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  • मृत जनों का भय व्यापक है
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
w94 10/1 पेज 3-4

मृत जनों का भय व्यापक है

सूर्यास्त काफ़ी समय पहले हो चुका था। आप जिस वक़्त तक घर लौटना पसन्द करते, उससे कुछ देर बाद घर लौट रहे हैं। चलते-चलते जब आप स्थानीय क़ब्रिस्तान के पास से गुज़रते हैं, आपका दिल कुछ तेज़ धड़कने लगता है। अंधेरी रात का सन्‍नाटा आपको हल्की-सी भी आवाज़ के प्रति सचेत कराता है। अचानक थोड़ी दूर पर आप एक कर्कश, चौंकानेवाली आवाज़ सुनते हैं। आप घर की सुरक्षा की ओर बढ़ते हुए जल्दी-जल्दी चलने लगते हैं—आपकी धड़कन भी तेज़ हो जाती है।

जब आप एक क़ब्रिस्तान में या उसके आस-पास थे, तब क्या आपने कभी चिंताकुल भावनाओं का अनुभव किया है? यदि हाँ, तो आप शायद एक धार्मिक धारणा द्वारा प्रभावित हुए होंगे जो विश्‍वभर में आम है—कि मृत जनों की आत्माएँ जीवितों की सहायता या हानि कर सकती हैं।

इस विश्‍वास के परिणामस्वरूप अनेक अंधविश्‍वासी रिवाज़ विकसित हुए हैं कि मृत जनों को जीवितों की सहायता की ज़रूरत है या यदि उन्हें ख़ुश नहीं किया जाए तो वे जीवितों को हानि पहुँचा सकते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लातिन-अमरीकी देशों में, जिस स्थान पर एक व्यक्‍ति की मृत्यु दुर्घटना के कारण हुई है, वहाँ एक छोटा-सा आवास बनाकर एक क्रूस लगाना बहुतों का रिवाज़ है। लोग वहाँ मोमबत्तियाँ जलाने और फूल रखने के द्वारा यह दिखाने का प्रयास करते हैं कि उन्हें मृत व्यक्‍ति के प्राण या आत्मा में दिलचस्पी है या वे उनकी सहायता करना चाहते हैं। कुछ मामलों में, प्रार्थनाओं के “चमत्कारिक” जवाबों के बारे में ख़बरें फैलाई जाती हैं, ताकि लोग अनीमिटा, मृत व्यक्‍ति के प्राण या आत्मा के लिए छोटे-से आवास पर बारंबार आने लगें। वहाँ वे मानडास्‌, या प्रतिज्ञाएँ करते हैं, कि यदि वह मृत व्यक्‍ति उन्हें कुछ निष्पन्‍न या प्राप्त करने में सहायता करेगा—शायद एक चमत्कारिक चंगाई—तो वे अपनी कृतज्ञता एक ख़ास तरीक़े से दिखाएँगे। दूसरी तरफ़, शायद ऐसा सुनने में आ सकता है कि व्यक्‍ति का प्राण रात के अंधेरे में दिखाई देकर मौजूद लोगों को भयभीत करता है। आम तौर पर ऐसा कहा जाता है कि ऐसे प्राण पेनानडो हैं, जो बीती हुई घटनाओं के कारण जीवित लोगों को परेशान करते हैं।

अनेक देशों में लोग मृत जनों की “आत्माओं” को ख़ुश करने के लिए बहुत प्रयास करते हैं। बड़ी-बड़ी दावतें रखी जाती हैं, बलिदान चढ़ाए जाते हैं, सांत्वनादायक बातें कही जाती हैं—यह सब इसलिए किया जाता है कि मृत व्यक्‍ति की आत्मा बदला न ले। ऐसा सोचा जाता है कि आत्मा को शांत करना शेष जीवित जनों के लिए प्रतिफल और आशिषों में परिणित होगा।

“अनेक लोग विश्‍वास करते हैं कि कोई भी घटना ‘साधारणतः या स्वभावतः’ नहीं घटती,” अफ्रीका की एक रिपोर्ट कहती है। “यह सोचा जाता है कि किसी भी घटना—चाहे वह बीमारी, विपत्ति, बाँझपन, आर्थिक कठिनाई, अत्यधिक वर्षा या धूप, दुर्घटनाएँ, पारिवारिक फूट, या मृत्यु हो—का कारण अनदेखी आत्माएँ हैं, जिनके पास अलौकिक शक्‍तियाँ हैं।” दूसरी रिपोर्ट कहती है: “लोग विश्‍वास करते हैं कि उनके पूर्वजों की आत्माएँ स्वर्ग में निवास करती हैं और पृथ्वी पर अपने जीवित रिश्‍तेदारों पर निरन्तर निगरानी रखती हैं। ऐसा विश्‍वास किया जाता है कि पूर्वजों के पास अलौकिक शक्‍तियाँ होती हैं, जिन्हें वे पृथ्वी पर अपने रिश्‍तेदारों को आशिष देने और उनकी रक्षा करने के लिए या उन्हें दण्ड देने के लिए प्रयोग कर सकते हैं, जो मृत जनों के प्रति रिश्‍तेदारों के सम्मान या उपेक्षा पर निर्भर करता है।”

लेकिन क्या ये विश्‍वास परमेश्‍वर के वचन के साथ सामंजस्य में हैं? आपका विचार क्या है?

[पेज 4 पर तसवीरें]

चिली में एक “अनीमिटा”

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