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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
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परमाणु ख़तरा आख़िर ख़त्म?

“दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद पृथ्वी पर शांति अब सबसे अधिक संभव लगती है।” एक समाचार संवाददाता द्वारा १९८९ में यह सकारात्मक निष्कर्ष इस तथ्य पर आधारित था कि महत्त्वपूर्ण निरस्त्रीकरण समझौतों और अप्रत्याशित राजनैतिक परिवर्तनों ने आख़िर शीत युद्ध को समाप्त कर ही दिया। लेकिन क्या वह परमाणु ख़तरा भी ख़त्म हो गया जो भूतपूर्व महाशक्‍ति मुक़ाबले की विशेषता थी? क्या स्थायी शांति और सुरक्षा वास्तव में पहुँच के अन्दर थे?

प्रचुरता के ख़तरे

शीत युद्ध के दौरान, जब महाशक्‍तियाँ शांति बनाए रखने के लिए आतंक-संतुलन पर निर्भर थीं, उन्होंने समझौता किया कि शांतिपूर्ण उद्देश्‍यों के लिए वे परमाणु जानकारी को विकसित कराने की अनुमति देंगे, परन्तु परमाणु अस्त्र बनाने वाले राष्ट्रों की संख्या को सीमित रखेंगे। वर्ष १९७० में न्युक्लियर नॉन-प्रोलिफिरेशन ट्रीटी लागू हुई; बाद में १४० राष्ट्रों ने इसका समर्थन किया। फिर भी, संभाव्य परमाणु शक्‍तियाँ जैसे अर्जेंटाइना, इज़राइल, ब्राज़ील, और भारत ने आज तक इस पर दस्तख़त करने से इनकार किया है।

परन्तु १९८५ में एक दूसरी संभाव्य परमाणु शक्‍ति, उत्तरी कोरिया ने इस पर दस्तख़त किया। सो मार्च १२, १९९३ को जब उसने इस संधि से अपना समर्थन वापिस लेने की घोषणा की तो दुनिया ने तर्कसंगत रूप से चिन्ता प्रकट की। जर्मन समाचारपत्रिका देर श्‍फीगल ने कहा: “न्युक्लियर नॉन-प्रोलिफिरेशन ट्रीटी से अपना समर्थन वापस लेने की सूचना एक पूर्वोदाहरण प्रस्तुत करती है: अब परमाणु शस्त्रास्त्रों की दौड़ का ख़तरा है, जो एशिया में शुरू होकर महाशक्‍तियों के बीच बम मुक़ाबले से भी ज़्यादा ख़तरनाक हो सकता है।”

राष्ट्रीयवाद आश्‍चर्यजनक दर से नए राष्ट्रों को जन्म दे रहा है, संभवतः परमाणु शक्‍तियों की संख्या भी बढ़ेगी। (बक्स देखिए।) पत्रकार चार्ल्स क्रौटहैमर चेतावनी देता है: “सोवियत ख़तरे के अन्त का अर्थ परमाणु ख़तरे का अन्त नहीं है। वास्तविक ख़तरा परमाणु शक्‍तियों की संख्या में वृद्धि है, और यह वृद्धि अभी शुरू ही हुई है।”

बिक्री के लिए बम

भावी परमाणु शक्‍तियाँ इन शस्त्रों से प्राप्त प्रतिष्ठा और शक्‍ति को हासिल करने के लिए उत्सुक हैं। कहा जाता है कि एक देश ने कम से कम दो परमाणु स्फोटक शीर्ष कज़ाकिस्तान से ख़रीदे हैं। यह भूतपूर्व सोवियत गणराज्य सरकारी तौर पर इन स्फोटक शीर्षों को “लापता” बताता है।

अक्‍तूबर १९९२ में फ्रैंकफर्ट, जर्मनी में कई लोग २०० ग्राम अति विघटनाभिक सीज़ियम के साथ पकड़े गए जो एक पूरे शहर के जल-प्रबंध को ज़हरीला करने के लिए काफ़ी था। एक हफ़्ते बाद म्यूनिच में सात तस्कर २.२ किलोग्राम यूरेनियम के साथ पकड़े गए। दो हफ़्तों के अन्दर ही दो परमाणु तस्करी गुटों के भंडाफोड़ ने अधिकारियों को चौंका दिया, क्योंकि पूरे पिछले वर्ष के दौरान संसार-भर में केवल पाँच ऐसी घटनाओं की सूचना प्राप्त हुई थी।

यह मालूम नहीं है कि इन लोगों का इरादा इन शस्त्रों को आतंकवादी समूहों को बेचना था या राष्ट्रीय सरकारों को। फिर भी, परमाणु आतंकवाद की संभावना बढ़ रही है। यूरोपियन प्रोलिफिरेशन इंफोर्मेशन सेन्टर का डा. डेविड लौरी ख़तरे को समझाता है: “एक आतंकवादी को केवल इतना ही करना है कि अति संवर्धित यूरेनियम का एक नमूना किसी प्रतिष्ठित संस्थान को जाँच के लिए भेज दे और कहे कि हमारे पास इतना है और यह उसका सबूत है। यह ऐसा है मानो एक अपहरणकर्ता अपहृत व्यक्‍ति का कान काटकर सबूत के तौर पर भेजे।”

शांतिपूर्ण “टाईम बम” और “मृत्यु जाल”

जब १९९२ शुरू हुआ, तब ४२० परमाणु रिएक्टर विद्युत ऊर्जा के उत्पादन के शांतिपूर्ण कार्य में लगे हुए थे; और अन्य ७६ का निर्माण कार्य चल रहा था। परन्तु कई वर्षों के दौरान, रिएक्टर दुर्घटनाओं के कारण बढ़ती बीमारी, गर्भपात, और पैदाइशी नुक़्स की रिपोर्टें मिली हैं। एक रिपोर्ट बताती है कि १९६७ तक एक सोवियत प्लूटोनियम संयंत्र में घटनाओं ने चर्नोबिल महाविपत्ति से तीन गुणा ज़्यादा विघटनाभिकता का उत्सर्जन किया।

चर्नोबिल, यूक्रेन में अप्रैल १९८६ में हुई यह घटना मुख्य समाचार बन गयी। दशक १९७० के दौरान चर्नोबिल संयंत्र का उप-मुख्य परमाणु इंजीनियर, ग्राइगॉरयाइ मेदवेदफ समझाता है कि “अतिविशाल मात्रा में जो चिरस्थ विघटनाभिकता” वातावरण में फेंकी गयी है, वह “दस हिरोशिमा बमों के तुल्य है जहाँ तक दीर्घकालीन प्रभावों का सवाल है।”

अपनी पुस्तक चर्नोबल्सकाया क्रॉनिका में मेदवेदफ, १९८० के मध्य-दशक तक भूतपूर्व सोवियत संघ में हुई ११ और अमरीका में हुई १२ गंभीर परमाणु रिएक्टर घटनाओं की सूची देता है। अमरीका में हुई घटनाओं में १९७९ को थ्री माइल आइलैंड में हुई भयानक दुर्घटना भी शामिल है। इस घटना के बारे में मेदवेदफ लिखता है: “परमाणु ऊर्जा पर इसने पहला गंभीर वार किया और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा के विषय में बहुतों के मन से भ्रम दूर किया—परन्तु सभों के मन से नहीं।”

यह स्पष्ट करता है कि दुर्घटनाएँ अब भी क्यों होती हैं। वर्ष १९९२ के दौरान रूस में इनकी लगभग २० प्रतिशत वृद्धि हुई। उस वर्ष मार्च में सॉस्नोवी बोर बिजली घर में, जो सेंट पीटर्सबर्ग, रूस में है, ऐसी ही एक घटना के बाद उत्तरपूर्वी इंग्लैंड में विकिरण स्तर में ५० प्रतिशत वृद्धि हुई। और वह बढ़कर एस्टोनिया तथा दक्षिणी फिनलैंड में अधिकतम अनुमेय स्तर का दुगुना हो गया। न्यूकासिल यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर ज़ॉन अर्कर्ट स्वीकार करता है: “मैं साबित नहीं कर सकता कि विकिरण स्तर में बढ़ोतरी का कारण सॉस्नोवी बोर था—लेकिन यदि इसका कारण सॉस्नोवी बोर नहीं था, तो क्या था?”

कुछ अधिकारी दावा करते हैं कि चर्नोबिल जैसे रिएक्टरों की बनावट में ही त्रुटि है और उनको चलाना बहुत ही ख़तरनाक है। फिर भी, बिजली की बड़ी माँगों को पूरा करने में मदद करने के लिए एक दर्जन से अधिक रिएक्टर अब भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं। कुछ रिएक्टर प्रचालकों पर विद्युत उत्पादन बढ़ाने के लिए सुरक्षा नियंत्रण तन्त्रों को बन्द करने का दोष भी लगाया गया है। ऐसी रिपोर्टें फ्रांस जैसे देशों को भयभीत करती हैं। फ्रांस अपने बिजली के ७० प्रतिशत उत्पादन के लिए परमाणु संयंत्रों का उपयोग करता है। यदि “चर्नोबिल” जैसी एक और घटना हो जाए तो फ्रांस को मजबूर होकर अपने अनेक संयंत्रों को हमेशा के लिए बन्द करना पड़ेगा।

यहाँ तक कि “सुरक्षित” रिएक्टर भी पुराने होने पर प्रत्यक्षतः असुरक्षित हो जाते हैं। वर्ष १९९३ के प्रारम्भ में एक नियमित सुरक्षा जाँच के दौरान, जर्मनी के एक सबसे पुराने रिएक्टर, ब्रुन्सब्यूटल के इस्पात पाइपों में सौ से ज़्यादा दरारें पायी गयीं। इसी प्रकार की दरारें फ्रांस और स्विट्‌जरलैंड के रिएक्टरों में भी पायी गयी हैं। एक जापानी संयंत्र में पहली गंभीर दुर्घटना १९९१ में हुई, जिसमें संभवतः जीवनावधि एक सहयोगी कारण था। यह सुझाता है कि इसी प्रकार की दुर्घटनाएँ संभवतः अमरीका में भी हो सकती हैं जहाँ अंदाज़न दो-तिहाई व्यवसायिक रिएक्टर एक दशक से ज़्यादा पुराने हैं।

परमाणु रिएक्टर दुर्घटनाएँ कहीं भी और किसी भी वक्‍त हो सकती हैं। जितने ज़्यादा रिएक्टर, उतना ज़्यादा ख़तरा; जितना पुराना रिएक्टर, उतना ज़्यादा ख़तरा। एक समाचार पत्र ने इन्हें अकारण ही टिकिंग्‌ टाईम बम और विघटनाभिकीय मृत्यु जाल नहीं कहा।

उन्हें कूड़ा कहाँ फेंकना चाहिए?

हाल ही में लोग फ्रांसीसी आल्प पर्वतों के एक नदी किनारे पिकनिक स्थल पर बाड़ा लगा हुआ और पुलिसवालों का पहरा देखकर हैरान थे। समाचार पत्र दी यूरोपियन ने समझाया: “दो महीने पहले एक स्थानीय स्त्री की बेरिलियम विषाक्‍तता की वज़ह से मृत्यु के बाद आदेशित नियमित जाँचों ने प्रकट किया कि पिकनिक स्थल पर विघटनाभिकता के स्तर आस-पास के इलाके के स्तरों से १०० गुणा ज़्यादा थे।”

बेरिलियम उल्लेखनीय रूप से हल्का धातु है जो विभिन्‍न प्रक्रियाओं से उत्पादित किया जाता है। यह वायुयान उद्योग में और किरणन के बाद परमाणु ऊर्जा केन्द्रों में प्रयोग किया जाता है। स्पष्टतः बेरिलियम का उत्पादन करनेवाले किसी कारख़ाने ने ख़तरनाक किरणन अभिक्रियाओं का कूड़ा पिकनिक क्षेत्र पर या उसके पास फेंक दिया था। “बेरिलियम चूर्म पर यदि किरणन ना भी किया गया हो तो भी यह ज्ञात औद्योगिक कूड़ों में से एक सबसे अधिक विषैला कूड़ा है” दी यूरोपियन नोट करती है।

इसी बीच, रिपोर्ट किया गया है कि कुछ १७,००० विघटनाभिकीय कूड़े के पात्र ३० वर्षों के दौरान नोवेया ज़म्लिया के तट से पानी में फेंके गए। यह स्थान भूतपूर्व सोवियत संघ द्वारा दशक १९५० के आदि में परमाणु परीक्षण स्थल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। इसके अलावा, परमाणु पनडुब्बियों के विघटनाभिकीय भाग और कम से कम १२ रिएक्टरों के भाग भी इस सुविधाजनक कूड़ेदान में डाले गए थे।

चाहे जानबूझकर या अनजाने में, परमाणु प्रदूषण ख़तरनाक है। वर्ष १९८९ में नार्वे के तट के पास डूबी एक पनडुब्बी के विषय में टाईम ने सावधान किया: “उस क्षतिग्रस्त पनडुब्बी में से सीज़ियम-१३७ रिस रहा है, जो एक कार्सिनोजनक आइसोटोप है। अभी तक उस रिसाव को समुद्री जीवन या मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने के लिए बहुत कम माना जाता है। परन्तु कॉमसोमोल्यट्‌स्‌ पनडुब्बी में दो परमाणु विस्फोटक थे जिनमें १३ किलो प्लूटोनियम था। इसका अर्ध-जीवन २४,००० वर्षों का है और इसकी विषाक्‍तता इतनी ज़्यादा है कि इसका एक कण ही एक व्यक्‍ति को मारने के लिए काफ़ी है। रूसी विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि यह प्लूटोनियम पानी में फैल सकता है और समुद्र के एक विशाल क्षेत्र को शीघ्र ही १९९४ तक संदूषित कर सकता है।”

और हाँ, विघटनाभिक कूड़े को फेंकने की समस्या फ्रांस और रूस की ही नहीं है। अमरीका के पास “विघटनाभिक कूड़े के पहाड़ हैं और उसे रखने का कोई स्थायी स्थान नहीं है,” टाईम रिपोर्ट करती है। वह बताती है कि इन घातक पदार्थों के दस लाख पीपे अल्पकालिक भंडार में रखे हुए हैं, और उनकी ‘क्षति का, चोरी का, या दुरुपयोग की वजह से पर्यावरण के नुक़सान का सदा विद्यमान ख़तरा है।’

इस ख़तरे को मानो सचित्रित करने के लिए, अप्रैल १९९३ में टोम्‌स्क, साइबेरिया के एक भूतपूर्व अस्त्र संयंत्र में एक परमाणु कूड़ा टंकी का विस्फोट हुआ, जिसके कारण चर्नोबिल-जैसी दूसरी दुर्घटना के मानसिक चित्र खिंच गए।

प्रत्यक्षतः, परमाणु ख़तरे के प्रतीयमान अन्त के आधार पर की गयी शांति और सुरक्षा की कोई भी घोषणा ठोस नहीं है। और फिर भी शांति और सुरक्षा निकट है। हम यह कैसे जानते हैं?

[पेज 4 पर बक्स]

परमाणु शक्‍तियाँ

१२ देश और उनकी संख्या बढ़ रही है

घोषित या वास्तव में: अमरीका, इज़राइल, यूक्रेन, कज़ाकिस्तान, चीन, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, फ्रांस, ब्रिटेन, बेलोरूस, भारत, रूस

संभावित: अर्जेंटाइना, अल्जीरिया, ईरान, इराक, उत्तर कोरिया, ताइवान, दक्षिण कोरिया, ब्राज़ील, लीबिया, सीरिया

[पेज 5 पर तसवीर]

परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण प्रयोग भी ख़तरनाक हो सकता है

[चित्र का श्रेय]

Background: U.S. National Archives photo

[पेज 2 पर चित्र का श्रेय]

Cover: Stockman/International Stock

[पेज 3 पर चित्र का श्रेय]

U.S. National Archives photo

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