‘मैं अद्भुत रीति से रचा गया हूं’
“मैं कहाँ से आया हूँ?” यह एक ऐसा सवाल है जो अधिकतर छोटे बच्चे कभी-न-कभी पूछते हैं। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, तो उनके सवाल अकसर ज़्यादा गम्भीर बन जाते हैं: “जीवन कहाँ से आया?” इस सवाल की चर्चा हज़ारों वर्षों से की गयी है, और आजकल अनेक वैज्ञानिक क्रमविकास को जीवन के उद्गम की पहेली का सबसे तर्कसंगत जवाब मानते हैं। मूलतः, विकासवादी का स्पष्टीकरण है कि जीवन संयोगवश अस्तित्व में आया।
लगभग ३,००० वर्ष पहले, राजा दाऊद ने लिखा: “मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं।” (भजन १३९:१४) हम जीवन के बारे में जितना ज़्यादा सीखते हैं, उतनी ही ज़्यादा सच्चाई हम इन शब्दों में देखते हैं। वाक़ई, भौतिक-विज्ञानी फ्रेड हॉइल ने लिखा: “जैसे-जैसे जीव-रसायनज्ञ जीवन की विस्मयकारी जटिलता के बारे में अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करते जाते हैं, यह प्रत्यक्ष है कि किसी संयोग से इसके उद्गम होने की संभावनाएँ इतनी कम हैं कि इन्हें पूरी तरह से रद्द किया जा सकता है। जीवन का उद्गम संयोगवश नहीं हुआ होगा।”
सो जीवन का उद्गम क्या है? इस पत्रिका के पहले दो लेख इस सवाल की चर्चा करते हैं। यदि आप अतिरिक्त जानकारी चाहेंगे, तो कृपया Watch Tower, H-58 Old Khandala Road, Lonavla 410401, Mah., India, को या पृष्ठ २ पर दिए उपयुक्त पते पर लिखिए।