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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
w97 6/15 पेज 30-31

पाठकों के प्रश्‍न

अपराधियों के लिए प्राणदंड, अर्थात्‌ मृत्युदंड के बारे में बाइबल क्या सूचित करती है?

यह स्वाभाविक है कि हम में से प्रत्येक की इस विषय पर अपनी व्यक्‍तिगत भावनाएँ होंगी जो जीवन में हमारे अनुभव या परिस्थिति पर आधारित होंगी। फिर भी, यहोवा के साक्षियों के तौर पर, हमें प्राणदंड के बारे में परमेश्‍वर के विचार के अनुरूप होने की कोशिश करनी चाहिए, और उन राजनैतिक पक्षों के संबंध में तटस्थ रहना है जो अनेक लोग इस विषय पर लेते हैं।

संक्षिप्त में कहें तो, अपने लिखित वचन में परमेश्‍वर यह सूचित नहीं करता कि प्राणदंड ग़लत है।

मानव इतिहास की शुरूआत में, यहोवा ने इस विषय पर अपने विचार व्यक्‍त किए, जैसे हम उत्पत्ति अध्याय ९ में पढ़ते हैं। यह नूह और उसके परिवार के संबंध में था, जो समस्त मानव परिवार के पूर्वज बने। जहाज़ से उनके बाहर आने के बाद, परमेश्‍वर ने कहा कि वे जानवरों को खा सकते थे—यानी कि, जानवरों को मारा जा सकता था, उनका लहू पूरी तरह से बहाकर उन्हें खाया जा सकता था। फिर, उत्पत्ति ९:५, ६ में परमेश्‍वर ने कहा: “और निश्‍चय मैं तुम्हारा लोहू अर्थात्‌ प्राण का पलटा लूंगा: सब पशुओं, और मनुष्यों, दोनों से मैं उसे लूंगा: मनुष्य के प्राण का पलटा मैं एक एक के भाई बन्धु से लूंगा। जो कोई मनुष्य का लोहू बहाएगा उसका लोहू मनुष्य ही से बहाया जाएगा क्योंकि परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप के अनुसार बनाया है।” सो यहोवा ने हत्यारों के मामले में प्राणदंड देने का अधिकार दिया।

जिस दौरान परमेश्‍वर ने इस्राएल के साथ अपने लोगों के तौर पर व्यवहार किया, ईश्‍वरीय नियम के विरुद्ध कई और गंभीर अपराधों की सज़ा मौत थी। गिनती १५:३० में, हम यह व्यापक कथन पढ़ते हैं: “क्या देशी क्या परदेशी, जो प्राणी [“प्राण,” NW] ढिठाई से कुछ करे, वह यहोवा का अनादर करनेवाला ठहरेगा, और वह प्राणी [“प्राण,” NW] अपने लोगों में से नाश किया जाए।”

लेकिन मसीही कलीसिया के स्थापित हो जाने के बाद के बारे में क्या? ख़ैर, हम जानते हैं कि यहोवा ने मानवी सरकारों को अस्तित्त्व में रहने का अधिकार दिया है, और उसने उन्हें प्रधान अधिकारी का नाम दिया है। दरअसल, ऐसे सरकारी अधिकारियों के प्रति आज्ञाकारी होने के लिए मसीहियों को सलाह देने के बाद, बाइबल कहती है कि ऐसे जन ‘तेरी भलाई के लिये परमेश्‍वर के सेवक हैं। परन्तु यदि तू बुराई करे, तो डर; क्योंकि वह तलवार व्यर्थ लिए हुए नहीं और परमेश्‍वर का सेवक है; कि उसके क्रोध के अनुसार बुरे काम करनेवाले को दण्ड दे।’—रोमियों १३:१-४.

क्या इसका यह अर्थ है कि सरकार को उन लोगों का जीवन ले लेने का भी अधिकार है जो गंभीर अपराध करते हैं? पहला पतरस ४:१५ के शब्दों से, हमें हाँ का निष्कर्ष निकालना होगा। उस परिच्छेद में प्रेरित ने अपने भाइयों से आग्रह किया: “तुम में से कोई व्यक्‍ति हत्यारा या चोर, या कुकर्मी होने, या पराए काम में हाथ डालने के कारण दुख न पाए।” क्या आपने ग़ौर किया, ‘तुम में से कोई व्यक्‍ति हत्यारा होने के कारण दुख न पाए’? पतरस ने यह नहीं सुझाया कि सरकारों के पास एक हत्यारे को उसके अपराध के लिए दुःख देने का कोई अधिकार नहीं है। इसके विपरीत, उसने सूचित किया कि एक हत्यारे को शायद उचित रूप से योग्य दंड मिले। क्या इसमें सज़ा-ए-मौत शामिल होती?

हो सकती थी। यह प्रेरितों अध्याय २५ में दिए गए पौलुस के शब्दों से स्पष्ट होता है। यहूदियों ने पौलुस पर उनकी व्यवस्था के विरुद्ध किए गए अपराधों का आरोप लगाया। अपने क़ैदी, पौलुस को रोमी हाकिम के पास भेजते वक़्त, पलटन के सरदार ने यह रिपोर्ट दी जो प्रेरितों २३:२९ में दी गयी है: “मैं ने जान लिया, कि वे अपनी व्यवस्था के विवादों के विषय में उस पर दोष लगाते हैं, परन्तु मार डाले जाने या बान्धे जाने के योग्य उस में कोई दोष नहीं।” (तिरछे टाइप हमारे।) दो साल के बाद पौलुस ने अपने आपको हाकिम फेस्तुस के सामने खड़ा पाया। हम प्रेरितों २५:८ में यों पढ़ते हैं: “पौलुस ने उत्तर दिया, कि मैं ने न तो यहूदियों की व्यवस्था का और न मन्दिर का, और न कैसर का कुछ अपराध किया है।” लेकिन अब सज़ा के बारे में, प्राणदंड के बारे में भी उसकी टिप्पणियों पर ध्यान केंद्रित कीजिए। हम प्रेरितों २५:१०, ११ में पढ़ते हैं:

“पौलुस ने कहा; मैं कैसर के न्याय आसन के साम्हने खड़ा हूं: मेरे मुकद्दमे का यहीं फैसला होना चाहिए: जैसा तू अच्छी तरह जानता है, यहूदियों का मैं ने कुछ अपराध नहीं किया। यदि अपराधी हूं और मार डाले जाने योग्य कोई काम किया है; तो मरने से नहीं मुकरता; परन्तु जिन बातों का ये मुझ पर दोष लगाते हैं, यदि उन में से कोई बात सच न ठहरे, तो कोई मुझे उन के हाथ नहीं सौंप सकता: मैं कैसर की दोहाई देता हूं।” (तिरछे टाइप हमारे।)

पौलुस ने, विधिवत्‌ नियुक्‍त अधिकारी के सामने खड़े होकर यह स्वीकार किया कि कैसर के पास कुकर्मियों को सज़ा देने का, यहाँ तक कि उन्हें मृत्युदंड देने का अधिकार था। यदि वह दोषी था तो उसने सज़ा का विरोध नहीं किया। इसके अतिरिक्‍त, उसने यह नहीं कहा कि कैसर केवल हत्यारों को ही प्राणदंड दे सकता है।

माना कि रोमी न्यायिक व्यवस्था परिपूर्ण नहीं थी; ना ही आज की मानवी न्यायिक व्यवस्थाएँ परिपूर्ण हैं। उस समय के और आज के भी कुछ निर्दोष लोगों को दोषी ठहराया गया है और सज़ा दी गयी है। यहाँ तक कि पिलातुस ने यीशु के बारे में कहा: “मैं ने उस में मृत्यु के दण्ड के योग्य कोई बात नहीं पाई! इसलिये मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूं।” जी हाँ, यद्यपि सरकारी अधिकारी ने स्वीकारा कि यीशु निर्दोष था, इस निर्दोष व्यक्‍ति को प्राणदंड दिया गया।—लूका २३:२२-२५.

ऐसे अन्यायों ने पौलुस या पतरस को यह तर्क करने के लिए नहीं प्रेरित किया कि प्राणदंड मूलतः अनैतिक है। इसके बजाय, इस विषय पर परमेश्‍वर का विचार है कि जब तक कैसर के प्रधान अधिकारी अस्तित्त्व में हैं, वे ‘तलवार लिए हुए हैं कि बुरे काम करनेवाले को दण्ड दे।’ इसमें प्राणदंड देने के अर्थ में तलवार चलाना शामिल है। लेकिन बात जब इस विवादास्पद सवाल की आती है कि इस संसार की किसी सरकार को हत्यारों को मृत्युदंड देने के लिए अपने अधिकार का प्रयोग करना चाहिए या नहीं, तो असली मसीही सावधानीपूर्वक तटस्थ रहते हैं। मसीहीजगत के पादरीवर्ग से भिन्‍न, वे इस विषय पर किसी भी बहस से दूर रहते हैं।

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