‘सब प्रकार की सांत्वना के परमेश्वर’ की ओर से सांत्वना
“हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति [सांत्वना, NW] का परमेश्वर है। वह हमारे सब क्लेशों में शान्ति देता है।”—२ कुरिन्थियों १:३, ४.
१, २. शोकित लोगों को किस प्रकार की सांत्वना चाहिए?
शोकित लोगों को सच्ची सांत्वना चाहिए—थोथी और खोखली बातें नहीं। हम सब ने यह कहावत सुनी है कि ‘वक़्त बड़े-से-बड़े घाव को भर देता है,’ लेकिन मृत्युशोक के प्रारंभिक चरण में, कौन-सा शोकित व्यक्ति इस विचार से सांत्वना प्राप्त करता है? मसीही जानते हैं कि परमेश्वर ने पुनरुत्थान की प्रतिज्ञा की है, लेकिन यह अचानक हुए नुक़सान के गहरे घाव और भावात्मक तनाव को नहीं रोकता। और यदि आपने एक बच्चे को खोया है तो निश्चय ही दूसरे जीवित बच्चे उस अनमोल बच्चे का स्थान नहीं ले सकते।
२ जब एक प्रियजन मर जाता है, तब हमें सबसे ज़्यादा मदद सच्ची सांत्वना से प्राप्त होती है, ऐसी सांत्वना जिसका परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं में ठोस आधार हो। हमें तदनुभूति की भी ज़रूरत है। यह रुवाण्डा के लोगों के बारे में ज़रूर सच रहा है, और ख़ासकर वहाँ यहोवा के साक्षियों के सैकड़ों परिवारों के बारे में जिन्होंने उस शैतानी नृजातीय हत्याकाण्ड में प्रियजनों को खो दिया। शोक करनेवाले सभी जन किससे सांत्वना प्राप्त कर सकते हैं?
यहोवा—सब प्रकार की सांत्वना का परमेश्वर
३. सांत्वना देने में यहोवा ने कैसे उदाहरण रखा है?
३ यहोवा ने हम सब के लिए सांत्वना देने में उदाहरण रखा है। हमें अनन्त सांत्वना और आशा देने के लिए उसने अपने एकलौते पुत्र, मसीह यीशु को इस पृथ्वी पर भेजा। यीशु ने सिखाया: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्ना ३:१६) उसने अपने अनुयायियों को यह भी बताया: “इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।” (यूहन्ना १५:१३) दूसरे अवसर पर उसने कहा: “मनुष्य का पुत्र, वह इसलिये नहीं आया कि उस की सेवा टहल किई जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे: और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण दे।” (मत्ती २०:२८) और पौलुस ने कहा: “परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।” (रोमियों ५:८) इन और कई अन्य पाठों से हम परमेश्वर के और मसीह यीशु के प्रेम को समझ सकते हैं।
४. प्रेरित पौलुस ख़ास तौर पर यहोवा का ऋणी क्यों था?
४ यहोवा के अपात्र अनुग्रह के बारे में प्रेरित पौलुस ख़ास तौर पर अवगत था। उसे आध्यात्मिक रूप से मृत स्थिति से निकाला गया था तथा वह मसीह के अनुयायियों के एक उग्र उत्पीड़क से स्वयं एक उत्पीड़ित मसीही बन गया। (इफिसियों २:१-५) वह अपने अनुभव का वर्णन करता है: “मैं प्रेरितों में सब से छोटा हूं, बरन प्रेरित कहलाने के योग्य भी नहीं, क्योंकि मैं ने परमेश्वर की कलीसिया को सताया था। परन्तु मैं जो कुछ भी हूं, परमेश्वर के [अपात्र, NW] अनुग्रह से हूं: और उसका [अपात्र, NW] अनुग्रह जो मुझ पर हुआ, वह व्यर्थ नहीं हुआ; परन्तु मैं ने उन सब से बढ़कर परिश्रम भी किया: तौभी यह मेरी ओर से नहीं हुआ परन्तु परमेश्वर के [अपात्र, NW] अनुग्रह से जो मुझ पर था।”—१ कुरिन्थियों १५:९, १०.
५. परमेश्वर की ओर से सांत्वना के बारे में पौलुस ने क्या लिखा?
५ अतः, पौलुस ने उचित ही लिखा: “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति [सांत्वना, NW] का परमेश्वर है। वह हमारे सब क्लेशों में शान्ति देता है; ताकि हम उस शान्ति के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शान्ति दे सकें, जो किसी प्रकार के क्लेश में हों। क्योंकि जैसे मसीह के दुख हम को अधिक होते हैं, वैसे ही हमारी शान्ति भी मसीह के द्वारा अधिक होती है। यदि हम क्लेश पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्ति और उद्धार के लिये है और यदि शान्ति पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्ति के लिये है; जिस के प्रभाव से तुम धीरज के साथ उन क्लेशों को सह लेते हो, जिन्हें हम भी सहते हैं। और हमारी आशा तुम्हारे विषय में दृढ़ है; क्योंकि हम जानते हैं, कि तुम जैसे दुखों के वैसे ही शान्ति के भी सहभागी हो।”—२ कुरिन्थियों १:३-७.
६. “सांत्वना” अनुवादित यूनानी शब्द से क्या सूचित होता है?
६ क्या ही प्रेत्साहक शब्द! यहाँ “सांत्वना” अनुवादित यूनानी शब्द “अपने पास बुलाना” से सम्बन्धित है। अतः, “यह एक व्यक्ति के पास उसे प्रोत्साहित करने के लिए खड़े रहना है जब वह कठिन परीक्षा से गुज़र रहा है।” (ए लिंग्विस्टिक की टू द ग्रीक न्यू टॆस्टामॆंट) एक बाइबल विद्वान ने लिखा: “इस शब्द का . . . हमेशा शान्तिदायक सहानुभूति से कहीं अधिक अर्थ है . . . मसीही सांत्वना ऐसी सांत्वना है जो साहस प्रदान करती है, ऐसी सांत्वना जो एक व्यक्ति को समर्थ करती है कि वह जीवन की सब समस्याओं का सफलतापूर्वक सामना कर सके।” यह सांत्वनादायक शब्दों को भी शामिल करता है जो मृतकों के पुनरुत्थान की निश्चित प्रतिज्ञा और आशा पर आधारित हैं।
यीशु और पौलुस —करुणामय सांत्वनादाता
७. अपने मसीही भाइयों के लिए पौलुस सांत्वना देनेवाला कैसे था?
७ सांत्वना देने में पौलुस कितना अच्छा उदाहरण था! वह थिस्सलुनीकिया के भाइयों को लिख सका: “जिस तरह माता अपने बालकों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही हम ने भी तुम्हारे बीच में रहकर कोमलता दिखाई है। और वैसे ही हम तुम्हारी लालसा करते हुए, न केवल परमेश्वर का सुसमाचार, पर अपना अपना प्राण भी तुम्हें देने को तैयार थे, इसलिये कि तुम हमारे प्यारे हो गए थे। जैसे तुम जानते हो, कि जैसा पिता अपने बालकों के साथ बर्ताव करता है, वैसे ही हम तुम में से हर एक को भी उपदेश करते, और शान्ति [दिलासा, NW] देते, और समझाते थे।” प्रेममय और परवाह करनेवाले माता-पिताओं के जैसे ही हम सब अपनी सहृदयता और सहानुभूति दूसरों की ज़रूरत में उनके साथ बाँट सकते हैं।—१ थिस्सलुनीकियों २:७, ८, ११.
८. यीशु का शिक्षण शोकित लोगों के लिए सांत्वना क्यों है?
८ ऐसी परवाह और कृपा दिखाने में, पौलुस केवल अपने महान आदर्श यीशु की नक़ल कर रहा था। उस करुणामय आमंत्रण को याद कीजिए जो यीशु सब लोगों को देता है जैसे मत्ती ११:२८-३० में अभिलिखित है: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।” जी हाँ, यीशु का शिक्षण विश्राम देने वाला है क्योंकि यह एक आशा और एक प्रतिज्ञा—पुनरुत्थान की प्रतिज्ञा—करता है। यही वह आशा और प्रतिज्ञा है जो हम लोगों को पेश कर रहे हैं जब हम, उदाहरण के लिए, उनको ब्रोशर जब आपका कोई प्रियजन मर जाता है (अंग्रेज़ी) देते हैं। यदि हम लम्बे समय से शोक मना रहे हों तो भी यह आशा हमारी मदद कर सकती है।
शोकित लोगों को कैसे सांत्वना प्रदान करें
९. शोकित लोगों के साथ हमें अधीर क्यों नहीं होना चाहिए?
९ शोक किसी प्रियजन की मृत्यु के तुरन्त बाद की एक निर्धारित समयावधि तक ही सीमित नहीं है। कुछ लोग अपने शोक के भार को जीवन भर उठाए रहते हैं; ख़ासकर वे जिन्होंने बच्चों को खोया है। मस्तिष्कावरण शोथ के शिकार, अपने ११-वर्षीय पुत्र को स्पेन में एक वफ़ादार मसीही दंपति ने १९६३ में खो दिया। आज तक वे पकीटो के बारे में बात करते वक़्त रोते हैं। सालगिरह, तसवीरें, स्मारिकाएँ, सभी दुःखद यादों को प्रेरित करती हैं। अतः हमें कभी भी अधीर होकर यह नहीं सोचना चाहिए कि दूसरों को अब तक अपने शोक से उभर जाना चाहिए था। एक प्राधिकृत चिकित्सीय स्रोत स्वीकार करता है: “हताशा और मानसिक परिवर्तन कई सालों तक भी रह सकते हैं।” इसलिए, याद रखिए कि जैसे शरीर के कुछ निशान शायद ज़िन्दगी-भर हमारे साथ रहें वैसे ही अनेक भावात्मक निशान भी रह सकते हैं।
१०. शोक करनेवालों की मदद करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
१० मसीही कलीसिया में शोकित लोगों को सांत्वना प्रदान करने के लिए कौन-सी कुछ व्यावहारिक बातें हैं जो हम कर सकते हैं? पूर्ण निष्कपटता से हम शायद एक भाई या एक बहन से, जो सांत्वना की ज़रूरत में है, कहें, “यदि मैं कुछ मदद कर सकता हूँ, तो मुझे बता दीजिएगा।” लेकिन कितनी बार एक शोकित व्यक्ति वास्तव में हमें बुलाकर कहता है, “ऐसा एक काम है जिसमें मेरे ख़्याल से आप मेरी मदद कर सकते हैं”? यदि हमें शोकित लोगों को सांत्वना प्रदान करनी है तो स्पष्टतः हमें उचित पहल करने की ज़रूरत है। सो, उपयोगी ढंग से हम क्या कर सकते हैं? यहाँ कुछ व्यावहारिक सुझाव दिए गए हैं।
११. हमारा सुनना दूसरों को कैसे सांत्वना प्रदान कर सकता है?
११ सुनिए: सबसे सहायक कार्यों में से एक जो आप कर सकते हैं वह है, शोकित व्यक्ति की बातों को सुनने के द्वारा उसका दर्द बाँटना। आप पूछ सकते हैं, “क्या आप उसके बारे में बात करना चाहेंगे?” उस व्यक्ति को निर्णय लेने दीजिए। एक मसीही वह समय याद करता है जब उसके पिता की मृत्यु हुई: “दूसरों ने जब मुझसे पूछा कि क्या हुआ और फिर वास्तव में सुना उससे मुझे सचमुच मदद मिली।” जैसे याकूब ने सलाह दी, सुनने के लिए तत्पर रहिए। (याकूब १:१९) धैर्य और हमदर्दी से सुनिए। रोमियों १२:१५ में बाइबल सलाह देती है, “रोनेवालों के साथ रोओ।” याद रखिए कि यीशु मरथा और मरियम के साथ रोया।—यूहन्ना ११:३५.
१२. शोक करनेवालों को हम किस प्रकार पुनः-आश्वासन दे सकते हैं?
१२ पुनः-आश्वासन दीजिए: याद रखिए कि शोकित व्यक्ति शायद पहले दोषी महसूस करेगा, यह सोचकर कि शायद वह कुछ और कर सकता था। उस व्यक्ति को विश्वास दिलाइए कि संभवतः जो कुछ किया जा सकता था वह किया गया था (या जो भी सच और सकारात्मक बातें आप जानते हैं)। यह विश्वास दिलाइए कि जैसा वह महसूस करता है वह असाधारण नहीं है। उसको दूसरों के बारे में बताइए जो ऐसे शोक को पार करने में सफल हुए हैं। दूसरे शब्दों में, संवेदनशील और सहानुभूतिशील होइए। हमारी कृपापूर्ण मदद काफ़ी कुछ कर सकती है! सुलैमान ने लिखा: “जैसे चान्दी की टोकरियों में सोनहले सेब हों वैसा ही ठीक समय पर कहा हुआ वचन होता है।”—नीतिवचन १६:२४; २५:११; १ थिस्सलुनीकियों ५:११, १४.
१३. यदि हम स्वयं को सुलभ कराते हैं, तो यह कैसे मदद कर सकता है?
१३ सुलभ रहिए: अपने आपको सुलभ कीजिए, केवल शुरू के कुछ दिनों तक ही नहीं, जब अनेक मित्र और रिश्तेदार उपस्थित हैं बल्कि, यदि ज़रूरी हो तो, महीनों बाद भी, जब दूसरे अपने दैनिक नित्यक्रम में लौट जाते हैं। व्यक्ति पर निर्भर करते हुए, शोक करने की समयावधि में बहुत फ़र्क हो सकता है। हमारी मसीही दिलचस्पी और सहानुभूति ज़रूरत के किसी भी समय में काफ़ी कुछ कर सकती है। बाइबल बताती है कि “ऐसा मित्र होता है, जो भाई से भी अधिक मिला रहता है।” अतः, यह कहावत कि “मित्र वही जो समय पर काम आए,” एक सच्चाई है जिसके अनुसार हमें जीना है।—नीतिवचन १८:२४. प्रेरितों २८:१५ से तुलना कीजिए।
१४. शोकित लोगों को सांत्वना देने के लिए हम किस के बारे में बात कर सकते हैं?
१४ मृत व्यक्ति के अच्छे गुणों के बारे में बात कीजिए: सही समय पर की जाए तो यह एक और बड़ी मदद है। उस व्यक्ति के बारे में जो अच्छे किस्से आपको याद हैं उन्हें सुनाइए। मृत व्यक्ति का नाम इस्तेमाल करने से न हिचकिचाइए। ऐसे कभी मत व्यवहार कीजिए जैसे खोया हुआ प्रियजन कभी अस्तित्व में नहीं था या महत्त्वहीन था। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक प्रकाशन ने जो कहा वह जानना सांत्वनादायक है: “एक तरह का स्वास्थ्यलाभ प्राप्त होता है जब शोकित व्यक्ति आख़िरकार मृत व्यक्ति के बारे में अत्यधिक दुःख के बिना सोच सकता है . . . जैसे-जैसे नयी वास्तविकता स्वीकार और आत्मसात् की जाती है, शोक धीरे-धीरे मधुर यादों में बदल जाता है।” “मधुर यादें”—एक प्रिय व्यक्ति के साथ बिताए उन अनमोल क्षणों को याद करना कितना सांत्वनादायक है! एक साक्षी ने कुछ सालों पहले अपने पिता को खो दिया। उसने कहा: “पिताजी ने जब सच्चाई सीखना आरम्भ किया, उसके थोड़े समय बाद उनके साथ बाइबल पढ़ना मेरे लिए एक ख़ास स्मृति है। और नदी के किनारे लेटकर अपनी समस्याओं के बारे में चर्चा करना। मैं उनसे हर तीन या चार साल में ही मिलता, अतः वे अवसर बहुमूल्य थे।”
१५. एक व्यक्ति मदद करने की पहल कैसे कर सकता है?
१५ जब उचित हो तब पहल कीजिए: कुछ शोकित व्यक्ति दूसरों से ज़्यादा अच्छी तरह शोक का सामना कर सकते हैं। सो परिस्थितियों के अनुसार मदद करने के लिए व्यावहारिक क़दम लीजिए। एक मसीही स्त्री ने याद किया: “अनेक लोगों ने कहा, ‘यदि मैं कुछ कर सकता हूँ, तो मुझे बताइए।’ लेकिन एक मसीही बहन ने पूछा नहीं। वह सीधे शयनकक्ष में गई, बिस्तर से चद्दर उतारी और उस गंदी चद्दर को धो दिया। दूसरी ने एक बाल्टी, पानी और सफ़ाई का सामान लिया और उस क़ालीन को साफ़ कर दिया जिस पर मेरे पति ने उलटी की थी। ये सच्चे मित्र थे, और मैं उनको कभी नहीं भूलूँगी।” जहाँ मदद की स्पष्ट ज़रूरत है, वहाँ पहल कीजिए—शायद खाना बनाने के द्वारा, सफ़ाई में मदद देने के द्वारा, या सहायक काम करने के द्वारा। हाँ, हमें सावधान रहना चाहिए कि हम अतिक्रमणशील न हों जब शोकित व्यक्ति एकांतता चाहता है। इस प्रकार हमें पौलुस के शब्दों को लागू करने की निष्कपट कोशिश करनी चाहिए: “इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।” भलाई, धैर्य और प्रेम कभी टलते नहीं।—कुलुस्सियों ३:१२; १ कुरिन्थियों १३:४-८.
१६. एक पत्र या कार्ड क्यों सांत्वना दे सकता है?
१६ पत्र लिखिए या सांत्वनादायक कार्ड भेजिए: एक संवेदना पत्र या सुन्दर सहानुभूति कार्ड भेजने के महत्त्व को अकसर नज़रअंदाज़ किया जाता है। उसका लाभ? उसे बार-बार पढ़ा जा सकता है। ऐसे पत्र को लंबा होने की ज़रूरत नहीं, लेकिन उससे आपकी करुणा दिखनी चाहिए। उससे एक आध्यात्मिक शैली भी प्रतिबिंबित होनी चाहिए, लेकिन उपदेशात्मक हुए बिना। केवल यह मूल संदेश, “हम आपका साथ देने के लिए मौजूद हैं,” दिलासा दे सकता है।
१७. प्रार्थना कैसे सांत्वना प्रदान कर सकती है?
१७ उनके साथ प्रार्थना कीजिए: शोकित संगी मसीहियों के लिए, और उनके साथ की गई प्रार्थनाओं के महत्त्व को कम न समझिए। बाइबल याकूब ५:१६ में बताती है: “धर्मी जन की प्रार्थना . . . से बहुत कुछ हो सकता है।” उदाहरण के लिए, जब शोकित व्यक्ति हमें उनके पक्ष में प्रार्थना करते हुए सुनेंगे, तब यह उन्हें दोष जैसी नकारात्मक भावनाओं का सफलतापूर्वक सामना करने में मदद देगा। हमारे कमज़ोरी के, मनोबल टूटने के क्षणों में शैतान अपनी “युक्तियों,” या “चतुर कार्यों” द्वारा हमें दुर्बल करने की कोशिश करता है। यही समय है जब हमें प्रार्थना से प्राप्त सांत्वना और सहारे की ज़रूरत है, जैसे पौलुस ने कहा: “हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना, और बिनती करते रहो, और इसी लिये जागते रहो, कि सब पवित्र लोगों के लिये लगातार बिनती किया करो।”—इफिसियों ६:११, १८. याकूब ५:१३-१५ से तुलना कीजिए।
किन बातों से बचे रहें
१८, १९. हम अपने वार्तालाप में व्यवहार-कुशलता कैसे दिखा सकते हैं?
१८ जब एक व्यक्ति शोकित है, तब ऐसी भी बातें हैं जो हमें करनी या कहनी नहीं चाहिए। नीतिवचन १२:१८ हमें चेतावनी देता है: “ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोच-विचार का बोलना तलवार की नाईं चुभता है, परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।” कभी-कभी महसूस किए बिना, हम व्यवहार-कुशलता दिखाने से चूक जाते हैं। उदाहरण के लिए, हम कह सकते हैं, “मैं जानता हूँ कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं।” परन्तु क्या यह वास्तव में सच है? क्या आपने बिलकुल वैसी ही हानि उठाई है? और फिर, लोग भिन्न-भिन्न तरीक़ों से प्रतिक्रिया दिखाते हैं। आपकी प्रतिक्रिया शायद शोकित व्यक्ति की प्रतिक्रिया जैसी नहीं रही हो। यह कहना ज़्यादा संवेदनशील होगा, “मैं आप के लिए सचमुच तदनुभूति रखता हूँ क्योंकि मैंने भी इसी क़िस्म की हानि उठायी थी जब मेरे . . . की कुछ समय पहले मृत्यु हुई थी।”
१९ मृत व्यक्ति पुनरुत्थित किया जाएगा या नहीं, इस पर भी टिप्पणी ना करना संवेदनशीलता दिखाएगा। एक मृत अविश्वासी विवाह-साथी की भावी प्रत्याशाओं के बारे में की गई न्यायिक टिप्पणियों से भाइयों और बहनों को गहरी चोट पहुँची है। हम इस बात के न्यायी नहीं हैं कि कौन पुनरुत्थित किया जाएगा और कौन नहीं। हम आश्वस्त हो सकते हैं कि यहोवा, जो हृदय को देखता है, उससे बहुत अधिक दयालु होगा जितना कि हममें से अधिकांश लोग कभी हो सकते।—भजन ८६:१५; लूका ६:३५-३७.
शास्त्रवचन जो सांत्वना देते हैं
२०, २१. कुछ ऐसे शास्त्रवचन कौन-से हैं जो शोकित लोगों को दिलासा दे सकते हैं?
२० सही समय पर प्रस्तुत किए जाने पर सहायता के सबसे प्रमुख स्रोतों में से एक है, मृतकों के लिए यहोवा की प्रतिज्ञाओं पर विचार-विमर्श करना। ये बाइबलीय विचार उपयोगी होंगे चाहे शोकित व्यक्ति पहले से ही एक साक्षी हो या एक ऐसा व्यक्ति हो जिससे हम सेवकाई में मिले हों। ऐसे कुछ शास्त्रवचन कौन-से हैं? हम जानते हैं कि यहोवा सब प्रकार की सांत्वना का परमेश्वर है, क्योंकि उसने कहा: “मैं, मैं ही तेरा शान्तिदाता [सांत्वना देनेवाला, NW] हूं।” उसने यह भी कहा: “जिस प्रकार माता अपने पुत्र को शान्ति [सांत्वना, NW] देती है, वैसे ही मैं भी तुम्हें शान्ति दूंगा।”—यशायाह ५१:१२; ६६:१३.
२१ भजनहार ने लिखा: “मेरे दुःख में मुझे शान्ति [सांत्वना, NW] उसी से हुई है, क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैं ने जीवन पाया है। हे यहोवा, मैं ने तेरे प्राचीन नियमों को स्मरण करके शान्ति पाई है। मुझे अपनी करुणा से शान्ति दे, क्योंकि तू ने अपने दास को ऐसा ही वचन दिया है।” ध्यान दीजिए कि शब्द “शान्ति [सांत्वना, NW]” इन लेखांशों में बार-बार प्रयोग किया गया है। जी हाँ, अपनी विपत्ति के समय यहोवा के वचन की ओर मुड़ने से हम अपने लिए और दूसरों के लिए सच्ची सांत्वना प्राप्त कर सकते हैं। यह, और साथ ही हमारे भाइयों का प्रेम और करुणा, हमारी मदद कर सकते हैं कि हम इस नुक़सान को सफलतापूर्वक झेल सकें और अपने जीवन को फिर से मसीही सेवकाई में आनन्दपूर्ण गतिविधि से भर सकें।—भजन ११९:५०, ५२, ७६.
२२. हमारे सामने क्या प्रत्याशा है?
२२ दूसरों को उनकी विपत्ति में मदद देने में व्यस्त रहने के द्वारा हम अपने दुःख पर भी कुछ हद तक विजय प्राप्त कर सकते हैं। जैसे-जैसे हम दूसरों की ओर ध्यान देते हैं जिन्हें सांत्वना की ज़रूरत है, हमें भी आध्यात्मिक रूप से देने की सच्ची ख़ुशी प्राप्त होती है। (प्रेरितों २०:३५) आइए हम उनके साथ पुनरुत्थान के दिन के दर्शन में भाग लें जब सब भूतपूर्व राष्ट्रों के लोग, पीढ़ी दर पीढ़ी मृतकों में से वापस आ रहे अपने खोए हुए प्रियजनों का स्वागत कर रहे होंगे। क्या ही एक प्रत्याशा! जब हम याद करेंगे कि यहोवा वास्तव में ‘दीनों को शान्ति [सांत्वना, NW] देनेवाला’ परमेश्वर है, तब क्या ही आनन्द के आँसू निकलेंगे!—२ कुरिन्थियों ७:६.
क्या आपको याद है?
◻ यहोवा ‘सब प्रकार की सांत्वना का परमेश्वर’ कैसे है?
◻ यीशु और पौलुस ने शोकित लोगों को कैसे सांत्वना प्रदान की?
◻ शोकित लोगों को सांत्वना प्रदान करने के लिए कौन-सी कुछ बातें हैं जो हम कर सकते हैं?
◻ शोकित लोगों से व्यवहार करते वक़्त हमें किन बातों से बचे रहना है?
◻ किसी की मृत्यु होने पर सांत्वना के लिए आपके मनपसन्द शास्त्रवचन कौन-से हैं?
[पेज 15 पर तसवीरें]
शोकित लोगों की मदद करने में व्यवहार-कुशलता से पहल कीजिए