्चाई की “शुद्ध भाषा” भी सीखना शुरू कर सकता है।—सपन्याह ३:९.
८. (क) प्रत्यक्षतः बाइबल का क्या अर्थ है जब वह कहती है कि तीमुथियुस “बालकपन से” पवित्र शास्त्र जानता था? (ख) तीमुथियुस के सम्बन्ध में क्या सत्य प्रमाणित हुआ?
८ पौलुस का क्या अर्थ था जब उसने कहा कि तीमुथियुस ‘बालकपन से पवित्र शास्त्र जानता था’? प्रत्यक्षतः उसका अर्थ था कि तीमुथियुस को आध्यात्मिक प्रशिक्षण बालावस्था से नहीं बल्कि शिशुपन से मिला था। यह यूनानी शब्द ब्रीफॉस के अर्थ के सामंजस्य में है, जो सामान्यतः नवजात शिशु को सूचित करता है। (लूका २:१२, १६; प्रेरितों ७:१९) जहाँ तक कि पीछे उसे याद था तीमुथियुस ने आध्यात्मिक शिक्षण अपनी माँ यूनीके और अपनी नानी लोइस से प्राप्त किया। (२ तीमुथियुस १:५) यह कहावत, ‘पौधे को जैसा आकार दोगे, पेड़ वैसा ही बढ़ेगा’ निश्चित ही तीमुथियुस पर लागू हुई। उस को ‘शिक्षा उसी मार्ग में दी गयी थी जिस में उसको चलना चाहिए,’ और इसके फलस्वरूप वह परमेश्वर का एक उत्तम सेवक बना।—नीतिवचन २२:६; फिलिप्पियों २:१९-२२.
जिस विशिष्टीकृत ध्यान की ज़रूरत है
९. (क) माता-पिताओं को क्या नहीं करना चाहिए, और क्यों? (ख) जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, माता-पिताओं को क्या करने की ज़रूरत है, और उन्हें किस उदाहरण का अनुकरण करना चाहिए?
९ बच्चे भी पौधों के समान होते हैं क्योंकि पौधों के जैसे सभी बच्चों में भी समान विशेषताएँ नहीं होतीं, न ही सभी बच्चे देख-रेख के समान तरीक़ों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं। बुद्धिमान माता-पिता भिन्नताओं का आदर करेंगे और एक बच्चे की तुलना दूसरे बच्चे से नहीं करेंगे। (गलतियों ६:४ से तुलना कीजिए.) यदि आपके बच्चों को स्वस्थ वयस्कों में पुष्पित होना है, तो आपको उनके व्यक्तित्व की विशिष्ट विशेषताओं को देखना चाहिए। अच्छी विशेषताओं की जुताई और बुरी विशेषताओं की निराई करनी चाहिए। तब क्या जब आपको कोई कमज़ोरी या अनुचित प्रवृत्ति पता लगती है, शायद यह बेईमानी, भौतिकवाद, या स्वार्थ की ओर प्रवृत्ति हो? कृपालुता से उसे ठीक कीजिए, जैसे यीशु ने अपने प्रेरितों की कमज़ोरियों को ठीक किया। (मरकुस ९:३३-३७) ख़ासकर, हर बच्चे की क्षमताओं और अच्छी विशेषताओं के लिए नियमित रूप से उसकी सराहना कीजिए।
१०. बच्चों को ख़ासकर किस चीज़ की ज़रूरत होती है, और यह कैसे प्रदान की जा सकती है?
१० बच्चों को ख़ासकर चाहिए प्रेममय व्यक्तिगत ध्यान। यीशु ने बच्चों को ऐसा ख़ास ध्यान देने के लिए समय निकाला। ऐसा उसने अपनी सेवकाई के व्यस्त अन्तिम दिनों के दौरान भी किया। (मरकुस १०:१३-१६, ३२) माता-पिताओं, उस उदाहरण का अनुकरण कीजिए! अपने बच्चों के साथ समय बिताने के लिए निःस्वार्थ रूप से समय निकालिए। और उन्हें सच्चा प्रेम दिखाने के लिए लज्जित न होइए। उनको अपनी बाँहों में लीजिए, जैसे यीशु ने लिया। उनको हार्दिक, स्नेह भरे चुम्बन दीजिए और गले से लगाइए। जब सुसमंजित युवा वयस्कों के माता-पिताओं से पूछा गया कि वे अन्य माता-पिताओं को क्या सलाह दे सकते हैं, तो ज़्यादातर ने कहा: ‘बहुत प्रेम कीजिए,’ ‘एकसाथ समय बिताइए,’ ‘एक-दूसरे के लिए आदर विकसित कीजिए,’ ‘सचमुच उनकी सुनिए,’ ‘भाषण देने के बजाय मार्गदर्शन प्रस्तुत कीजिए,’ और ‘यथार्थवादी बनिए।’
११. (क) अपने बच्चों के लिए विशिष्टीकृत ध्यान प्रदान करने को माता-पिताओं को किस दृष्टि से देखना चाहिए? (ख) माता-पिता कब अपने बच्चों के साथ उपयोगी बातचीत का आनन्द लेने में समर्थ हो सकते हैं?
११ ऐसा विशिष्टीकृत ध्यान देना आनन्द का काम हो सकता है। एक सफल पिता ने लिखा: “जब हमारे दो बेटे छोटे थे, उन्हें सुलाने के लिए तैयार करने की प्रक्रिया, उनके लिए पढ़ना, उन्हें बिस्तर में ओढ़ाना, और उनके साथ प्रार्थना करना सुखद था।” एक साथ इस तरह समय बिताना बातचीत करने के लिए अवसर प्रदान करता है। ऐसी बातचीत जनक और बच्चे दोनों के लिए प्रोत्साहक हो सकती है। (रोमियों १:११, १२ से तुलना कीजिए.) एक दम्पति सुन रहे थे जब उनके तीन-वर्षीय पुत्र ने परमेश्वर से “वाली” को आशिष देने के लिए प्रार्थना की। उसने आनेवाली रातों को भी “वाली” के लिए प्रार्थना की, और माता-पिता को बहुत प्रोत्साहन मिला जब उन्हें समझ आया कि उसका अर्थ था परमेश्वर मलावी में भाइयों को आशिष दे। उस समय मलावी में भाई सताहट सह रहे थे। एक स्त्री ने कहा: ‘जब मैं सिर्फ़ चार वर्ष की थी, मेरी माँ ने मुझे शास्त्रवचनों को याद करने और राज्य गीत गाने के लिए मदद की। जब मेरी माँ बर्तन धोती थी तब मैं कुर्सी पर खड़ी होकर उन्हें पोंछती थी, और उस समय मेरी माँ मुझे यह सब सिखाती थी।’ क्या आप ऐसे समयों के बारे में सोच सकते हैं जब आप अपने बच्चों के साथ उपयोगी बातचीत का आनन्द ले सकते हैं?
१२. मसीही माता-पिता बुद्धिमानी से अपने बच्चों के लिए क्या प्रदान करेंगे, और किन तरीक़ों का प्रयोग किया जा सकता है?
१२ बुद्धिमान मसीही माता-पिता एक नियमित अध्ययन कार्यक्रम का प्रबन्ध करते हैं। जबकि आप एक औपचारिक प्रश्न-उत्तर का तरीक़ा अपना सकते हैं, क्या आप अध्ययन सत्रों को ख़ासकर बच्चों के लिए अनुकूल बनाने के द्वारा सुखद बातचीत में योग दे सकते हैं? आप इन चीज़ों को शायद सम्मिलित करें, जैसे कि बाइबल दृश्यों के चित्र बनाना, बाइबल की कहानियाँ सुनाना, या जो रिपोर्ट आपने बच्चे को तैयार करने को कही है उसे सुनना। परमेश्वर के वचन को अपने बच्चों के लिए जितना स्वादिष्ट बना सकते हैं बनाइए ताकि वे उसके लिए लालसा विकसित करें। (१ पतरस २:२, ३) एक पिता ने कहा: ‘जब बच्चे छोटे थे, हम उनके साथ फ़र्श पर घुटनों के बल चलते थे और प्रसिद्ध बाइबल पात्रों से सम्बन्धित ऐतिहासिक घटनाओं का अभिनय करते थे। बच्चे इसे पसन्द करते थे।’
१३. अभ्यास सत्रों का क्या महत्त्व है, और इनके दौरान आप किन चीज़ों का पूर्वाभ्यास कर सकते हैं?
१३ अभ्यास सत्रों के फलस्वरूप भी उपयोगी बातचीत होती है क्योंकि वे बच्चों को सच्ची-जीवन परिस्थितियों के लिए तैयार करते हैं। सभी ११ कुसरो बच्चे नात्ज़ी सताहट के दौरान परमेश्वर को वफ़ादार रहे। उनमें से एक बच्चे ने अपने माता-पिता के बारे में कहा: “उन्होंने हमें दिखाया कि किस प्रकार बाइबल के अनुसार चलें और बाइबल के साथ अपना बचाव करें। [१ पतरस ३:१५] अकसर हम अभ्यास सत्र रखते थे, प्रश्न पूछते और उत्तर देते थे।” क्यों न ऐसा ही करें? आप सेवकाई के लिए प्रस्तुतियों का अभ्यास कर सकते हैं, जिसमें माता या पिता गृहस्वामी बन सकते हैं। या अभ्यास सत्र सच्चे-जीवन प्रलोभनों से निपटने पर हो सकता है। (नीतिवचन १:१०-१५) एक व्यक्ति ने समझाया, “कठिन परिस्थितियों के लिए पूर्वाभ्यास बच्चे के कौशल और विश्वास को बढ़ा सकता है। अभ्यास में एक मित्र की भूमिका निभाना सम्मिलित हो सकता है जो आपके बच्चे को सिगरेट, शराब या नशीला पदार्थ पेश कर रहा है।” ये सत्र आपको समझने में मदद करेंगे कि आपका बच्चा ऐसी परिस्थितियों में किस प्रकार प्रतिक्रिया दिखाएगा।
१४. अपने बच्चों के साथ प्रेममय और सहानुभूतिक चर्चाएँ क्यों इतनी महत्त्वपूर्ण हैं?
१४ अपने बच्चे के साथ बातचीत के दौरान, उससे वैसी ही सहानुभूतिशील रीति से निवेदन कीजिए जैसे इन शब्दों के लेखक ने किया: “हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा को न भूलना; अपने हृदय में मेरी आज्ञाओं को रखे रहना; क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी, और तू अधिक कुशल से रहेगा।” (नीतिवचन ३:१, २) क्या यह आपके बच्चे के हृदय को नहीं छूएगा यदि आप प्रेमपूर्वक समझाएँ कि आप आज्ञापालन इसलिए चाहते हैं क्योंकि इससे वह कुशल से रहेगा और उसकी आयु बढ़ेगी—वास्तव में, परमेश्वर के शान्तिपूर्ण नए संसार में अनन्त जीवन मिलेगा? जब आप परमेश्वर के वचन से तर्क करते हैं तो अपने बच्चे के व्यक्तित्व को ध्यान में रखिए। इसे प्रार्थनापूर्वक कीजिए, और यहोवा आपके प्रयासों पर आशिष देगा। संभावना है कि ऐसी प्रेममय और सहानुभूतिशील बाइबल-आधारित चर्चाओं के परिणाम उत्तम होंगे और स्थायी लाभ लाएँगे।—नीतिवचन २२:६.
१५. समस्याओं को सुलझाने में माता-पिता कैसे अपने बच्चों की मदद कर सकते हैं?
१५ यदि ऐसी बातचीत आपके योजित अध्ययन समय के दौरान न भी हो, तो भी अन्य बातों द्वारा विकर्षित न होइए। अपने बच्चे की बातें ध्यानपूर्वक सुनिए और यह भी कि वह किस प्रकार विचार को व्यक्त करता है। एक विशेषज्ञ ने कहा, “अपने बच्चे को देखिए। उसे अपना पूरा ध्यान दीजिए। आपको सिर्फ़ सुनने की ही नहीं बल्कि समझने की भी ज़रूरत है। जो माता-पिता यह अतिरिक्त प्रयास करते हैं वे अपने बच्चों के जीवनों में बड़ा अन्तर ला सकते हैं।” आज बच्चे स्कूल और अन्य स्थानों में गंभीर समस्याओं का सामना करते हैं। जनक होने के नाते, अपने बच्चे को खुलकर बोलने में मदद दीजिए। बातों को परमेश्वर के दृष्टिकोण से देखने में उसकी मदद कीजिए। यदि आप निश्चित नहीं हैं कि एक समस्या को कैसे सुलझाया जाए, तो शास्त्रवचनों में और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा प्रदत्त प्रकाशनों में अनुसंधान कीजिए। (मत्ती २४:४५) अवश्य ही, समस्या को सुलझाने के लिए अपने बच्चे को सभी आवश्यक विशिष्टीकृत ध्यान दीजिए।
एकसाथ बिताए अपने समय को प्रिय जानिए
१६, १७. (क) आज ख़ासकर युवा लोगों को क्यों विशिष्टीकृत ध्यान और शिक्षण की ज़रूरत है? (ख) माता-पिता द्वारा अनुशासित किए जाने पर बच्चों को क्या जानना ज़रूरी है?
१६ क्योंकि हम “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं और ये “कठिन समय” हैं, आज युवा लोगों को पहले से कहीं अधिक विशिष्टीकृत ध्यान की ज़रूरत है। (२ तीमुथियुस ३:१-५; मत्ती २४:३-१४) माता-पिताओं और बच्चों दोनों को समान रूप से सच्ची बुद्धि द्वारा प्रदत्त सुरक्षा की ज़रूरत है। इस बुद्धि से “उसके रखनेवालों के प्राण की रक्षा होती है।” (सभोपदेशक ७:१२) क्योंकि ईश्वरीय बुद्धि में बाइबल-आधारित ज्ञान की सही प्रयुक्ति सम्मिलित है, बच्चों को परमेश्वर के वचन से नियमित शिक्षण की ज़रूरत है। इसलिए, अपने बच्चों के साथ शास्त्रवचन पढ़िए। उन्हें यहोवा के बारे में बताइए, ध्यानपूर्वक उसकी माँगें समझाइए, और उसकी महान् प्रतिज्ञाओं की पूर्ति के लिए आनन्दपूर्ण प्रत्याशा उत्पन्न कीजिए। ऐसी बातों के बारे में घर में, अपने बच्चों के साथ चलते समय—वस्तुतः हर उपयुक्त अवसर पर बात कीजिए।—व्यवस्थाविवरण ६:४-७.
१७ किसान जानते हैं कि सभी पौधे समान परिस्थितियों में नहीं पनपते। पौधों को विशिष्टीकृत देख-रेख की ज़रूरत होती है। उसी प्रकार, हर बच्चा भिन्न होता है और उसे विशिष्टीकृत ध्यान, शिक्षण, और अनुशासन की ज़रूरत होती है। उदाहरण के लिए, एक बच्चे को ग़लत काम करने से रोकने के लिए शायद जनक की नापसन्दगी की एक नज़र ही काफ़ी हो, जबकि शायद दूसरे बच्चे को कड़े अनुशासन की ज़रूरत हो। लेकिन आपके सभी बच्चों को यह जानने की ज़रूरत है कि आप किन्हीं शब्दों या कार्यों से क्यों अप्रसन्न हैं, और माता-पिता दोनों को सहयोग देना चाहिए ताकि अनुशासन संगत हो। (इफिसियों ६:४) यह ख़ासकर महत्त्वपूर्ण है कि मसीही माता-पिता शास्त्रवचनों के सामंजस्य में स्पष्ट मार्गदर्शन दें।
१८, १९. मसीही माता-पिताओं की अपने बच्चों के प्रति क्या ज़िम्मेदारी है, और यदि कार्य अच्छी तरह किया जाए तो संभवतः क्या परिणाम होगा?
१८ किसान को बोने और जोतने का कार्य सही समय पर करना होता है। यदि वह देर करता है या अपनी फ़सल के प्रति लापरवाह है, तो उसकी कटनी थोड़ी या बिल्कुल ही नहीं होगी। आपके छोटे बच्चे बढ़ते “पौधे” हैं जिनको अभी विशिष्टीकृत ध्यान की ज़रूरत है, अगले महीने या अगले वर्ष नहीं। परमेश्वर के वचन के सामंजस्य में उनकी आध्यात्मिक वृद्धि को बढ़ाने और सांसारिक विचारों की निराई करने के लिए बहुमोल अवसरों को जाने न दीजिए। सांसारिक विचारों के कारण वे मुरझाकर आध्यात्मिक रूप से मर सकते हैं। जो घंटे और दिन आपको अपने बच्चों के साथ बिताने का विशेषाधिकार प्राप्त है उन्हें प्रिय जानिए, क्योंकि यह समय जल्दी बीत जाता है। यहोवा के वफ़ादार सेवकों के रूप में आनन्दित जीवन के लिए ज़रूरी ईश्वरीय गुणों को अपनी संतान में विकसित करने के लिए कठिन परिश्रम कीजिए। (गलतियों ५:२२, २३; कुलुस्सियों ३:१२-१४) यह किसी दूसरे का कार्य नहीं है; यह आपका कार्य है, और इसे करने में परमेश्वर आपकी मदद कर सकता है।
१९ अपने बच्चों को एक बड़ी आध्यात्मिक मीरास दीजिए। उनके साथ परमेश्वर के वचन का अध्ययन कीजिए, और एकसाथ हितकर मनोरंजन का आनन्द लीजिए। अपने बच्चों को सभाओं में लेकर जाइए, और राज्य-प्रचार के कार्य में उन्हें अपने साथ रखिए। अपनी प्रिय संतान में उस क़िस्म का व्यक्तित्व विकसित कीजिए जो यहोवा को स्वीकार्य है, और अति संभव है कि वे बड़े होने पर आपको अधिक आनन्द पहुँचाएँगे। सचमुच, “धर्मी का पिता बहुत मगन होता है; और बुद्धिमान का जन्मानेवाला उसके कारण आनन्दित होता है। तेरे कारण माता-पिता आनन्दित, और तेरी जननी मगन होए।”—नीतिवचन २३:२४, २५.
एक बड़ा प्रतिफल
२०. किशोरों का एक सफल जनक होने की कुँजी क्या है?
२० बच्चों का पालन-पोषण करना एक जटिल, दीर्घकालिक नियुक्ति है। ‘अपनी मेज़ के चारों ओर इन जलपाई के पौधों’ को इस प्रकार बड़ा करना कि वे परमेश्वर का भय माननेवाले वयस्क बनें जो राज्य फल लाते हैं, २०-वर्षीय परियोजना कहलायी है। (भजन १२८:३; यूहन्ना १५:८) यह परियोजना अकसर उस समय ज़्यादा कठिन हो जाती है जब बच्चे किशोरावस्था में पहुँचते हैं। इस उम्र में बच्चों पर अकसर ज़्यादा दबाव आते हैं और माता-पिताओं के लिए ज़रूरी हो जाता है कि उनकी मदद करने के लिए अपने प्रयास तीव्र करें। लेकिन सफलता की कुँजी वही रहती है—ध्यान देना, स्नेही, और समझदार होना। याद रखिए कि आपके बच्चों को सचमुच व्यक्तिगत ध्यान की ज़रूरत है। आप उनको ऐसा ध्यान उनके कल्याण के लिए असली प्रेममय चिन्ता दिखाने के द्वारा दे सकते हैं। उनकी मदद करने के लिए, आपको समय, प्रेम, और परवाह देने के द्वारा स्वयं को देना होगा। उनको सचमुच इनकी ज़रूरत है।
२१. बच्चों को विशिष्टीकृत ध्यान देने का प्रतिफल क्या हो सकता है?
२१ यहोवा ने आपको जो मूल्यवान फल सौंपा है उसकी देख-रेख करने के लिए आपके प्रयासों का प्रतिफल किसी किसान की बड़ी फ़सल से भी कहीं ज़्यादा संतोषजनक हो सकता है। (भजन १२७:३-५) इसलिए माता-पिताओं, अपने बच्चों को विशिष्टीकृत ध्यान देते रहिए। यह उनकी भलाई और हमारे स्वर्गीय पिता, यहोवा की महिमा के लिए कीजिए।
आप कैसे उत्तर देंगे?
▫ किस प्रकार पौधे उगाने और बच्चों का पालन-पोषण करने की तुलना की जा सकती है?
▫ बालकपन से बच्चे को हर दिन किस क़िस्म का ध्यान मिलना चाहिए?
▫ बच्चों को कैसे विशिष्टीकृत ध्यान की ज़रूरत होती है, और यह कैसे दिया जा सकता है?
▫ अपने बच्चों को विशिष्टीकृत ध्यान क्यों दें?