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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
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रक्‍ताधान पुनःविचारित

एड्‌स के इस अंधकारमय युग में, अस्पताल में मरीज़ के स्वास्थ्य का सबसे बड़ा ख़तरा शायद एक ऑपरेशन-कक्ष में घात लगाए बैठा हो। “ऐसा कोई तरीक़ा नहीं है जिससे हम रक्‍त-आपूर्ति को पूरी तरह रोगाणुहीन कर सकते हैं,” डॉ. रिचर्ड स्पॆन्स्‌ कहता है जिसने एक दशक से भी ज़्यादा समय से कैम्डॆन, न्यू जर्सी, अमरीका के कूपर हॉस्पिटल-युनिवर्सिटी मॆडिकल सेन्टर में रक्‍तहीन शल्यचिकित्सा केन्द्र को निर्देशित किया है।

इसमें आश्‍चर्य की बात नहीं है कि यह केन्द्र अनेक यहोवा के साक्षियों का उपचार करता है, जो बाइबल-आधारित कारणों से रक्‍ताधान लेने से इनकार करने के लिए विख्यात हैं। (लैव्यव्यवस्था १७:११; प्रेरितों १५:२८, २९) लेकिन, कई ग़ैर-साक्षी मरीज़ भी उस केन्द्र में आने लगे हैं। वे रक्‍ताधान लेने के संभावित ख़तरों के बारे में चिन्तित हैं जिसमें यकृत-शोथ, एड्‌स, और अन्य बीमारियों का लग जाना शामिल है। “एड्‌स के उद्‌गम ने रक्‍त की जाँच करने की ज़रूरत को प्रकट किया है,” कुरियर-पोस्ट वीकली रिपोर्ट ऑन साइन्स एण्ड मेडिसिन (अंग्रेज़ी) कहती है। “लेकिन कुछ मामले फिर भी जाँच-क्रिया से छूट सकते हैं क्योंकि जाँच में पहचान हो पाने से पहले कोई व्यक्‍ति वाइरस से संक्रमित हुआ हो सकता है।”

ऐसे ख़तरों के कारण, रक्‍तहीन शल्यचिकित्सा केन्द्र रक्‍ताधान के वैकल्पों का इस्तेमाल करता है, जिसमें मरीज़ के ख़ुद के रक्‍त को फिर से चढ़ाना शामिल है—एक ऐसी तकनीक जिसे कुछ साक्षी कुछ परिस्थितियों में स्वीकार्य समझ सकते हैं।a और एक उपचार में ऐसे औषधों का प्रयोग शामिल है जो मरीज़ के रक्‍त के उत्पादन को उत्तेजित करते हैं। इसके अतिरिक्‍त, आधान किए गए रक्‍त की ज़रूरत के बिना ऑक्सीजन के वितरण को बढ़ाने के लिए एक कृत्रिम रक्‍त वैकल्प कभी-कभी दिया जाता है। “यहोवा के साक्षी सर्वोत्तम चिकित्सीय देखरेख चाहते हैं,” डॉ. स्पॆन्स्‌ कहता है, “लेकिन वे रक्‍ताधान के वैकल्प चाहते हैं।”

यहोवा के साक्षी उन डॉक्टरों से प्राप्त सहयोग और मदद के लिए कृतज्ञ हैं जो उनके धार्मिक विश्‍वासों का आदर करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने वाक़ई “सर्वोत्तम चिकित्सीय देखरेख” पायी है और यहोवा परमेश्‍वर के सम्मुख एक शुद्ध अंतःकरण बनाए रखा है।—२ तीमुथियुस १:३.

[फुटनोट]

a इस प्रक्रिया का और एक निजी, अंतर्विवेकशील निर्णय लेने में जो तत्व शामिल हैं उसकी एक विस्तृत चर्चा मार्च १, १९८९ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी), पृष्ठ ३०-१ में की गयी है।

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