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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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क्या आपको याद है?

क्या आपने प्रहरीदुर्ग के हाल के अंकों को अपने लिए व्यावहारिक मूल्य का पाया है? तो फिर क्यों न निम्नलिखित सवालों से अपनी याददाश्‍त को परखें:

◻ हम अम्मोनियों के पतन से क्या सबक़ सीख सकते हैं? (सपन्याह २:९, १०)

अपनी कृपा के बदले में शत्रुता दिए जाने को यहोवा मामूली नहीं समझता, और अपने नियत समय में वह फिर से कार्यवाही करेगा, ठीक वैसे ही जैसे उसने प्राचीन समय में किया था। (भजन २:६-१२ से तुलना कीजिए।)—१२/१५, पृष्ठ १०.

◻ किन तरीक़ों में मसीहियों के पास शान्ति है?

पहला, उनके पास अपने “प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्‍वर के साथ मेल [“शान्ति,” NW]” है। (रोमियों ५:१) दूसरा, उनमें आपस में शान्ति है। “जो ज्ञान ऊपर से आता है” उसे वे विकसित करते हैं जो ‘पहिले तो पवित्र फिर मिलनसार है।’ (याकूब ३:१७)—१/१, पृष्ठ ११.

◻ ऐसी कुछ चीज़ें क्या हैं जिनकी समानता परमेश्‍वर के वचन से की गयी है, और यह हमारे लिए सहायक कैसे है?

परमेश्‍वर के वचन की समानता पुष्टिकर दूध, ठोस भोजन, ताज़ा और स्वच्छ करनेवाले जल, एक दर्पण, और एक तेज़ तलवार से की गयी है। इन शब्दों का अर्थ समझना एक सेवक को बाइबल को कुशलतापूर्वक इस्तेमाल करने में मदद करता है।—१/१, पृष्ठ २९.

◻ एक संतुलित शिक्षण को हमें क्या करने के लिए मदद देना चाहिए?

अच्छी तरह पढ़ने, स्पष्ट रूप से लिखने, मानसिक और नैतिक रूप से विकसित होने, और रोज़मर्रा जीवन तथा प्रभावशाली पवित्र सेवा के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए।—२/१, पृष्ठ १०.

◻ शिक्षण के संबंध में यीशु से हम कौन-सा मूल्यवान सबक़ सीख सकते हैं?

शिक्षण को अपनी ख़ुद की महिमा करने के लिए नहीं, बल्कि सबसे महान शिक्षक, यहोवा परमेश्‍वर की स्तुति करने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। (यूहन्‍ना ७:१८)—२/१, पृष्ठ १०.

◻ परमेश्‍वर का राज्य क्या है?

राज्य ईश्‍वरीय रूप से संस्थापित स्वर्गीय सरकार है जो पाप और मृत्यु के प्रभाव को मिटाते हुए और पृथ्वी पर धार्मिक परिस्थितियों को पुनःस्थापित करते हुए, परमेश्‍वर की इच्छा को पूरा करती है। (दानिय्येल २:४४; प्रकाशितवाक्य ११:१५; १२:१०)—२/१, पृष्ठ १६.

◻ बाइबल वह शिक्षा कैसे प्रदान करती है जो हिंसा का स्थायी अन्त करने के लिए ज़रूरी है?

अपने वचन, बाइबल के ज़रिए, यहोवा लोगों को शान्ति-प्रिय और धर्मी होने के लिए सिखाता है। (यशायाह ४८:१७, १८) परमेश्‍वर के वचन में एक व्यक्‍ति के हृदय तक पहुँचने तथा उसे छूने की और उसके सोच-विचार और व्यवहार को बदलने की शक्‍ति है। (इब्रानियों ४:१२)—२/१५, पृष्ठ ६.

◻ यह क्यों कहा जा सकता है कि यशायाह अध्याय ३५ की भविष्यवाणी की तीन पूर्तियाँ हैं?

यशायाह की भविष्यवाणी की प्रथम पूर्ति हुई जब सा.यु.पू. ५३७ में यहूदी बाबुल की बन्धुवाई से लौटे। महा बाबुल की बन्धुवाई से आत्मिक इस्राएल की मुक्‍ति से इसकी आज एक जारी आध्यात्मिक पूर्ति है। और पृथ्वी पर शाब्दिक परादीस परिस्थितियों के बाइबल के आश्‍वासन के संबंध में इसकी तृतीय पूर्ति होगी। (भजन ३७:१०, ११; प्रकाशितवाक्य २१:४, ५)—२/१५, पृष्ठ १७.

◻ अपने पुत्र, यीशु द्वारा किए गए चमत्कारों में मनुष्यों में परमेश्‍वर की व्यक्‍तिगत दिलचस्पी कैसे प्रदर्शित हुई?

क्योंकि यीशु “आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है,” उसकी करूणा, अपने हरेक सेवक के लिए यहोवा की परवाह की मर्मस्पर्शी तस्वीर खींचती है। (यूहन्‍ना ५:१९)—३/१, पृष्ठ ५.

◻ यूहन्‍ना ५:२८, २९ में इस्तेमाल की गयी यीशु की अभिव्यक्‍ति ‘कब्र’ से क्या सूचित होता है?

यहाँ इस्तेमाल किया गया यूनानी शब्द मनेमइऑन (स्मारक कब्र) सुझाता है कि यहोवा उस व्यक्‍ति के रिकॉर्ड को याद रखता है जो मर गया है, जिसमें उसके वंशागत गुण और पूरी याददाश्‍त भी शामिल है। यह ठोस प्रमाण देता है कि परमेश्‍वर व्यक्‍तिगत स्तर पर मनुष्यों की चिंता करता है!—३/१, पृष्ठ ६.

◻ सपन्याह की भविष्यवाणी का कौन-सा चेतावनी संदेश हमारे लिए व्यावहारिक मदद का है?

आज संदेह को अपने हृदय में जड़ पकड़ने देने और यहोवा के दिन के आने को अपने मन में ताक़ पर रखने का वक़्त बिलकुल नहीं है। साथ ही, हमें उदासीनता के कमज़ोर बनानेवाले प्रभावों से सावधान रहना चाहिए। (सपन्याह १:१२, १३; ३:८)—३/१, पृष्ठ १७.

◻ परमेश्‍वर के प्रति निष्ठा एक चुनौति क्यों प्रस्तुत करती है?

क्योंकि निष्ठा उन स्वार्थी प्रवृत्तियों से टकराती है जो हमने अपने माता-पिता से उत्तराधिकार में पायी हैं। (उत्पत्ति ८:२१; रोमियों ७:१९) अधिक महत्त्वपूर्ण, शैतान और उसके पिशाच हमें परमेश्‍वर के प्रति निष्ठाहीन बनाने के लिए दृढ़-संकल्प हैं। (इफिसियों ६:१२; १ पतरस ५:८)—३/१५, पृष्ठ १०.

◻ किन चार क्षेत्रों में हमें निष्ठा की चुनौति का सामना करना पड़ता है, और कौन-सी बात हमें ऐसा करने के लिए मदद देगी?

चार क्षेत्र हैं यहोवा, उसके संगठन, कलीसिया, और अपने विवाह साथियों के प्रति निष्ठा। इन चुनौतियों का सामना करने में एक मदद है इस बात को समझना कि निष्ठा की चुनौति यहोवा की सर्वसत्ता के दोषनिवारण के साथ जुड़ी हुई है।—३/१५, पृष्ठ २०.

◻ वाचा के संदूक को यरूशलेम में लौटा लाने की कोशिश में दाऊद के अनुभव से हम क्या सबक़ सीख सकते हैं? (२ शमूएल ६:२-७)

दाऊद ने उन निर्देशों को नज़रअंदाज़ किया जो यहोवा ने संदूक को ले जाने के संबंध में दिए थे, और यह विपत्ति लाया। सबक़ यह है कि हमें कभी-भी उन समस्याओं के लिए यहोवा को दोष नहीं देना चाहिए जो तब परीणित होती हैं जब हम उसके स्पष्ट निर्देशनों को नज़रअंदाज़ करते हैं। (नीतिवचन १९:३)—४/१, पृष्ठ २८, २९.

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