यहोवा के साक्षियों के विरुद्ध किए गए मुक़दमे का फ़ैसला
चार यहोवा की साक्षी स्त्रियों के विरुद्ध मुक़दमे की सुनवाई को बारंबार स्थगित करने के बाद, आख़िरकार जून ८, १९९५ के दिन थॆस्सेलोनीका, यूनान की अपीली अदालत की बैठक हुई। उनके विरुद्ध लगाया गया आरोप? धर्मपरिवर्तन, जिसे यूनानी क़ानून ने पाँच से अधिक दशकों से वर्जित किया है।
लेकिन, जब अदालत बैठी, अभियोजन-पक्ष का मुख्य गवाह—वह पादरी जिसने उन चार स्त्रियों के विरुद्ध मुक़दमा दायर करवाया था—जीवित नहीं था। उसकी जगह पर एक और पादरी ने गवाही देने की कोशिश की, लेकिन अदालत ने उसकी दलील को स्वीकार नहीं किया। अतः, इसमें आश्चर्य नहीं कि वह सुनवाई केवल १५ मिनट तक चली! न्यायाधीश ने अभियोजन-पक्ष के अन्य गवाहों से पूछताछ की और पाया कि प्रतिवादी ग़ैर-क़ानूनी धर्मपरिवर्तन करवाने के दोषी नहीं हैं। यह फ़ैसला सूचित करता है कि यूनान की अदालतें, १९९३ में मानवाधिकारों की यूरोपीय अदालत द्वारा लिए गए फ़ैसले का आदर करने और उसे मानने के लिए इच्छुक हैं।
जिन तीन स्त्रियों ने अभियोजन-पक्ष के लिए गवाही दी थी उन्हें साक्षी प्रतिवादियों के पास आते हुए, और उन्हें पूरे दिल से बधाई देते हुए देखना विशेषकर आश्चर्यकारी था। “जो कुछ हुआ उसके लिए हम क्षमा चाहती हैं,” उनमें से एक ने कहा। उसने आगे कहा: “इसमें हमारी ग़लती नहीं थी। उस पादरी ने आप पर मुक़दमा चलाने के लिए हमें विवश किया। अब क्योंकि वह ज़िन्दा नहीं है, हम चाहती हैं कि आप हमारे गाँव में और हमारे घरों में आएँ।”
इस प्रकार, यहोवा ने फिर एक बार यूनान में अपने लोगों को एक अद्भुत विजय दिलायी है। यूनान में धर्मपरिवर्तन सम्बन्धी क़ानून १९३८ में और १९३९ में बनाए गए थे। १९९३ में मानवाधिकारों की यूरोपीय अदालत ने फ़ैसला दिया कि यहोवा के साक्षियों को सताने के लिए इस क़ानून का प्रयोग करना अनुचित है।—सितम्बर १, १९९३ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ २७-३१ देखिए।