यहोवा की इच्छा पर चलने के लिए सिखाए गए
“मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा क्योंकर पूरी करूं, क्योंकि मेरा परमेश्वर तू ही है!”—भजन १४३:१०.
१, २. (क) हमें कब सिखाया जाना चाहिए, और किस यथार्थवादी दृष्टिकोण से? (ख) यहोवा द्वारा सिखाया जाना इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?
वह हर दिन जो एक व्यक्ति जीवित और सक्रिय रहता है, उसे कुछ-न-कुछ उपयोगी सिखाया जा सकता है। यह आपके मामले में सच है, और यह दूसरों के बारे में भी सच है। लेकिन मृत्यु पर क्या होता है? उस स्थिति में कुछ भी सिखाया जाना या सीखना संभव नहीं है। बाइबल स्पष्ट रूप से कहती है कि मृतजन “कुछ भी नहीं जानते।” शीओल, मनुष्यजाति की सामान्य क़ब्र में कोई ज्ञान नहीं है। (सभोपदेशक ९:५, १०) क्या इसका अर्थ यह है कि हमारा सिखाया जाना, ज्ञान इकट्ठा करना, व्यर्थ है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमें क्या सिखाया गया है और हम उस ज्ञान का प्रयोग कैसे करते हैं।
२ अगर हमें केवल वही सिखाया गया है जो सांसारिक है, तो हमारा कोई चिरस्थायी भविष्य नहीं है। लेकिन, ख़ुशी की बात है, सभी राष्ट्रों में लाखों लोगों को अनन्तकाल के जीवन हेतु ईश्वरीय इच्छा सिखायी जा रही है। इस आशा का आधार यहोवा द्वारा सिखाए जाने में है, जो जीवनदायक ज्ञान का स्रोत है।—भजन ९४:९-१२.
३. (क) ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि यीशु परमेश्वर का पहला विद्यार्थी था? (ख) हमारे पास कौन-सा आश्वासन है कि मनुष्य यहोवा द्वारा सिखाए जाएँगे, और इसका परिणाम क्या होता है?
३ परमेश्वर के पहलौठे पुत्र को, उसके पहले विद्यार्थी के तौर पर, अपने पिता की इच्छा पर चलना सिखाया गया था। (नीतिवचन ८:२२-३०; यूहन्ना ८:२८) क्रमशः, यीशु ने संकेत किया कि करोड़ों मनुष्य उसके पिता द्वारा सिखाए जाते। हम में से जो परमेश्वर से सीखते हैं उनके लिए कौन-सी प्रत्याशाएँ हैं? यीशु ने कहा: “भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में यह लिखा है, कि वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे। जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है। . . . मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो कोई विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसी का है।”—यूहन्ना ६:४५-४७.
४. लाखों लोग ईश्वरीय शिक्षा द्वारा कैसे प्रभावित होते हैं, और उनके सामने कौन-सी प्रत्याशाएँ हैं?
४ यीशु यशायाह ५४:१३ का उद्धरण दे रहा था, जिसे परमेश्वर की लाक्षणिक स्त्री, स्वर्गीय सिय्योन को सम्बोधित किया गया था। इस भविष्यवाणी की विशेष पूर्ति उसके पुत्रों, यीशु मसीह के १,४४,००० आत्मा से जन्मे हुए शिष्यों में होती है। इन आत्मिक पुत्रों का शेषवर्ग आज सक्रिय है, विश्वव्यापी शैक्षिक कार्यक्रम की अगुवाई कर रहा है। जिसके परिणामस्वरूप, लाखों अन्य व्यक्ति जिनसे “बड़ी भीड़” बनती है वे भी यहोवा द्वारा सिखाए जाने से लाभ प्राप्त करते हैं। उनके सामने कभी मृत्यु का अनुभव किए बिना सीखने की एक अनोखी प्रत्याशा है। वह कैसे? वे तेज़ी से पास आ रहे “बड़े क्लेश” से बचने और परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन का आनन्द लेने की स्थिति में हैं।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १०, १३-१७.
परमेश्वर की इच्छा पर चलने को ज़्यादा महत्त्व देना
५. (क) १९९७ का वार्षिक पाठ क्या है? (ख) मसीही सभाओं में उपस्थित होने के बारे में हमें कैसा महसूस होना चाहिए?
५ १९९७ के दौरान, संसार-भर में ८०,००० से अधिक कलीसियाओं में, यहोवा के साक्षी भजन १४३:१० के पहले शब्दों को मन में रखेंगे: “मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा क्योंकर पूरी करूं।” यह १९९७ का वार्षिक पाठ होगा। ये शब्द, राज्यगृहों में सुस्पष्ट रूप से प्रदर्शित, एक अनुस्मारक का काम करेंगे कि ईश्वरीय शिक्षा प्राप्त करने की एक विशिष्ट जगह कलीसिया सभाएँ हैं, जहाँ हम उपदेश के एक जारी कार्यक्रम में भाग ले सकते हैं। हमारे महान उपदेशक द्वारा सिखाए जाने के लिए अपने भाइयों के साथ मिलते वक़्त, हम वैसा महसूस कर सकते हैं जैसा भजनहार ने किया, उसने लिखा: “जब लोगों ने मुझ से कहा, कि हम यहोवा के भवन को चलें, तब मैं आनन्दित हुआ।”—भजन १२२:१; यशायाह ३०:२०.
६. दाऊद के शब्दों में, हम क्या स्वीकार करते हैं?
६ जी हाँ, हमारी इच्छा है कि अपने शत्रु इब्लीस की इच्छा पर या अपरिपूर्ण मनुष्यों की इच्छा पर चलने के बजाय हम परमेश्वर की इच्छा पर चलने के लिए सिखाए जाएँ। सो, दाऊद की तरह, हम जिस परमेश्वर की उपासना और सेवा करते हैं उसे स्वीकार करते हैं: “क्योंकि मेरा परमेश्वर तू ही है! तेरा भला आत्मा मुझ को धर्म के मार्ग में ले चले!” (भजन १४३:१०) झूठे मनुष्यों के साथ मेल-जोल रखने की इच्छा करने के बजाय, दाऊद ने वहाँ रहना पसन्द किया जहाँ यहोवा की उपासना की जाती थी। (भजन २६:४-६) परमेश्वर की आत्मा उसके क़दमों को निर्देशित कर रही थी, इसलिए दाऊद धार्मिकता के मार्गों पर चल सकता था।—भजन १७:५; २३:३.
७. मसीही कलीसिया पर परमेश्वर की आत्मा ने कैसे कार्य किया है?
७ बड़े दाऊद, यीशु मसीह ने प्रेरितों को आश्वस्त किया कि पवित्र आत्मा उन्हें सब बातें सिखाएगी और जो कुछ उसने उन्हें बताया था वह सब उन्हें याद दिलाएगी। (यूहन्ना १४:२६) पिन्तेकुस्त के समय से, यहोवा प्रगतिशील रीति से अपने लिखित वचन में समायी “परमेश्वर की गूढ़ बातें” प्रकट करता रहा है। (१ कुरिन्थियों २:१०-१३) यह उसने एक दृश्य माध्यम के ज़रिए किया है जिसे यीशु ने “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” कहा। यह आध्यात्मिक भोजन प्रदान करता है जिस पर संसार-भर में परमेश्वर के लोगों की कलीसियाओं के शैक्षिक कार्यक्रम में विचार किया जाता है।—मत्ती २४:४५-४७.
हमारी सभाओं में यहोवा की इच्छा सिखायी गयी
८. प्रहरीदुर्ग अध्ययन में भाग लेना इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?
८ कलीसिया के साप्ताहिक प्रहरीदुर्ग अध्ययन का विषय बारंबार बाइबल सिद्धान्तों के प्रयोग पर चर्चा करता है। यह निश्चय ही हमें जीवन की चिन्ताओं का सामना करने में मदद देता है। अन्य अध्ययनों में गहन आध्यात्मिक सत्य या बाइबल भविष्यवाणियों पर विचार किया जाता है। ऐसे अध्ययनों के दौरान हमें कितना कुछ सिखाया जाता है! अनेक देशों में राज्यगृह इन सभाओं के लिए खचाखच भरे होते हैं। फिर भी, अनेक देशों में सभा उपस्थिति में गिरावट आयी है। आपके विचार में ऐसा क्यों है? क्या ऐसा हो सकता है कि कुछ व्यक्ति लौकिक कार्य को “प्रेम, और भले कामों में उस्काने” के लिए अपने नियमित रूप से इकट्ठे होने में हस्तक्षेप करने देते हैं? या शायद सामाजिक गतिविधियों में या टीवी देखने में अनेकों घंटे ख़र्च किए जाते हैं, जिससे ऐसा लगे कि सभी सभाओं में जाने के लिए उनकी सारणी में बहुत कम समय है? इब्रानियों १०:२३-२५ के उत्प्रेरित आदेश को याद कीजिए। जैसे-जैसे हम ‘उस दिन को निकट आते देखते’ हैं, क्या ईश्वरीय उपदेश के लिए अब इकट्ठे होना और भी महत्त्वपूर्ण नहीं है?
९. (क) सेवा सभा हमें सेवकाई के लिए कैसे तैयार कर सकती है? (ख) गवाही कार्य के बारे में हमारी मनोवृत्ति कैसी होनी चाहिए?
९ परमेश्वर के सेवकों के रूप में कार्य करने की हमारी एक मुख्य ज़िम्मेदारी है। हम कैसे इसे प्रभावकारी रीति से निष्पन्न कर सकते हैं हमें यह सिखाने के लिए सेवा सभा बनायी गयी है। हम सीखते हैं कि लोगों के पास कैसे जाएँ, क्या कहें, जब अनुकूल प्रतिक्रिया होती है तब कैसे जवाब दें, और यह भी कि जब लोग हमारे संदेश को अस्वीकार करते हैं तब क्या करें। (लूका १०:१-११) इस साप्ताहिक सभा में जब प्रभावकारी तरीक़ों पर चर्चा की जाती है और उन्हें प्रदर्शित किया जाता है, तो हम न केवल घर-घर जाते वक़्त बल्कि सड़कों पर, पार्किंग क्षेत्रों में, सार्वजनिक परिवहन में, हवाईअड्डों पर, व्यापार स्थलों पर, या स्कूलों में भी प्रचार करते वक़्त लोगों तक पहुँचने के लिए बेहतर रीति से तैयार होते हैं। अपने निवेदन के सामंजस्य में, “मुझे सिखा कि मैं तेरी इच्छा कैसे पूरी करूं,” हम हर अवसर का लाभ उठाना चाहेंगे ताकि वह कर सकें जो हमारे स्वामी ने आग्रह किया: “तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे . . . तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें।”—मत्ती ५:१६.
१०. हम ‘योग्य जनों’ की कैसे सचमुच मदद कर सकते हैं?
१० ऐसी कलीसिया सभाओं में, हमें दूसरों को शिष्य बनाना भी सिखाया जाता है। एक बार जब दिलचस्पी पायी जाती है या साहित्य दिया जाता है, पुनःभेंट करते वक़्त हमारा लक्ष्य होता है गृह बाइबल अध्ययन आरम्भ करना। एक अर्थ में, यह शिष्यों का ‘योग्य जनों के यहां रहने’ के समान है ताकि उन्हें वे बातें सिखायी जाएँ जिनकी आज्ञा यीशु ने दी थी। (मत्ती १०:११; २८:१९, २०) अत्युत्तम सहायकों के होते हुए, जैसे कि पुस्तक ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है, हम अपनी सेवकाई को अच्छी तरह पूरा करने के लिए वास्तव में सुसज्जित हैं। (२ तीमुथियुस ४:५) हर सप्ताह जब आप सेवा सभा और ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल में उपस्थित होते हैं, तब सहायक मुद्दों को समझने और फिर उनका प्रयोग करने की कोशिश कीजिए। ऐसा करना परमेश्वर की इच्छा को पूरा करनेवाले, उसके पर्याप्त रूप से योग्य सेवकों के तौर पर आपकी सिफ़ारिश करेगा।—२ कुरिन्थियों ३:३, ५; ४:१, २.
११. कुछ लोगों ने कैसे मत्ती ६:३३ में पाए गए शब्दों में विश्वास प्रदर्शित किया है?
११ यह परमेश्वर की इच्छा है कि हम ‘पहले उसके राज्य और धर्म की खोज करें।’ (मत्ती ६:३३) अपने आप से पूछिए, ‘मैं इस सिद्धान्त को कैसे लागू करूँगा अगर मेरी [या मेरे साथी की] लौकिक नौकरी की माँगें सभा उपस्थिति में बाधा डालती हैं?’ अनेक आध्यात्मिक रूप से प्रौढ़ व्यक्ति अपने मालिकों से इस मामले में बात करने के लिए क़दम उठाएँगे। एक पूर्ण-समय सेविका ने अपने मालिक को यह बताया कि उसे हर सप्ताह छुट्टी की ज़रूरत थी ताकि वह कलीसिया सभाओं में उपस्थित हो सके। उसने इस निवेदन को स्वीकार किया। लेकिन इन सभाओं में क्या होता है इस बारे में जिज्ञासु होने के कारण, उसने उपस्थित होने की बात कही। वहाँ उसने आनेवाले ज़िला अधिवेशन के सम्बन्ध में एक घोषणा सुनी। परिणामस्वरूप, उस मालिक ने एक पूरा दिन अधिवेशन में बिताने का प्रबंध किया। आप इस उदाहरण से कौन-सा सबक़ सीखते हैं?
धर्मपरायण माता-पिता द्वारा यहोवा की इच्छा सिखाए गए
१२. बच्चों को यहोवा की इच्छा सिखाए जाने के लिए, मसीही माता-पिता को धीरज और दृढ़ता से क्या करना चाहिए?
१२ लेकिन ईश्वरीय इच्छा पर चलने के लिए सिखाए जाने के वास्ते कलीसिया सभाएँ और अधिवेशन ही एकमात्र प्रबन्ध नहीं हैं। धर्मपरायण माता-पिता को आज्ञा दी गयी है कि अपने बच्चों को यहोवा की स्तुति करने और उसकी इच्छा पर चलने के लिए प्रशिक्षण, अनुशासन दें और उनका पालन-पोषण करें। (भजन १४८:१२, १३; नीतिवचन २२:६, १५) ऐसा करना माँग करता है कि हम अपने ‘बालकों’ को सभाओं में ले जाएँ जहाँ वे ‘सुनकर सीख’ सकते हैं, लेकिन घर पर उन्हें पवित्र शास्त्र से सिखाने के बारे में क्या? (व्यवस्थाविवरण ३१:१२; २ तीमुथियुस ३:१५) अनेक परिवारों ने बड़ी ईमानदारी से नियमित पारिवारिक बाइबल अध्ययन के कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन वे जल्द ही अनियमित हो जाते हैं या रुक जाते हैं। क्या आपको ऐसा अनुभव हुआ था? क्या आप निष्कर्ष निकालेंगे कि ऐसे एक नियमित अध्ययन का निर्देश ग़लत है या कि आपका परिवार इतना अलग है कि यह आपके मामले में बिलकुल कारगर नहीं होगा? आपकी स्थिति चाहे जो भी हो, माता-पिताओं आप कृपया अगस्त १, १९९५ की प्रहरीदुर्ग में “हमारी बहुमूल्य आध्यात्मिक विरासत” और “लगन के प्रतिफल” के उत्तम लेखों पर पुनर्विचार कीजिए।
१३. दैनिक पाठ पर विचार करने के द्वारा परिवार कैसे लाभ प्राप्त कर सकते हैं?
१३ परिवारों को प्रोत्साहित किया जाता है कि प्रतिदिन शास्त्रवचनों की जाँच करना से दैनिक पाठ पर विचार करने की आदत डालें। पाठ और टिप्पणियों को केवल पढ़ना अच्छा है, लेकिन पाठ की चर्चा करना और उसे लागू करना ज़्यादा लाभदायक है। उदाहरण के लिए, यदि आप इफिसियों ५:१५-१७ (NHT) पर चर्चा कर रहे हैं, परिवार के सदस्य तर्क कर सकते हैं कि व्यक्तिगत अध्ययन के लिए, किसी प्रकार की पूर्ण-समय सेवकाई में भाग लेने के लिए, और अन्य ईश्वरशासित कार्य-नियुक्तियों को सँभालने के लिए कैसे “समय का पूरा पूरा उपयोग” करें। जी हाँ, दैनिक पाठ की एक पारिवारिक चर्चा किसी एक या अनेक व्यक्तियों को ज़्यादा अच्छी तरह ‘यह जानने’ की ओर ले जा सकती है ‘कि प्रभु की इच्छा क्या है।’
१४. व्यवस्थाविवरण ६:६, ७ के अनुसार माता-पिता को किस प्रकार के शिक्षक होना चाहिए, और यह किस बात की माँग करता है?
१४ माता-पिता को अपने बच्चों के परिश्रमी शिक्षक होना है। (व्यवस्थाविवरण ६:६, ७) लेकिन यह अपनी संतान को भाषण झाड़ने या आदेश देने भर की बात नहीं है। माता-पिता को सुनने की भी ज़रूरत है, और इस तरह बेहतर रीति से यह जानने में समर्थ होने की कि किस बात को समझाए जाने, स्पष्ट किए जाने, उदाहरण देकर समझाने, या दोहराने की ज़रूरत है। एक मसीही परिवार में, माता-पिता अपने बच्चों को ऐसी बातों के बारे में प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करते हैं जो उन्हें समझ में नहीं आतीं या जो चिन्ता का कारण हैं। इसके द्वारा वे खुला संचार प्रेरित करते हैं। उन्होंने इस प्रकार जाना कि एक किशोर बेटे को यह समझने में मुश्किल होती थी कि यहोवा की कोई शुरूआत नहीं है। माता-पिता वॉच टावर संस्था के प्रकाशनों की जानकारी को प्रयोग करने में समर्थ हुए, और यह दिखाया कि समय और अंतरिक्ष को अंतहीन समझकर स्वीकार कर लिया गया है। इस बात ने उस मुद्दे को उदाहरण देकर समझाया, और इसने उनके बेटे को संतुष्ट किया। सो समय निकालकर शास्त्र से अपने बच्चों के प्रश्नों के स्पष्ट रूप से उत्तर दीजिए, उन्हें यह देखने में मदद दीजिए कि परमेश्वर की इच्छा पर चलना सीखना बहुत ही संतोषजनक हो सकता है। आज परमेश्वर के लोगों—छोटों-बड़ों—को और क्या सिखाया जा रहा है?
प्रेम और युद्ध करने के लिए सिखाए गए
१५. हमारे भाईचारे के प्रेम की सच्चाई की परख कब हो सकती है?
१५ यीशु की नयी आज्ञा के सामंजस्य में, हमने “आपस में प्रेम रखना . . . परमेश्वर से सीखा है।” (१ थिस्सलुनीकियों ४:९) जब स्थिति शान्त होती है और सबकुछ ठीक होता है, हम शायद महसूस करें कि हम वाक़ई अपने सब भाइयों से प्रेम करते हैं। लेकिन तब क्या होता है जब व्यक्तिगत मतभेद उठते हैं या हम किसी अन्य मसीही ने जो कहा या किया उसके कारण नाराज़ हो जाते हैं? इस स्थिति में हमारे प्रेम की सच्चाई की परख हो सकती है। (२ कुरिन्थियों ८:८ से तुलना कीजिए।) ऐसी स्थितियों में हमें बाइबल क्या करने की शिक्षा देती है? एक बात है कि पूरे अर्थ में प्रेम दिखाने का प्रयास करना। (१ पतरस ४:८) हमारा अपना हित देखने, छोटी ग़लतियों पर गुस्सा होने, या किसी चोट का हिसाब रखने के बजाय, हमें कोशिश करनी चाहिए कि प्रेम ढेर सारे पापों को ढाँप दे। (१ कुरिन्थियों १३:५) हम जानते हैं कि यह परमेश्वर की इच्छा है, क्योंकि उसका वचन यही सिखाता है।
१६. (क) मसीहियों को किस प्रकार के युद्ध में भाग लेने के लिए सिखाया जाता है? (ख) हम किन हथियारों से लैस हैं?
१६ हालाँकि अनेक लोग प्रेम और युद्ध को जोड़ेंगे नहीं, युद्ध एक और बात है जो हमें सिखाया जा रहा है, लेकिन एक अलग क़िस्म का युद्ध। दाऊद ने उसे युद्ध करना सिखाने के लिए यहोवा पर अपनी निर्भरता को स्वीकार किया, हालाँकि उसके समय में इसमें इस्राएल के शत्रुओं के विरुद्ध वास्तविक लड़ाई शामिल थी। (१ शमूएल १७:४५-५१; १९:८; १ राजा ५:३; भजन १४४:१) आज हमारे युद्ध के बारे में क्या? हमारे हथियार शारीरिक नहीं हैं। (२ कुरिन्थियों १०:४) हमारा युद्ध आत्मिक है, जिसके लिए हमें आत्मिक हथियारों से लैस होने की ज़रूरत है। (इफिसियों ६:१०-१३) अपने वचन और अपने संगठित लोगों के माध्यम से, यहोवा हमें एक सफल आत्मिक युद्ध लड़ना सिखाता है।
१७. (क) इब्लीस हमें पथभ्रष्ट करने के लिए कौन-सी युक्तियाँ प्रयोग करता है? (ख) हमें बुद्धिमानी से किस बात से दूर रहना चाहिए?
१७ कपटपूर्ण, धूर्त तरीक़ों से, इब्लीस अकसर महत्त्वहीन मामलों की ओर हमें पथभ्रष्ट करने के प्रयास में, संसार के तत्वों, धर्मत्यागियों और सत्य के अन्य विरोधियों का प्रयोग करता है। (१ तीमुथियुस ६:३-५, ११; तीतुस ३:९-११) यह ऐसा है मानो वह समझता है कि सीधे, सामने के हमले से हम पर विजय पाने की उसकी संभावनाएँ बहुत कम हैं, सो वह हमें हमारी ऐसी पसन्दीदा शिकायतों और मूर्खतापूर्ण शंकाओं को व्यक्त करवाने के द्वारा हमें ठोकर दिलाने की कोशिश करता है, जो आध्यात्मिक महत्त्व से खाली होती हैं। चौकन्ने योद्धाओं की हैसियत से, हमें ऐसे ख़तरों के प्रति उतना ही सतर्क रहना है जितना कि हम सीधे आक्रमण के प्रति रहते हैं।—१ तीमुथियुस १:३, ४.
१८. अब इसके बाद अपने लिए न जीने में वास्तव में क्या शामिल है?
१८ हम मनुष्यों की इच्छाओं को या राष्ट्रों की इच्छा को बढ़ावा नहीं देते। यहोवा ने हमें यीशु के उदाहरण से सिखाया है कि हमें अब इसके बाद अपने लिए नहीं जीना है; इसके बजाय हमें उसी मनोवृत्ति से लैस होना चाहिए जो मसीह यीशु की थी और परमेश्वर की इच्छा के लिए जीना है। (२ कुरिन्थियों ५:१४, १५) अतीत में, हमने शायद बहुत ही असंतुलित, चरित्रहीन जीवन जीया होगा, बहुमूल्य समय को गँवा दिया होगा। रंगरलियाँ, पियक्कड़पन, और अनैतिकता इस दुष्ट संसार की विशेषता है। अब जब हमें परमेश्वर की इच्छा पर चलना सिखाया जा रहा है, क्या हम कृतज्ञ नहीं हैं कि इस भ्रष्ट संसार से अलग किए गए हैं? सो आइए संसार की भ्रष्ट करनेवाली रीतियों में शामिल होने से दूर रहने के लिए आध्यात्मिक रूप से एक कड़ा युद्ध लड़ें।—१ पतरस ४:१-३.
स्वयं हमारे लाभ के लिए हमें सिखाना
१९. यहोवा की इच्छा सिखाया जाना और फिर उस पर चलना किन लाभों की ओर ले जा सकता है?
१९ यह स्वीकार करना अनिवार्य है कि यहोवा की इच्छा पर चलने के लिए सिखाया जाना हमारे लिए बहुत लाभ लाएगा। स्वाभाविक है कि हमें अच्छी तरह सुनने के द्वारा अपना भाग अदा करना चाहिए ताकि सीख सकें और फिर उन निर्देशों का पालन कर सकें जो उसके पुत्र के माध्यम से साथ ही उसके वचन और संगठित लोगों के माध्यम से हम तक आते हैं। (यशायाह ४८:१७, १८; इब्रानियों २:१) हमारे ऐसा करने से, हम इन दुःखद समयों में दृढ़ खड़े रहने और आनेवाले तूफ़ानों को पार करने के लिए मज़बूत किए जाएँगे। (मत्ती ७:२४-२७) अब भी, हम परमेश्वर को उसकी इच्छा पर चलने के द्वारा प्रसन्न करेंगे और यह निश्चित कर रहे होंगे कि हमारी प्रार्थनाओं का जवाब दिया जाए। (यूहन्ना ९:३१; १ यूहन्ना ३:२२) और हम सच्ची ख़ुशी का अनुभव करेंगे।—यूहन्ना १३:१७.
२०. जब आप पूरे १९९७ के दौरान वार्षिक पाठ देखते हैं तो किस बात पर मनन करना अच्छा होगा?
२० १९९७ के दौरान, हमें बार-बार इस वार्षिक पाठ, भजन १४३:१० को पढ़ने और इस पर विचार करने का अवसर मिलेगा: “मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा क्योंकर पूरी करूं।” जब हम ऐसा करते हैं, आइए हम इनमें से कुछ अवसरों को उन प्रबन्धों पर विचार करने के लिए प्रयोग करें जो परमेश्वर ने हमें सिखाने के लिए किए हैं, जैसे कि ऊपर बताए गए हैं। और उन शब्दों पर ऐसे मनन को आइए हम एक प्रेरक के तौर पर प्रयोग करें कि उस विनती के सामंजस्य में कार्य करें, यह जानते हुए कि “जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।”—१ यूहन्ना २:१७.
आप कैसे उत्तर देंगे?
◻ आज किनको यहोवा की इच्छा पर चलना सिखाया जा रहा है?
◻ १९९७ के दौरान भजन १४३:१० का हम पर कैसा प्रभाव होना चाहिए?
◻ हमें यहोवा की इच्छा पर चलना कैसे सिखाया जा रहा है?
◻ अपने बच्चों को सिखाने में मसीही माता-पिताओं से क्या माँग की जाती है?