स्वच्छ हाथों से यहोवा की उपासना कीजिए
उत्प्रेरणा के अधीन, भजनहार दाऊद ने गाया: “मैं अपने हाथों को निर्दोषता के जल से धोऊंगा, तब हे यहोवा मैं तेरी वेदी की प्रदक्षिणा करूंगा।”—भजन २६:६.
इन शब्दों को लिखते समय, दाऊद शायद इस्राएल के लेवीय याजकों की प्रथा की ओर संकेत कर रहा हो कि वे वेदी की ढलान पर चढ़ते और फिर अपने बलिदानों को आग पर रखते थे। लेकिन याजकों से यह माँग की गयी थी कि उपासना की यह कृति करने से पहले वे अपने हाथ और पाँव धोएँ। यह कोई मामूली-सी बात नहीं थी। प्रारंभिक तैयारी के इस क़दम से चूकने पर याजक अपनी जान गवाँ सकता था!—निर्गमन ३०:१८-२१.
लाक्षणिक धुलाई आध्यात्मिक और नैतिक शुद्धता में परिणित होती है। (यशायाह १:१६; इफिसियों ५:२६) यहोवा चाहता है कि हम उसकी सेवा करने के द्वारा आज ‘उसकी वेदी की प्रदक्षिणा करें।’ लेकिन वह माँग करता है कि हम यह कार्य स्वच्छ हाथों से करें—जैसे दाऊद ने कहा, हाथ जो “निर्दोषता के जल से” धोए गए हैं। यह कोई छोटी-मोटी माँग नहीं है, क्योंकि जो अशुद्धता के कार्य करते रहते हैं वे परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे। (गलतियों ५:१९-२१) भक्ति के कार्यों में जीवन एक व्यक्ति को अनैतिक व्यवहार करने की छूट नहीं देता। अतः प्रेरित पौलुस ने लिखा: “मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं; ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं।”—१ कुरिन्थियों ९:२७.
वे जो ईश्वरीय अनुमोदन और सच्ची ख़ुशी पाना चाहते हैं उन्हें स्वच्छ हाथों से यहोवा की सेवा करनी चाहिए। दाऊद की तरह, वे “मन की खराई और सिधाई से” चलते हैं।—१ राजा ९:४.