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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
w96 11/1 पेज 3-6

उत्पीड़ितों के लिए सांत्वना

क्या आपने ध्यान दिया है कि आपके जीवन-भर, अमुक शब्द सुर्ख़ियों में बार-बार आते रहे हैं? क्या आप युद्ध, अपराध, विपत्ति, भूख और दुःख जैसे शब्द पढ़ते-पढ़ते थक गए हैं? लेकिन, एक शब्द स्पष्ट रूप से समाचार रिपोर्टों से ग़ायब रहा है। फिर भी, यह एक ऐसा शब्द है जो मानवजाति की बहुत बड़ी ज़रूरत को चित्रित करता है। वह शब्द है “सांत्वना।”

“सांत्वना देना” का अर्थ है, किसी व्यक्‍ति को “बल और आशा देना” और किसी के “दुःख या कष्ट को कम करना।” इस २०वीं शताब्दी में यह संसार जिस अशान्ति से गुज़रा है, उसके कारण आशा की और दुःख को कम करने की बहुत बुरी तरह से ज़रूरत है। सच है, आज हम में कुछ व्यक्‍ति ज़्यादा सुख-सुविधाओं का आनन्द लेते हैं जिनकी हमारे पूर्वजों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। यह ज़्यादातर वैज्ञानिक प्रगति के कारण हुआ है। लेकिन विज्ञान और टॆक्नॉलॉजी ने मानवजाति से दुःख के सभी कारणों को निकालने के अर्थ में हमें सांत्वना नहीं दी है। ये कारण क्या हैं?

अनेक शताब्दियों पहले बुद्धिमान पुरुष सुलैमान ने दुःख के एक मूल कारण के बारे में बताया जब उसने कहा: “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।” (सभोपदेशक ८:९) अपने संगी मनुष्य पर अधिकार चलाने की मनुष्य की चाहत की प्रवृत्ति को बदलने में विज्ञान और टॆक्नॉलॉजी समर्थ नहीं हुए हैं। इस २०वीं शताब्दी में, यह देशों में उत्पीड़क तानाशाह शासन और देशों के बीच भीषण युद्धों की ओर ले गया है।

युद्ध के परिणामस्वरूप १९१४ से दस करोड़ से अधिक लोग मार दिए गए हैं। उस मानवीय वेदना की कल्पना कीजिए जो इस आँकड़े से चित्रित होती है—सांत्वना की ज़रूरत में करोड़ों शोकित परिवार। और हिंसक मृत्यु के अलावा युद्ध अन्य प्रकार के दुःख का कारण होते हैं। दूसरे विश्‍व युद्ध के अन्त में, यूरोप में १.२ करोड़ से अधिक शरणार्थी थे। हाल के वर्षों में, १५ लाख से अधिक व्यक्‍ति दक्षिण-पूर्वी एशिया के युद्ध क्षेत्रों से भाग निकले। बाल्कन क्षेत्र में युद्ध ने २० लाख से अधिक लोगों को अपने घर से भागने पर मजबूर किया है—अनेक मामलों में “नृजातीय सफ़ाई” से बचने के लिए।

शरणार्थियों को निश्‍चित ही सांत्वना की ज़रूरत है, विशेषकर उनको जिन्हें बस उतने सामान के साथ घर छोड़ना पड़ता है जितना वे उठा सकते हैं और नहीं जानते कि कहाँ जाना है या उनके और उनके परिवारों के लिए भविष्य में क्या रखा है। ऐसे लोग उत्पीड़न के सबसे ज़्यादा दयनीय शिकारों में से हैं; उन्हें सांत्वना की ज़रूरत है।

पृथ्वी के ज़्यादा शान्तिपूर्ण भागों में, करोड़ों लोग संसार की आर्थिक व्यवस्था के वस्तुतः दासत्व में जीते हैं। सच है, कुछ लोगों के पास भौतिक वस्तुओं की भरमार है। लेकिन, अधिकांश लोग रोज़ी-रोटी कमाने के हर दिन के संघर्ष का सामना करते हैं। अनेक लोग उपयुक्‍त मकान की तलाश में हैं। बढ़ती संख्या में लोग बेरोज़गार हैं। “यह संसार,” एक अफ्रीकी समाचार-पत्र पूर्वकथन करता है, “एक अद्वितीय रोज़गार संकट की ओर जा रहा है, जिसमें वर्ष २०२० तक और १.३ अरब अतिरिक्‍त लोग नौकरियों की तलाश में होंगे।” निश्‍चित ही आर्थिक रूप से उत्पीड़ितों को “बल और आशा”—सांत्वना—की ज़रूरत है।

निराशापूर्ण परिस्थितियों की प्रतिक्रिया में, कुछ लोग अपराधी जीवन की ओर मुड़ते हैं। निःसंदेह, यह केवल उनके शिकारों के लिए मुश्‍किलें खड़ी करता है, और ऊँची अपराध दर उत्पीड़न के भाव को और बढ़ाती है। जोहानिसबर्ग, दक्षिण अफ्रीका के एक समाचार-पत्र, द स्टार (अंग्रेज़ी) की हाल की एक सुर्ख़ी ने कहा: “‘संसार के सबसे हिंसक देश’ के जीवन में एक दिन।” उस लेख ने जोहानिसबर्ग में और उसके आस-पास एक ठेठ दिन का वर्णन किया। उस एक दिन, चार लोगों की हत्या हुई और आठ लोगों की मोटर-गाड़ियों का अपहरण किया गया। एक मध्यम-वर्गीय उपनगर में सत्रह चोरियों की रिपोर्ट की गयी। इसके अतिरिक्‍त, अनेक सशस्त्र चोरियाँ की गयीं। समाचार-पत्र के अनुसार, पुलिस ने इसे “तुलनात्मक रूप से शान्त” दिन बताया। यह समझा जा सकता है कि हत्या के शिकारों के सगे-सम्बन्धी और जिनके घर में घुसपैठ की गयी और जिनकी गाड़ी का अपहरण हुआ, वे बुरी तरह से उत्पीड़ित महसूस करते हैं। उन्हें आश्‍वासन और आशा—सांत्वना—की ज़रूरत है।

कुछ देशों में, ऐसे माता-पिता हैं जो अपने बच्चों को वेश्‍यावृत्ति के लिए बेच देते हैं। एक एशियाई देश में, जिसमें पर्यटक नियमित रूप से “सॆक्स यात्राओं” के लिए जाते हैं, २० लाख वेश्‍याएँ होने की रिपोर्ट की गयी है, जिनमें से अनेकों को तब ख़रीदा या अपहरण कर लिया गया था जब वे बच्ची ही थीं। इन दयनीय शिकारों से ज़्यादा क्या कोई और व्यक्‍ति उत्पीड़ित है? इस घिनौने व्यापार पर चर्चा करते हुए, टाइम (अंग्रेज़ी) पत्रिका ने दक्षिण-पूर्वी एशियाई स्त्रियों के संगठनों के एक १९९१ सम्मेलन पर रिपोर्ट दी। वहाँ, यह अनुमान लगाया गया कि “संसार-भर में मध्य-सत्तरादि से तीन करोड़ स्त्रियों को बेचा गया है।”

निःसंदेह, बच्चों को पीड़ित करने के लिए उन्हें वेश्‍यावृत्ति के लिए बेचना ज़रूरी नहीं। उनके अपने घरों में माता-पिता और सगे-सम्बन्धियों द्वारा बढ़ती संख्या में उनके साथ शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार किया जाता है या यहाँ तक कि उनका बलात्कार किया जाता है। ऐसे बच्चों को शायद लम्बे समय तक भावात्मक घाव रहें। निश्‍चित ही, उत्पीड़न के दुःखित शिकारों के तौर पर उन्हें सांत्वना की ज़रूरत है।

उत्पीड़न का एक प्राचीन विद्यार्थी

राजा सुलैमान मानव उत्पीड़न की हद से विस्मित हो गया। उसने लिखा: “मैंने अत्याचार के उन सब कार्यों पर पुनः विचार किया जो सूर्य के नीचे किए जा रहे थे। देखो, उत्पीड़ितों के आंसू! और उनको सान्त्वना देने वाला कोई नहीं। और दूसरी ओर अत्याचारियों के पास अधिकार था, परन्तु उत्पीड़ितों के पास सान्त्वना देनेवाला कोई नहीं था।”—सभोपदेशक ४:१, NHT.

अगर उस बुद्धिमान राजा को ३,००० साल पहले यह महसूस हुआ कि उत्पीड़ितों को किसी सांत्वना देनेवाले की बहुत ही ज़रूरत थी, तो वह आज क्या कहता? तथापि, सुलैमान जानता था कि कोई अपरिपूर्ण मनुष्य, जिसमें वह ख़ुद भी शामिल था, वह सांत्वना प्रदान नहीं कर सकता था जिसकी मानवजाति को ज़रूरत थी। इन उत्पीड़कों की शक्‍ति को ख़त्म करने के लिए किसी ज़्यादा महान व्यक्‍ति की ज़रूरत थी। क्या ऐसा कोई व्यक्‍ति है?

बाइबल में, भजन ७२ सभी लोगों के लिए एक महान सांत्वना देनेवाले के बारे में बोलता है। यह भजन सुलैमान के पिता, राजा दाऊद द्वारा लिखा गया था। इसका उपरिलेख कहता है: “सुलैमान का गीत।” प्रत्यक्षतः, यह वृद्ध राजा दाऊद द्वारा उस व्यक्‍ति के बारे में लिखा गया था जो उसके सिंहासन को विरासत में पाता। यह व्यक्‍ति, इस भजन के अनुसार, उत्पीड़न से स्थायी राहत लाता। “उसके दिनों में धर्मी फूले फलेंगे, और जब तक चन्द्रमा बना रहेगा, तब तक शान्ति बहुत रहेगी। वह समुद्र से समुद्र तक और . . . पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करेगा।”—भजन ७२:७, ८.

संभवतः, जब दाऊद ने इन शब्दों को लिखा, तो वह अपने पुत्र सुलैमान के बारे में सोच रहा था। लेकिन सुलैमान ने महसूस किया कि इस भजन में जैसे वर्णित है उस तरीक़े से मानवजाति की सेवा करना उसके बस के बाहर है। वह इस भजन के शब्दों को केवल एक छोटे तरीक़े से और इस्राएल जाति के पक्ष में पूरा कर सकता था, सारी पृथ्वी के लाभ के लिए नहीं। प्रत्यक्षतः, यह उत्प्रेरित भविष्यसूचक भजन सुलैमान से कहीं महान किसी व्यक्‍ति की ओर संकेत कर रहा था। वह कौन था? वह केवल यीशु मसीह हो सकता है।

जब एक स्वर्गदूत ने यीशु के जन्म की घोषणा की, उसने कहा: “प्रभु परमेश्‍वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा।” (लूका १:३२) इसके अतिरिक्‍त, यीशु ने अपना उल्लेख उस व्यक्‍ति के रूप में किया “जो सुलैमान से भी बड़ा है।” (लूका ११:३१) पुनरुत्थान पाकर परमेश्‍वर के दाहिने हाथ बैठने के बाद से, यीशु स्वर्ग में रहा है, उस स्थान पर जहाँ से वह भजन ७२ के शब्दों को पूरा कर सकता है। इसके अलावा, उसे मानव उत्पीड़कों के जुए को तोड़ने के लिए परमेश्‍वर से सामर्थ्य और अधिकार मिला है। (भजन २:७-९; दानिय्येल २:४४) सो यीशु है जो भजन ७२ के शब्दों को पूरा करता है।

उत्पीड़न जल्द ही समाप्त होगा

इसका अर्थ क्या है? इसका अर्थ यह है कि सब प्रकार के मानव उत्पीड़न से स्वतंत्रता जल्द ही एक सच्चाई होगी। इस २०वीं शताब्दी के दौरान जो अद्वितीय दुःख और उत्पीड़न देखा गया है वह यीशु द्वारा उस चिन्ह के एक भाग के तौर पर पूर्वबताया गया था जो “रीति-व्यवस्था की समाप्ति” को विशिष्ट करता। (मत्ती २४:३, NW) अन्य बातों के अलावा, उसने पूर्वबताया: “जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा।” (मत्ती २४:७) भविष्यवाणी के इस पहलू की पूर्ति लगभग उस समय शुरू हुई जब १९१४ में प्रथम विश्‍व युद्ध छिड़ गया। “अधर्म के बढ़ने से,” यीशु ने आगे कहा, “बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा।” (मत्ती २४:१२) अधर्म और प्रेम के अभाव ने एक दुष्ट और उत्पीड़क पीढ़ी को जन्म दिया है। इसलिए, पृथ्वी के नए राजा के तौर पर यीशु मसीह का हस्तक्षेप करने का समय निकट होगा। (मत्ती २४:३२-३४) इसका अर्थ उत्पीड़ित मनुष्यों के लिए क्या होगा जिन्हें यीशु मसीह में विश्‍वास है और जो उसकी ओर मानवजाति के ईश्‍वरीय रूप से नियुक्‍त सांत्वना देनेवाले के रूप में देखते हैं?

इस सवाल के जवाब के लिए, आइए हम भजन ७२ के कुछ अतिरिक्‍त शब्द पढ़ें जो मसीह यीशु में पूरे होते हैं: “वह दोहाई देनेवाले दरिद्र को, और दुःखी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा। वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रों के प्राणों को बचाएगा। वह उनके प्राणों को अन्धेर [उत्पीड़न, NW] और उपद्रव से छुड़ा लेगा; और उनका लोहू उसकी दृष्टि में अनमोल ठहरेगा।” (भजन ७२:१२-१४) इस प्रकार परमेश्‍वर का नियुक्‍त राजा, यीशु मसीह यह निश्‍चित करेगा कि उत्पीड़न के कारण किसी को दुःख न उठाना पड़े। उसके पास सब प्रकार के अन्याय का अन्त करने का सामर्थ्य है।

‘यह बहुत बढ़िया लगता है,’ कोई व्यक्‍ति शायद कहे, ‘लेकिन अभी के बारे में क्या? जो अभी दुःखी हैं उनके लिए कौन-सी सांत्वना है?’ असल में, उत्पीड़ितों के लिए सांत्वना मौजूद है। इस पत्रिका के अगले दो लेख दिखाएँगे कि कैसे लाखों व्यक्‍ति, सच्चे परमेश्‍वर, यहोवा और उसके प्रिय पुत्र यीशु मसीह के साथ एक निकट सम्बन्ध विकसित करने के माध्यम से अब भी सांत्वना का अनुभव कर रहे हैं। ऐसा एक सम्बन्ध हमें इन उत्पीड़क समयों में सांत्वना दे सकता है और एक व्यक्‍ति को उत्पीड़न से मुक्‍त अनन्त जीवन की ओर ले जा सकता है। यीशु ने प्रार्थना में परमेश्‍वर से कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।”—यूहन्‍ना १७:३.

[पेज 4, 5 पर तसवीरें]

परमेश्‍वर के नए संसार में कोई भी मनुष्य दूसरे को उत्पीड़ित नहीं करेगा

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