जानकार सहमति के अधिकार की पुनःपुष्टि
मॆसिना, इटली के न्यायालय के प्राथमिक जाँच के न्यायाधीश द्वारा सुनाए गए हाल के एक फ़ैसले ने पुनःपुष्टि की है कि एक वयस्क मरीज़ की चिकित्सा-सम्बन्धी इच्छाएँ डॉक्टरों पर बाध्यकारी हैं। यह निर्णय यहोवा के एक साक्षी से सम्बन्धित एक मुकद्दमे में दिया गया था।
जनवरी १९९४ में, हीमोफ़ीलिया के मरीज़, ६४-वर्षीय साक्षी, ऑन्टोनीनो स्टेलार्यो लॆनटीनी को ताउरमीना, मॆसिना के एक अस्पताल में शीघ्र ले जाया गया। ऑन्टोनीनो की पत्नी, काटॆना ने अस्पताल के कर्मचारी-वर्ग को स्पष्ट बताया कि यहोवा के साक्षियों के तौर पर, वह और उसका पति रक्ताधान उपचार के लिए सहमत नहीं होंगे। (प्रेरितों १५:२०, २८, २९) उनकी इच्छाओं का आदर किया गया।
लेकिन, एक अन्य स्वास्थ्य-सेवा केन्द्र को ले जाए जाते वक़्त, ऑन्टोनीनो की श्वसन-प्रक्रिया रुक गयी और वह नाज़ुक हालत में पहुँचा। उसके थोड़ी ही देर बाद, उसकी मृत्यु हो गयी। काटॆना की दुनिया उजड़ गयी, लेकिन उसने पुनरुत्थान की बाइबलीय प्रतिज्ञा में बड़ी सांत्वना पायी। (प्रेरितों २४:१५) उसके बाद, उसे बड़ा आश्चर्य हुआ जब दंडाधिकारियों ने—संभवतः समाचार माध्यम द्वारा फैलाए गए ग़लत समाचार से गुमराह होकर—उस पर अपने पति की मृत्यु का कारण होने का इलज़ाम लगाया क्योंकि उसने उसके लिए ऐसे उपचार से इनकार किया जिसे डॉक्टरों ने आवश्यक समझा था।
एक वर्ष से ज़्यादा समय बाद, जुलाई ११, १९९५ के दिन काटॆना को निर्दोष ठहराया गया क्योंकि उसने कोई अपराध नहीं किया था। असल में, विशेषज्ञों की गवाही ने स्पष्ट किया कि मरीज़ की हालत को ध्यान में रखते हुए, चिकित्सीय हस्तक्षेप किसी भी तरह बेकार ही होता।
लेकिन न्यायाधीश के कथनों ने मुख्य मसले की ओर संकेत किया। उसने स्पष्ट किया कि इस विचार को स्वीकार करना मुश्किल है कि चिकित्सा कर्मचारियों का हस्तक्षेप करना ज़रूरी है जब मरीज़ या उसका प्रतिनिधित्व करनेवाले व्यक्ति उपचार से इनकार करते हैं। इटली की चिकित्सीय कर्तव्यशास्त्र संहिता, उसने आगे कहा, “कोई भी हस्तक्षेप करने से पहले शामिल व्यक्ति की जानकार सहमति पाने की ज़रूरत को पहले से देखता है।” अतः, उसने कहा कि काटॆना ने “क़ानूनन अपने पति का ऐसा एक ऑपरेशन होने से रोका।”
यह फ़ैसला एक वयस्क के इस अधिकार की पुनःपुष्टि करता है कि ऐसे चिकित्सीय उपचार से इनकार करे जो उसकी इच्छा के विरुद्ध हो।