क्या आप दूसरों पर भरोसा करने से डरते हैं?
‘ऐसा कोई भी नहीं जिससे मैं बात कर सकूँ। लोग नहीं समझेंगे। वे अपनी ही समस्याओं में बहुत व्यस्त हैं। उनके पास मेरी समस्याओं के लिए समय नहीं है।’ अनेक लोग इस तरह सोचते हैं सो वे अपने मन की बात मन ही में रखते हैं। जब दूसरे लोग पूछते हैं कि वे कैसे हैं, तो अकसर वे बताना तो चाहते हैं, लेकिन नहीं बताते। वे बस कह ही नहीं सकते।
जी हाँ, ऐसे लोग हैं जो दूसरों से मदद नहीं चाहते। फिर भी, अनेक लोग बुरी तरह मदद चाहते हैं लेकिन अपने आन्तरिक व्यक्तिगत विचार, भावनाएँ, और अनुभव बताने से डरते हैं। क्या आप उनमें से एक हैं? क्या सचमुच ऐसा कोई भी नहीं जिस पर आप भरोसा कर सकें?
डर को समझना
आज की दुनिया में शंका का माहौल है। युवा लोग अपने माता-पिता से बात नहीं करते। माता-पिता आपस में बात नहीं कर सकते। बहुत थोड़े लोग हैं जो अधिकार-प्राप्त लोगों से बात करने की इच्छा रखते हैं। दूसरों के सामने दिल की बात कहने में असमर्थ होने के कारण, कुछ लोग अपनी समस्याओं से भागने के लिए शराब, नशीले पदार्थों, या एक असभ्य जीवन-शैली का सहारा लेते हैं।—नीतिवचन २३:२९-३५; यशायाह ५६:१२.
बेईमानी और अनैतिकता के अनगिनत प्रकटनों के कारण, अधिकार-प्राप्त हस्तियों, जैसे पादरीवर्ग, डॉक्टरों, चिकित्सकों, और शिक्षकों पर से यक़ीन, उठ गया है। उदाहरण के लिए, एक अनुमान कहता है कि १० प्रतिशत से ज़्यादा पादरीवर्ग लैंगिक दुराचार में शामिल रहा है। ये “भरोसा तोड़नेवाले,” एक लेखक कहता है, “मानवी सम्बन्धों के बीच खाइयाँ, खड्डे और दरार खोदते हैं।” यह उनकी कलीसियाओं को कैसे प्रभावित करता है? यह भरोसे को ख़त्म कर देता है।
नैतिकता में व्याप्त गिरावट, परिवार में संकट को इस हद तक ले गई है कि अस्वाभाविक परिवार असाधारण न रहकर एक रिवाज़ बन गए हैं। घर एक समय पर पालन-पोषण का माहौल था। आज यह अकसर एक होटल से ज़्यादा और कुछ नहीं है। जब एक बच्चा “स्नेहरहित” परिवार में बढ़ता है तो उसका एक आम नतीजा वयस्कता में दूसरों पर भरोसा करने की असमर्थता होता है।—२ तीमुथियुस ३:३, NHT.
इसके अलावा, जैसे-जैसे इस संसार की हालत बदतर होती जाती है, हम संभव मानसिक आघातों के अनुभवों का ज़्यादा से ज़्यादा सामना करते हैं। इसी तरह की परिस्थिति में, भविष्यवक्ता मीका ने लिखा: “परममित्र पर भी भरोसा मत करो।” (मीका ७:५) आप एक छोटी-मोटी निराशा, किसी पर से यक़ीन उठने, या एक बड़ी जानजोख़िम में डालनेवाली घटना के बाद शायद ऐसा महसूस करें। हर दिन एक भावनात्मक दीवार के पीछे जीते हुए, आप दोबारा लोगों पर भरोसा करना कठिन पाते हैं और भावनात्मक रूप से सुन्न हो जाते हैं। (भजन १०२:१-७ से तुलना कीजिए।) सच है, कि ऐसी मनोवृत्ति शायद आपको कार्य करने में मदद दे, लेकिन आपके ‘मन का दुःख’ जीवन में किसी भी सच्ची ख़ुशी को कम कर देता है। (नीतिवचन १५:१३) सच्चाई यह है कि यदि आप आध्यात्मिक, भावनात्मक, मानसिक, और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं तो इस दीवार का गिरना ज़रूरी है और आपका लोगों पर भरोसा करना ज़रूरी है। क्या यह संभव है? जी हाँ।
इस दीवार का गिरना ज़रूरी क्यों है?
दूसरों से दिल की बात कहना एक दुःखी मन को आराम पहुँचाता है। हन्ना को यह अनुभव हुआ था। उसका अच्छा विवाह, एक सुरक्षित घर था, लेकिन वह बहुत ही दुःखी थी। हालाँकि वह “मन में व्याकुल,” थी वह बुद्धिमानीपूर्वक इतने भावप्रवण रूप से “यहोवा से प्रार्थना करने लगी” कि उसके होठ काँपने लगे। जी हाँ, उसने यहोवा से दिल की बात कही। उसके बाद उसने अपने दिल की बात परमेश्वर के प्रतिनिधि, एली से कही। इसका परिणाम क्या हुआ? “[हन्ना] चली गई और खाना खाया, और उसका मुंह फिर उदास न रहा।”—१ शमूएल १:१-१८.
अधिकांश संस्कृतियाँ आत्मीय बातचीत के लाभों से परिचित हैं। उदाहरण के लिए, उन लोगों के साथ विचारों और अनुभवों को बाँटना लाभदायक साबित हो सकता है जो समान परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। अनुसंधानकर्ता निष्कर्ष देते हैं: “भावनात्मक दूरी बीमारी पैदा करती है—मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए हमें दिल की बात कहने की ज़रूरत है।” वैज्ञानिक खोज के एक बढ़ते निकाय ने इस उत्प्रेरित नीतिवचन की सच्चाई की पुष्टि की जो कहता है: “जो औरों से अलग हो जाता है, वह अपनी इच्छा पूरी करने के लिये ऐसा करता है, और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है।”—नीतिवचन १८:१.
यदि आप दूसरों को बताएँगे नहीं, तो वे आपकी मदद कैसे कर सकते हैं? जबकि यहोवा परमेश्वर हृदयों का पढ़नेवाला है, हमारे आन्तरिक विचार और भावनाएँ—जब तक कि हम न बताएँ—परिवार और मित्रों के लिए एक बन्द किताब हैं। (१ इतिहास २८:९) जब समस्या परमेश्वर के नियम के उल्लंघन को शामिल करती है, तब दिल की बात कहने में देर करना मामले को केवल बदतर बनाता है।—नीतिवचन २८:१३.
निश्चित रूप से, दूसरों पर हताशा को व्यक्त करने के फ़ायदे ठेस लगने के ख़तरों से कहीं बढ़कर हैं। निश्चय ही, इसका अर्थ यह नहीं कि हमें अन्धाधुंध व्यक्तिगत ब्यौरे ज़ाहिर कर देने चाहिए। (न्यायियों १६:१८; यिर्मयाह ९:४; लूका २१:१६ से तुलना कीजिए।) “मित्रों के बढ़ाने से तो नाश होता है,” नीतिवचन १८:२४ चेतावनी देता है लेकिन उसके आगे कहता है: “परन्तु ऐसा मित्र होता है, जो भाई से भी अधिक मिला रहता है।” आप ऐसा मित्र कहाँ पा सकते हैं?
अपने परिवार पर भरोसा कीजिए
यदि आपको एक समस्या है, तो क्या आपने अपने वैवाहिक साथी या अपने माता-पिता से उस पर चर्चा की है? “बहुत सारी समस्याओं के लिए बस इतनी ही ज़रूरत है कि बारी-बारी उन्हें उगल दीजिए,” एक अनुभवी सलाहकार स्वीकार करता है। (नीतिवचन २७:९) मसीही पति जो ‘अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम रखते हैं,’ पत्नियाँ जो ‘अपने पति का भय मानती हैं,’ और माता-पिता जो ‘अपने बच्चों को प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करने’ की परमेश्वर-प्रदत्त ज़िम्मेदारी को गंभीरतापूर्वक लेते हैं, वे सहानुभूतिशील सुननेवाले और मददगार सलाहकार बनने के लिए कठिन परिश्रम करेंगे। (इफिसियों ५:२२, ३३; ६:४) हालाँकि शारीरिक अर्थ में न तो यीशु के पत्नी थी न ही बच्चे, इस मामले में उसने क्या ही शानदार उदाहरण रखा!—मरकुस १०:१३-१६; इफिसियों ५:२५-२७.
तब क्या जब समस्या उससे गंभीर हो जो परिवार द्वारा संभाली जा सकती है? मसीही कलीसिया में, हमें अकेले रहने की ज़रूरत नहीं। “किस की निर्बलता से मैं निर्बल नहीं होता?” प्रेरित पौलुस ने कहा। (२ कुरिन्थियों ११:२९) उसने सलाह दी: “एक दूसरे के भार उठाओ।” (गलतियों ६:२; रोमियों १५:१) हमारे आध्यात्मिक भाइयों और बहनों के बीच, हम निःसन्देह एक से ज़्यादा ऐसे लोग पाते हैं जो ‘विपत्ति के दिन भाई बन जाते हैं।’—नीतिवचन १७:१७.
कलीसिया पर भरोसा कीजिए
संसार-भर में यहोवा के साक्षियों की ८०,००० से ज़्यादा कलीसियाओं में, ऐसे नम्र पुरुष हैं जो ‘आपके आनन्द में सहायकों’ के तौर पर सेवा करते हैं। (२ कुरिन्थियों १:२४) ये प्राचीन हैं। “हर एक,” यशायाह कहता है, “मानो आंधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़ होगा; या निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया।” प्राचीन यही बनने का प्रयास करते हैं।—यशायाह ३२:२; ५०:४; १ थिस्सलुनीकियों ५:१४.
‘पवित्र आत्मा द्वारा नियुक्त’ किए जाने से पहले प्राचीन, शास्त्रीय माँगों को पूरा करते हैं। यह जानना उन पर आपके यक़ीन को मज़बूत करेगा। (प्रेरितों २०:२८; १ तीमुथियुस ३:२-७; तीतुस १:५-९) प्राचीन के साथ आप जो बात करेंगे वह पूरी तरह से गोपनीय रहेगी। भरोसे के लायक़ होना उसकी योग्यताओं में से एक है।—निर्गमन १८:२१; नहेमायाह ७:२.
कलीसिया में प्राचीन उनकी तरह ‘आपके प्राणों के लिए जागते रहते हैं, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा।’ (इब्रानियों १३:१७) तो क्या यह आपको इन पुरुषों पर भरोसा करने के लिए प्रेरित नहीं करता? स्वाभाविक है कि सभी प्राचीनों में सभी गुण समान नहीं होते। कुछ शायद ज़्यादा आसानी से बात करने लायक़, कृपालु, या दूसरों से ज़्यादा समझनेवाले जान पड़े। (२ कुरिन्थियों १२:१५; १ थिस्सलुनीकियों २:७, ८, ११) क्यों न एक ऐसे प्राचीन से दिल की बात कहें जिससे आप ज़्यादा खुले हुए हों?
ये पुरुष तनख़ाह पानेवाले पेशेवर नहीं हैं। इसके बजाय ये आपकी मदद करने के लिए यहोवा द्वारा दिए गए “मनुष्यों को दान” हैं। (इफिसियों ४:८, ११-१३; गलतियों ६:१) कैसे? कुशलतापूर्वक बाइबल का प्रयोग करने के द्वारा, वे इसकी चंगाई की शक्ति का आपकी व्यक्तिगत स्थिति पर प्रयोग करेंगे। (भजन १०७:२०; नीतिवचन १२:१८; इब्रानियों ४:१२, १३) वे आपके साथ और आपके लिए प्रार्थना करेंगे। (फिलिप्पियों १:९; याकूब ५:१३-१८) ऐसे प्रेममय सलाहकारों से मदद एक दुःखी आत्मा को चंगा कर सकती है और मन की शान्ति वापस दे सकती है।
भरोसेमन्द सम्बन्ध कैसे बढ़ाएँ
सहायता, सलाह, या केवल एक सुननेवाला चाहना एक कमज़ोरी या असफलता का आसार नहीं है। यह केवल इस असलियत को मानना है कि हम अपरिपूर्ण हैं और किसी भी व्यक्ति के पास सभी बातों के जवाब नहीं हैं। निश्चित रूप से, सर्वश्रेष्ठ सलाहकार और विश्वासपात्र हमारा स्वर्गीय पिता, अर्थात् यहोवा परमेश्वर है। हम भजनहार के साथ सहमत हैं जिसने लिखा: “यहोवा मेरा बल और मेरी ढाल है; उस पर भरोसा रखने से मेरे मन को सहायता मिली है।” (भजन २८:७) इस बात से आश्वस्त होते हुए कि वह हमारी सुनता है और हमारी चिन्ता करता है, हम प्रार्थना में किसी भी समय स्पष्ट रूप से उससे ‘मन की बात खोलकर कह सकते हैं।’—भजन ६२:७, ८; १ पतरस ५:७.
लेकिन आप प्राचीनों और कलीसिया के अन्य लोगों पर भरोसा करना कैसे सीख सकते हैं? सबसे पहले ख़ुद की जाँच कीजिए। क्या आपका डरना जायज़ है? क्या आपको दूसरों की नीयत पर शक है? (१ कुरिन्थियों १३:४, ७) क्या ठेस लगने के ख़तरे को कम करने का कोई रास्ता है? जी हाँ। कैसे? दूसरों के साथ व्यक्तिगत रूप से आध्यात्मिक माहौल में जान-पहचान बढ़ाने की कोशिश कीजिए। कलीसिया सभाओं में उनसे बात कीजिए। साथ मिलकर घर-घर की सेवकाई में भाग लीजिए। भरोसा भी, इज़्ज़त की तरह हासिल किया जाता है। सो इसलिए धीरज धरिए। उदाहरण के लिए, जैसे-जैसे आप एक आध्यात्मिक रखवाले को जानने लगेंगे, उसमें आपका यक़ीन बढ़ेगा। अपनी चिन्ताएँ धीरे-धीरे बताइए। यदि वह एक उचित, सहानुभूतिशील, और आदरपूर्ण तरीक़े से सुनता है, तो शायद आप और ज़्यादा बताने की कोशिश कर सकते हैं।
यहोवा के संगी उपासक, ख़ास तौर पर मसीही प्राचीन, दूसरों के साथ अपने सम्बन्धों में परमेश्वर के प्रीतिकर गुणों का अनुसरण करने का कड़ा प्रयास करते हैं। (मत्ती ५:४८) इससे कलीसिया में एक भरोसे का माहौल बनता है। एक पुराने प्राचीन ने कहा: “भाइयों को एक बात जानना ज़रूरी है: चाहे एक व्यक्ति जो भी करता है, प्राचीन का उसके लिए मसीही प्रेम कभी-भी कम नहीं होता। जो किया गया था शायद वह उसे पसन्द न करे, लेकिन वह अभी-भी अपने भाई को प्रेम करता है और उसकी मदद करना चाहता है।”
सो समस्या होने पर अकेला महसूस करने की कोई ज़रूरत नहीं। किसी ऐसे व्यक्ति से बात कीजिए जो “आत्मिक” हो और आपका बोझ हलका करने में आपकी मदद कर सके। (गलतियों ६:१) याद रखिए कि “उदास मन दब जाता है,” लेकिन “मनभावने वचन मधुभरे छत्ते की नाईं प्राणों को मीठे लगते, और हड्डियों को हरी-भरी करते हैं।”—नीतिवचन १२:२५; १६:२४.
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एक रिश्तेदार, एक मित्र, या एक आध्यात्मिक भाई की व्यक्तिगत मदद करने के लिए किसी भी मसीही को बुलाया जा सकता है। क्या आप जानते हैं कि मदद कैसे करनी है?
एक प्रभावकारी सलाहकार
पहुँच लायक़ है: मत्ती ११:२८, २९; १ पतरस १:२२; ५:२, ३
सही अवसर चुनता है: मरकुस ९:३३-३७
समस्या को समझने का प्रयास करता है: लूका ८:१८; याकूब १:१९
उत्तेजित नहीं होता: कुलुस्सियों ३:१२-१४
दुःखदायी भावनाओं को सहने में सहायता करता है: १ थिस्सलुनीकियों ५:१४; १ पतरस ३:८
अपनी हद पहचानता है: गलतियों ६:३; १ पतरस ५:५
सीधी सलाह देता है: भजन १९:७-९; नीतिवचन २४:२६
गोपनीयता बनाए रखता है: नीतिवचन १०:१९; २५:९