परमेश्वर के झुंड की प्रेम से रखवाली करना
“परमेश्वर के झुंड की, जो तुम्हारी देखरेख में है, रखवाली करो।”—१ पतरस ५:२, NW.
१, २. यहोवा का प्रमुख गुण क्या है, और यह कैसे प्रकट होता है?
पूरे पवित्र शास्त्र में, यह स्पष्ट किया गया है कि प्रेम परमेश्वर का प्रमुख गुण है। पहला यूहन्ना ४:८ कहता है: “परमेश्वर प्रेम है।” क्योंकि उसका प्रेम कार्यों में अभिव्यक्त होता है, १ पतरस ५:७ कहता है कि परमेश्वर को “तुम्हारा ध्यान है।” बाइबल में यहोवा द्वारा अपने लोगों की परवाह करने के तरीक़े की समानता एक प्रेममय चरवाहे द्वारा अपनी भेड़ों की कोमलता से परवाह करने के तरीक़े से की गई है: “देखो! प्रभु यहोवा . . . अपने झुण्ड को चराएगा, वह भेड़ों के बच्चों को अंकवार में लिए रहेगा और दूध पिलानेवालियों को धीरे-धीरे ले चलेगा।” (यशायाह ४०:१०, ११) दाऊद को कितनी सांत्वना मिली जब वह यह कह सका: “यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी।”—भजन २३:१.
२ यह उचित है कि बाइबल उन लोगों की समानता भेड़ से करती है जिन्हें परमेश्वर अनुग्रह दिखाता है, क्योंकि भेड़ें शांत, अधीनता दिखानेवाली, और अपने परवाह करनेवाले चरवाहे के प्रति आज्ञाकारी होती हैं। एक प्रेममय चरवाहे के रूप में, यहोवा अपने भेड़-समान लोगों की बहुत परवाह करता है। वह इस परवाह को उनके लिए भौतिक और आध्यात्मिक रूप से प्रबन्ध करने के द्वारा और इस दुष्ट संसार के इन कठिन “अन्तिम दिनों” में से उन्हें अपने आनेवाले धार्मिक नए संसार की ओर मार्गदर्शित करने के द्वारा दिखाता है।—२ तीमुथियुस ३:१-५, १३; मत्ती ६:३१-३४; १०:२८-३१; २ पतरस ३:१३.
३. भजनहारे ने यहोवा द्वारा अपनी भेड़ों की परवाह करने के तरीक़े का वर्णन कैसे किया?
३ अपनी भेड़ों के प्रति यहोवा की प्रेममय परवाह पर ध्यान दीजिए: “यहोवा की आंखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उनकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं। . . . धर्मी दोहाई देते हैं और यहोवा सुनता है, और उनको सब विपत्तियों से छुड़ाता है। यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है। धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है।” (भजन ३४:१५-१९) विश्व चरवाहा अपने भेड़-समान लोगों के लिए क्या ही बड़ी सांत्वना प्रदान करता है!
अच्छे चरवाहे का उदाहरण
४. परमेश्वर के झुंड की परवाह करने में यीशु की क्या भूमिका है?
४ परमेश्वर के पुत्र, यीशु ने अपने पिता से अच्छी तरह सीखा, क्योंकि बाइबल यीशु को “अच्छा चरवाहा” कहती है। (यूहन्ना १०:११-१६) परमेश्वर के झुंड के प्रति उसकी महत्त्वपूर्ण सेवा प्रकाशितवाक्य अध्याय ७ में अभिलिखित है। आयत ९ में परमेश्वर के हमारे दिन के सेवकों को “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक . . . बड़ी भीड़” कहा गया है। फिर आयत १७ कहती है: “मेम्ना [यीशु] . . . उन की रखवाली करेगा; और उन्हें जीवन रूपी जल के सोतों के पास ले जाया करेगा, और परमेश्वर उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा।” यीशु परमेश्वर की भेड़ों को सच्चाई के जल की ओर मार्गदर्शित करता है जो अनन्त जीवन की ओर जाता है। (यूहन्ना १७:३) ध्यान दीजिए कि यीशु को “मेम्ना” कहा गया है, जो उसके ख़ुद के भेड़-समान गुणों को सूचित करता है, क्योंकि वह परमेश्वर के प्रति अधीनता का मुख्य उदाहरण है।
५. यीशु ने लोगों के बारे में कैसा महसूस किया?
५ पृथ्वी पर यीशु लोगों के साथ रहा और उनकी करुणाजनक स्थिति देखी। उनकी दशा के प्रति उसने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? “उस को लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेडों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से थे।” (मत्ती ९:३६) बिन चरवाहे की भेड़ों को परभक्षियों से बहुत हानि होती है, वैसे ही जैसे उन भेड़ों को जिनका चरवाहा लापरवाह होता है। परन्तु यीशु बहुत परवाह करता था, क्योंकि उसने कहा: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।”—मत्ती ११:२८-३०.
६. पद-दलितों के लिए यीशु ने कैसा लिहाज़ दिखाया?
६ बाइबल भविष्यवाणी ने पूर्वबताया कि यीशु लोगों के साथ प्रेम से व्यवहार करेगा: ‘यहोवा ने मेरा अभिषेक किया है ताकि मैं खेदित मन के लोगों को शान्ति दूं, सब विलाप करनेवालों को सांत्वना दूं।’ (यशायाह ६१:१, २, NW; लूका ४:१७-२१) ग़रीब और बेचारे लोगों को यीशु ने कभी तुच्छ नहीं समझा। इसके बजाय, उसने यशायाह ४२:३ को पूरा किया: “कुचले हुए नरकट को वह न तोड़ेगा और न टिमटिमाती बत्ती को बुझाएगा।” (मत्ती १२:१७-२१ से तुलना कीजिए।) पीड़ित लोग कुचले हुए नरकट के समान थे, दिये की बत्तियों के समान थे जो तेल की कमी के कारण जल्द ही बुझनेवाली थीं। उनकी दयनीय अवस्था को समझते हुए, यीशु ने उन्हें सहानुभूति दिखायी और उन्हें ताक़त और आशा प्रदान की, जिसने उन्हें आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से चंगा किया।—मत्ती ४:२३.
७. यीशु के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखानेवालों को उसने किस ओर निर्दिष्ट किया?
७ बड़ी संख्या में भेड़-समान लोगों ने यीशु को अनुकूल प्रतिक्रिया दिखायी। उसका शिक्षण इतना आकर्षक था कि उसे गिरफ़्तार करने के लिए भेजे गए अफ़सरों ने कहा: “किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न कीं।” (यूहन्ना ७:४६) ढोंगी धार्मिक अगुओं ने शिकायत की: “संसार उसके पीछे हो चला है”! (यूहन्ना १२:१९) लेकिन यीशु सम्मान या महिमा अपने लिए नहीं चाहता था। उसने लोगों को अपने पिता की ओर निर्दिष्ट किया। उसने उन्हें यहोवा के प्रशंसनीय गुणों के लिए प्रेम से प्रेरित होकर उसकी सेवा करना सिखाया: “तू प्रभु अपने परमेश्वर [यहोवा, NW] से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।”—लूका १०:२७, २८.
८. परमेश्वर के लोग उसे जो आज्ञाकारिता दिखाते हैं, वह अन्य लोगों द्वारा सांसारिक शासकों को दिखायी जानेवाली आज्ञाकारिता से भिन्न कैसे है?
८ यहोवा ख़ुश होता है कि उसके भेड़-समान लोग उसकी विश्व सर्वसत्ता का समर्थन करते हैं, जो कि उसके प्रति उनके प्रेम पर आधारित है। वे उसकी सेवा स्वेच्छा से करने का चुनाव करते हैं क्योंकि उन्हें उसके प्रीतिकर गुणों का ज्ञान है। यह संसार के नेताओं से कितना भिन्न है, जिनकी प्रजा केवल डर के कारण, या कुढ़कर, या तो अपने किसी छिपे हुए अभिप्राय के कारण उनकी आज्ञा मानती है! यहोवा या यीशु के बारे में वह कभी भी नहीं कहा जा सकता, जो रोमन कैथोलिक चर्च के एक पोप के बारे में कहा गया था: “अनेकों ने उसे सराहा, सभी ने उसका भय माना, किसी ने उसे प्रेम न किया।”—पीटर डा रोज़ा द्वारा यीशु के धर्माध्यक्ष—पोप-तंत्र के घिनौने पहलू।
इस्राएल में क्रूर चरवाहे
९, १०. प्राचीन इस्राएल के और पहली सदी के अगुओं का वर्णन कीजिए।
९ यीशु से भिन्न, उसके समय में इस्राएल के धार्मिक अगुओं में भेड़ों के लिए कोई प्रेम नहीं था। वे इस्राएल के पिछले शासकों की तरह थे जिनके बारे में यहोवा ने कहा था: “हाय इस्राएल के चरवाहों पर जो अपने अपने पेट भरते हैं! क्या चरवाहों को भेड़-बकरियों का पेट न भरना चाहिए? . . . तुम ने बीमारों को बलवान न किया, न रोगियों को चंगा किया, न घायलों के घावों को बान्धा, न निकाली हुई को फेर लाए, न खोई हुई को खोजा, परन्तु तुम ने बल और ज़बरदस्ती से अधिकार चलाया है।”—यहेजकेल ३४:२-४.
१० उन राजनैतिक चरवाहों की तरह, पहली सदी के यहूदी धार्मिक अगुए कठोर थे। (लूका ११:४७-५२) इसे सचित्रित करने के लिए, यीशु ने एक यहूदी के बारे में कहा जो लूटा गया, मारा गया, और मार्ग के किनारे पर अधमरा छोड़ दिया गया था। एक इस्राएली याजक वहाँ से गुज़र रहा था, लेकिन उस यहूदी को देखकर कतराकर चला गया। एक लेवी ने भी वही किया। फिर एक ग़ैर-इस्राएली, एक तिरस्कृत सामरी, वहाँ आया और उसने उस पीड़ित पर तरस खाया। उसने उसके ज़ख़मों पर पट्टी बाँधी, एक जानवर पर उसे एक सराय में ले गया, और उसकी सेवा टहल की। उसने भटियारे को पैसे दिए और कहा कि और अतिरिक्त ख़र्च देने के लिए वह वापस आएगा।—लूका १०:३०-३७.
११, १२. (क) यीशु के दिनों में धार्मिक अगुओं की दुष्टता एक शिखर तक कैसे पहुँची? (ख) रोमियों ने आख़िरकार धार्मिक अगुओं को क्या किया?
११ यीशु के दिनों के धार्मिक अगुए इतने भ्रष्ट थे कि जब यीशु ने लाजर को मरे हुओं में से जिलाया, तो मुख्य याजकों और फरीसियों ने महासभा के लोगों को इकट्ठा करके कहा: “हम करते क्या हैं? यह मनुष्य [यीशु] तो बहुत चिन्ह दिखाता है। यदि हम उसे योंही छोड़ दें, तो सब उस पर विश्वास ले आएंगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे।” (यूहन्ना ११:४७, ४८) यीशु ने उस मृत व्यक्ति के प्रति जो भलाई की थी उसकी उन्होंने परवाह नहीं की। वे अपने पदों के बारे में चिन्तित थे। “सो उसी दिन से वे [यीशु को] मार डालने की सम्मति करने लगे।”—यूहन्ना ११:५३.
१२ अपनी दुष्टता को और बढ़ाने के लिए तब मुख्य याजकों ने “लाजर को भी मार डालने की सम्मति की। क्योंकि उसके कारण बहुत से यहूदी चले गए, और यीशु पर विश्वास किया।” (यूहन्ना १२:१०, ११) अपने पदों को सुरक्षित रखने की उनकी स्वार्थी कोशिशें असफल रहीं, क्योंकि यीशु ने उन्हें कहा था: “तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है।” (मत्ती २३:३८) उन शब्दों की पूर्ति में, उसी पीढ़ी में रोमी आए और ‘उनकी जगह और जाति’ तथा उनकी जानें भी ले लीं।
मसीही कलीसिया में प्रेममय चरवाहे
१३. अपने झुंड की रखवाली करने के लिए यहोवा ने किसे भेजने की प्रतिज्ञा की?
१३ क्रूर, स्वार्थी चरवाहों के बजाय, यहोवा अपने झुंड की परवाह करने के लिए अच्छे चरवाहे, यीशु को नियुक्त करता। भेड़ों की परवाह करने के लिए उसने प्रेममय अधीनस्थ-चरवाहों को नियुक्त करने की भी प्रतिज्ञा की: ‘मैं उनके लिए ऐसे चरवाहे नियुक्त करूंगा जो उन्हें चराएंगे; और तब वे फिर कभी न डरेंगी।’ (यिर्मयाह २३:४) अतः, जैसे पहली सदी की मसीही कलीसियाओं में था, वैसे ही आज भी, “नगर नगर प्राचीनों को नियुक्त” किया जाता है। (तीतुस १:५) इन आध्यात्मिक रूप से प्राचीनों, जो शास्त्र में दी गई योग्यताओं को पूरा करते हैं, को ‘परमेश्वर के झुंड की रखवाली करनी’ है।—१ पतरस ५:२; १ तीमुथियुस ३:१-७; तीतुस १:७-९.
१४, १५. (क) शिष्यों ने कौन-सी मनोवृत्ति विकसित करनी मुश्किल पायी? (ख) यह दिखाने के लिए कि प्राचीनों को नम्र सेवक होना चाहिए यीशु ने क्या किया?
१४ भेड़ों की परवाह करने में, प्राचीनों को ‘सबसे बढ़कर’ उनके प्रति ‘अत्यधिक प्रेम’ होना चाहिए। (१ पतरस ४:८, NW) परन्तु यीशु के शिष्यों को यह सीखना पड़ा, क्योंकि वे प्रतिष्ठा और पद के बारे में ज़्यादा ही चिन्तित थे। सो जब दो शिष्यों की माता ने यीशु से कहा: “यह कह, कि मेरे ये दो पुत्र तेरे राज्य में एक तेरे दहिने और एक तेरे बाएं बैठें,” तो अन्य शिष्य क्रोधित हुए। यीशु ने उनसे कहा: “अन्य जातियों के हाकिम उन पर प्रभुता करते हैं; और जो बड़े हैं, वे उन पर अधिकार जताते हैं। परन्तु तुम में ऐसा न होगा; परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने। और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने।”—मत्ती २०:२०-२८.
१५ एक अन्य अवसर पर, शिष्यों के ‘आपस में यह वाद-विवाद करने’ के बाद “कि हम में से बड़ा कौन है,” यीशु ने उनसे कहा: “यदि कोई बड़ा होना चाहे, तो सब से छोटा और सब का सेवक बने।” (मरकुस ९:३४, ३५) मन की दीनता और सेवा करने की तत्परता को उनके व्यक्तित्व का एक भाग बनना था। फिर भी शिष्यों को उन विचारों के साथ कठिनाइयाँ होती रहीं, क्योंकि यीशु के मरने से पहले आख़िरी रात को, उसके अन्तिम संध्या भोज के समय, उनमें एक “तीव्र वाद-विवाद” हुआ कि कौन सबसे बड़ा है! यह यीशु के उन्हें इस बात को दिखाने के बावजूद हुआ कि एक प्राचीन को झुंड की सेवा कैसे करनी चाहिए; उसने ख़ुद को नम्र करके उनके पाँव धोए थे। उसने कहा: “यदि मैं ने प्रभु और गुरु होकर तुम्हारे पांव धोए; तो तुम्हें भी एक दूसरे के पांव धोना चाहिए। क्योंकि मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।”—लूका २२:२४, NW; यूहन्ना १३:१४, १५.
१६. प्राचीनों के सबसे महत्त्वपूर्ण गुण पर १८९९ की वॉच टावर ने क्या टिप्पणियाँ कीं?
१६ यहोवा के गवाहों ने हमेशा यह सिखाया है कि प्राचीनों को इस तरह होना चाहिए। लगभग एक सदी पहले, अप्रैल १, १८९९ की वॉच टावर ने १ कुरिन्थियों १३:१-८ में दिए पौलुस के शब्दों का उल्लेख किया और फिर कहा: “यह प्रेरित सुस्पष्ट रूप से बताता है कि ज्ञान और भाषणकला सबसे अनिवार्य परख नहीं हैं, बल्कि प्रेम जो हृदय तक फैलता है और पूरी जीवन-शैली में विस्तृत होता है, तथा हमारे मरणशील शरीर को प्रेरित और प्रचालित करता है, वही वास्तविक परख है—हमारे ईश्वरीय रिश्ते का वास्तविक सबूत। . . . पवित्र कार्यों में सेवा करने के लिए गिरजे के सेवक के रूप में स्वीकार किए जानेवाले हर एक व्यक्ति में जो प्रमुख विशेषता देखी जानी चाहिए, उसमें सबसे पहले है प्रेम की भावना।” उसने यह कहा कि वे लोग जो प्रेम से प्रेरित होकर नम्रता से सेवा नहीं करते, वे “ख़तरनाक शिक्षक हैं, और संभव है कि वे भलाई से ज़्यादा नुकसान करें।”—१ कुरिन्थियों ८:१.
१७. प्राचीनों के लिए आवश्यक गुणों पर बाइबल कैसे ज़ोर देती है?
१७ अतः, प्राचीनों को भेड़ों ‘पर अधिकार जताना’ नहीं चाहिए। (१ पतरस ५:३) इसके बदले, उन्हें ‘एक दूसरे के प्रति कृपालु, और करुणामय’ होने में अगुवाई करनी है। (इफिसियों ४:३२) पौलुस ने ज़ोर दिया: “बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो। . . . और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो।”—कुलुस्सियों ३:१२-१४.
१८. (क) भेड़ों के साथ व्यवहार करने में पौलुस ने कौन-सा उत्तम उदाहरण रखा? (ख) प्राचीनों को भेड़ों की ज़रूरतों की उपेक्षा क्यों नहीं करनी चाहिए?
१८ पौलुस ने यह करना सीखा, उसने कहा: “जिस तरह माता अपने बालकों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही हम ने भी तुम्हारे बीच में रहकर कोमलता दिखाई है। और वैसे ही हम तुम्हारी लालसा करते हुए, न केवल परमेश्वर का सुसमाचार, पर अपना अपना प्राण भी तुम्हें देने को तैयार थे, इसलिये कि तुम हमारे प्यारे हो गए थे।” (१ थिस्सलुनीकियों २:७, ८) इसके सामंजस्य में, उसने कहा: “हताश लोगों को सांत्वना दो, निर्बलों को सहारा दो, सब के प्रति सहनशील रहो।” (१ थिस्सलुनीकियों ५:१४, NW) भेड़ें चाहे प्राचीनों के पास किसी भी तरह की समस्या लाएँ, उन्हें नीतिवचन २१:१३ याद रखना चाहिए: “जो कंगाल की दोहाई पर कान न दे, वह आप पुकारेगा और उसकी सुनी न जाएगी।”
१९. प्रेममय प्राचीन एक आशिष क्यों हैं, और ऐसे प्रेम के प्रति भेड़ें कैसी प्रतिक्रिया दिखाती हैं?
१९ प्राचीन जो प्रेम से झुंड की रखवाली करते हैं, भेड़ों के लिए एक आशिष हैं। यशायाह ३२:२ ने पूर्वबताया: “हर एक मानो आंधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़ होगा; या निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया।” हम यह जानकर ख़ुश हैं कि आज हमारे अनेक प्राचीन, विश्रान्ति के बारे में यशायाह ३२:२ के सुन्दर विवरण के सामंजस्य में काम करते हैं। उन्होंने निम्नलिखित सिद्धान्त को अमल में लाना सीखा है: “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर मया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।” (रोमियों १२:१०) जब प्राचीन इस तरह का प्रेम और नम्रता दिखाते हैं, तो भेड़ें उन्हें “उन के काम के कारण प्रेम के साथ उन को बहुत ही आदर” देने के द्वारा प्रतिक्रिया दिखाती हैं।—१ थिस्सलुनीकियों ५:१२, १३.
स्वतंत्र इच्छा के इस्तेमाल का आदर कीजिए
२०. प्राचीनों को स्वतंत्र इच्छा का आदर क्यों करना चाहिए?
२० यहोवा ने मनुष्यों की सृष्टि स्वतंत्र इच्छा के साथ की ताकि वे अपने फ़ैसले ख़ुद करें। जबकि प्राचीनों को सलाह और अनुशासन देने की ज़रूरत है, उन्हें दूसरे के जीवन या विश्वास पर अधिकार नहीं लेना चाहिए। पौलुस ने कहा: “यह नहीं, कि हम विश्वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं; परन्तु तुम्हारे आनन्द में सहायक हैं क्योंकि तुम विश्वास ही से स्थिर रहते हो।” (२ कुरिन्थियों १:२४) जी हाँ, “हर एक व्यक्ति अपना ही बोझ उठाएगा।” (गलतियों ६:५) यहोवा ने अपने नियमों और सिद्धान्तों की सीमा में हमें काफ़ी स्वतंत्रता दी है। अतः प्राचीनों को वहाँ नियम नहीं बनाने चाहिए जहाँ शास्त्रीय सिद्धान्तों का उल्लंघन नहीं होता है। और अपने व्यक्तिगत विचारों को धर्म-सिद्धान्त के रूप में पेश करने या अगर कोई ऐसे विचारों से असहमत होता है, तो अपने अहंकार को उसमें दख़ल देने की प्रवृत्ति का उन्हें विरोध करना चाहिए।—२ कुरिन्थियों ३:१७; १ पतरस २:१६.
२१. फिलेमोन के प्रति पौलुस की मनोवृत्ति से क्या सीखा जा सकता है?
२१ नोट कीजिए कि जब पौलुस रोम में क़ैद था, तो उसने फिलेमोन, के साथ कैसे व्यवहार किया, जो एशिया माइनर के कुलुस्से नामक स्थान में एक मसीही दास-स्वामी था। फिलेमोन का दास, जिसका नाम उनेसिमुस था, रोम भाग गया, एक मसीही बना, और पौलुस की मदद कर रहा था। पौलुस ने फिलेमोन को लिखा: “उसे मैं अपने ही पास रखना चाहता था कि तेरी ओर से इस कैद में जो सुसमाचार के कारण है, मेरी सेवा करे। पर मैं ने तेरी इच्छा बिना कुछ भी करना न चाहा कि तेरी यह कृपा दबाव से नहीं पर आनन्द [स्वतंत्र इच्छा, NW] से हो।” (फिलेमोन १३, १४) पौलुस ने उनेसिमुस को वापस भेज दिया, फिलेमोन से यह निवेदन करते हुए कि उस के साथ एक मसीही भाई की तरह बर्ताव करे। पौलुस यह जानता था कि झुंड उसका नहीं था; झुंड परमेश्वर का था। वह झुंड का स्वामी नहीं बल्कि उसका सेवक था। पौलुस ने फिलेमोन को आदेश नहीं दिया; उसने उसकी स्वंतत्र इच्छा का आदर किया।
२२. (क) प्राचीनों को अपने पद को क्या समझना चाहिए? (ख) यहोवा किस तरह का संगठन विकसित कर रहा है?
२२ जैसे-जैसे परमेश्वर का संगठन बढ़ता है, और प्राचीन नियुक्त किए जाते हैं। उन्हें, साथ-ही-साथ ज़्यादा अनुभवी प्राचीनों को यह समझना चाहिए कि उनका पद एक नम्र सेवा का पद है। इस तरह से, जैसे-जैसे परमेश्वर अपने संगठन को नए संसार की ओर ले जाता है, वह वैसे ही बढ़ता जाएगा जैसे वह चाहता है—सुसंगठित, लेकिन कुशलता के लिए प्रेम और करुणा का बलिदान न करनेवाला। अतः उसका संगठन भेड़-समान लोगों के लिए अधिकाधिक आकर्षक बनेगा जो उसमें यह प्रमाण देखेंगे कि “जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं उनके लिये वह सब बातों के द्वारा भलाई को उत्पन्न करता है।” प्रेम पर आधारित एक संगठन से इसी की अपेक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि “प्रेम कभी टलता नहीं।”—रोमियों ८:२८, NHT; १ कुरिन्थियों १३:८.
आप कैसे उत्तर देंगे?
◻ बाइबल अपने लोगों के प्रति यहोवा की परवाह का वर्णन कैसे करती है?
◻ परमेश्वर के झुंड की परवाह करने में यीशु कौन-सी भूमिका निभाता है?
◻ प्राचीनों के पास कौन-सी मुख्य विशेषता होनी चाहिए?
◻ प्राचीनों को भेड़ों की स्वतंत्र इच्छा का ध्यान क्यों रखना चाहिए?
[पेज 14 पर तसवीर]
यीशु, ‘अच्छे चरवाहे’ ने करुणा दिखायी
[पेज 15 पर तसवीरें]
भ्रष्ट धार्मिक अगुओं ने यीशु को मारने का षड्यंत्र रचा