क्या आप उद्धार-प्राप्त हो गए हैं?
जॉनी दस साल का था जब एक आदमी ने एक मेले में उसे रोका और पूछा: “हे जवान, क्या तुम यीशु मसीह को अपना प्रभु और उद्धारकर्त्ता स्वीकार करते हो?” जॉनी को यह सवाल सुनने में अजीब लगा, क्योंकि उसने यीशु में हमेशा विश्वास किया था। सो उसने जवाब दिया, “जी बिलकुल, मैं करता हूँ।” “प्रभु की स्तुति करो!” वह आदमी सबको सुनाने के लिए चिल्लाया। “एक और प्राण यीशु के लिए उद्धार-प्राप्त हुआ है!”
क्या उद्धार सचमुच इतना आसान है? इस बात के बावजूद कि अपने बाक़ी के जीवन में वह क्या करता, क्या जॉनी उस क्षण से “उद्धार-प्राप्त” हो गया जब उसने वे शब्द कहे थे? अनेक निष्कपट लोग जवाब देते, हाँ। कुछ धार्मिक ट्रैक्ट उस तिथि को लिखने के लिए कहते हैं जब आप “उद्धार-प्राप्त” हुए थे ताकि आप उसे याद रख सकें।
एक पादरी ने लिखा कि “मसीह में मात्र विश्वास करने के क्षण पर . . . एक व्यक्ति का भाग्य हमेशा के लिए निर्धारित हो जाता है।” उसने दावा किया कि बाइबल कहती है कि उद्धार केवल एकमात्र, एक-बार “विश्वास का कार्य, न कि विश्वास की निरन्तरता” पर निर्भर करता है। दूसरे धर्म के एक अन्य लेखक ने लिखा: “यह विश्वास का एक कृत्य समाप्त कार्य है। यह आपके लिए पहले ही किया जा चुका है . . . आपकी ‘लड़ाई ख़त्म हो गई है।’ आपका ‘पाप दूर किया जा चुका है।’” लेकिन वे लोग भी जो दृढ़ता से मानते हैं कि यह सच है शायद यहाँ एक समस्या देख सकें। यह ज़ाहिर है कि अनेक लोग जिन्हें यह बताया गया है कि वे “उद्धार-प्राप्त” हैं उस प्रकार नहीं जीते जैसा बाइबल कहती है कि उन्हें जीना चाहिए। एक साधारण व्याख्या यह है कि शायद उन्होंने मसीह को सचमुच “स्वीकार” नहीं किया था।
सो, यीशु को “स्वीकार” करने का वास्तविक अर्थ क्या है? क्या यह विश्वास का एक-बार का कार्य है, या क्या यह एक जारी जीवन का तरीक़ा है? क्या हमारे विश्वास को इतना मज़बूत होना चाहिए कि हमें कार्य करने के लिए प्रेरित कर सके? उसका अनुसरण करने की ज़िम्मेदारी के बिना क्या हम सचमुच यीशु के बलिदान के फ़ायदों को स्वीकार कर सकते हैं?
बहुत से लोग आशीष तो चाहते हैं लेकिन यीशु का अनुसरण करने और आज्ञा मानने की ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहते। दरअसल, शब्द “आज्ञा पालन” उन्हें परेशान कर देता है। फिर भी यीशु ने कहा: “आकर मेरे पीछे हो ले।” (लूका १८:१८-२३) और बाइबल कहती है: “जो हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते . . . ऐसे लोग . . . अनन्त विनाश का दण्ड पाएंगे।”—२ थिस्सलुनीकियों १:८, ९ NHT; मत्ती १०:३८; १६:२४.
उद्धार के बारे में जो शिक्षा दी गई है उसके बारे में बाइबल अनेक बातें कहती है जिससे गंभीर प्रश्न उठते हैं। यदि आप जाँचना चाहते हैं कि बाइबल वास्तव में इस विषय पर क्या कहती है, तो आगे के पृष्ठों को आप ख़ासकर दिलचस्प पाएँगे। अपनी बाइबल खोलिए, और यह देखने के लिए उद्धृत शास्त्रवचनों को पढ़िए कि यीशु और उसके प्रेरितों ने इस अति महत्त्वपूर्ण विषय के बारे में क्या शिक्षा दी।